अव्रतानां अमन्त्राणां जातिमात्रोपजीविनाम् । सहस्रशः समेतानां परिषत्त्वं न विद्यते ।

ब्रह्मचर्य, सत्यभाषण आदि व्रत वेदविद्या वा विचार से रहित जन्ममात्र से शूद्रवत् वर्तमान है, उन सहस्रों मनुष्यों के मिलने से भी सभा नहीं कहाती ।

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