ईश्वर के सर्वशक्तिमान् होने का अर्थ यह नहीं कि वह कुछ भी करे वा सब कुछ करे तात्पर्य यह है कि ईश्वर सब कुछ नहीं कर सकता। वह इसलिए क्योंकि वह शुद्ध पवित्र है। सर्वज्ञ है, सदा अपने नियमों का पालन करने वाला है।
इस विषय में महर्षि दयानन्द प्रश्नोत्तर रूप से लिखते हैं-
‘‘प्रश्न- ईश्वर सर्वशक्तिमान् है वा नहीं? उत्तर– है, परन्तु जैसा तुम ‘सर्वशक्तिमान्’ शद का अर्थ जानते हो वैसा नहीं, किन्तु सर्वशक्तिमान् शद का यही अर्थ है कि ईश्वर अपने काम अर्थात् उत्पत्ति, पालन, प्रलय आदि और सब जीवों के पुण्य-पाप की यथायोग्य व्यवस्था करने में किंचित्ाी किसी की सहायता नहीं लेता अर्थात् अपने अनन्त सामर्थ्य से ही अपना सब काम पूर्ण कर लेता है।’’
प्रश्न– हम तो ऐसा मानते हैं कि ईश्वर जो चाहे सो करे, क्योंकि उसके ऊपर दूसरा कोई नहीं?
उत्तर– वह क्या चाहता है? जो तुम कहो कि सब कुछ चाहता और कर सकता है, तो हम तुमसे पूछते हैं कि परमेश्वर अपने को मार, अनेक ईश्वर बना, स्वयं अविद्वान् हो चोरी, व्याभिचारादि पाप कर्म कर और दुःखी भी हो सकता है? जैसे ये काम ईश्वर के गुण कर्म-स्वभाव के विरुद्ध हैं, तो जो तुहारा कहना है कि ‘वह सब कुछ कर सकता है’ यह कभी नही घट सकता, इसलिए सर्वशक्तिमान् का अर्थ जो हमने कहा, वहीं ठीक है।
यहाँ पर महर्षि की इन बातों से स्पष्ट है कि ईश्वर अपने गुण-कर्म-स्वभाव के विरुद्ध काी कुछ नहीं करता, नहीं कर सकता।
अवैदिक मान्यता वाले पौराणिक अथवा कुरान, बाईबल वाले ईश्वर के सर्वशक्तिमान्् होने का अर्थ वह करे न करे कुछ भी करे ऐसा मानते हैं। जब ईसाई, मुसलमान ईसामसीह या मुहमद साहब पर अपना इमान लाने की बात करते हैं तो उनका तात्पर्य यह होता है कि पैगबर की सिफारिश करने पर खुदा ईमानवालों के गुनाह माफ कर देता है, क्योंकि वह जो चाहे कर कता है, वह गुनहगारों को माफ भी कर सकता है और बेगुनाहों को सजा भी दे सकता है इनकी मान्यता है कि जब हम मामूली इंसान किसी की गलती को माफ कर सकते हैं तो हम से बड़ााुदा क्यों नहीं कर सकता? वे यह नहीं समझते कि ईश्वर का बड़प्पन कानून=सृष्टि के नियमों को तोड़नें में नहीं अपितु स्वयं उनका पालन करने और अन्यों से कराने में है। यदि नियामक ही नियमों का उल्लंघन करने लगे तो वह नियामक ही कहाँ रहा?
इसलिए परमेश्वर ने जो सृष्टि के आदि में संविधान बना दिया, उसका उल्लंघन न स्वयं करता, कर सकता और न उसकी प्रजा करती, कर सकती । सृष्टि विपरीत परमात्मा कुछ भी नहीं करता, कर सकता। इसलिए यह कहना सर्वथा असंगत है कि ‘‘ईश्वर सब कुछ कर सकता है क्योंकि वह सर्वशक्तिमान् है।’’