दशावरा वा परिषद्यं धर्मं परिकल्पयेत् । त्र्यवरा वापि वृत्तस्था तं धर्मं न विचालयेत् । ।

न्यून से न्यून दश विद्वानों अथवा बहुत न्यून हों तो तीन विद्वानों की सभा जैसी व्यवस्था करे, उस धर्म अर्थात् व्यवस्था का उल्लंघन कोई भी न करे ।

’गृहस्थ लोग छोटों, बड़ो वा राजकार्यों के सिद्ध करने में कम से कम दश अर्थात् ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेदज्ञ, हैतुक(नैयायिक), तर्ककर्ता, नैरुक्त=निरुक्तशास्त्रज्ञ, धर्माध्यापक, ब्रह्मचारी, स्नातक और वानप्रस्थ विद्वानों, अथवा अतिन्यूनता करे तो तीन वेदवित् (ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेदज्ञ) विद्वानों की सभा से कर्त्तव्याकर्त्तव्य, धर्म और अधर्म का जैसा निश्चय हो, वैसा ही आचरण किया करे। ’

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