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कवि और कबीर का भेद – रामपाल के पाखंड का खंडन।

।। ओ३म ।।

अग्निनाग्निः समिध्यते कविर्गृहपतिर्युवा।
हव्यवावाड्जुह्वास्यः।।

(ऋग्वेद 1.12.6)

प्रथमाश्रम में अपने में ज्ञान को समिद्ध करते हुए हम द्वितीयाश्रम में उत्तम गृहपति बने। वानप्रस्थ बनकर यज्ञो का वहन करते हुए तुरियाश्रम में ज्ञान का प्रसार करने वाले बने।

नमस्ते मित्रो – आज का विषय

कवि और कबीर का भेद – रामपाल के पाखंड का खंडन।

वेदो में प्रयुक्त कवि शब्द एक अलंकार है – किसी प्राणी का नाम नहीं, क्योंकि विद्याओ के सूक्ष्म तत्वों के दृष्टा, को कवि कहते हैं – इस कारण ये अलंकार ऋषियों के लिए भी प्रयुक्त होता है और समस्त विद्या (वेदो का ज्ञान) देने वाला ईश्वर भी अलंकार रूप से कवि नाम पुकारा जा सकता है।

क्योंकि ये एक अलंकार है इससे किसी व्यक्ति प्राणी का नाम समझना एक भूल है – विसंगति है – मगर बहुत से रामपालिये चेले चपाटे अपनी मूर्खता में ये काम करने से भी बाज़ नहीं आते उन्हें कुछ शास्त्रोक्त प्रमाण दिए जाते हैं –

कवि शब्द की व्युत्पत्ति : कविः शब्द ‘कु-शब्दे’ (अदादि) धातु से ‘अच इ:’ (उणादि 4.139) सूत्र से ‘इ:’ प्रत्यय लगने से बनता है। इसकी निरुक्ति है :

‘क्रांतदर्शनाः क्रांतप्रज्ञा वा विद्वांसः (ऋ० द० ऋ० भू०)

“कविः क्रांतदर्शनो भवति” (निरुक्त 12.13)

इस प्रकार विद्याओ के सूक्ष्म तत्वों का दृष्टा, बहुश्रुत ऋषि व्यक्ति कवि होता है।

इसे “अनुचान” भी इस प्रसंग में कहा है [2.129] ब्राह्मणो में भी कवि के इस अर्थ पर प्रकाश डाला है –

“ये वा अनूचानास्ते कवयः” (ऐ० 2.2)

“एते वै काव्यो यदृश्यः” (श० 1.4.2.8)

“ये विद्वांसस्ते कवयः” (7.2.2.4)

शुश्रुवांसो वै कवयः (तै० 3.2.2.3)

अतः इन प्रमाणों से सिद्ध हुआ की वेदो में प्रयुक्त “कवि” शब्द एक अलंकार है – जहाँ जहाँ भी जिस जिस वेद मन्त्र में कवि शब्द प्रयुक्त हुआ है उसका अर्थ अलंकार से ही लेना उचित होगा, बाकी मूढ़ लोगो को बुद्धि तो खुद “कबीर” भी ना दे पाये देखिये कबीर ने अपने ग्रंथो में क्या लिखा है :

कबीर जी परमात्मा को सर्वव्यापक मानते हैं। कबीर जी के कुछ वचन देखे :

स्वयं संत कबीर दास जी ने भी ईश्वर को सर्वव्यापक माना है। (गुरु ग्रन्थ पृष्ठ 855)

कहु कबीर मेरे माधवा तू सरब बिआपी ॥
सरब बिआपी = सर्वव्यापी
कबीर जी कह रहे हैं की हे मेरे परमात्मा तू सर्वव्यापी है।

तुम समसरि नाही दइआलु मोहि समसरि पापी॥

तुम्हारे सामान कोई दयालु नहीं है, और मेरे सामान कोई पापी नहीं है।

कबीर जी ब्रह्म का अर्थ परमात्मा लेते है काल नहीं
कबीरा मनु सीतलु भइआ पाइआ ब्रहम गिआनु ॥ (गुरु ग्रन्थ पृष्ठ 1373)

ब्रहम बिंदु ते सभ उतपाती ॥१॥

सभी की उत्पत्ति ब्रह्म अर्थात ईश्वर से होती है। (गुरु ग्रन्थ पृष्ठ 324)

अब जब कबीर जी भी ईश्वर अर्थात ब्रह्म से सभी की उत्पत्ति मानते हैं ऐसा लिखते भी हैं तब ये रामपाल और उसके चेले कबीर जैसे संत की वाणी को झूठा क्यों सिद्ध करते फिरते हैं की कबीर परमात्मा हैं ?

क्या ये धूर्तता और ढोंग पाखंड नहीं ?

क्या कबीर जैसे संत की वाणी को दूषित करना और संत कबीर को ईश्वर कहना क्या संत कबीर के शब्दों और दोहो का अपमान नहीं ?

आशा है सभ्य समाज इस लेख के माध्यम से रामपालिये और उसके चेलो के पाखंड का विरोध करेंगे और बुद्धिमान व्यक्ति इस पोस्ट के माध्यम से अपने विचार रखेंगे।

लौटो वेदो की और।

नमस्ते

अनवर जमाल साहब की पुस्तक “दयानंद जी ने क्या खोया क्या पाया” के प्रतिउत्तर में :

।। ओ३म ।।जनाब अनवर जमाल साहब ऋषि के ज्ञान और वेद के विज्ञानं पर शंका उत्पन्न करते हुए लिखते हैं :

यदि दयानन्द जी की अविद्या रूपी गांठ ही नहीं कट पायी थी और वह परमेश्वर के सामीप्य से वंचित ही रहकर चल बसे थे तो वह परमेश्वर की वाणी `वेद´ को भी सही ढंग से न समझ पाये होंगे? उदाहरणार्थ, दयानन्दजी एक वेदमन्त्र का अर्थ समझाते हुए कहते हैं-
`इसीलिए ईश्वर ने नक्षत्रलोकों के समीप चन्द्रमा को स्थापित किया।´ (ऋग्वेदादि0, पृष्‍ठ 107)
(17) परमेश्वर ने चन्द्रमा को पृथ्वी के पास और नक्षत्रलोकों से बहुत दूर स्थापित किया है, यह बात परमेश्वर भी जानता है और आधुनिक मनुष्‍य भी। फिर परमेश्वर वेद में ऐसी सत्यविरूद्ध बात क्यों कहेगा?
इससे यह सिद्ध होता है कि या तो वेद ईश्वरीय वचन नहीं है या फिर इस वेदमन्त्र का अर्थ कुछ और रहा होगा और स्वामीजी ने अपनी कल्पना के अनुसार इसका यह अर्थ निकाल लिया । इसकी पुष्टि एक दूसरे प्रमाण से भी होती है, जहाँ दयानन्दजी ने यह तक कल्पना कर डाली कि सूर्य, चन्द्र और नक्षत्रादि सब पर मनुष्‍यदि गुज़र बसर कर रहे हैं और वहाँ भी वेदों का पठन-पाठन और यज्ञ हवन, सब कुछ किया जा रहा है और अपनी कल्पना की पुष्टि में ऋग्वेद (मं0 10, सू0 190) का प्रमाण भी दिया है-
`जब पृथिवी के समान सूर्य, चन्द्र और नक्षत्र वसु हैं पश्चात उनमें इसी प्रकार प्रजा के होने में क्या सन्देह? और जैसे परमेश्वर का यह छोटा सा लोक मनुश्यादि सृष्टि से भरा हुआ है तो क्या ये सब लोक शून्‍य होंगे? (सत्यार्थ., अश्टम. पृ. 156)
(18) क्या यह मानना सही है कि ईश्वरोक्त वेद व सब विद्याओं को यथावत जानने वाले ऋषि द्वारा रचित साहित्य के अनुसार सूर्य व चन्द्रमा आदि पर मनुष्‍य आबाद हैं और वो घर-दुकान और खेत खलिहान में अपने-अपने काम धंधे अंजाम दे रहे हैं?

समीक्षा : अब हमारे जनाब अनवर जमाल साहब कुरान के इल्म से बाहर निकले तो कुछ ज्ञान विज्ञानं को समझे पर क्या करे अल्लाह मिया ने क़ुरान में ऐसा ज्ञान नाज़िल किया की जमाल साहब उसे पढ़कर ही खुद आलिम हो गए। देखिये जमाल साहब ऋषि ने क्या कहा और उसका अर्थ क्या निकलता है :

ऋषि ने लिखा :

`इसीलिए ईश्वर ने नक्षत्रलोकों के समीप चन्द्रमा को स्थापित किया।´ (ऋग्वेदादि0, पृष्‍ठ 107)

अब इसका फलसफा और विज्ञानं देखो – ऋषि को वेदो से जो ज्ञान और विज्ञानं मिला वो इन जमाल साहब को नजर नहीं आएगा –

आकाश में तारा-समूह को नक्षत्र कहते हैं। साधारणतः यह चन्द्रमा के पथ से जुडे हैं, पर वास्तव में किसी भी तारा-समूह को नक्षत्र कहना उचित है।

ऋषि का अर्थ है क्योंकि चन्द्रमा नक्षत्रो के पथ से जुड़ा है इसलिए अलंकार रूप में वहां लिखा है की नक्षत्रलोको के समीप चन्द्रमा को स्थापित किया –

अब इसका वैज्ञानिक प्रभाव देखो :

तारे हमारे सौर जगत् के भीतर नहीं है। ये सूर्य से बहुत दूर हैं और सूर्य की परिक्रमा न करने के कारण स्थिर जान पड़ते हैं—अर्थात् एक तारा दूसरे तारे से जिस ओर और जितनी दूर आज देखा जायगा उसी ओर और उतनी ही दूर पर सदा देखा जायगा। इस प्रकार ऐसे दो चार पास-पास रहनेवाले तारों की परस्पर स्थिति का ध्यान एक बार कर लेने से हम उन सबको दूसरी बार देखने से पहचान सकते हैं। पहचान के लिये यदि हम उन सब तारों के मिलने से जो आकार बने उसे निर्दिष्ट करके समूचे तारकपुंज का कोई नाम रख लें तो और भी सुभीता होगा। नक्षत्रों का विभाग इसीलिये और इसी प्रकार किया गया है।

चंद्रमा २७-२८ दिनों में पृथ्वी के चारों ओर घूम आता है। खगोल में यह भ्रमणपथ इन्हीं तारों के बीच से होकर गया हुआ जान पड़ता है। इसी पथ में पड़नेवाले तारों के अलग अलग दल बाँधकर एक एक तारकपुंज का नाम नक्षत्र रखा गया है। इस रीति से सारा पथ इन २७ नक्षत्रों में विभक्त होकर ‘नक्षत्र चक्र’ कहलाता है। नीचे तारों की संख्या और आकृति सहित २७ नक्षत्रों के नाम दिए जाते हैं।

इन्हीं नक्षत्रों के नाम पर महीनों के नाम रखे गए हैं। महीने की पूर्णिमा को चंद्रमा जिस नक्षत्र पर रहेगा उस महीने का नाम उसी नक्षत्र के अनुसार होगा, जैसे कार्तिक की पूर्णिमा को चंद्रमा कृत्तिका वा रोहिणी नक्षत्र पर रहेगा, अग्रहायण की पूर्णिमा को मृगशिरा वा आर्दा पर; इसी प्रकार और समझिए।

ये ज्ञान और विज्ञानं वेदो में ही दिखता है क़ुरान में नहीं जमाल साहब।

क़ुरान का विज्ञानं हम दिखाते हैं जरा गौर से देखिये :

1. अल्लाह मियां तो क़ुरान में चाँद को टेढ़ी टहनी ही बनाना जानता है :

और रहा चन्द्रमा, तो उसकी नियति हमने मंज़िलों के क्रम में रखी, यहाँ तक कि वह फिर खजूर की पूरानी टेढ़ी टहनी के सदृश हो जाता है
(क़ुरआन सूरह या-सीन ३६ आयत ३९)

क्या चाँद कभी अपने गोलाकार स्वरुप को छोड़ता है ? क्या अल्लाह मियां नहीं जानते की ये केवल परिक्रमा के कारण होता है ?

2. सूरज चाँद के मुकाबले तारे अधिक नजदीक हैं :

और (चाँद सूरज तारे के) तुलूउ व (गुरूब) के मक़ामात का भी मालिक है हम ही ने नीचे वाले आसमान को तारों की आरइश (जगमगाहट) से आरास्ता किया।
(सूरह अस्साफ़्फ़ात ३७ आयत ६)

क्या अल्लाह मिया भूल गए की सूरज से लाखो करोडो प्रकाश वर्ष की दूरी पर तारे स्थित हैं ?

3. क़ुरान के मुताबिक सात ग्रह :

ख़ुदा ही तो है जिसने सात आसमान पैदा किए और उन्हीं के बराबर ज़मीन को भी उनमें ख़ुदा का हुक्म नाज़िल होता रहता है – ताकि तुम लोग जान लो कि ख़ुदा हर चीज़ पर कादिर है और बेशक ख़ुदा अपने इल्म से हर चीज़ पर हावी है।

(सूरह अत तलाक़ ६५ आयत १२)

क्या सात आसमान और उन्ही के बराबर सात ही ग्रह हैं ? क्या खुदा को अस्ट्रोनॉमर जितना ज्ञान भी नहीं की आठ ग्रह और पांच ड्वार्फ प्लेनेट होते हैं।

4. शैतान को मारने के लिए तारो को शूटिंग मिसाइल बनाना भी अल्लाह मिया की ही करामात है।

और हमने नीचे वाले (पहले) आसमान को (तारों के) चिराग़ों से ज़ीनत दी है और हमने उनको शैतानों के मारने का आला बनाया और हमने उनके लिए दहकती हुई आग का अज़ाब तैयार कर रखा है।

(सूरह अल-मुल्क ६७ आयत ५)

मगर जो (शैतान शाज़ व नादिर फरिश्तों की) कोई बात उचक ले भागता है तो आग का दहकता हुआ तीर उसका पीछा करता है

(सूरह सूरह अस्साफ़्फ़ात ३७ आयत १०)

क्या अल्लाह को तारो और उल्का पिंडो में अंतर नहीं पता जो तारो को शूटिंग मिसाइल बना दिया ताकि शैतान मारे जावे ? और उल्का पिंड जो है वो धरती के वायुमंडल में घुसने वाली कोई भी वस्तु को घर्षण से ध्वस्त कर देती है जो जल्दी हुई गिरती है ये सामान्य व्यक्ति भी जानते हैं इसको शैतान को मारने वाले मिसाइल बनाने का विज्ञानं खुद अल्लाह मियां तक ही सीमित रहा गया।

रही बात सूर्यादि ग्रह पर प्रजा की बात तो आज विज्ञानं स्वयं सिद्ध करता है की सूर्य पर भी फायर बेस्ड लाइफ मौजूद है। ज्यादा जानकारी के लिए लिंक देखिये :

http://www.theonion.com/article/scientists-theorize-sun-could-support-fire-based-l-34559

अब किसको ज्ञान ज्यादा रहा जमाल साहब ?

आपके क़ुरान नाज़िल करने वाले अल्लाह मिया को ?

या वेद को पढ़कर पूर्ण ज्ञानी ऋषि की उपाधि प्राप्त करने वाले महर्षि दयानंद को।

लिखने को तो और भी बहुत कुछ लिखा जा सकता है मगर आपकी इस शंका पर इतने से ही पाठकगण समझ जाएंगे इसलिए अपनी लेखनी को विराम देता हु – बाकी और भी जो आक्षेप आपकी पुस्तक में ऋषि और सत्यार्थ प्रकाश पर उठाये हैं यथासंभव जवाब देने की कोशिश रहेगी

खुद पढ़े आगे बढे

लौटो वेदो की और

नमस्ते

 

सोम का वास्तविक अर्थ और सोमरस का पाखंड

अ हं दां गृणते पूर्व्यं वस्वहं ब्रह्म कृणवं मह्यं वर्धनम् ।

अ हं भुवं यजमानस्य चोदिताऽयज्वनः साक्षि विश्वस्मिन्भरे ।।

– ऋ० मं० १०। सू० ४९। मं० १।।

हे मनुष्यो! मैं सत्यभाषणरूप स्तुति करनेवाले मनुष्य को सनातन ज्ञानादि धन को देता हूं। मैं ब्रह्म अर्थात् वेद का प्रकाश करनेहारा और मुझ को वह वेद यथावत् कहता उस से सब के ज्ञान को मैं बढ़ाता; मैं सत्पुरुष का प्रेरक यज्ञ करनेहारे को फलप्रदाता और इस विश्व में जो कुछ है उस सब कार्य्य का बनाने और धारण करनेवाला हूं। इसलिये तुम लोग मुझ को छोड़ किसी दूसरे को मेरे स्थान में मत पूजो, मत मानो और मत जानो।

नमस्ते मित्रो,

जैसा की आप सभी जानते हों हमारे देश में अनेको विद्वान और गुरुजन होते चले आये हैं और होते भी रहेंगे क्योंकि ये देश ही विद्वान उत्पन्न करने वाला है, इसीलिए इस देश आर्यावर्त को विश्वगुरु कहा जाता है, मगर ये भी एक कटु सत्य है की इसी देश में अनेको ऐसे भी तथाकथित और स्वघोषित विद्वान होते आये हैं जिनका उद्देश्य ही धर्म अर्थात वेद और वेदज्ञान का उपहास करना रहा है, ऐसे ही एक तथाकथित विद्वान हुए थे जिनका नाम था नारायण भवानराव पावगी इन्होने कुछ पुस्तके लिखी थी जिनमे कुछ हैं

1. आर्यावर्तच आर्यांची जन्मभूमि व उत्तर ध्रुवाकडील त्यांच्या वसाहती (इ.स. १९२०)

2. ॠग्वेदातील सप्तसिंधुंचा प्रांत अथवा आर्यावर्तातील आर्यांची जन्मभूमि आणि उत्तर ध्रुवाकडील त्यांच्या वसाहती (इ.स. १९२१)

3. सोमरस-सुरा नव्हे (इ.स. १९२२)

इन पुस्तको में लेखक ने वेदो, वैदिक ज्ञान और ऋषियों पर अनेक लांछन लगाये जिनमे प्रमुखता से ये सिद्ध करने की कोशिश की गयी की वैदिक काल में ऋषि और सामान्य मानव भी होम के दौरान सोमरस का पान देवताओ को करवाते थे और अपनी इच्छित मनोकामनाओ की पूर्ति हेतु यज्ञ में पशु वध, नरमेध भी करते थे। अब इन आधारहीन तथ्यों के आधार पर अनेको विधर्मी और महामानव आदि अपनी वेबसाइट और लेखो के माध्यम से हिन्दुओ के मन में वेदज्ञान के प्रति जहर भरने का कार्य करते हैं, उनमे मुख्यत जो आरोप लगाया जाता है वो है :

वेदो और वैदिक ज्ञान के अनुसार ऋषि आदि अपनी मनोकामनाए पूरी करने हेतु अनेको देवताओ को सोमरस (शराब) की भेंट करते थे।

सोमरस बनाने की विधि वेद में वर्णित है ऐसा भी इनका खोखला दावा है।

आइये एक एक आक्षेप को देखकर उसका समुचित जवाब देने की कोशिश करते हैं।

आक्षेप 1. वेदों में वर्णित सोमरस का पौधा जिसे सोम कहते हैं अफ़ग़ानिस्तान की पहाड़ियों पर ही पाया जाता है। यह बिना पत्तियों का गहरे बादामी रंग का पौधा है। जिसे यदि उबाल कर इसका पानी पीया जाय तो इससे थोड़ा नशा भी होता है। कहते हैं यह पौरुष वर्धक औषधि के रूप में भी प्रयोग होता है।
सोम वसुवर्ग के देवताओं में हैं ।
मत्स्य पुराण (5-21) में आठ वसुओं में सोम की गणना इस प्रकार है-
आपो ध्रुवश्च सोमश्च धरश्चैवानिलोज्नल: ।
प्रत्यूषश्च प्रभासश्च वसवोज्ष्टौ प्रकीर्तिता: ॥

समाधान : सोमलता की उत्पत्ति जो बिना पत्ती का पौधा है ऐसा इनका विचार है जो अफगानिस्तान की पहाड़ियों में पैदा होता है ऐसा इनका दावा है उसके लिए ये ऋग्वेद 10.34.1 का मन्त्र “सोमस्येव मौजवतस्य भक्षः” उद्धृत करते हैं। मौजवत पर्वत को आजके हिन्दुकुश अर्थात अफगानिस्तान से निरर्थक ही जोड़ने का प्रयास करते हैं जबकि सच्चाई इसके विपरीत है।

निरुक्त में “मूजवान पर्वतः” पाठ है मगर वेद का मौजवत और निरुक्त का मूजवान एक ही है, इसमें संदेह होता है, क्योंकि सुश्रुत में “मुञ्जवान” सोम का पर्याय लिखा है अतः मौजवत, मूजवान और मुञ्जवान पृथक पृथक हैं ज्ञात होता है। वेद में एक पदार्थ का वर्णन जो सोम नाम से आता है वह पृथ्वी के वृक्षों की जान है। पृथ्वी की वनस्पति का पोषक है, वनस्पति में सौम्यभाव लाने वाला औषिधिराज है और वनस्पतिमात्र का स्वामी है। वह जिस स्थान में रहता है उसको मौजवत कहते हैं। मेरी पिछली पोस्ट में गौओ के निवास को व्रज कहते हैं ये सिद्ध किया था उसी प्रकार सोम के स्थान को मौजवत कहा गया है। यह स्थान पृथ्वी पर नहीं किन्तु आकाश में है। क्योंकि वनस्पति की जीवनशक्ति चन्द्रमा के आधीन है इसलिए उसका नाम सोम है वह औषधि राज है। अलंकारूप से वह लतारूप है क्योंकि जो भी व्यक्ति शुक्लपक्ष और कृष्णपक्ष को समझते हैं जानते हैं उन्हें पता है की चन्द्रमा पंद्रह दिन तक बढ़ता और पंद्रह दिन तक घटता है, इसे न समझकर व्यर्थ की कोरी कल्पना कर ली गयी की शुक्लपक्ष में इस सोमलता के पत्ते होते हैं और कृष्णपक्ष में गिर जाते हैं।

सोम वसुवर्ग के देवताओ में हैं ये भी मिथ्या कल्पना इनके घर की है क्योंकि जो वसु का अर्थ भली प्रकार जानते तो ऐसे दोष और मिथ्या बाते प्रचारित ही न करते, आठ वसु में सोम भी शामिल है उसके लिए उपर्लिखित पुराण का श्लोक उद्धृत करते हैं

मत्स्य पुराण (5-21) में आठ वसुओं में सोम की गणना इस प्रकार है-
आपो ध्रुवश्च सोमश्च धरश्चैवानिलोज्नल: ।
प्रत्यूषश्च प्रभासश्च वसवोज्ष्टौ प्रकीर्तिता: ॥

भागवत पुराण के अनुसार- द्रोण, प्राण, ध्रुव, अर्क, अग्नि, दोष, वसु और विभावसु। महाभारत में आप (अप्) के स्थान में ‘अह:’ और शिवपुराण में ‘अयज’ नाम दिया है।

अब यदि इनसे पूछा जाए की – आठ वसुओं में सोम हैं मत्स्य पुराण के अनुसार जिसका अर्थ है मादक दृव्य यानी शराब – तो भगवत पुराण में आठ वसुओं में सोम क्यों नहीं लिखा ?

देखिये ऋषि दयानंद अपने ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश में वसु का अर्थ किस प्रकार करते हैं :

पृथिवी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, चन्द्रमा, सूर्य्य और नक्षत्र सब सृष्टि के निवास स्थान होने से आठ वसु। (स. प्र. सप्तम समुल्लास)

ऋषि ने बहुत ही सरल शब्दों में वसु का अर्थ कर दिया। अब अन्य आर्ष ग्रन्थ से आठ वसुओं का प्रमाण देते हैं :

शाकल्य-‘आठ वसु कौन से है?’
याज्ञ.-‘अग्नि, पृथ्वी, वायु, अन्तरिक्ष, आदित्य, द्युलोक, चन्द्र और नक्षत्र। जगत के सम्पूर्ण पदार्थ इनमें समाये हुए हैं। अत: ये वसुगण हैं।

(बृहदारण्यकोपनिषद, अध्याय तीन)

इन प्रमाणों से सिद्ध है की आठ वसुओं में सोम नामक कोई नाम नहीं। हाँ यदि सोम का अर्थ चन्द्र से करते हो जैसा की इस लेख से सिद्ध भी होता है तो आपकी सोमलता और सोमरस का सिद्धांत ही खंडित हो जाता है।

आक्षेप 2. सोम की उत्पत्ति के दो स्थान है- (1) स्वर्ग और (2) पार्थिव पर्वत । अग्नि की भाँति सोम भी स्वर्ग से पृथ्वी पर आया । ऋग्वेद ऋग्वेद 1.93.6 में कथन है : ‘मातरिश्वा ने तुम में से एक को स्वर्ग से पृथ्वी पर उतारा; गरुत्मान ने दूसरे को मेघशिलाओं से।’ इसी प्रकार ऋग्वेद 9.61.10 में कहा गया है: हे सोम, तुम्हारा जन्म उच्च स्थानीय है; तुम स्वर्ग में रहते हो, यद्यपि पृथ्वी तुम्हारा स्वागत करती है । सोम की उत्पत्ति का पार्थिव स्थान मूजवन्त पर्वत (गान्धार-कम्बोज प्रदेश) है’। ऋग्वेद 10.34.1

समाधान : यहाँ भी “आँख के अंधे और गाँठ के पुरे” वाली कहावत चरितार्थ होती है देखिये :

अप्सु में सोमो अब्रवीदंतविर्श्वानी भेषजा।
अग्निं च विश्वशम्भुवमापश्च विश्वभेषजीः।। (ऋग्वेद 1.23.20)

यहाँ सोम समस्त औषधियों के अंदर व्याप्त बतलाया गया है। इस सोम को ऐतरेयब्राह्मण 7.2.10 में स्पष्ट कह दिया है की “एतद्वै देव सोमं यच्चन्द्रमाः” अर्थात यही देवताओ का सोम है जो चन्द्रमा है। इस सोम को गरुड़ और श्येन स्वर्ग से लाते हैं। गरुड़ और श्येन भी सूर्य की किरणे ही हैं। सोम का सौम्य गुण औषधियों पर पड़ता है, यदि स्वर्ग से गरुड़ और श्येन द्वारा उसका लाना है।

ऐसे वैदिक रीति से किये अर्थो को ना जानकार व्यर्थ ही वेद और सत्य ज्ञान पर आक्षेप लगाना जो सम्पूर्ण विज्ञानं सम्मत है निरर्थक कार्य है, क्योंकि आज विज्ञानं भी प्रमाणित करता है की चन्द्रमा की रौशनी अपनी खुद की नहीं सूर्य की रौशनी ही है यही बात इस मन्त्र में यथार्थ रूप से प्रकट होती है और दूसरा सबसे बड़ा विज्ञानं ये है की चन्द्रमा जो रात को प्रकाश देता है उससे औषधियों का बल बढ़ता है।

आशा है इस लेख के माध्यम से सोमरस, सोमलता आदि जो मिथ्या बाते फैलाई जा रही हैं उनपर ज्ञानीजन विचार करेंगे। ईश्वर कृपा से इसी विषय पर जो और आक्षेप लगाये हैं उनका भी समाधान प्रस्तुत होता रहेगा

लौटो वेदो की और

नमस्ते

मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम का जन्मकाल – वेटिकन चाटुकार अज्ञानी पाश्चात्य इतिहासकारों का खंडन

नमस्ते मित्रो,

हमारे भारतवर्ष में अनेको अनेक महापुरुष, ज्ञानी, विद्वान, पराकर्मी राजा महाराजा उत्पन्न होते आये हैं, ये मिटटी कभी वीरो से खाली नहीं रही, कालांतर में भी पृथ्वी राज चौहान, महाराणा प्रताप, भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद सरीखे वीर योद्धा इसी पावन पवित्र मिटटी की गोद से उत्पन्न हुए हैं।

जहाँ तक समझता हु कालांतर में उत्पन्न हुए ये वीर और इनके माता-पिता ने भी किसी न किसी महापुरुष को आदर्श मानकर – इन वीरो में उस महापुरष के संस्कार भरे होंगे। और इस देश भारत के लिए अनेको महापुरषो के आदर्श उपस्थित रहे हैं, सभी महापुरषो के समय पर विचित्र परिस्थितिया रही जिनको उन्होंने उचित रीति से हल किया। जैसे महाभारत काल में योगेश्वर कृष्ण ने शांति बहाल करने की पूर्ण कोशिश की मगर जब धर्म की हानि होते देखि तो युद्ध में पांडवो को विजय दिलवाई। महाराणा प्रताप ने चित्तोड़ की आन बान शान के लिए पूरी जिंदगी संघर्ष किया। ऋषि दयानंद ने देखा देश की हालत बहुत विकट है, आर्य जाती अधम और पाखंड में फंस चुकी थी, भारत गुलामी से त्रस्त था ऐसे में ऋषि ने “स्वराज्य” का बिगुल बजाया। भगत सिंह, आजाद, बिस्मिल अशफ़ाक़ुल्ला खान सरीखे अनेको वीर इस स्वतंत्रता रुपी यज्ञ में अपनी आहुति देने आये।

आखिर ऐसा क्या था जो इन सभी महापुरषो को एक प्रेरणा देता था ?

वो था हमारे इतिहास में उत्पन्न हुए गौरवशाली आदर्श मानव जिन्होंने हमारे भविष्य के लिए अपना वर्त्तमान दांव पर लगाया। वो आज हमारे आदर्श हैं।

ऐसे ही एक महापुरुष के जन्मकाल के समय पर जो लाखो वर्षो से भारतीय जनमानस ही नहीं अपितु दुनिया के सभी मनुष्यो के लिए एक आदर्श रहा है, एक ऐसा मनुष्य जो पुत्र, पति, भाई, मित्र यहाँ तक की एक शत्रु के लिए भी आदर्श बन गया। आज हम ऐसे आदर्श श्री राम के जन्म काल गणना पर विचार करेंगे।

हमारे मर्यादापुरुषोत्तम श्री राम। इनके जन्म काल के विषय में अनेक भ्रांतियां हैं।
कुछ अंग्रेजी इतिहासकार हमारे सच्चे इतिहास को अपनी वेटिकन चाटुकारिता हेतु नकारते हैं, झूठे तथ्य और बेबुनियाद आधार पर हमारी आस्था पर चोट करते हैं, वामपंथी भी ऐसी ही विकृत मानसिकता से युक्त हैं, वो भी नहीं चाहते की यहाँ का हिन्दू समाज (आर्य जाती) अपने सच्चे इतिहास को जाने, इसीलिए मनमाने और झूठे कुतर्को से झूठ का प्रचार कर हिन्दुओ के मन में भ्रांतियां उत्पन्न करते हैं, नतीजा हिन्दू समाज अपने सत्य इतिहास से दूर होता जाता है।
आज हम इसी विषय पर कुछ विवेचना करेंगे –

देखिये हमारे पास हमारे इतिहास से जुड़े अनेक तथ्य और ऐतिहासिक ग्रन्थ मौजूद हैं, जो हमारी इतिहास की धरोहर है, कुछ अपवाद जैसे प्रक्षेप हिस्से को छोड़ देवे, तो जो सत्य सिद्धांत हो वो मानने योग्य है चाहे किसी भी पुस्तक में मौजूद हो – जब श्री राम का जन्म काल जानने का प्रयत्न करते हैं तो सबसे पहले हम वाल्मीकि रामायण को प्रमाण मानते हैं आइये देखे वहां क्या लिखा है –

ततो यज्ञे समाप्ते तु ऋतुनां षठ समत्ययुः।
ततश्च द्वादशे मासे चैत्रं नावमिके तिथौ।।
नक्षत्रोऽदितिदैवत्ये स्वोच्चसंस्थेषु पंच्चसु।
ग्रहेषु कर्कट लग्ने वाक्पताविन्दुना सह।।
कौशल्याजनमद् रामं दिव्य लक्षणं संयुतम्।
लोहिताक्षं महाबाहु रक्तोष्ठम् दुन्दुभिस्वनम्।।
प्रोद्यमाने जगन्न्ााथं सर्व लोक नमस्कृतम।
(वा. रा. – बालकाण्ड, सर्ग ७, श्लोक १-३)

यज्ञ की समाप्ति के पश्चात् 6 ऋतुएं बीत गईं, तब बारहवें मास चैत्र के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र एवं कर्क लग्न में कौशल्या देवी ने दिव्य लक्षणों से युक्त श्रीराम को जन्म दिया। उस समय पांच ग्रह अपने-अपने उच्च स्थानों पर विद्यमान थे।

ऋषि वाल्मीकि ने अपनी रामायण में इस प्रकार की ग्रह स्थिति में श्री राम के जन्म का उल्लेख किया है –

सूर्य, मंगल, शनि, बृहस्पति, शुक्र ग्रह मेष मकर तुला कर्क मीन में थे। चैत्र के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि श्री राम की जन्मतिथि होने से अब रामनवमी के नाम से प्रसिद्ध है।

महाभारत से प्रमाण :

महाभारत के अनुसार त्रेता और द्वापर के संधिकाल में श्री राम का जन्म हुआ था।

संध्येश समनुप्राप्ते त्रेतायां द्वापरस्य च।
अहं दशरथी रामो भविष्यामि जगत्पतिः।।
(महाभारत शान्तिपव-339/85)

ये श्लोक मिलावटी लगता है लेकिन इतना जरूर है की जो यहाँ त्रेता और द्वापर के संधि काल की बात हो रही है – उसमे सत्यता जरूर प्रतीत होती है क्योंकि इसी संधि का ऐसा ही समय आंकलन वायु महापुराण 98/72) (हरिवंश पुराण 4/41 ब्रह्मांड महापुराण 104/11) में भी दिखाई देता है।

चतुर्विशयुगं चापि विश्वामित्रपुरः सरः।
रामो दशरथस्याथ पुत्रःपदमायतेक्षणः।।

क्योंकि यहाँ 24वि चतुर्युगी की बात हो रही है जो इस वैवस्वत मनु के काल में आती है – वो मुझे युक्तियुक्त नहीं लगता अतः हम इसी 28वि चतुर्युगी के आधार पर काल गणना करते हैं –

देखिये इस समय वैवस्वत मनु की 28वि चतुर्युगी का कलयुग 5116वा साल यानी विक्रम का 2072 संवत है – यदि यहाँ से गणना की जाए तो –

इस कलयुग के – 5116 वर्ष

बीत चुके द्वापर के – 8,64,000 वर्ष

बीत चुके त्रेता के – 12,96,000

श्री राम त्रेता और द्वापर के संधि काल में हुए – तो

8,64,000 + 12,96,000 = 21,60,000 वर्ष

इनका संधि काल =

21,60,000 / 2 = 10,80,000 वर्ष

अब इसमें संध्याओं का योग करते हैं –

86,400 + 1,29,600 = 2,16,000 / 2 = 1,08,000

(ये युग का दश्वा हिसा है जो एक युग से दूसरे युग का संधि काल होता है अतः इसका आधा पूर्व और आधा पश्चात का लेना होगा )

संधि काल + संध्याओ का योग

10,80,000 + 1,08,000 = 11,88,000 वर्ष

अब इसमें कलयुग के 5116 वर्ष और जोड़ते हैं

11,88,000 + 5116 = 11,96,116 (11 लाख, 96 हजार, 116 वर्ष) श्री राम
को उत्पन्न हुए हो गए हैं।

ये काल गणना वैवस्वत मनु की 28वि चतुर्युगी के आधार पर है। अतः इतना तो सिद्ध है, ग्यारह लाख, छियानवे हजार एक सौ सौलह वर्ष तो श्री राम के जन्म हुए कम से कम हो ही चुके हैं।

यदि 24वि चतुर्युगी के आधार पर करे तो – ये गणना करोडो वर्ष पूर्व बैठेगी जो तर्कसंगत नहीं होगा क्योंकि अभी हाल में ही अमेरिका के एक खोजी उपग्रह ने श्री रामेश्वरम से श्री लंका तक श्रीराम द्वारा बनाए गए त्रेतायुग के पुल को 17.5 लाख वर्ष पुराना माना है। जो इस 28वि चतुर्युगी के आधार पर निकाले गए श्री राम की जन्म काल गणना से मेल खाता है।

अतः हमें जानना चाहिए की हमारा इतिहास कोई काल्पनिक नहीं – युगो की गणना यदि और सटीक तरीके तथा अनेक ऐतिहासिक ग्रंथो का यदि और अधिक अनुसन्धान और विश्लेषण किया जाए तो हम प्रभु श्री राम के जन्म गणना का और अधिक विश्लेषण करके – मॉडर्न विज्ञानं के आधार पर मेल करवा सकते हैं।

धन्यवाद

आओ लौट चले वेदो की और

यज्ञ में पशु-वध वैदिक काल में नहीं था

महाभारत काल में भी इसकी पुष्टि मिलती है – क्योंकि महाभारत में वृतांत आता है –

“यज्ञ में हिंसा की निंदा और अहिंसा की प्रशंसा”

ये वृतांत महाभारत में शांतिपर्व के अंतर्गत अध्याय २७२ में आता है – केवल इतना ही नहीं – यहाँ ये भी बताया गया है की यदि कोई यज्ञ में पशु वध करता है – तो निश्चय ही उसका सब तप नष्ट हो गया।

तस्य तेनानुभावेन मृगहिसात्मनस्तदा।

तपो महत समुच्छिन्नं, तस्माद्धहिंसा न यज्ञिया।।

अहिंसा सकलो धर्मोहिंसा धर्मस्तथाविधः।

सत्यंतेहं प्रवक्ष्यामि, यो धर्मः सत्यवादिनाम्।।

इस प्रकरण में महाराज युधिष्ठर ने भीष्म पितामह से पूछा है की धर्म तथा सुख के लिए यज्ञ कैसा करना चाहिए ? उसके उत्तर में पितामह ने एक तपस्वी ब्राह्मण -ब्राह्मणी दंपत्ति का वृतांत देते हुए बतलाया है की किसप्रकार उस तपस्वी ब्राह्मण का महान तप, यज्ञ में पशुबलि देने के लिए एक वन्य मृग को मारने की इच्छा मात्र से विनष्ट हो गया। इसलिए यज्ञ में कभी हिंसा न करनी चाहिए। अहिंसा सार्वत्रिक और सारकालिक नित्य धर्म है।

इस प्रमाण से ज्ञात होता है की न तो महाभारत काल में यज्ञ में पशु हिंसा का विधान था – न ही उससे पहले के काल में क्योंकि अथर्ववेद 11.7.7 में लिखा है –

राजसूयं वाजपेयमग्निष्टोमस्तदध्वरः।
अकार्श्वमेधावुच्छिष्टे जीव बर्हिममन्दितमः।।

राजसूय, वाजपेय, अग्निष्टोम, अर्कमेध, अश्वमेध आदि सब अध्वर अर्थात हिंसा रहित यज्ञ हैं, जोकि प्राणिमात्र की बुद्धि करने वाला और सुख शांति देने वाला है। एवं इस मन्त्र में राजसूय आदि सभी यज्ञो को “अघ्वर” कहा गया है जिसका
एकमात्र सर्वसम्मत अर्थ “हिंसा रहित यज्ञ है”

जोकि निषेधार्थक नञ पूर्वक ‘ध्वर’ हिंसायां धातु से बनता है। घ्वरो हिंसा तदभावोत्र सोध्वरः।

अतः स्पष्ट है की वेदने किसी भी यज्ञ में पशुवध की आज्ञा नहीं दी, उल्टा पशुवध करने पर उसे यज्ञ ही नहीं माना। इसलिए वेद के नाम पर यज्ञो में पशुवध करना अपने को धोखा देना है, दुसरो को उल्टा रास्ता बतलाना, अथवा अपनी अज्ञानता प्रकट करना है। फिर यह भी देखिये की पशु वध करने पर प्राणिमात्र की क्या वृद्धि हुई और उसे क्या सुख शांति मिली, उल्टा प्राणी की हत्या करते समय उसे घोर यातना दी जाती है और उसका जीवन तक समाप्त कर दिया जाता है, तब वह कर्म “बर्हिममन्दितमः” कैसे रहा ?

उपरोक्त तथ्यों से प्रमाणित है की न तो इतिहास में यज्ञो में पशु बलि का समर्थन मिलता है – ना ही वेद में – ब्रह्माण्ड ग्रंथो में भी ऐसा कुछ पाया नहीं जाता –
लेकिन फिर भी कुछ मूढ़ याज्ञिक (पौराणिक) लोग “वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति” का ढोल पीटते हुए यज्ञ में पशुवध को अहिंसा बताते हुए स्वर्ग का मार्ग तक सिद्ध करने की कोशिश करते हैं –

ऐसा मालूम होता है इन लोगो की बुद्धि कहीं घास चरने चली गयी है, अन्यथा वे ऐसा कभी न कहते क्योंकि देखिये मनु महाराज ने “वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति” का क्या अर्थ दिया है –

या वेदविहिता हिंसा, नियतास्मिंश्चराचरे।
अहिंसामेव तां विद्याद्, वेदाद धर्मो हि निर्बभौ।।
योहिंसकानि भूतानि, हिनस्त्यात्मसुखेच्छया।
स जीवंश्च मृत्श्चैव, न कश्चित् सुखमेधते।।
(५.४४-४५)

अर्थात, जो विश्व संसार में दुष्टो – अत्याचारियो – क्रूरो – पापियो को जो दंड – दान रूप हिंसा वेदविहित होने से नियत है, उसे अहिंसा ही समझना चाहिए, क्योंकि वेद से ही यथार्थ धर्म का प्रकाश होता है। परन्तु इसके विपरीत जो निहत्थे, निरपराध अहिंसक प्राणियों को अपने सुख की इच्छा से मारता है, वह जीता हुआ और मरा हुआ, दोनों अवस्थाओ में कहीं भी सुख को नहीं पाता।

दुष्टो को दंड देना हिंसा नहीं प्रत्युत अहिंसा होने से पुण्य है, अतएव मनु ने (8.351) में लिखा है –

गुरुं वा बालवृद्धौ वा ब्राह्मणं वा बहुश्रुतम्।
आततायिनमायान्तं हन्यादेवाविचारयन।।
नाततायिवधे दोषो हन्तुर्भवती कश्चन।
प्रकाशं वाप्रकाशं वा मन्युस्तं मन्युमृच्छति।।

अर्थात, चाहे गुरु हो, चाहे पुत्र आदि बालक हो, चाहे पिता आदि वृद्ध हो, और चाहे बड़ा भरी शास्त्री ब्राह्मण भी क्यों न हो, परन्तु यदि वह आततायी हो और घात-पात के लिए आता हो, तो उसे बिना विचार तत्क्षण मार डालना चाहिए। क्योंकि प्रत्यक्षरूप में सामने होकर व अप्रत्यक्षरूप में लुक-छिप कर आततायी को मारने में, मारने वाले का कोई दोष नहीं होता क्योंकि क्रोध को क्रोध से मारना मानो क्रोध की क्रोध से लड़ाई है।

उपरोक्त मनु स्मृति के प्रमाण से भी स्पष्ट है की यज्ञ में पशु वध का निषेध है।
वेद प्रमाणों से स्पष्ट है की वेदो में पशु वध निषेध है – जबकि वेदो में पशुओ को पालने का स्पष्ट निर्देश है – यहाँ तक की – गाय, घोड़ा आदि पशुओ की हत्या करने वालो को “प्राणदंड” तक का विधान है –

मनु स्मृति भी इस बात की पुष्टि करती है – ब्राह्मण ग्रन्थ भी यही कहते हैं = महाभारत भी यही कहती है – तो इससे सिद्ध है – न तो वैदिक काल में यज्ञ में पशु वध होता था – ना ही महाभारत काल में – ये सब महाभारत युद्ध के ५००-१००० वर्ष बाद की उपज ही सिद्ध होती है –

अतः सत्य सनातन वैदिक स्वरुप को पहचानिये –

सभी महानुभावो से विनम्र निवेदन है कृपया सत्य को समझे – और माने –

वेदो की और लौटिए –

सत्य और न्याय की और लौटिए।

नमस्ते

नोट : ये मनुस्मृति का श्लोक – श्री राम ने – बाली के वध के समय – बाली को सुनाया भी था – ताकि बाली को पता हो की उसने जो वेदविरुद्ध कृत्य किया था – उसका दंड उसे वेद सम्मत और न्यायकारी प्रक्रिया के अधीन ही दिया जा रहा है।

बाइबिल के यहोवा का भयंकर विज्ञान

जी हाँ इतना विज्ञानं आप सुनकर चौंक जायेंगे –

वैसे तो किसी भी पशु का मांस नहीं खाना चाहिए – क्योंकि ये मनुष्यता नहीं –
फिर भी यहोवा को कुछ अकल आई और उसने कुछ पशुओ को अशुद्ध ठहरा दिया – उन पशुओ में सूअर, शापान आदि के साथ साथ एक जानवर आपने देखा होगा – “खरगोश” – इसके मांस को – यहोवा ने अशुद्ध बताया है –

आइये एक नजर डालिये – की इन पशुओ में क्या ऐसा है जो इनको अशुद्ध बनाता है – और अन्य पशुओ को शुद्ध –

1 फिर यहोवा ने मूसा और हारून से कहा,

2 इस्त्राएलियों से कहो, कि जितने पशु पृथ्वी पर हैं उन सभों में से तुम इन जीवधारियों का मांस खा सकते हो।

3 पशुओं में से जितने चिरे वा फटे खुर के होते हैं और पागुर करते हैं उन्हें खा सकते हो।

4 परन्तु पागुर करने वाले वा फटे खुर वालों में से इन पशुओं को न खाना, अर्थात ऊंट, जो पागुर तो करता है परन्तु चिरे खुर का नहीं होता, इसलिये वह तुम्हारे लिये अशुद्ध ठहरा है।

5 और शापान, जो पागुर तो करता है परन्तु चिरे खुर का नहीं होता, वह भी तुम्हारे लिये अशुद्ध है।

6 और खरहा, जो पागुर तो करता है परन्तु चिरे खुर का नहीं होता, इसलिये वह भी तुम्हारे लिये अशुद्ध है।

7 और सूअर, जो चिरे अर्थात फटे खुर का होता तो है परन्तु पागुर नहीं करता, इसलिये वह तुम्हारे लिये अशुद्ध है।

8 इनके मांस में से कुछ न खाना, और इनकी लोथ को छूना भी नहीं; ये तो तुम्हारे लिये अशुद्ध है॥
(लैव्यव्यवस्था, अध्याय ११)

तो देखा आपने – शुद्ध और अशुद्ध का निराकरण करना – वो भी बाइबिल के यहोवा का तर्कसम्मत विज्ञानं ?

क्या कोई जीव – ईश्वर की नजर में अशुद्ध है ?

फिर बनाया क्यों ?

अब क्या ऐसे को जो अपनी ही बनाई सृष्टि में कुछ पक्षपात करता डोलता है – शुद्ध अशुद्ध का भेद करके – उसे ईश्वर कह सकते हैं –

चलिए इस विषय पर फिर कभी चर्चा करेंगे अभी तो ऊपर की आयत में यहोवा का भयंकर विज्ञानं पढ़िए – हंसी आएगी = की बाइबिल का यहोवा – इतना मुर्ख ?

3 पशुओं में से जितने चिरे वा फटे खुर के होते हैं और पागुर करते हैं उन्हें खा सकते हो।

यानी जो पशु जुगाली करते हो और उनके खुर फटे हो – यानी खुर (hoof) में फटाव हो – अथवा बंटे हो – ये दोनों स्थति होनी चाहिए =

अब देखिये – यहोवा का मंदबुद्धि विज्ञान

6 और खरहा, जो पागुर तो करता है परन्तु चिरे खुर का नहीं होता, इसलिये वह भी तुम्हारे लिये अशुद्ध है।

यहाँ खरगोश को अशुद्ध बताया है – यानी खरगोश जुगाली तो करता है मगर उसके खुर फटे नहीं होते –

किसी भाई ने खरगोश को जुगाली करते देखा ?

खरगोश के खुर फटे होते हैं –

क्या ये नार्मल सी बाते भी बाइबिल के यहोवा को नहीं मालूम ?

हाँ केवल आदम हव्वा से दुनिया के अनेक मनुष्य बनाता है – इतना ही अक्ल है –

वाह जी वाह – क्या विज्ञानं है यहोवा का ?

इतने पर भी मेरे ईसाई मित्र कहते हैं –

बाइबिल में विज्ञानं है –

भाई ऐसे विज्ञानं को आप ही पढ़ो और आप ही बांटो –

हम से न होगा –

हंसो मत भाई – यहोवा को बुरा लग गया – तो क़यामत भेज देगा –

बताओ इतना मंदबुद्धि और कम अक्ल वाला बाइबिल का यहोवा अपने को सर्वज्ञ और ईश्वर कहलवाता है –

मेरे ईसाई मित्रो – इस विज्ञानं पर कुछ बोलना है ?

ज्ञान और विज्ञानं वेद में है – उसे अपनाओ

इस ढोंग को छोडो – धर्म से नाता जोड़ो –

लौटो वेदो की और

नमस्ते

हिन्दुस्तान किस तरह मुसलमान हुआ ?

मौलवी जकाउल्ला प्रोफेसर फरमाते है । यह असली मुसलमान कुल मुसलमानों से जो इस मुल्क में आबाद है आधे होंगे। वाकी आधे ऐसे ही मुसलमान है जो हिन्दुओं से मुसलमान हुए है । सरकारी मर्दुमशुमारी से मालूम होता है कि हिन्दुस्तान में ४ करोड़ १० लाख मुसलमान रहते हैं । उनमें से जियादह मुसलमान जो हिन्दुओं से मुसलमान हुए हैं । गो इस्लाम

ने उनके सिद्धान्तो को बदल दिया मगर उनके रस्म रिवाज को न बदल सका । गोकि वह आपस में मिलकर खाने पीने लगे मगर शादी व्याह में अब तक गोत्र बचाते है जैसे हिन्दू-गरज इस्लाम का असर हिन्दुओं पर ऐसा नहीं हुआ जैसाकि हिन्दुओं का असर इस्लाम पर हुआ ।
(देखो तारीख हिन्द हिस्सा अव्वल फस्ल दौम सफा 6)

अब हम बतलाते हैं कि इतने जो मुसलमान है । ये किस तरह मुसलमान हुए हैं और कब से हुए हैं और सब से पहिला मुसलमान इस मुल्क में कौन हुआ है ।

मुल्क हिन्दुस्तान में सबसे अव्वल मुसलमान वापा राजपूत चित्तोड़ के मालिक ने सन् 812 ई० में खमात्त के हाकिस सलीम की लड़की से शादी कर सी और मुसलमान हुआ मगर मुसलमान हॉकर लज्जित हॉकर खुरासान चला गया … फिर न आया उसका हिन्दू बेट गद्दी पर
बैठा । (देखो आईन तारीख नुमा सफा सन् 1881 ई० ।)

सन् 812 ई॰ से खलीफा मामू रसीद ने बडी फोज के साथ हिन्दुस्तान पर चढाई की । वापा का पोता उस वक्त चितौड़ का हाकिम था … नाम उसका राजा कहमान था । उससे ओर मामूं से जो बीस लडाहयां हुई लेकिन आखिरकार मामूं शिकिस्त खाकर हिन्दूस्तान से भाग गया । (सफा 6 आईना तारीख नुमा सन् 1881 ई० और देखो मिफ्ताहुद तवारीख सफा
(7 सन् 1883 त्तवये सालिस हिस्सा अव्वल)

हिन्दुस्तान का दूसरा मुसलमान राजा सुखपाल नाम महमूद के हाथ राज्य के लालच में मुसलमान हुआ । मगर लिखा है जब महमूद बलख की तरफ़ गया तो उसने फिर हिन्दू बनकर उसकी तावेदारी की । महमूद ने सन् 1006 ई॰ में उसे पकड़कर जन्म भर के लिये कैद कर दिया (सफा 16 आईने त्तारीख नुमा सन् 1881 ई० और मुखताहुद तवारीख सफा 9 सन्
1883 ई० हिस्सा अव्वल)

अरब किस तरह मुसलमान हुआ ?

खुद हजरत मुहम्मद के जमाने में अरब वालो से मुफ्फसिल जैल मशहूर लडाई हुई है । जिनमें हजारों लाखों आदमी तलवार से क़त्ल हुए। सैंकडों स्त्रियाँ लौंडिया बनाई गई। और हजारों ऊंट बकरी लूटे गये । हजारों के घर तबाह हुए और जब लूट से काफी पूंजी जमा हो गई तो फिर इनाम इकराम मिलने लगे । माल मुफ्त दिले बे रहम पर अमल दरामद किया गया – जो साथ शरीक होजाता वह गरीब चरबाहों के हक में गोया भेडिया होजाता था । हम इस मौके पर मुफ्फसिल हालात लिख़ने से पहिले अरब के एक मशहूर और मारूफ़ आदमी अबूसुफियान के मुसलमान होने का हाल दर्ज करते हैं ।

जब मुहम्मद ने मक्के की फतह करने पर फौजे तय्यार की तो अव्वाल और अबूसुफियान जो निष्पक्ष थे घूमते हुए आपस से मिले । अब्बास ने अबूसुफियान से कहा कि अब क्या मारे जाओगे उसने मारे जाने के बचने का उपाय पूछा । अव्वाल उसको इस्लाम से लाने के बहाने निर्भय कर देने का वादा करके मुहम्मद के पास लेगया । हजरत उमर मारने के वास्ते दौड़े । रात को उसको हवालात में रखा सुबह को हाजिर लाया । मुहम्मद साहब ने कहा कि अबतक वह समय नहीं आया कि तू कहे कि खुदा एक है और उसका कोई साक्षी नहीं और उसके सिवाय कोई पूजित नहीं । और मैं सच्चा नबी (पैगम्बर) हूँ अबूसुफियान ने कहा कि मेरे माँ बाप आप के भक्त हैं । सब बडाई और बुजुर्गी आपही की है । उन गुस्ताखियों और बेअदबियों के बदले जो मुझसे हुई आप की यह कृपा मुझ पर है । वास्तव में एक खुदा के सिवाय कोई पूजित नहीं। परन्तु पैगम्बर की सत्यता पर मौन धारण किया अब्बास ने कहा की पैगम्बर की सत्यता पर भाषण कर नहीं तो खैर नहीं। अबूसुफ़ियान ने मजबूर होकर पैगम्बर की सच्चाई मानी और इस्लाम ग्रहण किया। तब अब्बास ने नबी की सेवा में अर्ज किया की हे अल्लाह के पैगम्बर अबूसुफ़ियान पद और मान को अच्छा समझता है। उसको कोई पदाधिकार दीजिये ताकि उसका मान हो। मुहम्मद ने उसको इस आज्ञा से से मान दिया की जो कोई अबूसुफ़ियान के घर में दाखिल हो उसकी जान बख्शी जावे। निदान वह छुट्टी लेकर मक्के को गया – अब्बास उचित अवसर पाकर पैगम्बर की सम्मति से अबूसुफियसान के पीछे गया, वह डरा अब्बासने कहा डरमत । सारांश यह कि अब्बास ने अबूसुफियान को रास्ते के किनारे पर खड़ा किया ताकि सब लश्कर इसलाम को देखले और उस पर रोब होजावे ताकि वह फिर इस्लाम से न फिरे । जब कि इस्लाम की फौज अबूसुफियान के सामने से निकल गई लोगों ने कहा जल्द जा और कुरैश को डर दिलाकर ओर समझाकर इस्लाम को घेरे में ला ताकि जीवन मोत से निर्भय होजावे अबूसुफियान जल्द उनकी जान मारे जाने से बचा सके, (देखो तारीख अम्बिया सफा ३५४ व ३५५ सन् १२८१ हिजरी और ऐसा ही जिक्र किताब सीरतुल रुस्ल व त्तफसींर हुसैनी जिल्द १ सूरे तोबा सफा ३६० में है)

जिस कदर खूंरेजी और लूटमार से अरब के लोग मुसलमान हुए है अगर उनकी मुफ्फसिल फिहरिस्त लिखी जावे तो एक दफ्तर बनजावे । हालत पर लक्ष करते हुए संक्षेप से वर्णन करते हैं ।

(1) गज़वा (लडाई) वदां।

(2) गजबये बवात ।

(3) गजवतुल अशरह

(4) गजबये बदर ऊला ।

(5) जंगे बदर ।

(6) गजब तुल कदर

(7) गजय तुल अन्सार

(8) गज़वा वाजान

(9) गज़वा सौवक

(10) गज़वा अहद

(11) गज़वा हमराउल असद

(12) गजबा जातुर्रिका

(13) गज़वा बदरुल मुअद

(14) गज़वा दौमतुल जन्दल

(15) गज़्वावनी मुस्तलिक

(16) गज़वा बनी नजीर

(17) गज़वा खन्दक

(18) गज़वा बनू तिबियान

(19) गजबाजूकुरह

(20) गज़वा फतह मक्का

(21) गज़वा हबाजन

(22) गज़वा औतास

(23) गज़वा ताइफ़

(24) गज़वा बनीकीका

(25) गज़वा बनिनुफैर

(26) गज़वा वनी करैता

(27) ग़ज़वे तलूक ।

इन ले 27 मशहूर ग़ज़वाता (लड़ाइयों) के सिवाय और बहुत से हमले और जंग हुए हैं जिनकी कुल तादाद 81 के करीब पहुंचती है इस किस्म के सैकडों मुकाबिले और लड़ाइयो के बाद जान के लाले पड़ जाने के डरसे डरपोक देहाती मुसलमान बन गये और जोर वाले बहादुर शेर दिल देहाती जैसे अब्दुल हुकम ईश्वरीय कृपापात्र वगेरह शहीद डोगये । हिसारे की कोम सकी जंग में लिखा है कि हजरत अली ने मुहम्मद से पूछा कि कब तक कत्ल से हाथ न उठाऊं मुहम्मद ने कहा जब तक यह न कहे कि अल्लाह एक है और मुहम्मद उसका पैगम्बर है तकतक क़त्ल कर (देखो तारीख अम्बिया सफा ३४६ सतर १५ या १६ सन् १८८१ हिजरी)

गजबा वनी कुरेता की बाबत लिखा है कि साद विन मआज ने पैगम्बर को कहा कि इस बदजात कोम यहूदी का किस्सा तमाम करो गर्ज कि लड़ने लायक आदमी मारे गये और बाकी कैद गये चुनांचे कई सौ आदमी कुरैती मदीने से लाकर क़त्ल किये गये । (देखो मौलवी नूरुद्दीन साहब की फसलुल खिताब सफा १५९)

सुलह फुदक की बावत लिखा है कि नुहेफा विन मसऊद खुदा की हिदायत के बमूजिब सुलह फुदक तशरीफ ले गये और उस कौम को इस्लाम फेंलाने का पैगाम देकर जहाद का पैगाम दिया – मगर उन्होंने न सुलह का पैगाम दिया और न लड़ने को बाहर मैदान में निकले । (देखो तारीख अम्बिया सफा ३४७ सन् १२८१ हिजरी)

मुहम्मद साहब के मरने के बाद जो बहस हजरत अबू बकर की खिलाफत से पहिले सादविन उवादा बडे आदमियों में से था) सैंकडों मुसलमानों के सामने की है। उससे सारा हाल अरब के इस्लाम में लाने का जाहिर होता है । जैसा कि लिखा है सादबिन उबादा ने क्रोधातुर होकर कहा कि है अन्सार का गरोह तुम सब कपटी हो कि तुमको इस्लाम के सब गरोहों पर मान है। क्योंकि मुहम्मदी अपनी कौम बाद दश वर्ष के जियादा रहा । और सबसे मदद चाहीं और दीन को जाहिर करता रहा – मगर सिवाय चन्द आदमियों के किसी ने ध्यान नहीं दिया और कोई उस मुसीबत के समय साथी न हुआ – मगर थोडे दिन मदीने से रहने से और हमारे कष्ट उठाने से खुदा को यह कृपा हुई कि दीन इस्लाम को वह तरवकी हुई जो तुम देखते हो ।

पस खुलासा बात यह है कि तुम्हारे कष्ट से सिवाय इस के और क्या नतीजा होगा कि अब बड़े-बड़े रईस इस्लाम मुहम्मद में दाखिल हैं । खिलाफत के काम ओर रियासत तुम्हारे कब्जे में रहनी चाहिये । सब अंसार ने कहा कि हे साद सच है जो तुमने कहा तेरे सिवाय अंसार में कोई बडा नहीं । हमने तुझको अपना सर्दार बनाया और तुमसे बरैयत (प्रतिक्षा) करते है तुझसे जियादा अच्छा खिलाफ़त का काम बजाने वाना कोई नहीं है अगर मुहाजिर (पुजारी) इस बारे से कुछ विरोध करेंगे तो हम उनसे कहैगे कि अच्छा अमीरी तुम्हारे ही खान्दान में सही और हमारे खान्दान में भी सही । (देखो तारीख अम्बिया सका ३७४ सन् १२९१ हिजरी)

मुहम्मद साहब ने लोगों से वादा किया था कि कैंसर और किसरा के खजाने बजरिये गनीमत तुम्हारे हिस्से में आवेंगे मुसलमान होजाओ । पस लोग इसी नियत से मुसलमान हुए थे जैसा कि अक्सर मर्तवा उस समय के मुसलमान इन्कार करते और परेशान होते रहे (देखो मुफ्फसिल तारीख अम्बिया सफा ३२४ सन् १२८१ हिजरी ।)

गजवये बदर कुब्रा में साद वगेरह मुसलमानों ने मुहम्मद साहिब को यह रायह दी कि तेरे लिये एक सुरक्षित तख्त की जगह अलग मुकर्रर कर ओर जरूरी असबाब उसमें रखदे ओर फिर काम में लगें । अगर हम जीते तो पहिली सूरत में अपनी जगह सवार होकर मदीने में जावें । हजरतने साद की राय पसंद की और भलाई की दुआ दी और नकबख्त आदमियों की राय के मुताबिक त्ततींबवार अमन करने में लग गये और आनन फानन में त्ततींब की नींव डाली (देखो तारीख अम्बिया सफा ३०५ सन् १२८१ हिजरी देहली)

गनीमत के माल बांटते पर हमेशा झगड़ेही रहते थे ओर इसी लूट के माल की खातिर पहिले लोग मुसलमान हुए थे और इसी की तर्गीब से मुतलिफ वक्तो से मुसलमान होते रहे । (देखो सफा ३१० तारीख अम्बिया ।)

हिजरी की दोम साल में निरपराधो यहूदियों का माल व असबाब लूटा और उनको मदीने से निकाल दिया । चुनाँचि लिखा है कि तमाम माल व असबाब बुरे काम करने बालों का मुसलमानो के हाथ जाया और पांचवा हिस्सा कायदे के बमूजिब निकाल कर बाकि बट गया (देखो सका ३१२ तारीख अम्बिया ।)

साल सोयम हिजरी से कावबिन अशरफ सब उत्तम शायर को सिर्फ कुरेश का शायर होने के कारण हजरत मुहम्मद साहब ने एक हीला सोचकर अयुवनामला मुसल्लिमा वगेरह के हाथों से क़त्ल करवा दिया और पैगम्बर पर जान न्योछावर करने बालों ने अयवूराफे विन अविल हकीक को बेगुनाह क़त्ल कर डाला । देखो सफा २१३ तारीख अम्बिया सन् १२८१ हिजरी ।)

जंग अहद के जिक्र में लिखा है कि जनाब पैगम्बर की निगाह व हिफाजत में महाजिर (पुजारी) इन्सार ने बडी कोशिश की इस लडाई में कुरैशियों ने इत्तिफाक किया था इसमें अक्सर पैगम्बर के साथी व चार महाजिर (पुजारी) और ६६ अंसार लडाई के मैदान से मारे गये मुहम्मद साहिब गड्रढे में गिर पड़े । पांव से चोट आयी – कम्प जारी हो गया – बडी कठिनता से तलहाने गड्रढे से नीचे उतर कर कंधे पर चढाया और अली ने आहिस्ता आहिस्ता हाथ पकड़ कर बाहर को खींचा और जिस बक्त मुहम्मद बाहर निकले तो दुखित देखा । दांत टूटे हुए पाये जख्मो से खून जारी था आम खबर फ़ैल गई थी कि मुहम्मद साहब मारे गये … अमीर हमजा वगेरह मारे गये कुरैश की औरतों ने उनके नाक कान काट लिये – सफा ३१६ व ३१७ तारीख अम्बिया सन् १२८१ हिजरी में

अगर खुदा करता कि यह जरासीं और हिम्मत कर जाती तो मुहम्मदी इस्लाम का नाम व निशान न रहता। मगर अफ़सोस कि सुस्ती की-बुद्धिमानों ने सच कहा है “कार इमरोज़ व फर्द मफगन” (आज का काम कल पर मत छोडो)। हजरत के मरने पर बडा विरोध और ईर्ष्या व झगडा सब अरब में फ़ैल गया हर एक गिरोह रियासत चाहता था और दूसरे का विरोधी (देखो तारीख अम्बिया सफा ३७१ से ३७४ तक)

रिसाले मुअजजात में लिखा है कि हज़रन के मरने के बाद अरब के बहुत से कबीले फिर गये ।

सूरे मायदा :- ‘ ‘या अय्योहल्लजीना आमनूं मई यरतद्दा मिन्कम अन्दोनही फसोफा यातिल्लाहो बिकौमिन युहिब्बहुम बयोहिब्बूनहू अजिल्लतुम अलल मोमिना अइज्जतुन अलल काफिरीना व उजाहिदूना की सवी लिल्लाह !”

अर्थ :- हे मुसलमानों जो तुम अपने दीन से फिर गये एक कोम अल्लाह की तरफ से क़रीब आवेगी कि तुम उनको दोस्त रक्खोगे ओर बह काफिरों पर जहाद करेंगे अल्लाह के लिये ।

ओर अबूउबैदा सही किताबों में लिखता है कि जिस वक़्त मोहम्मद के मौत की खबर मक्के में पहुंची अक्सर मक्का के लोगों ने चाहा कि मुहम्मदी इस्लाम से अलग होजावें चुनाँचि मक्का के अमलाबाले कई दिनों तक डर के मारे घर से बाहर नहीं निकले – मुहम्मद के मरने पर जो लोग इस्लाम से फिर गये वह भी तलवार से जीते गये। अन्त से फिसाद बढ़ते बढ़ते यहाँ तक नौबत पहुंची कि अली खलीफा के वक़्त में तल्लाह ओर जुबैर और आयशा मुहम्मद साहिब की बीबी और माविया का शाम के मुल्क की तरफ हजरत अली और दूसरे मुसलमानों के साथ लडाई हुई बीबी आइशा ने तलहा के बढावे की सलाह ओर मुहब्बत से लडाई की । शाम के सब मुसलमान अली के मारने पर तय्यार थे जिसमें हजरत अली मय एक लाख साठ हजार फ़ौज के और हजरत माबिया वगैरह भी मय बहुत सी फौज के फरात नदी के किनारे पर लडाई लड़ने आये ६ माह लडाई होती रही ७००० आदमी अली के तरफ़ के और १२००० माबिया की तरफ़ से मुसलमान हताहत हुए। माबिया ने सुलह (सन्धि) का पैगाम भेजा – अलीने अस्वीकार किया लडाई हुई इसमें ३६००० और भी मारे गये अन्त में २२६००० मुसलमानों के मारे जाने के बाद सुलह हुई । इब्न मुलहम मिश्र के रहने वाले मोमिन (ईमानबाले) ने बड़े प्रेम से एक औरत के निकाह के बदले अली को मारडाला । उस कुतामा नाम ईमानदार औरत ने अपने मिहर में अली का क़त्ल लिखवाया था । इस तरह अरब में इस्लाम बढ़ा और घट गया (देखो तारीख अम्बिया सफा ४४५ व ४४६ सन् १८८१ हिज्र देहली।)

यह माविया अली के जंग की अग्नि बहुत काल तक प्रज्वलित रही और इसी का अन्तिम परिणाम यह था कि अली के लड़कों हसैन व हुसेन का यजीद माविया के लड़के के साथ इमाम होने का झगडा हुआ और असंख्य मुसलमान दोनों तरफ के क़त्ल हुए (देखो जांगनामा हामिद।)

जो लोग मुस्लमान होते थे उनको माल व संतान वापस मिलता था। क़त्ल से बच जाते थे इस वास्ते अक्सर कबीला अरब जब लड़ते लड़ते और खून की नदिया बहाते बहाते तंग आ गए मजबूरन मुस्लमान हो गए चुनाँचि गज़वा तायफ़ में लिखा है बाद फतह के एक गिरोह हवाज़न (हवा उड़ाने वालो) ने इस्लाम क़बूल किया और आपने उनकी जायदाद और संतान को वापिस दिया फिर मालिक विन अताफ जो हुनैन के काफिरो की फ़ौज का सरदार था विवश होकर मुस्लमान हुआ और इसका माल व संतान वापिस दी गयी। (देखो तारिख अम्बिया सफा ३६० सन १२८१ हिजरी)

नवी साल के जिक्र में लिखा है की गिरोह गिरोह अरब के कबीले शौकत व इस्लाम की तरक्की देखकर मुस्लमान हो गए यहाँ तक की नाम इस साल का “सनतुल वफूद” वफ़ादारी का साल कहते हैं (देखो सफा ३६१ तारिख अम्बिया १२८१ हिजरी)

फिर लिखा है कि मुसलमानो को जीत पर जीत होने से आस पास के मुशरिक लोग दिक्कते व परेशानी उठाने के बाद इस्लाम की शरणागत हुए और काफिरपन भूल गए। (तारिख अम्बिया सफा ३८९ व ३६०)

अरब में गुलामी का आम दस्तूर अब तक मौजूद है। और वह हज़रत के वक़्त से जारी है। लौंडी और गुलाम जिस तरह मक्का में भेजे जाते हैं और ख्वाजा सराय बनाये जाते हैं और मक्का मौज़मा और मदीना मनव्वर बल्कि रोज़ह मुतहरह पर ख्वाजा सरायो का यकीन है। निहायत अफ़सोस के काबिल है और फिर कहा जाता है की दीन इस्लाम में जबर करना जायज़ नहीं।

एक योग्य और प्रतिष्ठित इतिहास लेखक लिखता है की अरब वाले नूह की संतान नहीं है बल्कि कृष्ण लड़के शाम की संतान में से हैं और इसी वास्ते वह शामी कहलाते हैं द्वारिका से ख़ारिज हो जाने के बाद शाम जी अरब मय (साथ) अपने सम्बन्धियों व सेवको के आ गए और उसी रोज़ से अरब आबाद हुआ वर्ना इससे पहिले वहाँ आबादी नहीं थी और अरब शब्द संस्कृत का है (यानि आर्यावः) यानी आर्यो का रास्ता मुल्क मिश्र को आर्यो की यात्रा का रास्ता और अरब का अंग्रेजी नाम अरेबिया को देखने से यह बात समझ में आजाती है। पस दरहक़ीक़त अरब के लोग शाम जी कृष्ण के बेटे की संतान में हैं।

साभार –

गौरव गिरी पंडित लेखराम जी की अमर रचनाओ में से एक पुस्तक

जिहाद – कुरआन व इस्लामी ख़ूँख़ारी

बिलकुल जिस प्रकार लेखराम जी लिख कर गए हैं उसी प्रकार लिखा गया ताकि समस्त मानव जाती इस्लाम का सच जान सके –

लिखने में यदि कही कोई त्रुटि या कुछ भूल चूक हो तो क्षमा करे –

नमस्ते —

रोम किस तरह मुसलमान हुआ ।

जिस तरह हमने अरब का वर्णन विश्वासनीय इतिहास की साक्षी से सिद्ध किया है कि वह किस जोर जुल्म से मजबूर होकर मुसलमान हुआ और किस कदर लूट घसूट से दीन मुहम्मदी किस ग़रज़ से फैलाया गया । वहीं हाल रूम व शाम का है। चुनाचि इसका खुलासा हाल फतूह शाम में दर्ज है और दरहकीकत वह देखने के लायक और दीन इस्लाम की कदर

जानने के लिए उम्दाह किताब है ।

मुआज़विनज़वल ने जो उवेदह की तरफ से दूत बनकर आया था वतारका हाकिम रूम से कहा कि या तो ईमान लाओ कुरान पर मुहम्मद पर या हमें जिजिया दो नहीं तो इस झगडे का फैसला तलवार करेगी होशियार रहो (देखो तारीख अम्बिया सका ४१३ सन् १२८१ हिजरी)

अबु उवैदाने जो अर्जी मोमिनों के अमीर उमर को लिखी उसमें लिखा था कि इसलाम की फौज हर तरफ को भेज दी गई है कि जाओ जो जो इस्लाम कबूल करे उनको अमन दो ओर जो इस्लाम कबूल न करे उन्हें तलवार से क़त्ल कर दो। (सफा ४०१ तारीख अम्बिया सन् १२८१ हिजरी) ।

हज़रत अबू बक्र ने उसामा को सिपहसलार मुकर्रर करके लश्कर को जहाद के वास्ते शाम के देश से भेजा । उसने वहां जाकर उन के खण्ड मण्ड कर दिये और तमाम काफिरों की नाक में दम कर दी जो घबराकर अपने देश को छोड़कर भाग गये । ओर मारता
डाटता वहाँ तक जा पहुचा हवाली के लोगों से बदला लिया और फिर बहुत सा माल लेकर दबलीफा रसूल की खिदमत में हाजिर हुआ । उस बक्त लड़ने बालों की कमर टूट गयी क्योंकि उन नादानों का गुमान था कि अब इस्लाम में बन्दोबस्त न रहेगा। और इस कदर ताकत न होगी कि जहाद कर सकें । (देखो तारीख अम्बिया सका ३७६ व ३७७ सन् १२८१ हिजरी)

शाम की जीत के लिये जो पत्र हजरत अवू वक्र सद्दीक ने जहाद की हिजरत (तीर्थयात्रा) के बास्ते मुअज्जम (बड़े) मक्का के लोगों के लिये उसमें लिखा है कि कर्बला और शाम के दुश्मनों ( देखो सफा १३ जिल्द १ फतूह शाम मतवूआ नवलकिशोर सन् १२८६ हिजरी)

फिर बही इतिहास वेत्ता लूट का माल हाथों हाथ आने का वर्णन करके लिखता है कि यजीद लड़का सूफियाना का और रुवैया अमिर का लड़का जो इस लश्कर के सर्दार थे कहा कि मुनासिब है की सब माल जो रुमियों से हाथ लगा है हजरत सद्दीक के हुजूर में भेजा जावे ताकि मुसलमान उस को देखकर रुमियों के जहाद का इरादा करें । (फतूह शाम जिल्द १३
सन् १२८६ हिजरी)

हज़रत बक्र सदीक शाम के जाने के बक्त यह वसीयत उमेर आस के लड़के को करते थे कि डरते खुदा से और उसकी राह में लडो और काफिरो को क़त्ल करों । (जिल्द अव्वल फतूह शाम सका १९)

शाम की एक लडाई से ६१० कैदी पकडे आये। उमरबिन आस न उन पर इस्लाम का दीन पेश किया पस कोई उनमें का मुसलमान न हुआ फिर हुक्म हुआ कि उनकी गर्दनें मार दी जावें (जिल्द अव्वल फतूह शाम सफा २५ नवलकिशोर)

दमिश्क के मुहासिरे की लडाई में लिखा है। फिर खालिदविन बलीद ने कलूजिस ओर इजराईल को अपने सामने बुलाकर उन पर इस्लाम होने को कहा मगर उन्होंने इंकार किया पस बमूजिब हुक्म वलीद के बेटे खालिद और अजूर के लड़के जरार ने इजराईल को ओर राथा बिन अमरताई ने कलूजिस को कत्ल किया (देखो फ़तूह शाम जिल्द अव्वल सफ़ा
५३ नवलकिशोर)

किताब फाजमाना तुक हिस्सा अव्वल जो देहली से छपा उसमें लिखा है कि तीन सौ साल तक मुसलमान रूम के हुक्म से हर साल १००० ईसाइयो के बच्चो को क़त्ल करने वाली फ़ौज में जबरन भर्ती करके मुसलमान किया जाता था और उनको ईसाइयो के कत्ल और जंग पर आमादह किया जाता था सिर्फ यहाँ तक ही संतोष नहीं किया जाता था बल्कि
ईसाइयों के निहायत खूबसूरत हजारों बच्चे हर साल गिलमाँ बनाये जाते और उनसे रूमी मुसलमान दीन वाले प्रकृति के विरूद्ध (इगलाम-लौंडेबाजी) काम के दोषी होते थे। और जवान होकर उन्हीं गाज़ियो के गिरोह में शामिल किये जाते थे कि बहिश्त के वारिस हों। अलमुख्तसिर मुफस्सिल देखो असल किताब ।)

जिस तरह खलीफों के वक़्त में जबरन गिरजे गिराये जाते ब बर्बाद जिये जाते थे इसी तरह शाम रूम ने भी जुल्म सितम से गिरजाओं को मसजिद बना दिया ।

साभार –
गौरव गिरी पंडित लेखराम जी की अमर रचनाओ में से एक पुस्तक
जिहाद – कुरआन व इस्लामी ख़ूँख़ारी

इस्लाम और ईसाइयत का इतिहास एक नज़र में

क्या हजरत आदम और उनकी बेगम हव्वा – कभी थे भी ?????

ये सवाल इसलिए बहुत महत्वपूर्ण है – क्योंकि – ये जानना बहुत जरुरी है इसलिए नहीं कि कोई मनगढंत बात है या सवाल है –

क्या कोई वैज्ञानिक प्रमाण मिला है आज तक जो इनके प्रेम प्रतीक –
अथवा त्याग और बलिदान की मिसाल पेश करे ??

अब कुछ लोग (ईसाई और मुस्लमान) अपने अपने धारणा के हिसाब से बेबुनियाद बात करते हुए कहेंगे की –

ये जो मानव जाती है – ये इन्ही आदम और हव्वा से चली है – जो की “स्वघोषित” अल्लाह मियां अथवा तथाकथित परमेश्वर “यहोवा” ने बनाई थी –

जब बात आती है – भगवान श्री राम और योगेश्वर श्रीकृष्ण आदि की तो इन्हे (ईसाई और मुस्लमान) को ठोस प्रमाण चाहिए –

जबकि – रामसेतु इतना बड़ा प्रमाण – श्री लंका – खुद में एक अकाट्य प्रमाण – फिर भी नहीं मानते –

महाभारत के इतने अवशेष मिले – आज भी कुरुक्षेत्र जाकर आप स्वयं देख सकते हैं – दिल्ली (इंद्रप्रस्थ) पांडवकालीन किला आज भी मौजूद है जिसे पुराना किला के नाम से जाना जाता है।

इतना कुछ है – फिर भी कुछ समूह (ईसाई और मुस्लमान) मूर्खो जैसे वही उवाच करते हैं – प्रमाण लाओ –

आज हम इस समूह (ईसाई और मुस्लमान) से कुछ जवाब मांगते हैं –

1. हज़रत आदम और हव्वा यदि मानवो के प्रथम पूर्वज हैं तो – क्यों औरत आदमी से पैदा नहीं होती ???? ऐसा इसलिए क्योंकि प्रथम औरत (हव्वा) आदम की दाई पसली से निर्मित की गयी – क्या किसी शैतान ने बाइबिल और क़ुरान के तथाकथित अल्लाह का निज़ाम उलट दिया ?? या कोई और शक्ति ने ये चमत्कार कर दिया ??? जिसे आज तक अल्लाह या यहोवा ठीक नहीं कर पाया – यानि की एक पुरुष संतान को उत्पन्न करे न की औरत ???

2. यदि बाइबिल और क़ुरान की ये बात सही है कि यहोवा या अल्लाह ने हव्वा को आदम की पसली से बनाया तो आदम यानि की सभी पुरुषो की एक पसली क्यों नहीं होती ???????? और जो हव्वा को एक पसली से ही पूरा शरीर निर्मित किया तो हव्वा को भी एक ही पसली होनी चाहिए – या यहाँ भी कोई शैतान – यहोवा या अल्लाह पर भारी पड़ गया और यहोवा और अल्लाह की बनाई संरचना में – बड़ा उलटफेर कर दिया जिसे आजतक यहोवा या अल्लाह ने कटाई छटाई का हुक्म देकर अपना बड़प्पन साबित करने की नाकाम कोशिश की ???????

3. यहोवा या अल्लाह ने आदम और हव्वा की संरचना कहा पर की ?? क्या वो स्थान किसी वैज्ञानिक अथवा researcher द्वारा खोज गया ????

4. हज़रत आदम और हव्वा ने ऐसा क्या काम किया जिसकी वजह से उन दोनों को स्वर्ग (अदन का बाग़) से बाहर निकल दिया गया ?? क्या अपने को नंगा जान लेना और जो कुछ बन पाये उससे शरीर को ढांप लेना – क्या गुनाह है ????? क्या जीवन के पेड़ से बुद्धि को जागरूक करने वाला फैला खाना पाप था ????? ये पेड़ किसके लिए स्वर्ग (अदन का बाग़) में बोया गया और किसने बोया ???? क्या खुद यहोवा या अल्लाह को ऐसे पेड़ या फल की आवश्यकता थी या है ??? अगर नहीं तो फिर आदम और हव्वा को खाने से क्यों खुद यहोवा या अल्लाह ने मना किया ??? क्या यहोवा या अल्लाह – हज़रत आदम और हव्वा को नग्न अवस्था में ही रखना चाहते थे ???? या फिर यहोवा या अल्लाह नहीं चाहता था की वो क्या है इस बात को हज़रात आदम या हव्वा जान जाये ????

5. यहोवा या अल्लाह द्वारा बनाया गया – अदन का बाग़ – जहा हजरत आदम और हव्वा रहते थे – जहा से शैतान ने इन दोनों को सच बोलने और यहोवा या अल्लाह के झूठे कथन के कारण बाहर यानि पृथ्वी पर फिकवा मारा – बेचारा यहोवा या अल्लाह – इस शैतान का फिर से कुछ न बिगाड़ पाया – खैर बिगाड़ा या नहीं हमें क्या करना – हम तो जानना चाहते हैं – ये अदन का बाग़ मिला क्या ??????

6. यहोवा या अल्लाह द्वारा – आदम और हव्वा को उनके सच बोलने की सजा देते हुए और अपने लिए उगाये अदन के बाग़ और उस बाग़ की रक्षा करने वाली खडग (तलवार) से आदम और हव्वा को दूर रखने के लिए पृथ्वी पर भेज दिया गया। मेरा सवाल है – किस प्रकार भेजा गया ??? क्या कोई विशेष विमान का प्रबंध किया गया था ???? ये सवाल इसलिए अहम है क्योंकि बाइबिल के अनुसार यहोवा उड़ सकता है – तो क्या उसकी बनाई संरचना – आदम और हव्वा को उस समय “पर” लगाकर धरती की और भेज दिया गया – या कोई अन्य विकल्प था ???

ये कुछ सवाल उठे हैं – जो भी कुछ लोग (ईसाई और मुस्लमान) श्री राम और कृष्ण के अस्तित्व पर सवाल उठाते हैं – अब कुछ ठोस और इतिहास की नज़र में ऐसे अकाट्य प्रमाण लाओ जिससे हज़रत आदम और हव्वा का अस्तित्व साबित हो सके – नहीं तो फ़र्ज़ी आधार पर की गयी मनगढंत कल्पनाओ को खुद ही मानो – और ढोल पीटो – झूठ के पैर नहीं होते – और सत्य कभी हारता नहीं – ध्यान रखना –

वो जरा इन सवालो के तर्कपूर्ण और वैज्ञानिक आधार पर जवाब दे – नहीं तो अपना मुह बंद रखा करे।

नोट : कृपया दिमाग खोलकर और शांतिपूर्ण तरीके से तार्किक चर्चा करे – आपका स्वागत है – गाली गलौच अथवा असभ्य बर्ताव करने पर आप हारे हुए और जानवर घोषित किये जायेंगे।

सहयोग के लिए –

धन्यवाद –