शूद्रो ब्राह्मणतां एति ब्राह्मणश्चैति शूद्रताम् । क्षत्रियाज्जातं एवं तु विद्याद्वैश्यात्तथैव च

(श्रेष्ठ-अश्रेष्ठ कर्मों के अनुसार ही—) शुद्र ब्राह्मण और ब्राह्मण शूद्र हो जाता है अर्थात् गुणकर्मों के अनुकूल ब्राह्मण हो तो ब्राह्मण रहता है तथा जो ब्राह्मण क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र के गुण वाला हो तो वह क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र हो जाता है । वैसे शूद्र भी मूर्ख हो तो वह शूद्र रहता और जो उत्तम गुणयुक्त हो तो यथायोग्य ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य हो जाता है वैसे ही क्षत्रिय और वैश्य के विषय में भी जान लेना । (ऋ. भा. भू. पठनपा.)

“उत्तम गुण-कर्म-स्वभाव से जो शूद्र है वह वैश्य, क्षत्रिय और ब्राह्मण, और वैश्य क्षत्रिय और ब्राह्मण, तथा क्षत्रिय ब्राह्मण, वर्ण के अधिकार और क्रमों को प्राप्त होता है । वैसे ही नीच कर्म और गुणों से जो ब्राह्मण है वह क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र और क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, तथा वैश्य, शूद्र वर्ण के अधिकार और कर्मों को प्राप्त होता है ।” (सं. वि. विवाह सं.)

“जो शूद्रकुल में उत्पन्न होके ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य के समान गुण, कर्म, स्वभाव वाला हो तो वह शूद्र ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य हो जाय, वैसे ही जो ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यकुल में उत्पन्न हुआ हो और उसके गुण कर्म स्वभाव शूद्र के सदृश हो  तो वह शूद्र हो जाये, वैसे क्षत्रिय, वैश्य के कुल में उत्पन्न होके ब्राह्मण वा शूद्र के समान होने से ब्राह्मण और शूद्र भी हो जाता है । अर्थात् चारों वर्णों मे जिस-जिस वर्ण के सदृश जो-जो पुरुष वा स्त्री हो वह-वह उसी वर्ण में गिनी जावें । ” (स. प्र. चतुर्थ समु.)

ऋषि ने पूना प्रवचन में इस श्लोक को उद्धृत करके कहा है—

’शूद्र ब्राह्मण हो जाता है और ब्राह्मण भी शूद्र हो जाता है’, इस मनु के वाक्य का भी विचार करना चाहिए । (पृ. 20)

अनुशीलन- 10/57-58 में कर्मानुसार म्लेच्छ व्यक्तियों की पहचान बतलाकर 10/65 में कर्मानुसार वर्ण का परिवर्तन हो जाना कहा है अर्थात् कर्मानुसार अनार्य व्यक्ति की पहचान तो होती ही है, कर्म के आधार पर उच्च-निम्न वर्ण वाले की पहचान भई होती है और वर्ण का परिवर्तन भी । इस प्रकार 10/57-58 के पश्चात् सम्बद्धता की दृष्टि से 10/65 वां प्रासंगिक है ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *