(च) और फिर (कर्मणां विवेकार्थम्) कर्मों के विवेचन के लिए (धर्म – अधर्मो) धर्म – अधर्म का (व्येचयत्) विभाग किया (च) तथा (इमाः प्रजाः) इन प्रजाओं को (सुख दुःखादिभिः द्वन्द्वैः) सुख – दुःख आदि द्वन्द्वों (दो विरोधी गुणों या अवस्थाओं के जोड़ों) से (अयोजयत्) संयुक्त किया ।