(अ) स्त्रियों के धन की सुरक्षा के विशेष निर्देश
स्त्रियों को अबला समझकर कोई भी, चाहे वह बन्धु-बान्धव ही क्यों न हों, यदि यिों के धन पर अधिकार कर लें, तो मनु नेउन्हें चोर सदृश दण्ड से दण्डित करने का आदेश दिया है
(9.212; 3.52; 8.28; 8.29)। कुछ प्रमाण प्रस्तुत हैं-
वन्ध्याऽपुत्रासु चैवं स्याद् रक्षणं निष्कुलासु च।
पतिव्रतासु च स्त्रीषु विधवास्वातुरासु च॥ (8.28)
जीवन्तीनां तु तासां ये तद्धरेयुः स्वबान्धवाः।
तान् शिष्यात् चौरदण्डेन धार्मिकः पृथिवीपतिः॥ (8.29)
अर्थ-‘सन्तानहीन, पुत्रहीन, जिसके कुल में कोई पुरुष न बचा हो, पतिव्रत धर्म पर स्थिर, विधवा और रोगिणी, इन स्त्रियों के धन की रक्षा करना राजा का कर्त्तव्य है।’
‘यदि जीते-जी इनके धन को इनके परिजन या सगे-सबन्धी ले लें तो उनको धार्मिक राजा चोर के समान मानकर उसी दण्ड से दण्डित करे और उक्त स्त्रियों का धन दिलवाये।’
(आ) नारियों के प्रति किये अपराधों में कठोर दण्ड
यिों की सुरक्षा के दृष्टिगत नारियों की हत्या और उनका अपहरण करने वालों के लिए मृत्युदण्ड का विधान करके तथा बलात्कारियों के लिए यातनापूर्ण दण्ड देने के बाद देश-निकाला का आदेश देकर मनु ने नारियों की सुरक्षा को सुनिश्चित बनाने का यत्न किया है। नारियों के जीवन में आने वाली प्रत्येक छोटी-बड़ी कठिनाई का ध्यान रखते हुए मनु ने उनके निराकरण हेतु स्पष्ट निर्देश दिये हैं। पुरुषों को निर्देश है कि वे माता, पत्नी और पुत्री के साथ झगड़ा न करें (4.180)। नारियों पर मिथ्या दोषारोपण करने वालों, नारियों को निर्दोष होते हुए त्यागने वालों, पत्नी के प्रति वैवाहिक दायित्व न निभाने वालों के लिए दण्ड का विधान है।
(क) स्त्रियों के अपहरण पर दण्ड-
पुरुषाणां कुलीनानां नारीणां च विशेषतः।
मुयानां चैव रत्नानां हरणे वधमर्हति॥ (8.323)
अर्थ-‘स्त्रियों का विशेष रूप से तथा कुलीन पुरुषों का अपहरण करने पर अपराधी को मृत्युदण्ड देना चाहिए। इसी प्रकार रत्न आदि प्रमुख पदार्थों की चोरी-डकैती के अपराध में भी मृत्युदण्ड होना चाहिए।’
(ख) स्त्रियों से बलात्कार करने पर यातनापूर्ण दण्ड-
परदाराभिमर्शेषु प्रवृत्तान् नृन् महीपतिः।
उद्वेजनकरैः दण्डैः छिन्नयित्वा प्रवासयेत्॥ (8.352)
अर्थ-‘राजा, स्त्रियों से बलात्कार और व्याभिचार में संलग्न लोगों के हाथ, पैर काटना आदि यातनापूर्ण दण्ड देकर उन्हें अपने देश से निकाल दे।’
(ग) स्त्रियों की हत्या करने पर दण्ड-
‘‘स्त्रीबालब्राह्मणघ्नांश्च हन्याद् द्विट्सेविनस्तथा।’’ (9.232)
अर्थ-‘स्त्रियों, बालकों, सदाचारी ब्राह्मणविद्वानों की हत्या करने वालों और शत्रुओं के सहयोगी लोगों को राजा मृत्युदण्ड से दण्डित करे।’