विदेशी लेखकों के मतानुसार मनु आदि-विधिप्रणेता: डॉ. सुरेन्द कुमार

महर्षि मनु की याति प्राचीन काल में विश्वभर में थी और आज भी है। अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर उनको जो महत्त्व प्राप्त है वह भारतीयों के लिए गौरव का विषय है। कुछ प्रमाण द्रष्टव्य हैं-

(क) अमेरिका से प्रकाशित ‘इंसाइक्लोपीडिया आफ दि सोशल सांइसिज’ में मनु को आदिसंविधानदाता और मनुस्मृति को सबसे प्रसिद्ध विधिशास्त्र बताया है-

““Throughout the farther east Manu is the name of the founder of law. Maun law book are knoun…..in

later times the name ‘MANU’ became a title which was given to juristic writers of exceptional

eminence.”” (P.260)

अर्थात्-पूर्वी देशों में सुदूर तक मनु का नाम विधि-प्रतिष्ठाता के रूप में जाना जाता है। मनु का संविधान (मनुस्मृति) भी प्रसिद्ध है। परवर्ती समय में मनु का नाम इतना महत्त्वपूर्ण बन गया कि उन देशों में संविधान निर्माताओं को ‘मनु’ नाम की उपाधि प्राप्त होने लगी। उनको ‘मनु’ कहकर पुकारा जाता था।

(ख) संस्कृत-साहित्य के प्रसिद्ध समीक्षक और विद्वान् ए.ए. मैकडानल अपने ‘ए हिस्ट्री आफ संस्कृत लिटरेचर’ में मनुस्मृति को सबसे प्राचीन और महत्त्वपूर्ण संविधान मानते हैं-

““The most important and earliest of the matricol smrities is the Manava Dharm Shastra, or cod of Manu.”” (P.432)

    अर्थात्-स्मृतियों में सबसे प्राचीन और महत्त्वपूर्ण मानव धर्मशास्त्र है जिसको ‘मनु का संविधान’ कहा जाता है।

(ग) यूरोपियन लेखक पी. थामस ने अपनी ‘॥द्बठ्ठस्रह्व ह्म्द्गद्यद्बद्दद्बशठ्ठ ष्टह्वह्यह्लशद्वह्य ड्डठ्ठस्र द्वड्डठ्ठठ्ठद्गह्म्ह्य’ नामक प्रसिद्ध पुस्तक में मनु को भारोतीयों का प्रथम संविधानदाता और मनुस्मृति को सबसे प्राचीन तथा सबसे महत्त्वपूर्ण संविधान माना है-

““Manu seems to have been the first law-giver of Indo Aryans, and all later law-givers accept his authority as Unquestionable.”” (P. 102)

       अर्थात्-मनु भारतीयों और यूरोपीय आर्यों के प्रथम विधिदाता हैं। सभी परवर्ती विधिदाता उनके संविधान मनुस्मृति को संदेहरहित मानते हैं।

(घ) जर्मन के प्रसिद्ध दार्शनिक फ्रीडरिच नीत्से च्च्ञ्जद्धद्ग ख्द्बद्यद्य ह्लश श्चशख्द्गह्म्ज्ज् में मनुस्मृति को एक उत्तम पठनीय संविधान की संज्ञा देते हैं। मनु उस संविधान के दाता हैं-

““Close the Bible and open the code of Manu.””

(Vol.1, Book II., P. 126)

-बाइबल को पढ़ना बंद करो और मनु के संविधान (मनुस्मृति) को पढ़ो।

(ङ) यूरोपियन लेखक लुईस रेनो अपनी पुस्तक ‘क्रद्गद्यद्बद्दद्बशठ्ठह्य शद्घ ड्डठ्ठष्द्बद्गठ्ठह्ल ढ्ढठ्ठस्रद्बड्ड’ में मनुस्मृति को एक कानून का शिक्षाप्रद शास्त्र

मानते हैं-

““The laws of Manu provide a good illustration of the interlacing of themes in Indian literature, here we have a legislative text, or at any rate a book of legal maxims.”” (P.49)

 

अर्थात्-मनु के कानूनी विधान बहुत अच्छी शिक्षा देने वाले हैं। वे शिक्षाएं भारतीय साहित्य से जुड़ी हुई होती हैं। मनु की पुस्तक एक संवैधानिक पुस्तक है और वह हमें कानूनी विधि-विधानों की जानकारी देती है।

(च) न्यू जर्सी (अमेरिका) से प्रकाशित ‘दि मैकमिलन फेमिली इंसाइक्लोपीडिया’ में हिन्दू कानून में मनुस्मृति को महत्त्वपूर्ण संविधान माना गया है-

““Manu, his name is attached to the most important codification of Hindu law, the Manava-dharm shastra (Law of Manu)”” ( Vol. 13, P. 131)

अर्थात्-मानव धर्मशास्त्र अर्थात् मनु का संविधान हिन्दू विधि-विधानों की एक बहुत महत्वपूर्ण संहिता है। उसके रचयिता मनु है।

(छ) संस्कृत साहित्य के समीक्षक एवं इतिहासकार ए.बी.कीथ अपने ‘ए हिस्ट्री आफ संस्कृत लिटरेचर’ में मनु को विधिदाता और न्यायमूर्ति स्वीकार करते हैं-

““Manu, he was the renewer of secrificial ordinances and the dispenser of maxims of justice.””

(P.440)

अर्थात्-मनु धार्मिक विधियों तथा न्याय की विधियों का सर्वप्रथम प्रदाता था।

(ज) ‘प्रिंसिपल आफ पोलिटिकल साइंस’ में आर.एन गिलब्रिस्ट मनुस्मृति को सबसे प्रभावी हिन्दू कानून मानते हैं –

““The most influential basis of Hindu law is the code of Manu”” (P. 163)

 

    अर्थात्-मनु का संविधान (मनुस्मृति) हिन्दू कानून के रूप में सबसे प्रभावशाली संविधान है।

विदेशी साहित्य में मनु का सबसे महत्त्वपूर्ण आदिविधिदाता के रूप में मूल्यांकन पूर्णतः सही है। मनु इस गौरवपूर्ण पद के वस्तुतः अधिकारी हैं। हम भारतीय अपने पूर्वज मनु की निन्दा करके जहां अपनी अज्ञानता का ढिंढोरा पीट रहे हैं वहीं अपने इतिहास, साहित्य, संस्कृति, सयता और पूर्वजों का अपने हाथों अपमान कर रहे हैं।

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