छह मास का रोज़ा (उपवास)
15 दिसज़्बर 1916 की बात है। आर्यसमाज सदर बाजार, दिल्ली का वार्षिकोत्सव था। इस अवसर पर एक शास्त्रार्थ भी हुआ। आर्यसमाज की ओर से पूज्य पण्डित रामचन्द्रजी देहलवी ने
वैदिक पक्ष रखा। इस्लाम की ओर से चार मौलवी महानुभावों ने भाग लिया।
मौलवी शरीफ़ हुसैन ने प्रश्न पूछा कि शरीर छोड़ने के पश्चात् जीव नया जन्म कैसे लेता है? गर्भ में कितना समय रहता है?
पण्डितजी ने इसका उज़र दिया तो मौलवीजी ने कहा कि एक स्थान पर दिन छह मास का होता है, वहाँ का ज़्या लेखा होगा? तार देकर वहाँ से पता कीजिए कि वहाँ महीने किस विधि से होंगे!
पण्डितजी ने कहा कि अपवाद नियम को सिद्ध करता है। आपके यहाँ भी तो यही झगड़ा पड़ेगा। आपके ‘यहाँ’ लिखा है, ‘‘जब प्रातः की श्वेत धारी दिखाई दे तब रोज़ा रज़्खो। तब तो छह मास भूखे मरोगे।’’