ब्राह्मस्य जन्मनः कत्र्ता वेदाध्ययन के जन्म को देने वाला स्वधर्मस्य च शासिता और अपने धर्म का उपदेश देने वाला विप्रः विद्वान् बालः अपि बालक अर्थात् अल्पायु होते हुए भी धर्मतः धर्म से वृद्धस्य पिता भवति शिक्षा प्राप्त करने वाले दीर्घायु व्यक्ति का पिता अर्थात् गुरू के समान होता है ।