यं तु कर्मणि यस्मिन्स न्ययुङ्क्त प्रथमं प्रभुः । स तदेव स्वयं भेजे सृज्यमानः पुनः पुनः ।

सः प्रभुः) उस परमात्मा ने (प्रथमम्) सृष्टि के आरम्भ में (यं तु) जिस प्राणी को (यस्मिन् कर्मणि) जिस कर्म में (न्ययुड्क्त) लगाया (सः) वह फिर (पुनः पुनः) बार – बार (सृज्यमानः) उत्पन्न होता हुआ (तदेव) उसी कर्म को ही (स्वयम्) अपने आप (भेजे) प्राप्त करने लगा ।

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