हिन्दी को राजभाषा के रूप में स्थापित करने के लिए
संघर्षरत एक अधिवक्ताः श्री इन्द्रदेव प्रसाद
-सत्येन्द्र सिंह आर्य
भारत को स्वाधीन हुए लगभग सात दशक हो गए, परन्तु केन्द्रीय सरकार के कामकाज में राजभाषा के रूप में हिन्दी का प्रयोग नगण्य ही है। उच्च न्यायालय एवं उच्चतम न्यायालय में तो हिन्दी का प्रवेश ही वर्जित था। हम अपने पाठकों की जानकारी के लिए एक ऐसे संघर्षशील अधिवक्ता का जीवनवृत्त यहाँ दे रहे हैं, जिन्होंने विधि अनुसार उच्च न्यायालय में अपना अधिवक्ता के रूप में सारा विधिक कामकाज हिन्दी में निष्पादित करने में सफलता प्राप्त की है।
श्री इन्द्रदेव प्रसाद जी का जन्म श्री बालेश्वर महतो के परिवार में ग्राम-जमुआरा, पोस्ट-जमुआरा, जिला नवादा, राज्य बिहार में 13 मार्च 1967 को हुआ। आपकी प्रारमभिक शिक्षा (वर्ग 1 से 4 तक) राजकीय प्राथमिक विद्यालय जमुआरा में, वर्ग 5 से 7 तक राजकीय मध्य विद्यालय जमुआरा, माध्यमिक शिक्षा वर्ग 8 से 10वीं बोर्ड तक राजकीय उच्च विद्यालय हिसुआ में हुई। बी.ए. आनर्स आपने टी.एस. कॉलेज हिसुआ से किया तथा विधि स्नातक की शिक्षा विधि महाविद्यालय नवादा में पूर्ण हुई। शिक्षा पूर्ण होने पर अधिवक्ता के रूप में विधि व्यवसाय का प्रशिक्षण माननीय पटना उच्च न्यायालय में 17-02-1998 से लगातार एक वर्ष तक लिया। तभी से आप वहीं पर अधिवक्ता के रूप में कार्य कर रहे हैं और अपने समपूर्ण कार्य में भारत संघ की राजभाषा हिन्दी का प्रयोग कर रहे हैं।
श्री इन्द्रदेव प्रसाद जी ने अपने जीवन का उद्देश्य बनाया है- ‘‘माननीय उच्च न्यायालय पटना एवं माननीय उच्चतम न्यायालय भारत की न्यायिक कार्यवाहियों में भारत संघ की राजभाषा हिन्दी का प्रयोग जीवन भर करते रहना तथा और लोगों को भी इसके लिए उत्प्रेरित करते रहना।’’
उनके द्वारा इस दिशा में किये जा रहे कार्यों का विवरण उन्हीं के शबदों में इस प्रकार है-
- मैं अधिवक्ता बनने के पूर्व से ही, माननीय उच्च न्यायालय पटना की न्यायिक कार्यवाहियों में भारत संघ की राजभाषा हिन्दी का प्रयोग करता आ रहा हूँ। मैं अधिवक्ता बनने के बाद भी अपने प्रत्येक मुअक्किल का प्रत्येक मुकदमा भारत संघ की राजभाषा हिन्दी में ही दाखिल करता हँॅू और अपने प्रत्येक मुअक्किल के प्रत्येक मुकदमे की बहस, भारत संघ की राजभाषा हिन्दी में ही करता हूँ।
- माननीय उच्च न्यायालय, पटना के पूर्व माननीय न्यायमूर्ति श्री एस.के. कटियार ने मेरे एक मुअक्किल विनय कुमार सिंह के हिन्दी आवेदन को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 348 के संदर्भ में यह कहते हुए खारिज क र दिया था कि हिन्दी भाषा में लिखी हुई रिट याचिका पटना उच्च न्यायालय में पोषणीय नहीं है, जो निर्णय विधि 2003 बी.एल.जे. 418 विनय कुमार सिंह बनाम बिहार राज्य विद्युत बोर्ड एवं अन्य के रूप में ज्ञापित है।
- मैंने अपने उक्त मुअक्किल विनय कुमार सिंह को, हिन्दी आवेदन को रोकने वाले उक्त निर्णय विधि 2003, 2द्ध बी.एल.जे. 418 के विरुद्ध (एल.पी.ए.475/2003) दाखिल करने की सलाह दी थी। मेरे मुअक्किल विनय कुमार सिंह ने मेरी सलाह मानकर मुझे नया अधिकार पत्र दिया था, तद्नुसार मेरे द्वारा हिन्दी आवेदन को रोकने वाले उक्त निर्णय विधि के विरुद्ध (एल.पी.ए. 475/2003) दाखिल हुआ था, जिसमें पारित माननीय न्यायमूर्ति श्री नवीन सिन्हा एवं माननीय न्यायमूर्ति श्री दिनेश कुमार सिंह वाली न्यायखंडपीठ का अंतिम आदेश दिनांक-12.05.2010 द्वारा हिन्दी आवेदन को रोकने वाले उक्त निर्णय विधि को अपास्त करते हुए अभी निर्धारित कर दिया गया है कि हिन्दी भाषा में तैयार की गयी रिट याचिका पटना उच्च न्यायालय में पोषणीय है, जो निर्णय विधि 2010, 3द्ध बी.एल.जे. पी.एच.सी.-83 विनय कुमार सिंह बनाम बिहार राज्य विद्युत बोर्ड एवं अन्य के रूप में ज्ञापित है। इस प्रकार माननीय उच्च न्यायालय पटना में पटना की न्यायिक कार्यवाहियों में भारत संघ की राजभाषा हिन्दी का प्रयोग करने में अब कोई रुकावट नहीं है। वर्ष 2010 में ही माननीय उच्च न्यायालय पटना में हिन्दी अंग्रेजी के विवाद का अंत हो गया है जो आजादी के पहले का विवाद था।
- मैंने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 350, 351, 51,कद्ध19, कद्ध 14 एवं 13 में भरोसा करके माननीय उच्चतम न्यायालय भारत मेंाी भारत संघ की राजभाषा हिन्दी में कुछ मुकदमे दाखिल किये हैं, जिनका विवरण निनलिखित है-
(1) डलू पी., सिद्ध डी. नं. 3062/2016 दिनांक-23.01.2016 इन्द्रदेव बनाम भारत संघ एवं अन्य
(2) एस.एल.पी., क्रिद्ध डी. नं.-4749/2016 दिनांक-08.02.2016 वीरेन्द्र कुमार बनाम बिहार राज्य एवं अन्य
(3) एस.एल.पी. क्रिद्ध डी. नं.-11736/2016 दिनांक-04.04.2016 मुन्ना कुमार बनाम बिहार राज्य
(4) एस.एल.पी. सिद्ध डी. नं.-11741/2016 दिनांक-04.04.2016 संजय कु मार अधिवक्ता बनाम बिहार राज्य द्वारा विधि संचिव बिहार सरकार पटना वगैरह
- उक्त चार मुकदमों में से प्रथम मुकदमा डलू.पी., सिद्ध डी.नं.-3062/2016 का दाखिला भारतीय संविधान के अनुच्छेद 348 के बल पर रोक दिया गया था, जिसके परिप्रेक्ष्य में मैंने माननीय उच्चतम न्यायालय भारत के सहायक निबंधक महोदय को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 350,351,51, कद्ध, 19, कद्ध, 14 एवं 13 का स्मरण करवाया था, जिसका प्रभाव भारतीय संविधान के अनुच्छेद 348 से स्थगित नहीं हो सकता है।
- माननीय उच्चतम न्यायालय भारत के सहायक निबंधक महोदय ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 350, 351,51, कद्ध, 19, कद्ध, 14 एवं 13 का स्मरण करते ही हिन्दी भाषा में लिखी हुई रिट याचिका की दाखिला स्वीकार करने का आदेश अपने कार्यालय दूरभाष से अपने कार्यालय को दिया और उसी दूरभाषिक आदेश के आलोक में बिना किसी रोक-टोक के माननीय उच्चत्तम न्यायालय भारत में भारत संघ की राजभाषा हिन्दी में मुकदमा दाखिल होने लगा है। भारत संघ की राजभाषा हिन्दी में दाखिल उक्त सभी मुकदमे, माननीय उच्चतम न्यायालय भारत में हिन्दी आवेदनों एवं हिन्दी अनुलग्नकों का अंग्रेजी अनुवाद हेतु लंबित है। नियम से हिन्दी आवेदनों एवं अनुलग्नकों का अंग्रेजी अनुवाद माननीय उच्चतम न्यायालय भारत को अपने अनुवादक से ही करवाना है।
- श्री इन्द्रदेव प्रसाद जी का वर्तमान पता है-
इन्द्रदेव प्रसाद ,अधिवक्ता,
पटना उच्च न्यायालय
सदस्य-एडवोकेट एसोसियेशन
बैठने का स्थान-रूम नं.-3,
चलभाषः 09386442093
दूरभाषः 0612-2241621
- श्री इन्द्रदेव प्रसाद जी के प्रयत्नों का ही सुफल है कि 1 फरवरी 2016 के अंक में नवभारत टाइस समाचार पत्र ने यह टिप्पणी एंव समाचार प्रकाशित किया-
‘‘सुप्रीम कोर्ट पहुँची हिन्दी’’
‘‘प्रशंसा करनी होगी बिहार के एक वकील इन्द्रदेव प्रसाद की, जिन्होंने एडी-चोटी का जोर लगाकर देश की सबसे बड़ी अदालत को हिन्दी में लिखी याचिका स्वीकार करने के लिए बाध्य किया। सुप्रीम कोर्ट में अब तक हिन्दी में लिखी याचिका दाखिल नहीं की जाती थी, लेकिन इन्द्रदेव प्रसाद ने इस परमपरा का विरोध किया। वे पटना उच्च न्यायालय में हिन्दी में लिखी याचिका ही दायर करते हैं औैर हिन्दी में ही बहस करते हैं। हिन्दी में याचिका देखकर सुप्रीम कोर्ट का रजिस्ट्रार कार्यालय भड़क गया और वकील से कहा कि पहले वह अपनी याचिका का अंग्रेजी अनुवाद कराएँ, लेकिन राष्ट्रभाषा हिन्दी पर गर्व करने वाले प्रसाद ऐसा करने को तैयार नहीं हुए, जब रजिस्ट्रार ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 348 की बाध्यता के कारण हिन्दी याचिका दायर नहीं की जा सकती तो याचिकाकर्त्ता ने उन्हें संविधान के अनुच्छेद 13 एवं 19 भी दिखाए, जिनमें हिन्दी के साथ भेदभाव करने से मना किया गया है। वकील इन्द्रदेव प्रसाद का यह कदम आगे भी देश के ऐसे याचिकाकर्त्ताओं और वकीलों के लिए मिसाल साबित होगा जो अपना मामला सुप्रीम कोर्ट में हिन्दी में लड़ना चाहते हैं।
अंग्रेजों के जमाने से आज तक कितने ही राज्यों के हाईकोर्ट में अंग्रेजी में ही कामकाज होता आ रहा है, केवल मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, राजस्थान, बिहार और छत्तीसगढ़ के उच्च न्यायालयों में हिन्दी में सुनवाई होती है तथा वकीलों को हिन्दी में बहस की अनुमति है, यह भलीभाँति सिद्ध हो चुका है कि हिन्दी में कोर्ट का कामकाज सुगमता से चल सकता है, फिर अंग्रेजी की गुलामी क्यों कायम रखी जाए? हिन्दी में तमाम अंग्रेजी कानूनी शदों के पयार्यवाची शद उपलध हैं, इसके अलावा मुवक्किल भी समझ सकता है कि उसका वकील तथा प्रतिपक्षी वकील क्या कह रहा है। अंग्रेजी में अदालती कामकाज होने से कितने ही मुवक्किलों के पल्ले कुछ भी नहीं पड़ता, जब हिन्दी करोड़ों भारतीयों की प्रभावशाली एवं सामर्थ्यपूर्ण संपर्क भाषा है तो सुप्रीम कोर्ट को भी अंग्रेजी की बाध्यता पूरी तरह हटा लेनी चाहिए।’’
श्री इन्द्रदेव प्रसाद जी को बहुत-बहुत बधाई एवं साधुवाद।
-ऋषि उद्यान, पुष्कर मार्ग, अजमेर।
संघर्षरत अधिवक्ता महोदय श्री इन्द्रदेव प्रसाद जी आपके द्वारा हिंदी को स्थापित करने के लिए किया गया योगदान अनुकरणीय है कृपया जानकारी दें व मार्ग दर्शन करे कि हिंदी में छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय में जनहित याचिका प्रस्तुत करने के लिए क्या प्रक्रिया अपनानी होगी नियम क्या है कृपया जानकारी दें
अमोल मालुसरे
malusare9@gmail.com 9752396665
कृपया कोई अच्छे अधिवक्ता से संपर्क करें आप | धन्यवाद |