जैस धधकती हुई आग गीले वृक्षों को भी जला देती है उसी प्रकार वेदों का ज्ञाता विद्वान् अपने कर्मों से उत्पन्न होने वाले संस्कार-दोषों को जला देता है अर्थात् वेदज्ञान रूपी अग्नि से दुष्ट संस्कारों को मिटाकर आत्मा को पवित्र रखता है ।
जैस धधकती हुई आग गीले वृक्षों को भी जला देती है उसी प्रकार वेदों का ज्ञाता विद्वान् अपने कर्मों से उत्पन्न होने वाले संस्कार-दोषों को जला देता है अर्थात् वेदज्ञान रूपी अग्नि से दुष्ट संस्कारों को मिटाकर आत्मा को पवित्र रखता है ।