यत्तु दुःखसमायुक्तं अप्रीतिकरं आत्मनः । तद्रजो प्रतीपं विद्यात्सततं हारि देहिनाम्

जब आत्मा और मन दुःखसंयुक्त प्रसन्नतारहित विषय में इधर-उधर गमन आगमन में लगे तब समझना कि रजोगुण प्रधान, सत्वगुण और तमोगुण अप्रधान है । (स. प्र. नवम समु.)

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