ईश्वरीय नववर्ष

ईश्वरीय नववर्ष
आज आर्य समाज गोर गाँव मुंबई के साप्ताहिक सत्संग में पंडित सत्यपाल पथिक जी के मधुर भजनों से वैदक वेदी में उपस्थित आर्य जनों में भारी आध्यात्मिक उत्साह देखने को मिला तत्पश्चात डा. अशोक आर्य ने अपने प्रवचन के माध्यम से बताया कि नव वर्ष का आरम्भ उस समय से होता है जिस समय इस सृष्टि के प्रथम जीव ने प्रथम बार आँख खोलते हुए वेद के इस मन्त्र का गायन किया :
ओउम प्रात: अग्नि प्रात: इन्द्रं ………
हम अपने परिवारों में साधारणतया अपने बच्चों को यह उपदेश करते हैं कि प्रात: ब्रह्म मुहूर्त में उठो | वास्तव में यह ब्रह्म मुहूर्त क्या है ? साधारनतया प्रात: चार बजे के समय को ब्रह्म मुहूर्त कहा जाता है किन्तु क्यों क्योंकि यह वह समय है कि जब इस समय अर्थात सूर्य कि परहम किरण इस सृष्टि को अन्धकार से निकाल के लिए ही समय ही प्रथम जीव समूह उपरोक्त मन्त्र को बोलते हुए उठ खड़े हुए थे | इस कारण ही इस समय को ब्रह्म मुहूर्त कहा गया और आज भी इस समय को ब्रह्ममुहूर्त कहते हैं तथा यही वह दिन था जिस दिन से वर्ष का आरम्भ होता है |
जिस मन्त्र को गुनगुनाते हुए यह जिव उठाते उस के अनुसार प्रात: अग्निं अर्थात होतिकग्नी यज्ञ कि अग्नि जिस प्रकार स्वयं सहित अपने साथ उन सब पदार्थों को ही ऊपर को ले जात है जो कुछ इस में डाला जाता है | प्रभु भी अग्नि स्वरूप है जो जीव उस प्रभु का साथ जुड़ता है वह भी निरंतर आगे बढ़ता जाता है ऊपर उठाता जाता है उन्नत होता जाता है
इस प्रकार ही कोई विद्यार्थी , कोई व्यापारी , कोई कार्यालय कर्मचारी अथवा किसी भी क्षेत्र का व्यक्ति जब प्रभु बनने का प्रयास करते हुए आगे उठाने का यां अरता है तो उस के व्यापार , शिक्षा व जिस भी क्षेत्र में वह कार्य शील होता है उस में निरंतर उन्नति कि और बढ़ता है | आगे कहा है प्रातर इन्द्रं हवामहे अर्थात वह प्रभु सम्पूर्ण है अपने प्रत्येक गुण में वह सम्पूर्ण है | इस प्रकार का यत्न कोई विद्यार्थी करता है तो वह पी एच दी या दी लिट् जैसी उपाधि को प्राप्त कर अपने विषय का इंद्रan जाता है | वह प्रभु मित्रके रूप में भी जाना जाता है | इस लिए वह हमें डांटने व कष्ट देने कि भी शक्ति रखता है | इस प्रकार ही हमारे प्रत्येक प्रकार के कार्यों में हमारे मित्र लोग समय समय पर हमें सलाह देते हैं हमारा मार्ग दर्शन करते हैं मित्रों कि उतम सलाह को हम उस प्रकार ही मानते हैं जिस प्रकार उस पिटा कि सलाह को मानते हैं और इस प्रकार हम निरानर उन्नति के पथ पर आगे बढ़ाते हैं |
इस प्रकार कि चर्चा के साथ दा. अशोक आर्य ने आज का प्रवचन छोड़ते हुए कहा कि इस मन्त्र कि शेष व्याख्या अगले प्रवचन में करेंगे जो कि अगले रविवार प्रात: आठ से दस बजे तक आर्य समाज गोर गाँव में ही होगा |

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *