तथा ऋग्वेदवित्, यजुर्वेदवित् और सामवेदवित् इन तीनों विद्वानों की भी सभा धर्मसंशय अर्थात् सब व्यवहारों के निर्णय के लिए होनी चाहिए ।
’और जिस सभा में ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद के जानने वाले तीन सभासद होके व्यवस्था करें, उस सभा की की हुई व्यवस्था का भी कोई उल्लंघन न करे ।’ (स. प्र. षष्ठ समु.)