एकं एव तु शूद्रस्य प्रभुः कर्म समादिशत् । एतेषां एव वर्णानां शुश्रूषां अनसूयया । ।

‘‘प्रभुः परमेश्वर ने शूद्रस्य जो विद्याहीन – जिसको पढ़ने से भी विद्या न आ सके, शरीर से पुष्ट, सेवा में कुशल हो, उस शूद्र के लिए एतेषामेव वर्णानाम इन ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तीनों वर्णों की अनसूयया निन्दा से रहित प्रीति से शुश्रूषाम् सेवा करना, एकमेव कर्म यही एक कर्म समादिशत् करने की आज्ञा दी है ।’’

(सं० वि० गृहाश्रम प्रक०)

सृष्टि – उत्पत्ति प्रकरण में –

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