महाभारत में लिखा है कि लाखों गौओं के सींग और खुर सोने से जड़े थे। लाखों हाथी और घोड़ों की काठियाँ (बैठने के गद्दे), झूमर, पैर सोने में मढ़े थे। क्या उस समय लाखों टन सोना था भारत में?
समाधान-
वर्तमान की अपेक्षा हमारा भारतवर्ष अधिक ऐश्वर्य सपन्न था-विश्व में सबसे अधिक सपन्न। प्राचीन काल में तो था ही मध्यकाल को भी देखें तो यहाँ धन धान्य की कोई कमी न थी। सोमनाथ के मन्दिर का इतिहास देखिये! इस मन्दिर के पास अपार धन था। सोना, चाँदी, हीरे, मोती, सोने की ठोस मूर्तियाँ चाँदी की मूर्तियाँ, बर्तन आदि यह तो एक मन्दिर की सपदा है, ऐसे-ऐसे हजारों मन्दिर इस देश में थे, जिनके पास ऐश्वर्य की कमी नहीं थी। ऐसा लगता है कि राजाओं के पास धन कम था और मन्दिरों के पास अधिक। आज वर्तमान में भी मन्दिरों के पास कितना धन है- इसका अनुमान आप लगा सकते हैं। तिरुपति बालाजी मन्दिर की वार्षिक आय लगभग दो हजार छः सौ अस्सी करोड़ है। इस मन्दिर के पास सोना कितना इसका पता ही नहीं। अन्य-अन्य मन्दिरों के पास भी ऐसा ही धन सोना आदि हैं। जब इस समय हमारे मन्दिरों आदि के पास इतना धन है तो पहले यह भारत देश इससे कई गुणा सपन्न था, इसलिए गौ आदि के सींगों पर सोना चढ़ा देते थे। उपनिषद् में भी सोने से मढ़ी सींगों वाली हजारों गौवों का वर्णन आता है।
ऐसा तो नहीं लगता कि उस समय की प्रत्येक गाय आदि को सोने से सजाया जाता हो। हाँ, इतना अवश्य प्रतीत होता है कि राजा लोग अपने पशुओं को सोने-चाँदी आदि से अलंकृत करते थे। जब कभी कुछ चीज ज्यादा दिखती हैं तो उसको बढ़ा-चढ़ाकर बोला जाता है। यह भाषा का प्रयोग है, इसको अर्थवाद कहते हैं। जैसे हनुमान जी संजीवनी बूटी लेकर आये तो पुरा गट्ठड़ ही बाँधकर ले आये थे, इस पूरे गट्ठड़ को देखकर उनको कह डाला कि पूरा पहाड़ का पहाड़ उठा लाये। बहुलता को देखकर पहाड़ कह दिया था। इस पहाड़ वाले भाषा प्रयोग को न समझने वालों ने वास्तविक पहाड़ ही समझ लिया। ऐसे ही यहाँ समझे कि बहुलता को देखकर ऐसा वर्णन किया गया है।
यह तो निश्चित है कि उस समय इन चीजों का अधिक प्रचलन था, जब आज एक पत्थर की मूर्ति बना सांई बाबा करोड़ों रु. के सोने के सिहांसन पर बैठा है तो उस समय चेतन प्राणियों क ो इस प्रकार के आभूषणों से क्यों नहीं अलंकृत करते होंगे।