(दशार्धानाम् तु) दश के आधे अर्थात् पांच महाभूतों की ही (याः) जो (विनाशिन्यः) विनाशशील अर्थात् अपने अहंकार कारण में लीन होकर नष्ट होने के स्वभाव वाली (अण्व्यः मात्राः स्मृताः) सूक्ष्म तन्मात्राएं कही गई हैं (ताभिः) उनके (सार्धं) साथ अर्थात् उनको मिलाकर ही (इदं सर्वम्) यह समस्त संसार (अनुपूर्वशः) क्रमशः – सूक्ष्म से स्थूल, स्थूल से स्थूलतर, स्थूलतर से स्थूलतम के क्रम से (संभवति) उत्पन्न होता है ।