वर्णापेतं अविज्ञातं नरं कलुषयोनिजम् । आर्यरूपं इवानार्यं कर्मभिः स्वैर्विभावयेत् ।

वर्णों से बहिष्कृत या वर्णदीक्षा से रहित श्रेष्ठ रूप में होते हुए किन्तु वास्तव में अनार्य, दुष्ट प्रवृत्ति वाले अपरिचित व्यक्ति को उसके अपने कर्मो से जान ले ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *