अहिंसयैव भूतानां कार्यं श्रेयोऽनुशासनम् । वाक्चैव मधुरा श्लक्ष्णा प्रयोज्या धर्मं इच्छता

अहिंसया एव भूतानाम् विद्वान् और विद्यार्थियों को योग्य है कि वैरबुद्धि छोड़के सब मनुष्यों के श्रेयः अनुशासनं कार्यम् कल्याण के मार्ग का उपदेश करें च और मधुरा श्लक्ष्णा वाक् प्रयोज्या उपदेष्टा मधुर, सुशीलतायुक्त वाणी बोलें धर्मम् इच्छता जो धर्म की उन्नति चाहे वह सदा सत्य में चले और सत्य ही का उपदेश करे ।

(स० प्र० तृतीय समु०)

‘‘इसलिये विद्या पढ़ विद्वान् धर्मात्मा होकर निर्वैरता से सब प्राणियों के कल्याण का उपदेश करे और उपदेश में वाणी मधुर और कोमल बोले । जो सत्योपदेश से धर्म की वृद्धि और अधर्म का नाश करते हैं वे पुरूष धन्य हैं ।’’

(स० प्र० दशम समु०)

 

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