नोदाहरेदस्य नाम परोक्षं अपि केवलम् । न चैवास्यानुकुर्वीत गतिभाषितचेष्टितम् । ।

परोक्षम् अपि पीछे से भी अस्य अपने गुरू का केवलं नाम न उदाहरेत् केवल नाम न ले अर्थात् जब भी गुरू के नाम का उच्चारण करना पड़े तो ‘आचार्य’ ‘गुरू’ आदि सम्मानबोधक शब्दों के साथ करना चाहिए, अकेला नाम नहीं च और अस्य इस गुरू की गति + भाषित + चेष्टितम् चाल, वाणी तथा चेष्टाओं का न अनुकुर्वीत अनुकरण – नकल न करे ।

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