दूरस्थो नार्चयेदेनं न क्रुद्धो नान्तिके स्त्रियाः । यानासनस्थश्चैवैनं अवरुह्याभिवादयेत् । ।

एनम् शिष्य अपने गुरू को दूरस्थः दूर से न अर्चयेत् नमस्कार न करे न क्रुद्धः न क्रोध में न स्त्रियाः अन्ति के जब अपनी स्त्री के पास बैठे हों न उस स्थिति में जाकर अभिवादन करे च और यान + आसनस्थः यदि सवारी में बैठा हो तो अवरूह्य उतरकर एनम् अपने गुरू को अभिवादयेत् अभिवादन करे ।

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