स्थानासनाभ्यां विहरेदशक्तोऽधः शयीत वा । ब्रह्मचारी व्रती च स्याद्गुरुदेवद्विजार्चकः

यह प्रक्षिप्त श्लोक है और मनु स्मृति का भाग नहीं है .

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