वेदशास्त्रार्थतत्त्वज्ञो यत्र तत्राश्रमे वसन् । इहैव लोके तिष्ठन्स ब्रह्मभूयाय कल्पते । ।

वेदशास्त्र के अर्थतत्व का ज्ञाता विद्वान् किसी भी आश्रम में रहता हुआ, इसी वर्तमान जन्म में ही ब्रह्मप्राप्ति के लिए अधिकाधिक समर्थ हो जाता है ।

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