आचार्य सोमदेव
जिज्ञासा- (क) एक और ऋषि को आने में और कितना समय लगेगा? भारत में दुनिया में ऋषि मुनि उत्पन्न होने के लिए हमें क्या-क्या कार्य करने चाहिए
समाधान-(क)किसी महापुरुष, ऋषि को संसार में आने में कितना समय लगेगा इस विषय में तो कुछ नहीं कह सकते यह तो परमेश्वर ही जानता है, उसी की यह व्यवस्था है। ऋषि होना और साधक योगी होना या बनना दोनों में कुछ भेद है। साधक एक सामान्य (सामान्य का अर्थ यहाँ धार्मिक विशेष से ले न कि जो कोई) व्यक्ति भी बन सकता है, किन्तु ऋषि तो धार्मिक साधक होते हुए अत्यन्त बुद्धिमान् ही बन सकता है, अल्प बुद्धि वाला नहीं। एक साधक और ऋषि के सामर्थ्य में भी अन्तर होता है। साधक उस स्तर पर काम नहीं कर सकता जिस स्तर पर ऋषि कर सकता है। साधक धार्मिक ईश्वरोपासक होता है, वैराग्य को प्राप्त होता है और ऋषि साधक धार्मिक, ईश्वरोपासक, वैराग्यवान् होते हुए वेद मन्त्रार्थ द्रष्टा होता है। ऋषि अनेक जन्मों, वर्षों के पुण्य वाले सत्व की पराकाष्ठा से युक्त आत्मा बनते हैं।
आज भी यदि कोई बुद्धिमान् व्यक्ति वेदानुकूल जीवन जीता हुआ ऋषि बनने का प्रयत्न करे तो वह इसी जन्म व अगले जन्मों में ऋषि बन सकता है। ऋषि बनने के लिए अपने पूरे जीवन को ईश्वर में समर्पित रखते हुए वैदिक वाङ्मय व वेद को जानने में लगाये। बुद्धिमान् लोग वैराग्यवान् हो वेद पढ़ने में प्रवृत्त हों, इसके लिए समाज व राजा ऐसी व्यवस्था करे। समाज व राजा वेद पढ़ने पढ़ाने वाले हों। वेदादि पढ़ने वाले को ही राज की सेवा में प्राथमिकता मिले। वेद का पढ़ा हुआ ही न्यायाधीश, उच्च अधिकारी, मन्त्री, प्रधानमन्त्री, राष्ट्रपति बने। ऐसा करने से वेद के गभीर रहस्य को जानते जायेंगे वैसे-वैसे ऋषित्व की ओर भी जाते जायेंगे। ऋषि बनना असमभव तो नहीं, परन्तु अत्यन्त कठिन अवश्य है।
श्रीमान जी
धर्म के संबंध मे तर्क ही हम सभी जन मानस के मध्य भेद उत्पन्न करता है।
क्यों किसी के धर्म तथ्यों का तर्क पूर्ण विवेचना करते है?
एक विशेष बात आप से व्यक्त करना चाहूगा की इस तर्क, तथ्य और प्रमाण से ऊपर उठिए।
क्या आपने कभी अपने सत्, चित् और आनंद स्वरूप परम तत्व का अनुभव किया है जिसे हम ब्रम्ह या ईश्वरीय अंश कहते है जो वेद, पुराण, ग्रंथ और शास्त्रों के अनुरूप है। वह शरीर से परे है, वह इन्द्रियों से परे है, वह परम तत्व मन से भी परे है( यही मन हमें शांत नही रखता यही तर्क करता है और विश्लेषण भी) यहा तक की यह आत्मा तो बुद्धी से भी परे है अर्थात यहां पहुंच कर हम सभी की बुद्धी भी छोटी हो जाती है। निष्कर्ष यही निकलता है की हम बुद्धी से भी ऊपर उठे अर्थात आत्म रूपी परम तत्व का अनुभव करे। जिस दिन ईस ब्रम्ह का उत्कृष्ट चरम अनुभव हो जाएगा आप यकीन मानिये उस दिन आप तर्क तथ्यों और प्रमाणों से ऊपर उठ कर एक सच्चे ब्रम्हलीन वेद के अनुयायी वेद व्यास बन जाएगें। अब तक के वेदों के महानो से भी महानतम ज्ञाता अर्थात जिनके लिये महानतम से भी महानतम शब्द भी छोटा हो अनन्त से भी परे शाश्वत है ज्ञानियों मे ऋषि व्यास जी।
आर्य मन्तव्य अर्थात सनातन धर्म सिर्फ वेदों को मानते है।
और दूसरों के आस्था धर्म का खण्डन करते है।
हिन्दू अर्थात सनातन धर्म वेद, पुराण, शास्त्र और ग्रंथ सभी को मानते है और किसे के धर्म आस्था का खण्डन नही करते।
मै आप की अवहेलना या खण्डन नही कर रहा हूँ। अपितु
आप से विनती करता हूं की एक महान वेदज्ञ योगी ऋषि वेद व्यास की अवहेलना मत कीजिये।
वेद तो अपौरूषेय है हम सनातन धर्मियों का मूल धरोहर है।
वेद ब्रम्हा ,विष्णु और रूद्र है। वेद तो हम सभी के प्राणाधार है।
कौन कहता है की हम वेद के अनुयायी नही है
हम वैदिक है,सनातन है। वेद, पुराण के है और पुराण वेद के है और हम सब वेद पुराण दोनो के है। भौतिक ज्ञान के लिये दो बताया गया है परन्तु आध्यात्म की दृष्टी से एक है।
यही सत्य है।
जय सियाराम राधेश्याम।