महात्मा हंसराज के तीन कथनः– महात्मा हंसराज के व्यायानों व लेखों में मुझे तीन अनमोल मोती मिले। आपने कहा कि एक बार ला. सांईदास ऋषि का ऐश्वरवाद, उसकी ही उपासना पर व्यायान सुनकर भीड़ के साथ जब बाहर निकले तो एक ब्रह्म समाजी नेता ने भाषण सुनकर कहा कि मेरा तो अब तक सारा ही जीवन निरर्थक गया। मैंने जड़पूजा-मूर्तिपूजा का ऐसा खण्डन कभी नहीं किया, जैसा आज निर्भीक स्वामी दयानन्द ने किया है। वहाँ महात्मा जी ने इस ब्रह्म समाजी नेता का नाम नहीं दिया। मेरा मत है कि यह ला. काशीराम जी प्रधान पंजाब ब्रह्मसमाज हो सकते हैं। वह महर्षि की निडरता, विद्वत्ता व अटल ईश्वर विश्वास की बहुत प्रशंसा किया करते थे।
दूसरा कथन जो मुझे प्रेरणाप्रद लगता है, वह यह है कि महात्मा जी हजरत मुहमद की एक हदीस सुनाकर आर्यों के खरेपन की पहचान बताया करते थे। किसी ने मुहमद जी से पूछा कि आपकी सबसे प्यारी बीवी कौन है? प्रश्नकर्त्ता समझता था कि पैगबर को हजरत आयशा (जो सबसे छोटी थी) से अत्यधिक प्रेम है सो यह उसी का नाम लेंगे, परन्तु रसूल अल्लाह ने हजरत खदीजा का नाम लिया और कहा कि वह उस समय मुझ पर ईमान लाई, जब मुझे कोई नहीं जानता मानता था।
यह हदीस सुनाकर महात्मा जी कहा करते थे- धर्मप्रचार- ऋषि के मिशन के लिए कौन कष्ट झेलता व समय देता है? जो ऋषि मिशन का दीवाना है, वही महात्मा जी की दृष्टि में बड़ा व आदरणीय है।
महात्मा जी का तीसरा प्रिय कथन मेरे लिये यह है कि हम यह चाहते हैं कि मेरा तो पाँवाी गीला न हो, परन्तु देश जाति का बेड़ा पार हो जाये।
आओ! हम सब सोचें कि हम भी क्या इसी श्रेणी में तो नहीं आते। वैदिक धर्म पर जब वार हो तो उत्तर दूसरे दें। वेद पर, ऋषि पर प्रहार हो या अंधविश्वासों से लड़ना हो- मर्तिपूजकों से, ईसाइयों से, मुसलमानों से, रजनीश आदि नास्तिकों,ाोगवादियों व गुरुडम वाले तिलक कण्ठीधारी बाबाओं से, जातिवादी तत्त्वों पर लिखने बोलने के लिए कोई और आगे आये, परन्तु मैं अपने पद से चिपका रहूँ। कितने वर्षों तक आप प्रधान व मन्त्री रहे- यह कोई इतिहास नहीं। इतिहास दुःख कष्ट झेलने को कहते हैं। कभी किसी से टक्कर ली? कभी कोई अभियोग चला? भारत सरकार ने निजाम की जीवनी दिल्ली से छापी। उसको महिमा मण्डित किया, फिर श्रद्धाराम की आड़ में ऋषि की निन्दा की। आपके मुख पर टेप लगी है। आप कुछ बोलने का साहस ही न कर पाये। उत्तर में दो पक्तियाँ तो लिख देते। भारत सरकार को एक रोष भरा पत्र तो लिख सकते थे। संघर्ष करना जिनके बस की बात नहीं, जो घर में ही कलह जगाने के लिए बेचैन रहते हैं, उनकी करनी व कथनी से इतिहास नहीं बन सकता। ऐसे लोग रिपोर्ट का पेट तो भर सकते हैं, परन्तु इतिहास ऐसे लोगों को कूड़ेदान में फेंक देता है। इतिहास पं. लेखराम, श्याम भाई, भक्त फूलसिंह, स्वामी श्रद्धानन्द, महात्मा नारायण सिंह व पं. रुचिराम ही रच सकते हैं। इतिहास निर्माता तो स्वामी चिदानन्द अनुभवानन्द जी थे, जिन्हें पद प्रेमियों ने बिसार दिया है।
Very Straggle Life of Mahatma Hansraj ji form Dayanand Anglo Vedic Public school