तत् चत्वारि सहस्त्राणि वर्षाणां कृतं युगम् आहुः उन देवताओं ६७ वें में जिनके दिन – रातों का वर्णन है के चार हजार दिव्य वर्षों का एक ‘सतयुग’ कहा है (तस्य) इस सतयुग की यावत् शती सन्ध्या उतने ही सौ वर्ष की अर्थात् ४०० वर्ष की संध्या होती है और तथाविधः उतने ही वर्षों का अर्थात् संध्यांशः संध्याशं का समय होता है ।