दयानन्द बावनी और उसके रचयिता महाकवि दुलेराय जी :-
महाकवि दुलेराय काराणी भुज-कच्छ में जन्मे एक जैनी समाज सेवी सज्जन हुए हैं। वे गुजराती तथा हिन्दी के जाने माने कवि थे। आपने गाँधी जी पर गुजराती भाषा में बावनी लिखी। आपने एक आर्यसमाजी मित्र श्री वल्लभदास की सत्प्रेरणा से दयानन्द बावनी नाम से एक उत्तम काव्य रचा, जिसे सोनगढ़ गुरुकुल से प्रकाशित किया गया। गुजरात के प्रसिद्ध आर्यसमाजी सुधारक शिवगुण बापू जी भी भुज-कच्छ में जन्मे थे। अहमदाबाद में महाकवि जी श्री शिवगुण बापू जी से मिलने उनके निवास पर प्रायः आते-जाते थे। दयानन्द बावनी का दूसरा संस्करण पाटीदार पटेल समाज ने छपवाया था। इसका प्राक्कथन कवि ने ही लिखा था। इसके विमोचन के अवसर पर आप घाटकोपर मुबई पधारे।
शिवगुण बापूजी के परिवार की तीन पीढ़ियाँ आज भी इस काव्य को सपरिवार भाव-विभोर होकर जब गाती हैं तो एक समा बँध जाता है। इस वर्ष ऋषि मेला पर शिवगुण बापूजी के पौत्र श्री दिलीप भाई तथा उनकी बहिन नीति बेन ने बावनी सुनाकर सबको मुग्ध कर दिया। इसके प्रकाशन की वड़ी जोरदार माँग उठी। श्री डॉ. राजेन्द्र विद्यालङ्कर ने यह दायित्त्व अपने ऊपर लिया है। अगले वर्ष के ऋषि मेला पर श्री शिवगुण बापू की छोटी पौत्री प्रीति बेन से जब आर्यजन बावनी सुनेंगे तो वृद्ध आर्यों को कुँवर सुखलाल जी की याद आ जायेगी।
महाकवि दुलेराय ने महर्षि के प्रति अपनी श्रद्धाञ्जलि में लिखा हैः-
वैदिक उपदेश वेश, फैलाया देश देश
क्लेश द्वेष को विशेष मार हटाया।
सत्य तत्त्व खोल खोल, अनृत को तोड़ तोड़
तेरे मन्त्रों ने महाशोर मचाया।
धन्य धन्य मात तात, तेरा अवतार
होती है भारत मात आज निहाला।
‘आंध्रभूमि’ के सपादक श्री शास्त्री जीः- इस बार ऋषि मेले से ठीक पहले कुछ दुःखद घटनायें घटीं, इस कारण सभा से जुड़े सब जन कुछ उदास थे, तथापि मेले पर दूर दक्षिण से ‘आंध्रभूमि’ के सपादक श्री म.वी.र. शास्त्री जी तथा युवा विद्वान् पं. रणवीर शास्त्री जी के तेलंगाना से अजमेर पधारने पर सब हर्षित हुए। मान्य शास्त्री जी सपादक ‘आंध्रभूमि’ एक कुशल लेखक हैं। स्वामी श्रद्धानन्द जी पर आपके ग्रन्थ ने धूम मचा दी है। अब आप राष्ट्रीय एकता को सुदृढ़ करने व नवचेतना के संचार के लिए वीर भगतसिंह पर एक ग्रन्थ लिखने में व्यस्त हैं। आर्य जनता की इच्छा है कि इसका विमोचन अगले ऋषि मेला पर हो।