मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम का जन्मकाल – वेटिकन चाटुकार अज्ञानी पाश्चात्य इतिहासकारों का खंडन

नमस्ते मित्रो,

हमारे भारतवर्ष में अनेको अनेक महापुरुष, ज्ञानी, विद्वान, पराकर्मी राजा महाराजा उत्पन्न होते आये हैं, ये मिटटी कभी वीरो से खाली नहीं रही, कालांतर में भी पृथ्वी राज चौहान, महाराणा प्रताप, भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद सरीखे वीर योद्धा इसी पावन पवित्र मिटटी की गोद से उत्पन्न हुए हैं।

जहाँ तक समझता हु कालांतर में उत्पन्न हुए ये वीर और इनके माता-पिता ने भी किसी न किसी महापुरुष को आदर्श मानकर – इन वीरो में उस महापुरष के संस्कार भरे होंगे। और इस देश भारत के लिए अनेको महापुरषो के आदर्श उपस्थित रहे हैं, सभी महापुरषो के समय पर विचित्र परिस्थितिया रही जिनको उन्होंने उचित रीति से हल किया। जैसे महाभारत काल में योगेश्वर कृष्ण ने शांति बहाल करने की पूर्ण कोशिश की मगर जब धर्म की हानि होते देखि तो युद्ध में पांडवो को विजय दिलवाई। महाराणा प्रताप ने चित्तोड़ की आन बान शान के लिए पूरी जिंदगी संघर्ष किया। ऋषि दयानंद ने देखा देश की हालत बहुत विकट है, आर्य जाती अधम और पाखंड में फंस चुकी थी, भारत गुलामी से त्रस्त था ऐसे में ऋषि ने “स्वराज्य” का बिगुल बजाया। भगत सिंह, आजाद, बिस्मिल अशफ़ाक़ुल्ला खान सरीखे अनेको वीर इस स्वतंत्रता रुपी यज्ञ में अपनी आहुति देने आये।

आखिर ऐसा क्या था जो इन सभी महापुरषो को एक प्रेरणा देता था ?

वो था हमारे इतिहास में उत्पन्न हुए गौरवशाली आदर्श मानव जिन्होंने हमारे भविष्य के लिए अपना वर्त्तमान दांव पर लगाया। वो आज हमारे आदर्श हैं।

ऐसे ही एक महापुरुष के जन्मकाल के समय पर जो लाखो वर्षो से भारतीय जनमानस ही नहीं अपितु दुनिया के सभी मनुष्यो के लिए एक आदर्श रहा है, एक ऐसा मनुष्य जो पुत्र, पति, भाई, मित्र यहाँ तक की एक शत्रु के लिए भी आदर्श बन गया। आज हम ऐसे आदर्श श्री राम के जन्म काल गणना पर विचार करेंगे।

हमारे मर्यादापुरुषोत्तम श्री राम। इनके जन्म काल के विषय में अनेक भ्रांतियां हैं।
कुछ अंग्रेजी इतिहासकार हमारे सच्चे इतिहास को अपनी वेटिकन चाटुकारिता हेतु नकारते हैं, झूठे तथ्य और बेबुनियाद आधार पर हमारी आस्था पर चोट करते हैं, वामपंथी भी ऐसी ही विकृत मानसिकता से युक्त हैं, वो भी नहीं चाहते की यहाँ का हिन्दू समाज (आर्य जाती) अपने सच्चे इतिहास को जाने, इसीलिए मनमाने और झूठे कुतर्को से झूठ का प्रचार कर हिन्दुओ के मन में भ्रांतियां उत्पन्न करते हैं, नतीजा हिन्दू समाज अपने सत्य इतिहास से दूर होता जाता है।
आज हम इसी विषय पर कुछ विवेचना करेंगे –

देखिये हमारे पास हमारे इतिहास से जुड़े अनेक तथ्य और ऐतिहासिक ग्रन्थ मौजूद हैं, जो हमारी इतिहास की धरोहर है, कुछ अपवाद जैसे प्रक्षेप हिस्से को छोड़ देवे, तो जो सत्य सिद्धांत हो वो मानने योग्य है चाहे किसी भी पुस्तक में मौजूद हो – जब श्री राम का जन्म काल जानने का प्रयत्न करते हैं तो सबसे पहले हम वाल्मीकि रामायण को प्रमाण मानते हैं आइये देखे वहां क्या लिखा है –

ततो यज्ञे समाप्ते तु ऋतुनां षठ समत्ययुः।
ततश्च द्वादशे मासे चैत्रं नावमिके तिथौ।।
नक्षत्रोऽदितिदैवत्ये स्वोच्चसंस्थेषु पंच्चसु।
ग्रहेषु कर्कट लग्ने वाक्पताविन्दुना सह।।
कौशल्याजनमद् रामं दिव्य लक्षणं संयुतम्।
लोहिताक्षं महाबाहु रक्तोष्ठम् दुन्दुभिस्वनम्।।
प्रोद्यमाने जगन्न्ााथं सर्व लोक नमस्कृतम।
(वा. रा. – बालकाण्ड, सर्ग ७, श्लोक १-३)

यज्ञ की समाप्ति के पश्चात् 6 ऋतुएं बीत गईं, तब बारहवें मास चैत्र के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र एवं कर्क लग्न में कौशल्या देवी ने दिव्य लक्षणों से युक्त श्रीराम को जन्म दिया। उस समय पांच ग्रह अपने-अपने उच्च स्थानों पर विद्यमान थे।

ऋषि वाल्मीकि ने अपनी रामायण में इस प्रकार की ग्रह स्थिति में श्री राम के जन्म का उल्लेख किया है –

सूर्य, मंगल, शनि, बृहस्पति, शुक्र ग्रह मेष मकर तुला कर्क मीन में थे। चैत्र के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि श्री राम की जन्मतिथि होने से अब रामनवमी के नाम से प्रसिद्ध है।

महाभारत से प्रमाण :

महाभारत के अनुसार त्रेता और द्वापर के संधिकाल में श्री राम का जन्म हुआ था।

संध्येश समनुप्राप्ते त्रेतायां द्वापरस्य च।
अहं दशरथी रामो भविष्यामि जगत्पतिः।।
(महाभारत शान्तिपव-339/85)

ये श्लोक मिलावटी लगता है लेकिन इतना जरूर है की जो यहाँ त्रेता और द्वापर के संधि काल की बात हो रही है – उसमे सत्यता जरूर प्रतीत होती है क्योंकि इसी संधि का ऐसा ही समय आंकलन वायु महापुराण 98/72) (हरिवंश पुराण 4/41 ब्रह्मांड महापुराण 104/11) में भी दिखाई देता है।

चतुर्विशयुगं चापि विश्वामित्रपुरः सरः।
रामो दशरथस्याथ पुत्रःपदमायतेक्षणः।।

क्योंकि यहाँ 24वि चतुर्युगी की बात हो रही है जो इस वैवस्वत मनु के काल में आती है – वो मुझे युक्तियुक्त नहीं लगता अतः हम इसी 28वि चतुर्युगी के आधार पर काल गणना करते हैं –

देखिये इस समय वैवस्वत मनु की 28वि चतुर्युगी का कलयुग 5116वा साल यानी विक्रम का 2072 संवत है – यदि यहाँ से गणना की जाए तो –

इस कलयुग के – 5116 वर्ष

बीत चुके द्वापर के – 8,64,000 वर्ष

बीत चुके त्रेता के – 12,96,000

श्री राम त्रेता और द्वापर के संधि काल में हुए – तो

8,64,000 + 12,96,000 = 21,60,000 वर्ष

इनका संधि काल =

21,60,000 / 2 = 10,80,000 वर्ष

अब इसमें संध्याओं का योग करते हैं –

86,400 + 1,29,600 = 2,16,000 / 2 = 1,08,000

(ये युग का दश्वा हिसा है जो एक युग से दूसरे युग का संधि काल होता है अतः इसका आधा पूर्व और आधा पश्चात का लेना होगा )

संधि काल + संध्याओ का योग

10,80,000 + 1,08,000 = 11,88,000 वर्ष

अब इसमें कलयुग के 5116 वर्ष और जोड़ते हैं

11,88,000 + 5116 = 11,96,116 (11 लाख, 96 हजार, 116 वर्ष) श्री राम
को उत्पन्न हुए हो गए हैं।

ये काल गणना वैवस्वत मनु की 28वि चतुर्युगी के आधार पर है। अतः इतना तो सिद्ध है, ग्यारह लाख, छियानवे हजार एक सौ सौलह वर्ष तो श्री राम के जन्म हुए कम से कम हो ही चुके हैं।

यदि 24वि चतुर्युगी के आधार पर करे तो – ये गणना करोडो वर्ष पूर्व बैठेगी जो तर्कसंगत नहीं होगा क्योंकि अभी हाल में ही अमेरिका के एक खोजी उपग्रह ने श्री रामेश्वरम से श्री लंका तक श्रीराम द्वारा बनाए गए त्रेतायुग के पुल को 17.5 लाख वर्ष पुराना माना है। जो इस 28वि चतुर्युगी के आधार पर निकाले गए श्री राम की जन्म काल गणना से मेल खाता है।

अतः हमें जानना चाहिए की हमारा इतिहास कोई काल्पनिक नहीं – युगो की गणना यदि और सटीक तरीके तथा अनेक ऐतिहासिक ग्रंथो का यदि और अधिक अनुसन्धान और विश्लेषण किया जाए तो हम प्रभु श्री राम के जन्म गणना का और अधिक विश्लेषण करके – मॉडर्न विज्ञानं के आधार पर मेल करवा सकते हैं।

धन्यवाद

आओ लौट चले वेदो की और

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