साबित करके दिखावें कि क्या पीले आकाश में किवाड़, चौखट और दरवाजे भी लगे हैं?
अरबी खुदा की किताब कुरान को संसार के बड़े-बड़े विश्व विद्यालयों में रिसर्च के लिए रखना क्यों नामुनासिब होगा? क्या हम विश्वास रखें कि कुरान में कोई ऐब नहीं है और यह गप्प भी उल्माये इस्लाम सत्य साबित करके दिख सकेंगे?
देखिये कुरान में कहा गया है कि-
व लौ फ-तह्ना अलैहिम् बाबम्………….।।
(कुरान मजीद पारा १४ हिज्र रूकू १ आयत १४)
अगर हम इन लोगों के लिए आसमान का एक दरवाजा भी खोल दें और यह लोग सब दिन चढ़ते रहें।
लकालू इन्नमा सुक्किरत् अब्सारूना…….।।
(कुरान मजीद पारा १४ सूरा हिज रूकू १ आयत १५)
तो भी यही कहेंगे कि हो न हो हमारी नजर बाँध दी गई है और हम पर जादू कर दिया गया है।
व ल-कद् ज- अल्ला फिस्समाइ…….।।
(कुरान मजीद पारा १४ सूरा हिज्र रूकू १ आयत १६)
और हम ही ने आसमान में बुर्ज अर्थात् गुम्बद बनाये।
समीक्षा
आसमान में दरवाजे-चौखटें व किवाड़ें भी हैं, दरवाजे भी अनेक होंगे। अरब के कुरानी खुदा का इल्म दरअसल नुमायश में पेश करने योग्य था समझदार लोग विचार करें।
Muhammad�s religion is predominantly theological, but moral values are not altogether neglected. The pre-Muslim Arabs believed in many moral values common to all mankind. Muhammad retained these values but gave them a sectarian twist. A Muslim owes everything to the ummah, very little to others. He has no obligations, moral or spiritual, toward non-Muslims as part of the human race, except to convert them by sword, spoils, and jizyA. For example, sincerity is a universal human value, and we should exercise it in our relations with one another irrespective of creed and nationality. But in Islam, it is limited to Muslims. Muhammad at one place defines al-din (�the religion,� i.e., Islam) as �sincerity and well-wishing,� which should be a good definition for any religion. But on being asked, �Sincerity and well-wishing for whom?� he replies: �For Allah, His Book, His Messenger and for the leaders and general Muslims� (98). JarIr b. �Abdullah reports that he �pledged allegiance to the Apostle of Allah on sincerity and well-wishing for every Muslim� (102).
Again, other moral values are given the same twist, and the universal is turned into the sectarian. Muhammad tells his followers: �Abusing a Muslim is an outrage and fighting against him is unbelief� (122).
ये बयान किसी अन्य वर्ग के मुँह से निकला होता तो शायद साम्प्रदायिक रूप ले लिया होता . खैर समाज में शान्ति बानी रहनी चाहिए .. प्रसिद्ध फिल्म निर्मात्री और नृत्य शिक्षिका सरोज खान ने बेहद सनसनीखेज आरोप लगाते हुए अपनी स्वयं के व्यथा सुनाते हुए कहा कि अजमेर के ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की मजार अब सिर्फ लूट का अड्डा बन कर रह गयी है. सरोज खान खुद इस दरगाह पर जियारत करने पहुंची थी. यद्द्पि उनका इशारा दरगाह के खादिमों की तरफ था . उन्होंने कहा कि इस दरगाह पर आने वाले जायरीनों के प्रति यहां के खादिमो का व्यवहार बिलकुल भी उचित व स्वीकार्य नहीं है . उनके हिसाब से यहाँ के खादिम आस्था रखने वालों से तरह तरह की बातें कर के सिर्फ और सिर्फ पैसे उगाही का कार्य करते हैं . उन्होंने आगे जोड़ते हुए कहा कि अफ़सोस आने और आ कर पैसा चढ़ाने वाले जायरीनों का एक भी पैसा उनके लिए सुविधा या किसी व्यवस्था में नहीं खर्च किया जाता है . सरोज खान ने कहा कि इस प्रकार का व्यवहार बंद होना चाहिए और यहाँ सुविधाएं बढ़ानी चाहिए क्योंकि ये जायरीनों का वो केंद्र है जहाँ देश विदेश के लोग आ कर जियारत किया करते हैं .
क्या खुदा पूरे कुरान को याद नहीं रख सकता था जो उसे लोहे की तख्ती पर उसे लिखकर रख लेना पड़ा था?
क्या इस मामले में हमारे मुसलमान हाफिज खुदा से बाजी नहीं मार ले गये जो पूरा कुरान कंठस्थ याद कर लेते हैं? बतावें कि खुदा का दिमाग इतना कमजोर क्यों हो गया है जो वह कुरान भी हिफ्ज अर्थात् मुजबानी याद नहीं रख सकता था?
देखिये कुरान में कहा गया है कि-
बल् हु-व कुर् आनुम्-मजीद……………।।
(कुरान मजीद पारा ३० सूरा बुरूज रूकू १ आयत २१)
बल्कि यह कुरान बड़ी शान का है।
फी लौहिम्-मह्फूज………..।।
(कुरान मजीद पारा ३० सूरा बुरूज रूकू १ आयत २२)
हमने कुरान को लोहे महफूज लिखा हुआ है।
समीक्षा
असल कुरान खुदा ने किसी कठिन भाषा में लौहे महफूज नाम की लोहे की तख्ती पर लिख कर रख लिया है। मौजूदा कुरान तो उसको सरल करके काँट छाँट कर बनाया गया है। हम जानना चाहते हैं कि लौहे की तख्ती पर तो जंग भी लग सकती है उस स्थिति में उस पर लिखा हुआ खुदाई कलाम कैसे महफूज अर्थात् सुरक्षित रह सकता है?
अगर किसी ने जवानी के जोश में कोई गलती की थी तो एक बुजुर्ग मौलाना हो कर उन्हें दोनों को समझाना था , पर वो तो देने लगे थे बढ़ावा उस कार्य को जो अपराध था , मानवता की नजर में भी और कानून की नजर में भी . लव जिहाद के दायरे में लाने के लिए किसी को भी ना किसी कानून की फ़िक्र है , ना ही किसी प्रकार के नियमों की . वो जैसे भी , जहाँ भी , जिसको भी चाहे शकार बना लेते हैं . ऐसा ही एक मामला एक बुजुर्ग मौलाना और पवित्र कही जाने वाली मस्जिद में चल रहा था जहाँ एक अबोध बालिका का निकाह चुपके से पढ़ाया गया . मौलाना को पता था कि चुपके से केवल अपराध किये जाते हैं और वो ऐसा ही कर रहे थे . चुपके से निकाह रूप अपराध के 3 पहलू थे . हिन्दू संगठन हिन्दू रक्षा दल का पहला आरोप है कि वो बालिका नाबालिग थी और नाबालिग बालिका से विवाह किसी भी प्रकार से सामजिक और कानूनी अपराध है . दूसरा पहलू था कि बालिका दूसरे धर्म की थी इसलिए मौलाना को और जल्दी थी इसे करने की .. तीसरा पहलू था कि ये बालिका तेलंगाना से भगा कर लाई गयी थी जिसके माता पिता का अपनी बेटी को खोज कर बुरा हाल था . उनके आंसू नहीं थम रहे थे अपनी बेटी के इस तरह अचानक गायब हो जाने पर .. मौलाना ये सारा कुकृत्य गाजियाबाद के नंदग्राम इलाके की एक मस्जिद में कराया था जहां एक स्थानीय वर्ग विशेष निवासी ने इनको छुपा कर रखा था . इस पूरे प्रकरण में लिप्त लोगों को जबकि निश्चित रूप से उसे कानून की पूरी जानकारी थी . अपनी नजर चरों तरफ गड़ाए बैठे हिन्दू संघठनो को इस बात की भनक लग गयी ..उसके बाद हिन्दू रक्षा दल नाम के संगठन ने मस्जिद और जिस घर में लड़की को छिपाया गया था उसको घेर लिया और मौलवी के साथ लड़की को छिपा कर रखे स्थानीय को बाहर निकालने लगे. थोड़ी देर में वहां पुलिस आ गयी और मौलाना , नाबालिग लड़की को भगा कर लाये अपराधी व् लड़की को हिरासत में ले कर थाने गयी . हिन्दू रक्षा दल के कार्यकर्ताओं के अनुसार तेलंगाना से भगा कर लाने के बाद उस नाबालिग लड़की का लगभग 10 दिनों से नई बस्ती नंदग्राम में रख कर शारीरिक शोषण किया जा रहा था. पुलिस के अनुसार विवेचना जारी है . हिन्दू रक्षा दल के कार्यकर्ताओं का कहना है कि वो इस विषय से जुड़े एक एक लोगों को सज़ा दिलाने तक चुप नहीं बैठेंगे.
source: http://www.sudarshannews.com/category/national/love-jihad-in-ghaziabad-up-1004
The women who sleep with a stranger to save their marriage
A number of online services are charging “divorced” Muslim women thousands of pounds to take part in “halala” Islamic marriages, a BBC investigation has found. Women pay to marry, have sex with and then divorce a stranger, so they can get back with their first husbands.
Farah – not her real name – met her husband after being introduced to him by a family friend when she was in her 20s. They had children together soon afterwards but then, Farah says, the abuse began.
“He dragged me by my hair through two rooms and tried to throw me out of the house. There would be times where he would just go crazy.”
Despite the abuse, Farah hoped things would change. Her husband’s behaviour though became increasingly erratic – leading to him “divorcing” her via text message.
“I was at home with the children and he was at work. During a heated discussion he sent me a text saying, ‘talaq, talaq, talaq’.”
“Triple talaq” – where a man says “talaq”, or divorce, to his wife three times in a row – is a practice which some Muslims believe ends an Islamic marriage instantly.
It is banned in most Muslim countries but still happens, though it is impossible to know exactly how many women are “divorced” like this in the UK.
“I had my phone on me,” Farah explains, “and I just passed it over to my dad. He was like, ‘Your marriage is over, you can’t go back to him.'”
Farah says she was “absolutely distraught”, but willing to return to her ex-husband because he was “the love of my life”.
She says her ex-husband also regretted divorcing her.
This led Farah to seek the controversial practice known as halala, which is accepted by a small minority of Muslims who subscribe to the concept of a triple talaq.
They believe halala is the only way a couple who have been divorced, and wish to reconcile, can remarry.
Halala involves the woman marrying someone else, consummating the marriage and then getting a divorce – after which she is able to remarry her first husband.
But in some cases, women who seek halala services are at risk of being financially exploited, blackmailed and even sexually abused.
It’s a practice the vast majority of Muslims are strongly against and is attributed to individuals misunderstanding the Islamic laws around divorce.
But an investigation by the BBC has found a number of online accounts offering halala services, several of which are charging women thousands of pounds to take part in temporary marriages.
‘Desperation’
One man, advertising halala services on Facebook, told an undercover BBC reporter posing as a divorced Muslim woman that she would need to pay £2,500 and have sex with him in order for the marriage to be “complete” – at which point he would divorce her.
The man also said he had several other men working with him, one who he claims initially refused to issue a woman a divorce after a halala service was complete.
There is nothing to suggest the man is doing anything illegal. The BBC contacted him after the meeting – he rejects any allegations against him, claiming he has never carried out or been involved in a halala marriage and that the Facebook account he created was for fun, as part of a social experiment.
In her desperation to be reunited with her husband, Farah began trying to find men who were willing to carry out a halala marriage.
“I knew of girls who had gone behind families’ backs and had it done and been used for months,” she says.
“They went to the mosque, there was apparently a designated room where they did this stuff and the imam or whoever offers these services, slept with her and then allowed other men to sleep with her too.”
Image captionKhola Hasan says halala services are “abusing vulnerable people”
But the Islamic Sharia Council in East London, which regularly advises women on issues around divorce, strongly condemns halala marriages.
“This is a sham marriage, it is about making money and abusing vulnerable people,” says Khola Hasan from the organisation.
“It’s haram, it’s forbidden. There’s no stronger word I can use. There are other options, like getting help or counselling. We would not allow anyone to go through with that. You do not need halala, no matter what,” she adds.
Farah ultimately decided against getting back with her husband – and the risks of going through a halala marriage. But she warns there are other women out there, like her, who are desperate for a solution.
“Unless you’re in that situation where you’re divorced and feeling the pain I felt, no-one’s going to understand the desperation some women feel.
“If you ask me now, in a sane state, I would never do it. I’m not going to sleep with someone to get back with a man. But at that precise time I was desperate to get back with my ex-partner at any means or measure.”
जन्नत में जाते समय तक भी बच्चे क्या बच्चे ही बने रहेंगे या वे उस वक्त तक कब्रों में बढ़ कर दाड़ी मूंछ वाले बड़े बन जावेंगे? जन्नत में उन बाल बच्चों के निकाह को ओरतें भी मिलेंगी या बेचारे सदा क्वारें ही रहा करेंगे?
क्या उनको भी हूरों का मजा चखने को मिलेगा?
देखिये कुरान में कहा गया है कि-
व यन्कलिबु इला अह्लिही मस्रूरा……….।
(कुरान मजीद पारा ३० सूरा इन्श्किाक रूकू १ आयत ९)
और (जन्नती) खुश-खुश अपने बाल-बच्चों में वापस जायेगा।
समीक्षा
मुसलमानों के बीबी बच्चे भी बहिश्त में साथ जायेंगे और वहाँ भी हुरों से बेशुमार पैदा हुआ करेंगे। बधाई है, उनके इस्लाम का कुनबा खूब बढ़ेगा।
आसमान व जमीन के भी क्या बातें सुनने को कान होते हैं? यदि हों तो वे कितने-कितने बड़े हैं और किधर हैं यह साबित करें?
देखिये कुरान में कहा गया है कि-
इजस्समाउन्शक्कत्…………।।
(कुरान मजीद पारा ३० सूरा इन्शिकाक रूकू १ आयत १)
और जब आसमान फट जावेगा।
व अजिनत लिरब्बिहा व हुक्कत…….।।
(कुरान मजीद पारा ३० सूरा इन्श्किाक रूकू १ आयत २)
और अपने परवर्दिगार की बात सुनेगा और यह उसका फर्ज ही है।
व इजल्अर्जु मुद्दत्…………..।।
(कुरान मजीद पारा ३० सूरा इन्श्किाक रूकू १ आयत ३)
और जब जमीन तान दी जायेगी।
व अल्कत मा फीहा व त-खल…….।।
(कुरान मजीद पारा ३० सूरा इन्श्किाक रूकू १ आयत ४)
और जो कुछ उसमें है बाहर डाल देगी और खाली हो जायेगी।
व अजिनत लिरब्बिहा व हुक्मत………..।।
(कुरान मजीद पारा ३० सूरा इन्श्किाक रूकू१ आयत ५)
और अपने परवर्दिगार की बात सुनेगी यह तो उसका फर्ज ही है।
समीक्षा
शून्य आकाश और जड़ जमीन खुदा की बातें सुनेंगे यह बात बेतुकी है। जमीन क्या कोई चादर है जो तान दी जायेगी? जब जमीन की हर चीज अलग-अलग हो जावेगी तो जमीन नाम की कोई चीज खुदा की बात सुनने को बाकी ही न रहेगी।
What are good deeds and what are bad deeds? These questions have been the concern of many religions, many philosophies, and many teachers. Islam too has provided its characteristic answers. It tells us that good deeds are not a matter of indifference but must be coupled with the choice of the right religion. Abdul HamId SiddIqI, the translator of the SahIh Muslim, gives the Islamic view in the following words: �The good deeds performed in the state of ignorance (outside the fold of Islam) are indicative of the fact that a man is inclined towards piety. But to be truly pious and virtuous it is quite essential to have the correct understanding of the Will of God. This can be confidently known only through the Prophets and is embodied in Islam. Thus without having faith in Islam we cannot serve our Master and Lord according to His Will. . . . The acts of virtue may be good in their own way but it is by coming within the fold of Islam that these become significant and meaningful in the eyes of the Lord� (note 218).
In the eyes of Muhammad, a wrong theology is worse than wicked deeds. When asked, �Which sin is the gravest in the eyes of Allah?� he replies: �That you associate a partner with Allah.� To kill your child and to commit adultery with the wife of your neighbor are second and third in gravity according to Muhammad (156).
In fact, only a wrong theology can keep a Muslim out of Paradise. But no morally wicked act-not even adultery and theft-can prevent his entry. Muhammad tells us: �Gabriel came to me and gave me tidings: Verily he who died amongst your Ummah [sect, nation, group] without associating anything with Allah would enter paradise.� In clarification, AbU Zarr, the narrator of the hadIs, asks Muhammad whether this is true even if the man committed adultery and theft. Muhammad replies: �Yes, even if he committed adultery and theft� (171). The translator clarifies the point further: He says that adultery and theft �are both serious offences in Islam . . . but these do not doom the offender to the eternal hell,� but polytheism or associating any god �with the Lord is an unpardonable crime and the man who commits it is doomed to Hell� (notes 169 and 170).
If polytheism is the worst of crimes, monotheism, by the same token, is the best of virtues. Muhammad is asked about �the best of deeds.� He replies: �Belief in Allah.� �What next?� he is asked. �JihAd,� he replies (148). In Muslim theology the formula �belief in Allah� of course means �belief in Allah and His Messenger.� Once one accepts the theological belief in Allah and His Messenger, one�s past crimes are obliterated, and future ones hold no great terror. Muhammad gave this assurance to some polytheists who �had committed a large number of murders and had excessively indulged in fornication,� but who were ready to join him. To another person who felt a sense of guilt about his past, Muhammad said: �Are you not aware of the fact that Islam wipes out all the previous misdeeds?� (220).
खुदा के पास नेकी और बदी के पृथक-पृथक रजिस्टर रहते हैं
खुदा के ये रजिस्टर एक दो हैं या लाखों जिल्दों में है। रजिस्टरों के कागज किस पेपर मिल से मंगाये जाते हैं? तथा इनकी जिल्दें कहां पर बनती हैं?
देखिये कुरान में कहा गया है कि-
कल्ला इन्-न किताबल् फुज्जारि…………………।।
(कुरान मजीद पारा ३० सूरा मुताफ्फिफीन रूकू १ आयत ७)
कुकर्मी लोगों के कर्म रोजनामचा और कैदियों के रजिस्टर में हैं।
व मा अद्रा-क मा सिज्जीन…………।।
(कुरान मजीद पारा ३० सूरा मुताफ्फिफीन रूकू १ आयत ८)
और ऐ पैगाम्बर! तू क्या समझे कि कैदियों का रजिस्टर क्या चीज है?
किताबुम्-मर्कूम…………।।
(कुरान मजीद पारा ३० सूरा मुताफ्फिफीन रूकू १ आयत ९)
वह एक किताब है जिसकी खाना पूरी होती है।
कल्ला इन्-न किताबल् अब्रारि……….।।
(कुरान मजीद पारा ३० सूरा मुताफ्फिफीन रूकू १ आयत १८)
अच्छे लोगों का कर्म लेखा बड़े रूतबे वाले लोगों के रजिस्टर में है।
किताबुम् मर्कूमुंय………।।
(कुरान मजीद पारा ३० सूरा मुताफ्फिफीन रूकू १ आयत २०)
वह एक किताब है जिसकी खाना पूरी होती रहती है।
यश्हदुहुल् मुकर्रबून…………।।
(कुरान मजीद पारा ३० सूरा मुताफ्फिफीन रूकू १ आयत २१)
फरिश्ते जो नजदीक हैं उस पर तैनात हैं।
समीक्षा
खुदा के यहाँ भी पुलिस विभाग की रोजनामचा के रजिस्टर पृथक-पृथक रहते हैं और उनकी रक्षा को सिपाही तैनात रहते हैं। हर महकमे के कार्यालय भी खुदा के यहाँ बने हुए हैं।
खुद भी बिचारा बिना रजिस्टरों के कोई न्याय नहीं कर सकता है। कुरानी खदा वास्तव में ही बड़ा मजबूर है जिस पर हमें बड़ी दया आती है।