शरीरं चैव वाचं च बुद्धीन्द्रियमनांसि च । नियम्य प्राञ्जलिस्तिष्ठेद्वीक्षमाणो गुरोर्मुखम् ।

 

गुरू के सामने खड़े होने की अवस्था में ब्रह्मचारी शरीरं च वाचं च बुद्धि + इन्द्रिय + मनांसि एव च शरीर, वाणी, ज्ञानेन्द्रियों और मन को भी नियम्य वश में करके गुरोः मुखं वीक्षमाणः गुरू के सामने देखता हुआ प्रांज्जलिः हाथ जोड़कर तिष्ठेत् खड़ा होवे ।

 

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