यदि एक अकेला सब वेदों का जानने हारा द्विजों में उत्तम संन्यासी जिस धर्म की व्यवस्था करे वही श्रेष्ठ धर्म है, अज्ञानियों के सहस्रों, लाखों, करोड़ो मिलके जो कुछ व्यवस्था करे, उसको कभी न मानना चाहिए ।
’द्विजों में उत्तम अर्थात् चतुर्थाश्रमी संन्यासी, अकेला भी जिस धर्म- व्यवहार के करने का निश्चय करे, वही कर्त्तव्य परम धर्म समझना, किन्तु अज्ञानियों के सहस्रों ,लाखों करोडो पुरुषों का कहा हुआ धर्म-व्यवहार कभी न मानना चाहिए ।’