त्रैविद्यो हेतुकस्तर्की नैरुक्तो धर्मपाठकः । त्रयश्चाश्रमिणः पूर्वे परिषत्स्याद्दशावरा

उन दशों में इस प्रकार के विद्वान् होवें- तीन वेदों के विद्वान् चौथा हेतुक अर्थात कारण-अकारण का ज्ञाता, पांचवा तर्की=न्यायशास्त्रवित, छठा-निरुक्त का जानने हारा, सातवां- धर्मशास्त्रवित आठवां- ब्रह्मचारी, नववां-गृहस्थ, और दशवां वानप्रस्थ, इन महात्माओं की सभा होवें ।

’इस सभा में चारों वेद, न्यायशास्त्र, निरुक्त धर्मशास्त्र आदि के वेत्ता विद्वान् सभासद् हों, परन्तु वे ब्रह्मचारी, गृहस्थ और वानप्रस्थ हों, तब वह सभा कि जिसमें दश विद्वानों से न्यून न होने चाहिएँ ।’

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