यथा र्तुलिङ्गान्यृतवः स्वयं एव र्तुपर्यये । स्वानि स्वान्यभिपद्यन्ते तथा कर्माणि देहिनः

(यथा) जैसे (ऋतवः) ऋतुएं (ऋतुपर्यये) ऋतु – परिवर्तन होने पर (स्वयम् एव) अपने आप ही (ऋतुलिंगानि) अपने – अपने ऋतुचिन्हों – जैसे, वसन्त आने पर कुसुम – विकास, आम्रमंज्जरी आदि को (अभिपद्यन्ते) प्राप्त करती हैं (तथा) उसी प्रकार (देहिनः) देहधारी प्राणी भी (स्वानि – स्वानि कर्माणि) अपने – अपने कर्मों को प्राप्त करते हैं ।

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