ओउम
गृह की शोभा गृहिणी से ही है
डा. अशोक आर्य ,
वेद में नारी को समाज में ऊँचा स्थान दिया गया है | इसे माता कहा गया है | माता उसे कहते हैं ,जो निर्माण करे | माता संतान को पैदा ही नहीं करती, उसका निर्माण भी करती है | माता ही संतान को सुसंतान बना कर उन्नत मार्ग पर अग्रसर करती है तथा माता जब कुमाता बन जाती है तो संतान का विनाश भी करती है ,किन्तु ऐसी बुद्धिहीन ,कर्तव्य विहीन माता वास्तव में माता कहलाने का अधिकार नहीं रखती | जो माता संतान को ऊँचे आसन तक पहुँचाने के लिए तप करती है, सुख सुविधाओं को त्याग, भूखे रह कर भी उसके सुखों में कमीं नहीं आने देती , माता तो वह ही है | एसा कार्य जग की प्रत्येक माता करना चाहती है , इस कारण ही वह माता है | इस कारण ही विश्व में नारी का सम्मान है किन्तु मध्य युग में नारी के सम्मान का ह्रास हुआ है | इस का कारण गुलामी तथा वेद विद्या का अभाव ही कहा जा सकता है | वेद में नारी को जग की जननी तथा त्याग की मूर्ति कहते हुए इसे उच्च आसन देने का आदेश किया है | नारी को प्रशस्ति पूर्ण स्थान देने के लिए वेद में अनेक विध नारी का गुण गान किया गया है | ऋग्वेद ३.५३.४ में कहा गया है कि गृहिणी अर्थात नारी ही गृह है, घर है | नारी के बिना गृह की कल्पना भी नहीं की जा सकती | मन्त्र इस प्रकार दिया है : –
जायेदसत्न मघवन त्सेदु योनी: –
तदित तवा युक्ता हरयो वहन्तु |
यदा कदा च सुनवाय सोमम
अग्निष्ट्वा दूतो धन्वात्यच्छ ||ऋग ३.५३.४ ||
शब्दार्थ : –
हे (मघवन) हे एश्वर्य युक्त इंद्र (जाया इत) पत्नी ही (असतं) घर है (उ) और ( सा इत ) वह ही (योनि:) संतान उत्पादन का आधार है (तट इत ) उसी घर में वही (युक्ता:) जूते हुए (हरय:) घोड़े (त्वा) तुझ को (वहन्तु ) ले जावें (यदा कदा च) और जब कभी (सोमम) सोम रस को (सुनवाम ) निकालेंगे ( दूत:अग्नि: ) तब तुम्हारा दूत अग्नि (त्वा ) तेरे (अच्छ) पास (धन्वाती) दौड़कर जाएगा |
भावार्थ : –
हे इंद्र ! पत्नी ही घर है | कुलवृद्धि का आधार भी वही है | तुझे उसी घर में जूते हुए घोड़े लावें | तुम्हारा दूत अग्नि तब ही तुम्हारे पास जाएगा , जब हम सोमरस निकालेंगे |
यह मन्त्र हमें बताता है कि गृहस्थ का आधार क्या है ? उसका मूल क्या है ? तथा उसके मूल में क्या पदार्थ डालने की आवश्यकता है ? इन बातों का उत्तर देते हुए मन्त्र कहता है कि : –
पत्नी ही घर का आधार है | संस्कृत मई कहा भी है कि :”न गृहं गृहमित्याहू: , गृहिणी गृहमुच्याते ” अर्थात घर को घर नहीं कहते अपितु गृहिणी कि ही घर कहते हैं | कहा भी है कि गृहिणी के बिना घर में भुत का डेरा होता है | गृह में क्या कार्य होता है ? गृह में मुख्य कार्य होता है गृह कि सुरक्षा , गृह कि व्यवस्था, गृह का संचालन, गृह का निरिक्षण तथा समुन्नयन | यह सब कार्य गृहपत्नी अथवा नारी ही कराती है | पुरुष तो गृह व्यवस्था के साधन अर्थात धनोपार्जन के लिए प्राय अधिकाँश समय गृह से बाहर ही रहता है | इस कारण इन सब कार्यों को वह नहीं कर सकता | इन कार्यों को करने के लिए अधक समय वहां उपस्थित होना आवश्यक होता है , किन्तु ओउरुष के लिए एसा संभव न हो पाने के कारण यह सब व्यवस्था पत्नी ही देखती है | अत: पत्नी के बिना यह सब कार्य व्यवस्था ठीक से नहीं हो पाती , इस कारण गृह के इन कार्यों के लिए पत्नी का विशेष महत्व इस मन्त्र में बताया गया है | यदि गृहिणी न हो तो गृह कि यह सब व्यवस्था छीन भिन्न हो जाती है | तभी टी गृहिणी के बिना घर को भुत बंगला अथवा भूतों का निवास कहा गया है |
मन्त्र न केवल पत्नी के कर्तव्यों पर ही प्रकाशः डालता है अपितु उस के महत्व का भी वर्णन करता है | यदि हम गृहस्थ को एक वृक्ष मानें तो पत्नी उस वृक्ष का मूल अर्थात जड़ होती है | जब तक मूल नहीं है , तब तक वृक्ष का अस्तित्व ही नहीं होता | मूलाधार ही समग्र वृक्ष का भार वहन करता है | इस आधार पर हम कह सकते हैं कि नारी गृह का मूल आधार होता है | उस के कन्धों पर ही पूरा परिवार खड़ा होता है | नारी के बिना यह स्वपन साकार नहीं हो सकता | वृक्ष की जड़ तो केवल वृक्ष को खड़ा रखने तथा उसे भोजन पहुँचाने का कार्य करती है किन्तु नारी न केवल जड़ का अर्थात परिवार का आधार अथवा परिवार के खड़े होने की परिकल्पना को साकार करने वाली होती है अपितु संतानोत्पति का कार्य अर्थात बीज व भूमि का कार्य भी करती है | नारी ही गृह की सश्रीकता का आधार है | नारी के बिना संतानोत्पति संभव नहीं | नारी के बिना परिवार की समृद्धि भी संभव नहीं | अत: नारी परिवार की अच्छी समृद्धि का कारण होती है | एक उत्तम नारी ही परिवार में सुखों की वर्षा करती है | तभी तो इसे योनि अथवा मूल कहा गया है | यह परिवार का मूल कारण होती है | परिवार के सुखों की वृद्धि का चिंतन नारी को ही होता है | नारी के बिना किसी प्रकार के सुख व समृद्धि की कल्पाना ही नहीं की जा सकती |
ऊपर कहा गया है कि नारी गृह की सश्रीकता होती है | इस का उत्तर देते हुए मन्त्र कहता है कि यह सोम से आती है | सश्रीकता के लिए सौम्य गुणों का होना आवश्यक है } सौम्य गुण ही इस का मूल आधार हैं | यह सौम्यगुण ही परिवार की श्रीवृद्धि करते हैं , क्योंकि यह कार्य नारी करती है , इसलिए नारी का सौम्यगुणों से युक्त होना आवश्यक है | यदि नारी बात बात पर झगड़ती है तो परिवार का संचालन, परिचालन व व्यवस्था ढीली हो जाती है | यह सुव्यवस्था न रह कर कुव्यवस्था हो जाती है | सुव्यवस्था के लिए सौम्यता आवश्यक है | अत: नारी में सौम्य गुण की प्रचुर मात्रा आवश्यक है | इंद्र तथा
जीवात्मा की उपस्थिति भी सौम्यगुन के साथ ही होती है | वहीँ आत्मिक बल होता है तथा जहाँ इंद्र वा जीवात्मा तथा आत्मिक बल हो वहां श्रीवृद्धि भी निरंतर होती रहती है |
अत: इस मन्त्र के आधार पर हम संक्षेप में कह सकते हैं कि नारी ही गृह का आधार है, गृह अथवा परिवार का मूल भी नारी ही है , सौम्य गुण इस मूल को पुष्ट करते हैं | यह पुष्टि का ही परिणाम होता है कि आत्म बल, सात्विकता, पवित्रता ,सुशीलता, तथा विनय आदि गुणों का आघान होता है | अत: परिवार के निर्माण व पुष्टि के लिए सौम्यता का होना आवश्यक है | यह सौम्यता नारी में विपुल मात्रा में होने के कारण ही नारी को ही गृहिणी को ही गृह अर्थात घर कहा गया है | इस के बिना घर की कल्पना भी संभव नहीं | इसलिए परिवार में नारी का सम्मान हो ताकि वह खुश रहते हुए सौम्यगुणों को बढाती रहे
डा. अशोक आर्य ,