मनु विधिप्रणेता–
यद्यपि डॉ0 अम्बेडकर ने उपलध मनुस्मृति को 185 ई0 पू0 की रचना माना है और उसका रचयिता सुमति भार्गव नामक ‘मनु’ को माना है तथापि वे पूर्व मनु और उनके संविधानों के अस्तित्व को भी स्वीकार करते हैं। मनुस्मृति-काल और रचयिता के सबन्ध में डॉ0 अबेडकर को कुछ भ्रान्तियां हैं जिनका निराकरण आगे किया जायेगा। यहां केवल यही कहना अभीष्ट है कि वे स्वायंभुव मनु को प्राचीनतम और ‘विधि-निर्माता’ मानते हैं। किसी के विधान अच्छे या बुरे हों, यह प्रश्न नहीं है; हैं तो वे विधिनिर्माता के पद के अधिकारी। डॉ0 अबेडकर लिखते हैं-
(क) ‘‘इससे प्रकट होता है कि केवल मनु ने विधान बनाया। जो स्वायभुव मनु था।’’ (अंबेडकर वाङ्मय, खंड 8, पृ0 283)
इस मनु का वंश विवरण देते हुए डॉ0 अंबेडकर ने सुदास राजा को इक्ष्वाकु की 50वीं पीढ़ी में माना है। इक्ष्वाकु सातवें मनु वैवस्वत का पुत्र था और वैवस्वत मनु स्वायंभुव मनु की सुदीर्घ वंशपरपरा में सातवां मनु था। (वही खंड 13, पृ0 104, 152)
(ख) ‘‘मनु सर्वप्रथम वह व्यक्ति था जिसने उन कर्त्तव्यों को व्यवस्थित और संहिताबद्ध किया, जिन पर आचरण करने के लिए हिन्दू बाध्य थे।’’ (वही, खंड 7, पृ0 226)
(ग) ‘‘मनुस्मृति कानून का ग्रन्थ है।…..चूकिं इसमें कर्त्तव्य न करने पर दंड की व्यवस्था दी गयी है, इसलिए यह कानून है।’’ (वही, खंड 7, पृ0 226)
(घ) ‘‘पुराणों में वर्णित प्राचीन परपरा के अनुसार, जितनी अवधि के लिए किसी भी व्यक्ति का वर्ण मनु और सप्तर्षि द्वारा निश्चित किया जाता था, वह चार वर्ष की ही होती थी और उसे युग कहते थे।’’ (वही, खंड 7, पृ0 170)
यह प्राचीन विधिनिर्माता मनु की विधिव्यवस्था का वर्णन है जिस पर डॉ0 अबेडकर को कोई आपत्ति नहीं है। वे यहां इस व्यवस्था की प्रशंसा कर रहे हैं।
(ङ) ‘‘ये नियम मनु, याज्ञवल्क्य, नारद, विष्णु, कात्यायन आदि की स्मृतियों आदि से संकलित किए गए हैं। ये कुछ ऐसे प्रमुख विधि-निर्माता हैं जिन्हें हिन्दू विधि के निर्माण के क्षेत्र में प्रमाण-स्वरूप मानते हैं।’’ (वही, खंड 9, पृ0 104)
(च) ‘‘इसे हिन्दुओं के विधि निर्माता मनु ने मान्यता प्रदान की है।’’ (वही, खंड 9, पृ0 26)
(छ) आज डॉ0 अबेडकर का समान विधिनिर्माता के रूप में प्रदर्शित किया जाता है। इससे कहीं अधिक समान प्राचीन काल में मनु का था। इसी कारण जब लोकसभा में भारतीय संविधान प्रस्तुत किया गया था तो राजनेताओं और जनता ने डॉ0 अबेडकर को ‘आधुनिक मनु’ कहकर प्रशंसित किया था। तब डॉ0 अबेडकर को इस उपाधि पर गौरव की अनुभूति हुई थी उन्होंने इस तुलना पर कभी कोई आपत्ति प्रस्तुत नहीं की।
वस्तुस्थिति यह है कि डॉ0 अबेडकर जब तक विशुद्ध साहित्य समीक्षक रहे तब तक उनको मनु और मनुस्मृति की मौलिक व्यवस्था पर कोई विशेष आपत्ति नहीं हुई। तब उनके प्रायः वही निष्कर्ष थे जो प्राचीन इतिहास के थे। जब वे राजनीतिक क्षेत्र में उतरे और बौद्ध धर्म के व्यामोह से ग्रस्त हो गये, तब वे सुनियोजित रूप से मनु और मनुस्मृति की निन्दा के जाल को फैलाते चले गये। उक्त प्रसंगों में डॉ. अबेडकर ने मनु को विधिनिर्माता के रूप में जो महत्त्व और समान दिया है, उनके अनुयायियों को उसे स्मरण रखना चाहिए।
यदि आदि संविधान कार मनु है तो वैदिक साहित्य से चार गुना बड़ा बौद्ध पाली साहित्य में मनु का कोई नाम ओ निशान क्यों नही है…??
बाबासाहब जी का मनु से कोई ख़ास विरोध था न ही अन्य किसी ब्राम्हण साहित्य से , मनु का विरोध खुद हिन्दुओ और ब्रम्ह नो का था .
जो आर्य समाज या सत्य शोधक समाज से संबंधित थे चुकी बाबासाहब जी के पिता रामजी अंबेडकर के तत्वनिष्ठ सत्य शोधक समाज से मैत्री सम्बंध थे.
इस कारण आर्य समाज का एक गुट बाबासाहब जी से संवेदनशील था इसीलिए उन्होंने १९३६ में लाहोर के ज़ात पात तोड़क मण्डल के सम्मेलन में बाबासाहब को अध्यक्षता का अनुरोध किया था.
इसी तरह सत्यशोधक समाज के कई ब्राम्हण कार्यकर्ताओ के और बाबासाहब के निकट मित्रता पूर्ण संबंध थे .इसीके चलते १९२७ में महाड़(नाशिक) के( ब्रम्ह ण)बापूसाहेब सहस्त्र बुद्धे की अध्यक्षता में मनुस्मृति दहन का आयोजन किया गया . ज्ञात हो मनु के सबसे बड़े दुश्मन बाबासाहब नही बल्कि म.फुले है . म.फुले ने ही मनुस्मृति जलाने योग्य है इस तरह का ज़िक्र अपनी ‘अखण्डदि’ नामक पुस्तक में किया है.
विष्णु पुराण के अनुसार प्रत्येक मन्वन्तर का एक मनु है उन्होंने अपने मन्वन्तरों के लिए विधान क्यों नही बनाये ??
अथवा स्वायभुवमनु का बनाया विधान शाश्वत है यदि ऐसा है तो, ब्राम्हणो ने अलग मन्वन्तर क्यों बनाए???
कभी कहते हो अम्बेडकरने मनु की प्रषंसा की है ,कभी कहते हो अम्बेडकर के मनु अलग है ,और कभी अम्बेडकर मनु विरोधक है. कभी कुछ तो कभी कुछ ..???
पहले वाले पोस्ट में कुछ अलग तो दूसरे वाले में कुछ अलग अरे भाई ..!
जो गलत है उसे गलत ही कहोना ?? क्यों शब्दों की हेराफेरी करते हो , सारी दुनिया नव निर्माण में लगी है आप हो की मनु बनाम अम्बेडकर का झगड़ा गलाकर तमाशा देख रहे है.
आर्य समाज का कभी अम्बेडकर से झगड़ा रहा ही नहीं न ही है अपितु अम्बेडकर को शरण और मदद देने में आर्य समाज का योगदान है
अम्बेडकर मुम्बई में जहां रहे वो आर्य निवास था
अम्बेडकर के दलित उद्धार के विषय में स्वामी श्रद्धानंद के योगदान की सराहना देखने योग्य है
वैदिक साहित्य से चार गुना बड़ा बौद्ध पाली साहित्य ??? kya bol rahe ho janab kitne jhuth bolte ho ??? aapki sabhi baate galat hota hai… aapke comment ko approve karna aur jawab dena bhi samay ko barbaad karbaad karna hai janab.. mujhe majbur naa kare warna samay mila to aapke baudh kaa pol khol karna shuru kar dunga… aapko kuch jaankaari nahi……
अमित रॉय जी यदि आपके पास कुछ ऐसी जानकारी है तो कृपया share करें, बहुत उत्पात मचा रखा है इन लोगों ने, आप चाहे तो सीधे इनके ग्रुप आओ तर्क करे में भी शेयर कर सकते हैं
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