जिस कर्म से इस लोक में जीवात्मा पुष्कल प्रसिद्धि चाहता, दरिद्रता होने में भी चारण, भाट आदि को (अपनी प्रसिद्धि के लिए) दान देना नहीं छोड़ता, तब समझना कि मुझ में रजोगुण प्रबल है ।
जिस कर्म से इस लोक में जीवात्मा पुष्कल प्रसिद्धि चाहता, दरिद्रता होने में भी चारण, भाट आदि को (अपनी प्रसिद्धि के लिए) दान देना नहीं छोड़ता, तब समझना कि मुझ में रजोगुण प्रबल है ।