(फिर उस परमात्मा ने) (लोकानां तु) प्रजाओं अर्थात् समाज की (विबृद्धयर्थम्) विशेष वृद्धि – शान्ति, समृद्धि एवं प्रगति के लिए (मुखबाहु – ऊरू – पादतः) मुख, बाहु, जंघा और पैर की तुलना के अनुसार क्रमशः (ब्राह्मणं क्षत्रियं वैश्यं च शूद्रम्) ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र वर्ण को (निरवर्तयत्) निर्मित किया ।