यत्सर्वेणेच्छति ज्ञातुं यन्न लज्जति चाचरन् । येन तुष्यति चात्मास्य तत्सत्त्वगुणलक्षणम् ।

और जब मनुष्य का आत्मा सब से जानने को चाहे, गुण ग्रहण करता जाये, अच्छे कामों में लज्जा न करे और जिस कर्म से आत्मा प्रसन्न होवे अर्थात् धर्माचरण ही में रुचि रहे तब समझना कि मुझ में सत्वगुण प्रबल है

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