आसीनस्य स्थितः कुर्यादभिगच्छंस्तु तिष्ठतः । प्रत्युद्गम्य त्वाव्रजतः पश्चाद्धावंस्तु धावतः ।

गुरू के समीप रहते ब्रह्मचारी की मर्यादाएँ

आसीनस्य स्थितः बैठे हुए गुरू से खड़ा होकर तिष्ठतः तु अभिगच्छन् खड़े हुए गुरू के सामने जाकर आव्रजतः तु प्रति + उद्गम्य अपनी ओर आते हुए गुरू उसकी ओर शीघ्र आगे बढ़कर धावतः तु पश्चात् धावन् दौड़ते हुए के पीछे दौड़कर कुर्यात् प्रतिश्रवण और बातचीत (२।१७०) करे ।

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