अभ्यङ्गं अञ्जनं चाक्ष्णोरुपानच्छत्रधारणम् । कामं क्रोधं च लोभं च नर्तनं गीतवादनम्

अभ्यंगम् अंगों का मर्दन – बिना निमित्त उपस्थेन्द्रिय का स्पर्श अक्ष्णोः च अंज्जनम् आंखों में अंच्जन उपानत् – छत्र – धारणम् जूते और छत्र का धारण कामं क्रोधं लोभं च काम, क्रोध, लोभ, मोह, भय, शोक, ईष्र्या, द्वेष चकार से मोह, भय, शोक, ईष्र्या, द्वेष का ग्रहण किया है । च और नत्र्तनं गीत – वादनम् नाच, गान, बजाना ‘इनको भी छोड़ देवे’ यह पूर्वश्लोक से अनुवृत्ति आती है ।

(स० प्र० तृतीय समु०)

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