पं. गणपति शर्मा जी का मौलिक तर्कःराजेन्द्र जिज्ञासु

पं. गणपति शर्मा जी का मौलिक तर्कः-श्रीयुत् आशीष प्रतापसिंह लखनऊ तथा एक अन्य भाई ने मांसाहार विषयक एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न का उत्तर पूछा है। इस प्रश्न का उत्तर किसी ने एक संन्यासी महाराज से भी पूछा। प्रश्न यह था कि वृक्षों में जब जीव है तो फिर अन्न, फल व वनस्पतियों का सेवन क्या जीव हिंसा व पाप नहीं है? संन्यासी जी ने उत्तर में कहा, ऐसा करना पाप नहीं। यह वेद की आज्ञा के अनुसार है। यह उत्तर ठीक नहीं है। इसे पढ़-सुनकर मैं भी हैरान रह गया।
महान् दार्शनिक पं. गणपति शर्मा जी ने झालावाड़ शास्त्रार्थ में इस प्रश्न का ठोस व मौलिक उत्तर दिया। मांसाहार इसलिए पाप है कि इससे प्राणियों को पीड़ा व दुःख होता है। वृक्षों व वनस्पतियों में जीव सुषुप्ति अवस्था में होता है, अतः उन्हें पीड़ा नहीं होती। हमें काँटा चुभ जाये तो सारा शरीर तड़प उठता है। किसी भी अंग पर चोट लगे तो सारा शरीर सिहर उठता है। पौधे से फूल तोड़ो या वृक्ष की दो-चार शाखायें काटो तो शेष फूलों व वृक्ष की शाखाओं पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। फूल तोड़ कर देखिये, पौधा मुर्झाता नहीं है। जीव, जन्तु व मनुष्य पीड़ा अनुभव करते हैं।
पं. गणपति शर्मा जी ने यह तर्क भी दिया कि मनुष्य का , पशु व पक्षी का कोई अंग काटो तो फिर नया हाथ, पैर, भुजा नहीं उगता, परन्तु वृक्षों की शाखायें फिर फूट आती हैं। इससे सिद्ध होता है कि वनस्पतियों वृक्षों में जीव तो है, परन्तु इनकी योनि मनुष्य आदि से भिन्न है। इन्हें पीड़ा नहीं होती, अतः इन्हें खाना हिंसा नहीं है। अहिंसा की परिभाषा ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका में भी पढ़िये। पं. गणपति शर्मा जी का नाम लेकर यह उत्तर देना चाहिये। पण्डित जी का उत्तर वैज्ञानिक व मौलिक है।

2 thoughts on “पं. गणपति शर्मा जी का मौलिक तर्कःराजेन्द्र जिज्ञासु”

  1. मेरी शंका पोधों मेन जीव संबंधी है। यह कहना पूर्णतया ठेक नहीं है कि पौधे से फूल तोड़ो या वृक्ष की दो-चार शाखायें काटो तो शेष फूलों व वृक्ष की शाखाओं पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। कुछ पोधे तो ऐसे है। उदाहरण के लिए ” touch me not” का पोदधा। छूने से ही सारा पोदधा मुरझा जाता है।
    इसके अतिरिक्त आधुनिक विज्ञ के परीक्षणों के अनुसार पोधों पर संगीत का प्रभाव पड़ता है। अत: यह कहना कि ” वृक्षों व वनस्पतियों में जीव सुषुप्ति अवस्था में होता है” पूर्ण रूप से तार्किक नहीं लगता।
    मांसाहार न करने का एक अन्य तर्क यह है कि मानुषय शरीर / उसका पाचन तंत्र मांस पचाने के लिए बना ही नहीं । तथा यह तामसिक भोजन है।

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    1. इस नारंग जी
      पौधों में जीव है या नहीं इसका निर्णय करना बहुत कठिन है | इस बारे में विज्ञानं तक का एक मत नहीं है | j c bose ने यह पता लागाया था की पौधों पेड़ में जिव होते हैं मगर फिर बाद में मैंने एक आर्टिकल पढ़ा था जिसमे विज्ञानं ने यह बोला की पौधों में जिव नहीं होता | हम साग सब्जी को इस कारण खाते है क्यूंकि हमारे वेद में इन्हें खाने का बोला गया है | एक बात और यह ध्यान देना चाहिए की यदि पौधों में कुछ बीमारी हो जाती है तो उनके पत्ते पीले हो जाते है | बिज जो होते हैं वह सुषुप्ति अवस्था में होते हैं जब इसे पानी मिटटी मिलता है तो इनसे पौधे हो जाते है | ऐसी मेरी मानना है |
      धन्यवाद

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