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मदर टेरेसा संत या धोखा

Mother Teresa

मदर टेरेसा संत या धोखा 

एग्नेस गोंक्झा बोज़ाझियू अर्थात मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त 1910 को स्कोप्जे, मेसेडोनिया में हुआ था और बारह वर्ष की आयु में उन्हें अहसास हुआ कि “उन्हें ईश्वर बुला रहा है”। 24 मई 1931 को वे कलकत्ता आईं और फ़िर यहीं की होकर रह गईं। उनके बारे में इस प्रकार की सारी बातें लगभग सभी लोग जानते हैं, लेकिन कुछ ऐसे तथ्य, आँकड़े और लेख हैं जिनसे इस शख्सियत पर सन्देह के बादल गहरे होते जाते हैं। उन पर हमेशा वेटिकन की मदद और मिशनरीज ऑफ़ चैरिटी की मदद से “धर्म परिवर्तन” का आरोप तो लगता ही रहा है, लेकिन बात कुछ और भी है, जो उन्हें “दया की मूर्ति”, “मानवता की सेविका”, “बेसहारा और गरीबों की मसीहा”… आदि वाली “लार्जर दैन लाईफ़” छवि पर ग्रहण लगाती हैं, और मजे की बात यह है कि इनमें से अधिकतर आरोप (या कहें कि खुलासे) पश्चिम की प्रेस या ईसाई पत्रकारों आदि ने ही किये हैं, ना कि किसी हिन्दू संगठन ने, जिससे संदेह और भी गहरा हो जाता है (क्योंकि हिन्दू संगठन जो भी बोलते या लिखते हैं उसे तत्काल सांप्रदायिक ठहरा दिये जाने का “रिवाज” है)। बहरहाल, आईये देखें कि क्यों इस प्रकार के “संत” या “चमत्कार” आदि की बातें बेमानी होती हैं (अब ये पढ़ते वक्त यदि आपको हिन्दुओं के बड़े-बड़े और नामी-गिरामी बाबाओं, संतों और प्रवचनकारों की याद आ जाये तो कोई आश्चर्यजनक बात नहीं होगी) –

यह बात तो सभी जानते हैं कि धर्म कोई सा भी हो, धार्मिक गुरु/गुरुआनियाँ/बाबा/सन्त आदि कोई भी हो बगैर “चन्दे” के वे अपना कामकाज(?) नहीं फ़ैला सकते हैं। उनकी मिशनरियाँ, उनके आश्रम, बड़े-बड़े पांडाल, भव्य मन्दिर, मस्जिद और चर्च आदि इसी विशालकाय चन्दे की रकम से बनते हैं। जाहिर है कि जहाँ से अकूत पैसा आता है वह कोई पवित्र या धर्मात्मा व्यक्ति नहीं होता, ठीक इसी प्रकार जिस जगह ये अकूत पैसा जाता है, वहाँ भी ऐसे ही लोग बसते हैं। आम आदमी को बरगलाने के लिये पाप-पुण्य, अच्छाई-बुराई, धर्म आदि की घुट्टी लगातार पिलाई जाती है, क्योंकि जिस अंतरात्मा के बल पर व्यक्ति का सारा व्यवहार चलता है, उसे दरकिनार कर दिया जाता है। पैसा (यानी चन्दा) कहीं से भी आये, किसी भी प्रकार के व्यक्ति से आये, उसका काम-धंधा कुछ भी हो, इससे लेने वाले “महान”(?) लोगों को कोई फ़र्क नहीं पड़ता। उन्हें इस बात की चिंता कभी नहीं होती कि उनके तथाकथित प्रवचन सुनकर क्या आज तक किसी भी भ्रष्टाचारी या अनैतिक व्यक्ति ने अपना गुनाह कबूल किया है? क्या किसी पापी ने आज तक यह कहा है कि “मेरी यह कमाई मेरे तमाम काले कारनामों की है, और मैं यह सारा पैसा त्यागकर आज से सन्यास लेता हूँ और मुझे मेरे पापों की सजा के तौर पर कड़े परिश्रम वाली जेल में रख दिया जाये..”। वह कभी ऐसा कहेगा भी नहीं, क्योंकि इन्हीं संतों और महात्माओं ने उसे कह रखा है कि जब तुम अपनी कमाई का कुछ प्रतिशत “नेक” कामों के लिये दान कर दोगे तो तुम्हारे पापों का खाता हल्का हो जायेगा। यानी, बेटा..तू आराम से कालाबाजारी कर, चैन से गरीबों का शोषण कर, जम कर भ्रष्टाचार कर, लेकिन उसमें से कुछ हिस्सा हमारे आश्रम को दान कर… है ना मजेदार धर्म…

बहरहाल बात हो रही थी मदर टेरेसा की, मदर टेरेसा की मृत्यु के समय सुसान शील्ड्स को न्यूयॉर्क बैंक में पचास मिलियन डालर की रकम जमा मिली, सुसान शील्ड्स वही हैं जिन्होंने मदर टेरेसा के साथ सहायक के रूप में नौ साल तक काम किया, सुसान ही चैरिटी में आये हुए दान और चेकों का हिसाब-किताब रखती थीं। जो लाखों रुपया गरीबों और दीन-हीनों की सेवा में लगाया जाना था, वह न्यूयॉर्क के बैंक में यूँ ही फ़ालतू पड़ा था? मदर टेरेसा को समूचे विश्व से, कई ज्ञात और अज्ञात स्रोतों से बड़ी-बड़ी धनराशियाँ दान के तौर पर मिलती थीं।

अमेरिका के एक बड़े प्रकाशक रॉबर्ट मैक्सवैल, जिन्होंने कर्मचारियों की भविष्यनिधि फ़ण्ड्स में 450 मिलियन पाउंड का घोटाला किया, ने मदर टेरेसा को 1.25 मिलियन डालर का चन्दा दिया। मदर टेरेसा मैक्सवैल के भूतकाल को जानती थीं। हैती के तानाशाह जीन क्लाऊड डुवालिये ने मदर टेरेसा को सम्मानित करने बुलाया। मदर टेरेसा कोलकाता से हैती सम्मान लेने गईं, और जिस व्यक्ति ने हैती का भविष्य बिगाड़ कर रख दिया, गरीबों पर जमकर अत्याचार किये और देश को लूटा, टेरेसा ने उसकी “गरीबों को प्यार करने वाला” कहकर तारीफ़ों के पुल बाँधे।

मदर टेरेसा को चार्ल्स कीटिंग से 1.25 मिलियन डालर का चन्दा मिला, ये कीटिंग महाशय वही हैं जिन्होंने “कीटिंग सेविंग्स एन्ड लोन्स” नामक कम्पनी 1980 में बनाई थी और आम जनता और मध्यमवर्ग को लाखों डालर का चूना लगाने के बाद उसे जेल हुई थी। अदालत में सुनवाई के दौरान मदर टेरेसा ने जज से कीटिंग को “माफ़”(?) करने की अपील की थी, उस वक्त जज ने उनसे कहा कि जो पैसा कीटिंग ने गबन किया है क्या वे उसे जनता को लौटा सकती हैं? ताकि निम्न-मध्यमवर्ग के हजारों लोगों को कुछ राहत मिल सके, लेकिन तब वे चुप्पी साध गईं।

ब्रिटेन की प्रसिद्ध मेडिकल पत्रिका Lancet के सम्पादक डॉ.रॉबिन फ़ॉक्स ने 1991 में एक बार मदर के कलकत्ता स्थित चैरिटी अस्पतालों का दौरा किया था। उन्होंने पाया कि बच्चों के लिये साधारण “अनल्जेसिक दवाईयाँ” तक वहाँ उपलब्ध नहीं थीं और न ही “स्टर्लाइज्ड सिरिंज” का उपयोग हो रहा था। जब इस बारे में मदर से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि “ये बच्चे सिर्फ़ मेरी प्रार्थना से ही ठीक हो जायेंगे…”(?)

बांग्लादेश युद्ध के दौरान लगभग साढ़े चार लाख महिलायें बेघरबार हुईं और भागकर कोलकाता आईं, उनमें से अधिकतर के साथ बलात्कार हुआ था। मदर टेरेसा ने उन महिलाओं के गर्भपात का विरोध किया था, और कहा था कि “गर्भपात कैथोलिक परम्पराओं के खिलाफ़ है और इन औरतों की प्रेग्नेन्सी एक “पवित्र आशीर्वाद” है…”। उन्होंने हमेशा गर्भपात और गर्भनिरोधकों का विरोध किया। जब उनसे सवाल किया जाता था कि “क्या ज्यादा बच्चे पैदा होना और गरीबी में कोई सम्बन्ध नहीं है?” तब उनका उत्तर हमेशा गोलमोल ही होता था कि “ईश्वर सभी के लिये कुछ न कुछ देता है, जब वह पशु-पक्षियों को भोजन उपलब्ध करवाता है तो आने वाले बच्चे का खयाल भी वह रखेगा इसलिये गर्भपात और गर्भनिरोधक एक अपराध है” (क्या अजीब थ्योरी है…बच्चे पैदा करते जाओं उन्हें “ईश्वर” पाल लेगा… शायद इसी थ्योरी का पालन करते हुए ज्यादा बच्चों का बाप कहता है कि “ये तो भगवान की देन हैं..”, लेकिन वह मूर्ख नहीं जानता कि यह “भगवान की देन” धरती पर बोझ है और सिकुड़ते संसाधनों में हक मारने वाला एक और मुँह…)

मदर टेरेसा ने इन्दिरा गाँधी की आपातकाल लगाने के लिये तारीफ़ की थी और कहा कि “आपातकाल लगाने से लोग खुश हो गये हैं और बेरोजगारी की समस्या हल हो गई है”। गाँधी परिवार ने उन्हें “भारत रत्न” का सम्मान देकर उनका “ऋण” उतारा। भोपाल गैस त्रासदी भारत की सबसे बड़ी औद्योगिक दुर्घटना है, जिसमें सरकारी तौर पर 4000 से अधिक लोग मारे गये और लाखों लोग अन्य बीमारियों से प्रभावित हुए। उस वक्त मदर टेरेसा ताबड़तोड़ कलकत्ता से भोपाल आईं, किसलिये? क्या प्रभावितों की मदद करने? जी नहीं, बल्कि यह अनुरोध करने कि यूनियन कार्बाईड के मैनेजमेंट को माफ़ कर दिया जाना चाहिये। और अन्ततः वही हुआ भी, वारेन एंडरसन ने अपनी बाकी की जिन्दगी अमेरिका में आराम से बिताई, भारत सरकार हमेशा की तरह किसी को सजा दिलवा पाना तो दूर, ठीक से मुकदमा तक नहीं कायम कर पाई। प्रश्न उठता है कि आखिर मदर टेरेसा थीं क्या?

एक और जर्मन पत्रकार वाल्टर व्युलेन्वेबर ने अपनी पत्रिका “स्टर्न” में लिखा है कि अकेले जर्मनी से लगभग तीन मिलियन डालर का चन्दा मदर की मिशनरी को जाता है, और जिस देश में टैक्स चोरी के आरोप में स्टेफ़ी ग्राफ़ के पिता तक को जेल हो जाती है, वहाँ से आये हुए पैसे का आज तक कोई ऑडिट नहीं हुआ कि पैसा कहाँ से आता है, कहाँ जाता है, कैसे खर्च किया जाता है… आदि।

अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पत्रकार क्रिस्टोफ़र हिचेन्स ने 1994 में एक डॉक्यूमेंट्री बनाई थी, जिसमें मदर टेरेसा के सभी क्रियाकलापों पर विस्तार से रोशनी डाली गई थी, बाद में यह फ़िल्म ब्रिटेन के चैनल-फ़ोर पर प्रदर्शित हुई और इसने काफ़ी लोकप्रियता अर्जित की। बाद में अपने कोलकाता प्रवास के अनुभव पर उन्होंने एक किताब भी लिखी “हैल्स एन्जेल” (नर्क की परी)। इसमें उन्होंने कहा है कि “कैथोलिक समुदाय विश्व का सबसे ताकतवर समुदाय है, जिन्हें पोप नियंत्रित करते हैं, चैरिटी चलाना, मिशनरियाँ चलाना, धर्म परिवर्तन आदि इनके मुख्य काम हैं…” जाहिर है कि मदर टेरेसा को टेम्पलटन सम्मान, नोबल सम्मान, मानद अमेरिकी नागरिकता जैसे कई सम्मान मिले।

संतत्व गढ़ना –
मदर टेरेसा जब कभी बीमार हुईं, उन्हें बेहतरीन से बेहतरीन कार्पोरेट अस्पताल में भरती किया गया, उन्हें हमेशा महंगा से महंगा इलाज उपलब्ध करवाया गया, हालांकि ये अच्छी बात है, इसका स्वागत किया जाना चाहिये, लेकिन साथ ही यह नहीं भूलना चाहिये कि यही उपचार यदि वे अनाथ और गरीब बच्चों (जिनके नाम पर उन्हें लाखों डालर का चन्दा मिलता रहा) को भी दिलवातीं तो कोई बात होती, लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ…एक बार कैंसर से कराहते एक मरीज से उन्होंने कहा कि “तुम्हारा दर्द ठीक वैसा ही है जैसा ईसा मसीह को सूली पर हुआ था, शायद महान मसीह तुम्हें चूम रहे हैं”,,, तब मरीज ने कहा कि “प्रार्थना कीजिये कि जल्दी से ईसा मुझे चूमना बन्द करें…”। टेरेसा की मृत्यु के पश्चात पोप जॉन पॉल को उन्हें “सन्त” घोषित करने की बेहद जल्दबाजी हो गई थी, संत घोषित करने के लिये जो पाँच वर्ष का समय (चमत्कार और पवित्र असर के लिये) दरकार होता है, पोप ने उसमें भी ढील दे दी, ऐसा क्यों हुआ पता नहीं।

मोनिका बेसरा की कहानी –
पश्चिम बंगाल की एक क्रिश्चियन आदिवासी महिला जिसका नाम मोनिका बेसरा है, उसे टीबी और पेट में ट्यूमर हो गया था। बेलूरघाट के सरकारी अस्पताल के डॉ. रंजन मुस्ताफ़ उसका इलाज कर रहे थे। उनके इलाज से मोनिका को काफ़ी फ़ायदा हो रहा था और एक बीमारी लगभग ठीक हो गई थी। मोनिका के पति मि. सीको ने इस बात को स्वीकार किया था। वे बेहद गरीब हैं और उनके पाँच बच्चे थे, कैथोलिक ननों ने उनसे सम्पर्क किया, बच्चों की उत्तम शिक्षा-दीक्षा का आश्वासन दिया, उस परिवार को थोड़ी सी जमीन भी दी और ताबड़तोड़ मोनिका का “ब्रेनवॉश” किया गया, जिससे मदर टेरेसा के “चमत्कार” की कहानी दुनिया को बताई जा सके और उन्हें संत घोषित करने में आसानी हो। अचानक एक दिन मोनिका बेसरा ने अपने लॉकेट में मदर टेरेसा की तस्वीर देखी और उसका ट्यूमर पूरी तरह से ठीक हो गया। जब एक चैरिटी संस्था ने उस अस्पताल का दौरा कर हकीकत जानना चाही, तो पाया गया कि मोनिका बेसरा से सम्बन्धित सारा रिकॉर्ड गायब हो चुका है (“टाईम” पत्रिका ने इस बात का उल्लेख किया है)।

“संत” घोषित करने की प्रक्रिया में पहली पायदान होती है जो कहलाती है “बीथिफ़िकेशन”, जो कि 19 अक्टूबर 2003 को हो चुका। “संत” घोषित करने की यह परम्परा कैथोलिकों में बहुत पुरानी है, लेकिन आखिर इसी के द्वारा तो वे लोगों का धर्म में विश्वास(?) बरकरार रखते हैं और सबसे बड़ी बात है कि वेटिकन को इतने बड़े खटराग के लिये सतत “धन” की उगाही भी तो जारी रखना होता है….

(मदर टेरेसा की जो “छवि” है, उसे धूमिल करने का मेरा कोई इरादा नहीं है, इसीलिये इसमें सन्दर्भ सिर्फ़ वही लिये गये हैं जो पश्चिमी लेखकों ने लिखे हैं, क्योंकि भारतीय लेखकों की आलोचना का उल्लेख करने भर से “सांप्रदायिक” घोषित किये जाने का “फ़ैशन” है… इस लेख का उद्देश्य किसी की भावनाओं को चोट पहुँचाना नहीं है, जो कुछ पहले बोला, लिखा जा चुका है उसे ही संकलित किया गया है, मदर टेरेसा द्वारा किया गया सेवाकार्य अपनी जगह है, लेकिन सच यही है कि कोई भी धर्म हो इस प्रकार की “हरकतें” होती रही हैं, होती रहेंगी, जब तक कि आम जनता अपने कर्मों पर विश्वास करने की बजाय बाबाओं, संतों, माताओं, देवियों आदि के चक्करों में पड़ी रहेगी, इसीलिये यह दूसरा पक्ष प्रस्तुत किया गया है)

 

वैदिक समाजवाद

 

equality

 

वैदिक  समाजवाद

1.सहृदयं सांमनस्यमविद्वेषं कृणोमि व: । अन्यो: अन्यमसि हर्यत वत्सं जातमिवाघ्न्या॥ अ‍थर्व 3.30.1

तुम्हारे  हृदय में सामनस्व हो, मन द्वेष रहित हो,  एकीभाव हो. परस्पर स्नेह करो जैसे गौ अपने नवजात बछड़े से करती है.

2. अनुव्रत: पितु: मात्रा भवतु संमना । जाया पत्ये मधुमती वाचं वदतु श न्तिवाम्‌ ॥ अथर्व3.30.2

पुत्र पिता की आज्ञा पालन करने वाला हो. माता के साथ समान मन वाला हो. स्त्री पति के लिए मधुर और शान्ति दायिनी वाणी बोले.

3. मा भ्राताभ्रातरं द्विक्षन्मा स्वसारमुत स्वसा । सम्यञ्च: सव्रताभूत्वा वाचं वदत भद्रया  ॥ अथर्व 3.30.3

भाई भाई से द्वेष न करे, बहिन बहिन से द्वेष न करे.सब उचित आचार विचार वाले और समान व्रतानुष्ठायी बन कर आपस मे मृदु कल्याणकारी वाणी बोलें .

4.येन देवा न वियन्ति ना च विद्विषते मिथ: । तत्‌ कृन्मो ब्रह्म वो गृहे संज्ञान पुरुषेभ्य: ॥ अथर्व 3.30.4

जिस कर्म के अनुष्ठान से मनुष्य देवत्व बुद्धि सम्पन्न हो कर एक दूसरे से परस्पर मिलजुल कर रहते हैं, आपस में द्वेष नहीं करते , उन  के इस कर्म से ज्ञान प्राप्त कर के  एक्यमत उत्पन्न होता है.

5.ज्यायस्वन्तश्चित्तिनो  मावि यौष्ट संराधयन्त: सधुराश्चरन्त: ॥

अन्यो अन्यस्मै वल्गु वदन्त एत सध्रीचीनान्व: संमनस्कृणोमि ॥ अथर्व 3.30.5

निज निज कर्मों के प्रति सचेत बड़ों के आदर्शों  से प्रेरित अपनाअपना उत्तरदायित्व समान रूप से वहन करते हुए साथ साथ चल कर, प्रत्येक के लिए प्रिय वचन बोलते हुए एक मन से साथ साथ चलने वाले  बनो.

6. समानी प्रपा सह वोsन्नभागा  समाने योक्त्रेसह वो युनज्मि ।

सम्यञ्चो sग्निं सपर्तारा नाभिमिवाभित: ॥ अथर्व 3.30.6

तुम्हारे जलपानके स्थान एक ही हों, तुमारा अन्न सेवन का स्थान एक हो,No untouchables  , No five star culture .  इस संसार में समान उत्तरदायित्व के वहन में तुम्हें एक जुए में  जोड़ता हूं. जिस के पहियों के नाभि चक्र के अरों – लट्ठों  की तरह  एक जुट हो कर अग्नि से यज्ञादि शुभ कर्म करो. ( यज्ञ जो संसार में श्रेष्ठ तम कर्म हैं उन का प्रतीक रूप अग्निहोत्र है. अग्नीहोत्र में मुख्य चारआधाराज्ञ आहुती होती हैं. प्रथम अग्नि को दूसरी सोम को, तीसरी इन्द्र को चौथी प्रजापति को.  सोम को आधुनिक भाषा में ideas, अग्नि को Fire,इन दोनों को मिला कर Ideas on Fire कहा जाता है. जब इन्द्र Entrepreneur इस अग्नि और सोम से प्रज्वलित होते

हैं तभी प्रजापति – संसार कि प्रगति के साधन बन कर संसार का पालन करते है. Entrepreneur fired by an idea becomes modern Henry Ford, Bill Gates and Steve jobs. They were not aiming to become rich and famous but were fired by their ideas to bring a Car, a computer, a more convenient communication aid to common man.   भारतीय इतिहास में  चाणक्य, महर्षि दयानंद, स्वामी विवेकानंद , सुभाषचन्द्र बोस,महात्मा गांधी इसी श्रेणी में आते हैं )

 

 

 

7.सध्रीचीनान्व संमनस्यकृणोम्येकश्नुष्ठीन्त्संवननेन सर्वान्‌ ।

देवाइवामृतं रक्षमाणा: सायंप्रात: सौमनसौ  वो अस्तु ॥ अथर्व 3.30.7

इस उपदेश को ग्रहण कर के तुम सब प्रतिदिन  सायं प्रात: की तरह सदैव एक दूसरे के सहयोगी  बन कर,समान मन वाले हो कर समान भोग करने हो कर मातृदेवों पितृदेवों की तरह सौमनस्य से संसार की अमरता की रक्षा करो.  ,

Healthy Long life by proper conduct

Healthy Long Life

Healthy Long life by proper conduct-

Refrain line is “व्यहं सर्वेण पाप्मना वि यक्ष्मेण सं आयुषा” by avoiding wrongful conduct I vow to attain long life !

 

पापनाशनम्‌

Healthy Mind

  1. वि देवा जरसावृतन्वि त्वं अग्ने अरात्या  ।

व्यहं सर्वेण पाप्मना वि यक्ष्मेण सं आयुषा  । ।AV3.31.1

देवता –मनुष्य  में दैवीय गुण बुढ़ापे से दूर रखते हैं, जैसे  अग्नि  कंजूसी से  दूर रहती   है ( अग्नि का गुण है कि सब को मुक्त हृदय से बिना कंजूसी के अपना सब कुछ सब को बांट देती है ) , इस प्रकार मैं समस्त पापों से दूर रह कर क्षय करने वाले रोगों से दूर रह कर दीर्घायु बनूं.

Divine virtues keep the old age away. Take lesson from Homa fire, that without being selfishly miser generously shares with everyone all the ablutions made in to it, and be open hearted, forgiving and generous to all in life and lead a clean pure life.  Thus by avoiding wrongful conduct attain long life

Healthy Body

  1.  व्यार्त्या पवमानो वि शक्रः पापकृत्यया  ।

व्यहं सर्वेण पाप्मना वि यक्ष्मेण सं आयुषा  । AV3.31.2

अपने जीवन में पवित्र आचरण द्वारा पुरुष, रोगादि पीड़ाओं से पृथक रह कर शक्तिशाली बना रहता है.  इस प्रकार मैं समस्त पापों से दूर रह कर क्षय करने वाले रोगों से दूर रह कर दीर्घायु बनूं.

By observing physical cleanliness, observing clean habits ,  living in clean environments and living on pure clean food keeps the body free of disease and maladies.  Thus by avoiding wrongful conduct attains long life.

 

Avoid wrong situations

  1. वि ग्राम्याः पशव आरण्यैर्व्यापस्तृष्णयासरन् ।

व्यहं सर्वेण पाप्मना वि यक्ष्मेण सं आयुषा  । । AV3.31.3

ग्राम्यपशु गौ घोड़ा हिंसक पशुओं व्याघ्र आदि से दूर रहते हैं , जल प्यास से दूर रहते हैं इस प्रकार मैं समस्त पापों से दूर रह कर क्षय करने वाले रोगों से दूर रह कर दीर्घायु बनूं.

Domestic animals cows, dogs, horses stay away from carnivore. Thirst stays away from water.  Thus by avoiding wrongful conduct attain long life

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Straight thinking

  1. वी मे द्यावापृथिवी इतो वि पन्थानो दिशंदिशं  ।

व्यहं सर्वेण पाप्मना वि यक्ष्मेण सं आयुषा  । । AV3.31.4

ये द्यौ: और पृथ्वी एक दूसरे से दूर रह कर ही चलते हैं, भिन्न भिन्न दिशाओं के मार्ग भी पृथक रहते हैं. इस प्रकार मैं समस्त पापों से पृथक रह कर क्षय करने वाले रोगों से दूर रह कर दीर्घायु बनूं.

Sunshine and Earth have separate paths, but still move together, different roads can lead to same destination. Learn to keep your mind on the objectives and do not get confused by different alternative paths. Thus by avoiding wrongful conduct attain long life

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Equanimity keep mental balance स्वरविज्ञान

  1. त्वष्टा दुहित्रे वहतुं युनक्तीतीदं विश्वं भुवनं वि याति  ।

व्यहं सर्वेण पाप्मना वि यक्ष्मेण सं आयुषा  । । AV3.31.5

त्वष्टा  –सूर्य,अपनी पुत्री किरणों  को दहेज की भांति उपहार के साथ भेज कर  इस एक रथ में जोड़ता है, किरणों  के लिए सब मार्ग से हट  जाते हैं. और चन्द्रमा का गृह स्थापित हो जाता है, जिस से समस्त मानसिक व्यवस्था सम्पन्न  होती है. – इस विषय को और स्पष्ट  करते हुए  यजुर्वेद18-40   “सुषुम्ण: सूर्य्यरश्मिश्चन्द्रमा गन्धर्वस्तस्य नक्ष्त्राण्यप्सरसो भेकुरयो नाम” – गंधर्वों –Cultured सुशिक्षित जनों में योग साधना से ,  दोनों नासिकाओं से पृथक पृथक श्वास द्वारा सूर्य नाड़ी और चंद्रनाड़ी सुषुम्णा बन कर सदा गति शील बन कर  मस्तिष्क और भौतिक शरीर की अध्यक्षता करती हैं  इस प्रकार मैं भी समस्त पापों से दूर रह कर क्षय करने वाले रोगों से दूर रह कर दीर्घायु बनूं.

( सूर्य की दुहिता रूपि रश्मियों के चन्द्रमा के गृह जाने को सूर्य की दुहिता से चन्द्रमा के विवाह की उपाधि दी जाती है. )

Exercise control on the left and right hemispheres of your brain to maintain the balance between emotions and pragmatism. Thus by avoiding wrongful conduct attain long life

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Emotional intelligence

6.अग्निः प्राणान्त्सं दधाति चन्द्रः प्राणेन संहितः ।

व्यहं सर्वेण पाप्मना वि यक्ष्मेण सं आयुषा  । । AV3.31.6

अग्नि जाठराग्नि के रूप में अन्न के रसों द्वारा प्राणों नेत्र आदि इन्द्रियों का शरीर में परस्पर तालमेल बैठाती है. चंद्रमा सोम के द्वारा प्राण के आधार भूत उत्तम मन के साथ मिल  कर जीवन को पुष्ट करता है.  इस ज्ञान के आधार पर मैं समस्त पापों से दूर रह कर क्षय करने वाले रोगों से दूर रह कर दीर्घायु बनूं.

(जीव कर्म करने में स्वतंत्र एक hardware जैसा है, इस का संचालन करने वाला सोम इस Hardware को चलाने वाला Software  है. तैतरीय के अनुसार  “सोमो राजा  राजपति:”, “सोमो विश्ववनि” . सोम ही विश्व का प्रजनन करने वाला है. )

Emotional intelligence exercises control not only the mental state for controlling behavior  but also proper coordination between all the physical organs by digestion of proper food and its transmission to different parts of human body. Thus by avoiding wrongful conduct attain long life

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ब्रह्मचर्य – Brahmacharya

  1. प्राणेन विश्वतोवीर्यं देवाः सूर्यं सं ऐरयन् ।

व्यहं सर्वेण पाप्मना वि यक्ष्मेण सं आयुषा  । । AV3.31.7

वीर्य द्वारा विश्व के लिए प्राण दे कर सब देवताओं को सम्यक प्रस्तुत किया जाता है . इस प्रकार मैं समस्त पापों से दूर रह कर (वीर्य की रक्षा कर के)  क्षय करने वाले रोगों से दूर रह कर दीर्घायु बनूं.

(इस संदर्भ मे यहां ऋग्वेद 8.100.1 “ अयं त एमि  तन्वा पुरस्ताद्विश्वे देवा अभि मा यन्ति  पश्चात| यदा मह्यं दीधिरो भागमिन्द्राssदिन्मया कृणवो वीर्याणि||” में वीर्य द्वारा  गर्भादान के साथ ही सब देवताइस शरीर में चले आते हैं )

All faculties that exercise control over physical faculties enter the ova through sperms in the fetus. By exercising control on protecting your sperms, one maintains all body faculties till long life. Thus by avoiding wrongful conduct attain long life

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यहां प्रसिद्ध मंत्र “ तच्चक्षुर्देवहितं  शुक्रमुच्चरत | पश्येमशरद: शतम्‌ || RV 7.66.16 भी प्रासंगिक है . – शुक्र को ऊपर की ओर ले जा कर – ऊर्ध्वरेता बन कर चक्षुओं को स्वस्थ बना कर सौ वर्ष तक देखो.

 

Longevity is inherited दीर्घायु माता पिता से आती है.

8.आयुष्मतां आयुष्कृतां प्राणेन जीव मा मृथाः ।

व्यहं सर्वेण पाप्मना वि यक्ष्मेण सं आयुषा  । । AV3.31.8

स्वयं दीर्घायु वाले और दीर्घायु प्रदान करने वाले (माता पिता जैसे देवताओं के)  दीर्घायु प्राणों का सामर्थ्य मैं व्यर्थ न जाने दूं. इस प्रकार मैं समस्त पापों से दूर रह कर क्षय करने वाले रोगों से दूर रह कर दीर्घायु बनूं.( इस मन्त्र में  में दीर्घायु का पारिवारिक देवताओं माता पिता का के स्वयं दीर्घायु होने से सम्बंध बताया है , जिसे आधुनिक विज्ञान भी मानता है कि दीर्घायु वंश गत inherited trait होती है.)

Long life is an inherited trait. Thus by avoiding wrongful conduct attain long life

Lead a zestful life पुरुषार्थी  जीवन

9. प्राणेन प्राणतां प्राणेहैव भव मा मृथाः ।

व्यहं सर्वेण पाप्मना वि यक्ष्मेण सं आयुषा  । । AV3.31.9

सदैव जीवित उत्साही कर्मठ मन्यु से प्रेरित जनों के जीवन से ही प्ररणा ले  कर जी. प्रकार समस्त पापों से दूर रह कर क्षय करने वाले रोगों से दूर रह कर दीर्घायु बनूं.

Adopt role models as people that lead an active zestful life. Thus by avoiding wrongful conduct attain long life

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Vitamin D सूर्य नमस्कार

10. उदायुषा सं आयुषोदोषधीनां रसेन ।

व्यहं सर्वेण पाप्मना वि यक्ष्मेण सं आयुषा  । AV3.31.10

उदय होते हुए सूर्य उषा के ओषधि रूप रसों को प्राप्त करके ही मैं दीर्घायु को प्राप्त करुं. इस प्रकार मैं समस्त ( प्रात; कालीन सूर्य के दर्शन न कर पाने की आलस्य वृत्ति से दूर रह कर क्षय करने वाले रोगों से दूर रह कर दीर्घायु बनूं

(इस विषय पर वेदों से अत्यंत आधुनिक विज्ञान इस प्रकार से मिलता है .

प्राता रत्नं प्रातरित्वा दधाति तं चिकित्वान् प्रतिगृह्या नि धत्ते

तेन प्रजां वर्धयमान आयू रायस्पोषेण सचते सुवीरः ।। 1-125-1

प्रातःकाल का सूर्य उदय हो कर बहुमूल्य रत्न प्रदान करता है। बुद्धिमान उन रत्नों के महत्व को जान कर उन्हें अपने में धारण करते हैं।तब उस से मनुष्यों की आयु और संतान वृद्धि के साथ सम्पन्नता और पौरुष बढ़ता है।

यही विषय ऋग्वेद के निम्न मंत्र में भी मिलता है.

 कृष्णायद्गोष्वरुणीषु सीदद्‌ दिवो नपाताश्विना हुवे वाम |

वीथं मे यज्ञमा गतं मे अन्नं ववन्वासा नेष्मस्मृतध्रू  ||

ऋ 10.61.4 (सायण भाष्य )

जब लाल किरणों में काला तम होता है उस समय हे द्यौ के (प्रकाशमान  आकाश ) के पुत्रो मैं आप को बुलाता हूं. आप आ कर मेरे अन्नमयकोश को मेरे लिए (अस्मृतध्रू) किसी प्रकार का द्रोह रोगादि हिंसा रहित कीजिए || यह दोनो देवता उस समय के सब को नये जीवन देने वाले प्रकाश  के वाची हैं इसी लिए देवभिषक कहलाते हैं. ||

 

 (वैज्ञानिकों के ­नुसार केवल UVB-Ultra Violet B –  किरणें , जो पृथ्वी पर तिरछी पड़ती हैं, वे ही संधि वेला प्रातः सायं की सूर्य की  किरणें विटामिन डी उत्पन्न करके हमारे अन्न के पोषन द्वारा हमें सर्व रोग रहित बनाती हैं।)

 

  According to modern science Solar radiations have the following details of spectrum. Ultra violet and visible portion

of radiations are of great significance. 

Name

Abbreviation

Wavelength range
(in nanometres)

Energy per photon
(in electronvolts)

Notes / alternative names

Visible

VIS

760 – 380 nm

1.63 – 3.26 eV

 

Ultraviolet

UV

400 – 100 nm

3.10 – 12.4 eV

 

Ultraviolet A

UVA

400 – 315 nm

3.10 – 3.94 eV

long wave, black light

Ultraviolet B

UVB

315 – 280 nm

3.94 – 4.43 eV

medium wave

Ultraviolet C

UVC

280 – 100 nm

4.43 – 12.4 eV

short wave, germicidal

 Ultraviolet

NUV

400 – 300 nm

3.10 – 4.13 eV

visible to birds, insects and fishes

Middle Ultraviolet

MUV

300 – 200 nm

4.13 – 6.20 eV

 

Far Ultraviolet

FUV

200 – 122 nm

6.20 – 10.16 eV

 

Hydrogen Lyman-alpha

H Lyman-α

122 – 121 nm

10.16– 10.25 eV

 

Extreme Ultraviolet

EUV

121 – 10 nm

10.25 – 124 eV

 

Vacuum Ultraviolet

VUV

200 – 10 nm

6.20 – 124 eV

 

X-rays

 

10 – 0.001 nm

124 eV – 1.24 MeV

 

Soft X-rays

XUV

10 – 0.1 nm

124 eV – 12.4 keV

X-ray Ultraviolet

Hard X-rays

 

0.1 – 0.001 nm

12.4 keV – 1.24 MeV

 

 

 

UVB (Ultraviolet B)  rays  have 280 to 315 nm ( (nano meters) wave length And are most prominent in the rising Sun rays ( Morning time) The UVB is able to penetrate the Ozone layer in the stratosphere as shown below.  

 

 

 

 

 

      

These UVB rays are able to enter only the ‘Epidermis’ outer skin layers of human body as shown below. And create a hormone that is called by the name Vitamin D.

This is the most important contribution of Sun to direct human health. Cows, sheep etc that have fur on their skin also generate Vitamin D in their Milk and flesh.

(Incidentally Buffaloes do not have a fur coat and being black are uncomfortable in direct sun light. Thus buffaloes’ milk is very deficient in Vitamin D. That is one reason as to how buffalo milk does not find mention in Vedas.)

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

उदु त्यं जातवेदसं देवं वहन्ति केतव: ! दृषे विश्वाय सूर्यम् !! 1/50/1

उदय होते सूर्य की किरणें जातवेदसं ईश्वर की कृपा से उत्पन्न कल्याणकारी पदार्थों के वाहक के रूप मे प्राप्त होती हैं, जब विश्व के लिए  सूर्य दृष्टीगोचर होता है.

When the morning Sun rises on the horizon, the learned realize sun’s rays are vending ( are the Vahan of ) divine gifts ( Vitamin D and photo biological products) for them . While for ordinary persons only rising of the Sun is the observation.)

Derive medicinal strength (in the form of hormon from morning sun’s rays for a healthy body. Thus by avoiding wrongful actions by being lazy and not get up in the morning to get advantage of morning sun for Vitamin D, attain long life.

Protect Environments.पर्यावरण सुरक्षा

11. आ पर्जन्यस्य वृष्ट्योदस्थामामृता वयं ।

व्यहं सर्वेण पाप्मना वि यक्ष्मेण सं आयुषा  । AV3.31.11

प्रकृति   वर्षा के समान के समान अमृत के तत्व प्रदान करती है. मैं इन प्राकृतिक साधनों के प्रयोग से दूर जा कर प्रकृति के विरुद्ध समस्त पापों से दूर रह कर क्षय करने वाले रोगों से दूर रह कर दीर्घायु बनूं.

Natural elements shower their bounties like rain from heavens for health and longevity. Do not spurn natural living and always protect the environments to live a long healthy life.

Atankvad and Nation Building

peace bird

Atankvad and Nation Building

RV7.104 reiterated as AV8.4

Twins of: इन्द्रसोम इन्द्रवरुण:, इन्द्राग्नि:,मित्रवरुण: make great contributions in Nation Building.  Here the role of इन्द्रसोम:  has been described.   

राष्ट्र निर्माण में इन्द्रसोम:,  इन्द्रवरुण:, इन्द्राग्नि:,मित्रवरुण: का बड़ा योगदान होता है. इस स्थान पर इन्द्रसोम: पर वेदों का व्याख्यान पाया जाता है.

 

ऋषि: – मैत्रावरुणिर्वसिष्ठ: । देवता:- (रक्षोघ्नं) इन्द्रासोमौ; 8, 16, 19-22 इन्द्र:; 9, 12-13 सोम:; 10-14 अग्नि:; 11 देवा:; 17 ग्रावाण:; 18 मरुत:; 23 (पूर्वार्धस्य) वसिष्ठाशी: (उत्तरार्धस्य) पृथिव्यन्तरिक्षे ।

त्रिष्टुप्, 1-6, 18,21,23 जगती; 7 जगतीत्रिष्टुप् वा; 25 अनुष्टुप्।

(हरिशरण जी सिद्धांतालंकार – मनोहर विद्यालंकार जी ,  ऋग्वेद के ऋषि: से साभार  )

मैत्रावरुणिर्वसिष्ठ: – तांड्य ब्राह्मण के अनुसार मित्रावरुण प्राण अपान हैं, इन को  पूर्णरूप से सबल

 बनाने वाला ऋषि  मैत्रावरुणि है. यह वश करने वालों में श्रेष्ठ होने से ‘वसिष्ठ’हैं,अथवा उत्तम निवास शील होने से वसिष्ठहैं | ऐसा मानव जितेंद्रिय हो कर इस शरीर मे वास करता है.  यही बात दूसरी प्रकार से ऐत्रेय  में चक्षु और मन को मित्रावरुणि और इन को वश में रखनेवाले को वसिष्ठ  बता कर उपदेश दिया है. प्रभु से प्रार्थना है कि ‘त्वायुजा पृतनायु रभिष्याम्‌’ तेरा साथी बन कर मैं प्रलोभनों की कामादि शत्रुओं की सेना पर विजय पा लूं.  ‘ मा नो अग्ने अवीरते परादा दुर्वाससे’ हम वीर हों अयोग्य जीवनवास करने वाले न हों |

This Sookt of RV 7.104, due to the significance of Nation Building message in it

is found reiterated in Atharv Ved as AV8.4. IndraSomo इन्द्रसोम: is the operative term of this Sookt .  In Nation Building SOMA correspond to the Staff Functions –the software of Planning – Voice of Civil Society reflected in Judiciary & Govt . INDRA corresponds to the hardware Line Functions the state organs of law enforcement Administration, Police and Defence services. Thus IndraSomo इन्द्रसोम: calls for their synergic operations of intelligence and law enforcement for Nation Building.

It is also noted that severe exemplary punishments are laid down for offenders. Only severe punishments act as true deterrents. Only then a king could proclaim as in Chandogyopanishad5.11 “ न मे स्तेनो जनपदे न कदर्यो न मद्यपो ननाहिताग्निर्नाविद्वान्न  स्वाइरी स्वैरिणी कुत:.”  There are no thieves in my kingdom, no greedy hoarders’ misers, no drunkards, nor those who do not perform Agnihotras, or uneducated persons without wisdom, nor sex offender men hence the question of  female exploitation does not arise.

मेरे जनपद में न चोर हैं, न कृपण, न शराबी,न अग्निहोत्र न करने वाले हैं, न मूर्ख हैं , न व्यभिचारी (पुरुष)  फिर व्यभिचारिणी स्त्री कहां.?

राष्ट्र निर्माणके लिए इन्द्रसोमो का वर्णन – सोम केवल न्यायोचित सर्वहितकारी मार्ग दर्शन कर  सकता

है परन्तु उस का पालन कराने के लिए जितेंद्रिय राजा को इन्द्र के रूप में  सोम के साथ जुड़ना आवश्यक हो जाता है.

(स्वामी समर्पणानान्द जी के ऋग्वेद मण्डल – मणि –सूत्र पर आधारित )

 

1.इन्द्रासोमा तपतं रक्ष उब्जतं न्यर्पयतं वृषणा तमोवृध: ।
परा शृणीतमचितो न्योषतं हतं नुदेथां नि शिशीतमत्रिण: ।।  RV 7.104.1, AV8.4.1

सात्विक ज्ञान से प्रेरित पराक्रम द्वारा , तामसिक हृदय हीन,मूर्खों को तहस नहस कर दो. दूसरों का सर्वस्व खा जाने वालों को सर्वथा क्षीण कर दो.

Motivated with selfless intellect and strength of  your valour, destroy and render  ineffective,  the heartless, lecherous, selfish, wicked elements from society that prosper by usurping the entire wealth of others.

 

2.इन्द्रासोमा समघशंसमभ्य1घं तपुर्ययस्तु चरुरग्निवाँ  इव ।
ब्रह्मद्विषे क्रव्यादे घोरचक्षसे द्वेषो धत्तमनवायं किमीदिने ।। RV7.104.2, AV8.4.2

पापाभिलाषी जनों को अच्छी तरह से दबा दो.अग्नि पर रक्खी हवि की भांति उन्हें

संताप प्राप्त हो.असत्याचरण करने वाले, कच्चा मांस खाने की भयंकर दृष्टि से दूसरे के धनादि को हड़प कर जाने वालों पर सदैव द्वेष धारण करो.

 

3.इन्द्रासोमा दुष्कृतो वव्रे अन्तरनारम्भणे तमसि प्र विध्यतम् ।
यथा नात: पुनरेकश्चनोदयत् तद् वामस्तु सहसे मन्युमच्छव: ।। RV 7.104.3, AV8.4.3

दुष्कर्म करने वालों को जिन गुफाओं में वे छिपे हैं वहीं घोर अंधकार में ही बींध डालो.झां से एक भी फिर बाहर न आ पाए. तुम्हारा जगप्रसिद्ध बल क्रोध  से युक्त हो कर उन्हे दबाने के लिए हो.

 

 

4.इन्द्रासोमा वर्तयतं दिवो वधं सं पृथिव्या अघशंसाय तर्हणम् ।
उत तक्षतं स्वर्यं पर्वतेभ्यो येन रक्षो वावृधाना निजूर्वथ: ।। RV7.104.4, AV8.4.4

पापाभिलाषी पुरुष के विरुद्ध तुम द्यु से पृथिवी से विनाशकारी अस्त्र का प्रयोग करो.पर्वतों जैसे ऊंचे ऊंचे बादलों से भयङ्कर स्वर वाला शस्त्र उत्पन्न करो, जिस के द्वारा बढ़्ते हुए राक्षस को जला डालो.

 

5.इन्द्रासोमा वर्तयतं दिवस्पर्यग्नितप्तेभिर् युवमश्महन्मभि: ।
तपुर्वधेभिरजरेभिरत्रिणो नि पर्शाने विध्यतं यन्तु निस्वरम् ।। RV7.104.5, AV8.4.5

सात्विक ऊर्जा और बल से इन को आकाश से लुढ़का दो.आग से तपे हुए पत्थरों की सी मार करने वाले कभी जीर्ण न होने वाले संतापकारी आग्नेय अस्त्रं द्वारा सर्वभक्षी पापियों की पसलियों को बींध दो, जिस से वे शब्दहीन हो कर चुप चाप दुनिया से चले जाएं.

 

6.इन्द्रासोमा परि वां भूतु विश्वत इयं मति: कक्ष्याश्वेव वाजिना ।
यां वां होत्रां परिहिनोमि मेधया इमा ब्रह्माणि नृपतीव जिन्वतम् ।। RV7.104.6, AV8.4.6

 

इंद्र- कर्मठ व्यक्तित्व  और सोम- सात्विक बुद्धि द्वारा प्रेरित ज्ञान,  दो बलवान घोड़ों को एक समान रथ में सुशोभित , राज्य के अनुकूल आदेशों को कार्यान्वित  करने का साधन  देखा जाता है.

 

 

7.प्रति स्मरेथां तुजयद्भिरेवैर्हतं द्रुहो रक्षसो भङ्गुरावत: ।
इन्द्रासोमा दुष्कृते मा सुगं भूद् यो न: कदा चिदभिदासति द्रुहा ।। RV7.104.7, AV8.4.7

इंद्र सोम अपने गति साधनों का स्मरण करो. राष्ट्र, समाज द्रोह करने वाले असुर नष्ट करो. समाज राष्ट्र को कष्ट पहुंचाने वाले जन दुष्कर्म कभी भी सुगमता से न कर सकें.

 

8.यो मा पाकेन मनसा चरन्तमभिचष्टे अनृतेभिर्वचोभि: ।
आप इव काशिना संगृभीता असन्नस्त्वासत इन्द्र वक्ता ।। RV7.104.8,AV8.4.8

शुद्ध मन से चलने वालों पर जो व्यक्ति झूठे वचनों द्वारा आरोप लगाता है, उस के वचन मुट्ठी में से जल की भांति निकल जाएं. झूठ बोलने वाला व्यक्ति सत्ता रहित हो जाए.

 

9.ये पाकशंसं विहरन्त एवैर्ये वा भद्रं दूषयन्ति स्वधाभि: ।
अहये वा तान् प्रददातु सोम आ वा दधातु निर्ऋतेरुपस्थे ।। RV7.104.9, AV8.4.9

जो दुष्ट हमारे भोजन को मिलावट से निस्सार, अथवा स्वादिष्ट किंतु हानि कारक बना कर अन्न को दूषित करते हैं, ऐसे ठग और शत्रु हीनता को प्राप्त हों उन का सामर्थ्य और व्यवस्था नष्ट कर दी जाए.

 

 

 

10.यो नो रसं दिप्सति पित्वो अग्ने यो अश्वानां यो गवां यस्तनूनाम् ।
रिपु स्तेन स्तेयकृद् दभ्रमेतु नि ष हीयतां तन्वा3 तना च ।। RV7.104.10, AV8.4.10

जो घोड़ों, गौओं की नसल बिगाड़ते हैं, गौ के दुग्ध को निस्सार करते हैं. वे मानवता के शत्रु और निक्रिष्ट, हीन लोग हैं. उन की सामर्थ्य और व्यवस्था का नाश कर देना चाहिए

 

 

11.पर: सो अस्तु तन्वा तना च तिस्र: पृथिवीरधो अस्तु विश्वा: ।
प्रति शुष्यन्तु यशो अस्य देवा यो नो दिवा दिप्सति यश्च नक्तम् ।। RV7.104.11, AV8.4.11

ऐसे दोषी जनों को देश से निष्कासित कारावास दण्ड देना चाहिए.

12.सुविज्ञानं चिकितुषे जनाय सच्चासच्च वचसी पस्पृधाते ।
तयोर्यत् सत्यं यतरदृजीयस्तदित् सोमोऽवति हन्त्यासत् ।। RV7.104.12, AV8.4.12

परंतु उन के दोष का निर्णय विज्ञान आधारित विद्वान पुरुषों द्वारा  सत्य असत्य के  विचार  के आधार पर होना चाहिए.

 

13.न वा उ सोमो वृजिनं हिनोति न क्षत्रियं मिथुया धारयन्तम् ।
हन्ति रक्षो हन्त्यासद् वदन्तमुभाविन्द्रस्य प्रसितौ शयाते ।। RV7.104.13, AV8.4.13 सत्य और ज्ञान विज्ञान पर आधारित निर्णय स्वतंत्र न्याय के रक्षा करने वाले हों. वे किसी शक्ति,- धन इत्यादि के  प्रलोभन से  प्रभावित न हों.
14.यदि वाहमनृतदेव आस मोघं वा देवाँ अप्यूहे अग्ने ।
किमस्मभ्यं जातवेदो हृणीषे द्रोघवाचस्ते निर्ऋथं सचन्ताम् ।। 7.104.14,AV8.4.14

जो असत्याचरण का प्रचार करते हैं, जो वैदिक परम्पराओं के विरुद्ध प्रचार ,समाज में  विद्रोह करते  हैं , उन्हे समाज राष्ट्र के शत्रु के समान दण्डित किया जाना चाहिए. वे मृत्यु दण्ड के योग्य हैं

Those who propagate the untruth, or revolt against the traditional/ Vedic wisdom they should be treated as enemies of the society/ nation. They deserve death sentence.

 

15.अद्या मुरीय यदि यातुधानो अस्मि यदि वायुस्ततप पूरुषस्य ।
अधा स वीरैर्दशभिर्वि यूया यो मा मोघं यातुधानेत्याह ।। RV7.104.15, AV8.4.15

यदि मैंने स्वार्थवश धूर्ताचरण से समाज का अहित और  पर्यावरण को क्षति पहुंचाने का दोषी हूं तो मै मृत्युदण्ड पाऊं.

If I have caused harm by sorcery/cheating in my self interest to life / health/property/ environments, I deserve to be dead.

 

16.यो मायातुं यातुधानेत्याह यो वा रक्षा: शुचिरस्मीत्याह ।
प्रजापीड़क और जोराजा को भी ना

There may those who are cheats and sorcerers themselves, but accuse me of being one.  They deserve to be exposed as beings of very low character and should be given proper punishment.

 

17.प्र या जिगाति खर्गलेव नक्तमप द्रुहा तन्वं1 गूहमाना ।
वव्राँ अनन्ताँ अवसा पदीष्ट ग्रावाणो घ्नन्तु रक्षस उपब्दै: ।। RV7.104.17, AV 8.4.17

जो राक्षस स्वभाव वाला अपने को पवित्राचरण वाला बता कर असहाय सज्जन प्रजाजनों की हिंसा करता है वह निकृष्ट  कर्म करता है, और मृत्यु दण्ड के योग्य है.

 

18.वि तिष्ठध्वं मरुतो विक्ष्विच्छत गृभायत रक्षस: सं पिनष्टन ।
वयो ये भूत्वी पतयन्ति नक्तभिर्ये वा रिपो दधिरे देवे अध्वरे ।। RV7.104.18, AV 8.4.18

It is the function of secret services to look for those culprits who conceal their wrong actions by flying like birds in darkness of night, and in their daily activities resort to violent activities.
19.प्र वर्तय दिवो अश्मानमिन्द्र सोमशितं मघवन् त्सं शिशाधि ।
प्राक्तादपाक्तादधरादुदक्तादभि जहि रक्षस: पर्वतेन ।। RV7.104.19, AV 8.4.19

.(Can we see a suggestion of a Drone like attacks here?

By intelligent innovative methods and adequate financial support, smart sharp  weapons like thunder bolts from sky and all sides may rain on them to destroy them

20.एत उ त्ये पतयन्ति श्वयातव इन्द्रं दिप्सन्ति दिप्सवोऽदाभ्यम् ।
शिशीते शक्र: पिशुनेभ्यो वधं नूना सृजदशनिं यातुमद्भ्य: ।।RV 7.104.20, AV8.4 .20

These inhuman persons behave like hungry dogs and want to take on the might of invincible Nationalistic forces. They indeed have to be dealt with like mad dogs.

 

21.इन्द्रो यातूनामभवत् पराशरो हविर्मथीनामभ्याविवासताम् ।
अभीदु शक्र: परशुर्यथा वनं पात्रेव भिन्दन् त्सत एति रक्षस: ।। RV7.104.21, AV 8.4.21

ऐसी राक्षस वृत्ति वाले प्रजा पीड़क, आक्रामक, यज्ञ विध्वंसक तत्वों को आमूलनष्ट करना चाहिए .

 

 

 

 

22.उलूकयातुं शुशुलूकयातुं जहि श्वयातुमुत कोकयातुम् ।
सुपर्णयातुमुत गृध्रयातुं दृषदेव प्र मृण रक्ष इन्द्र ।। RV7.104.22, AV 8.4.22

समाज से उल्लू की तरह रात्रि के अंधकार में छिप कर अथवा  कर्कश स्वर से चीख कर भयभीत कर के हिंसा करने की , कुत्तों की तरह आपस में लड़ने झगड़ने, भेड़ियों की तरह दूसरों को काटने क्रूर व्यवहार करने की , चकवे –हन्स की तरह कामुक और समलैंगिक व्यवहार करने की  ,गरुड़ की भंति अभिमानी जनों और गिद्ध की भांति लोभ राक्षसी वृत्तियों का उन्मूलन करो.

Destroy the evil spirit of indulging in criminal behaviors like owls by scaring innocent with their shrill noises in darkness and attack, fight and shout at each other like stray dogs, indulge in violence like wolves, exhibit strong sexual behavior like birds particularly homosexual traits of geese, exhibit greed like vultures and egoist proud behavior like golden eagle to eliminate from society.

 

23.मा नो रक्षो अभि नडयातुमावतामपोच्छतु मिथुना या किमीदिना ।
पृथिवी न: पार्थिवात् पात्वंहसोऽन्तरिक्षं दिव्यात् पात्वस्मान् ।। RV7.104.23, AV8.4.23

No terrorists and violence creators should ever be able to show their presence.

यातना पहुंचाने वाले, राक्षस आदि समा के शत्रु कोई  भी हमारे  निकट ना आ पावे.

 

 

24.इन्द्र जहि पुमांसं यातुधानमुत स्त्रियं मायया शाशदानाम् ।
विग्रीवासो मूरदेवा ऋदन्तु मा ते दृशन् त्सूर्यमुच्चरन्तम् ।। RV7.104.24, AV 8.4.24 प्रजा के शत्रुओं, कुटिल आचरण कर हिंसा करनेवालों को, चाहे वे पुरुष हों अथवा  स्त्री मृत्यु दण्ड दो. अभिचार कर्म करने वाले दुष्ट जन ग्रीवा (गर्दन से )  रहित हो कर नाश को प्राप्त हों. वे आकाश में चढ़ते सूर्य को न देख पावें .

Those who commit heinous crimes and then murder, they should be hanged from neck to die. The justice should be meted out so expeditiously that they do not see another sun rise.

 

25.प्रति चक्ष्व वि चक्ष्वेन्द्रश्च सोम जागृतम् ।
रक्षोभ्यो वधमस्यतमशनिं यातुमद्भ्य: ।। RV7.104.25, AV 8.4.25

सुरक्षा अधिकार्यों को हिंसक समाज के शत्रुओं की गतिविधियों को सदैव ध्यानदे कर विवेचना करनी चाहिए और उन को नष्ट करने के लिए प्रभावशाली उपाय करने चाहिएं.

Intelligence and security agencies should be ever vigilant, and keep a close watch over all terrorist violence enacting elements, analyse their modus operendii and carry out  effective operations to destroy them.

Writer – Subhodh Kumar 

 

 

मांसाहारी साईं

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आज  अवतारवादी  विचारधारा में विश्वास रखने वाले हिन्दू भाइयों  के मध्य एक नए भगवान् प्रसिद्धि की चरम सीमा को छु रहेहैं। इनके ध्यान से, इनमें श्रध्दा रखने पर तत्कालिक लाभ प्राप्त होने की हसरत इनके भक्त जनता तक पहुंचा रहे हैं . बड़े बड़े उद्योग पति, राजनैतिज्ञ, नाटक मंच की हस्तियों को इनके दरबार में सिर झुकाते हुए देखा जा सकता है। आने वाली चढावे कातो हिसाब ही क्या?  तात्कालिक  लाभ होने की हसरत और लुभावने ख्वाब लोगों की भीड़ को इन की तरफ खींच रही है। आलम येहै की पौराणिक हिन्दुओं के  मंदिरों में रखी मूर्तियों की जगह इस नए भगवान् ने ले ली है। इस नवीन उत्त्पन्न  हुए भगवान् के बारे में पूर्ण जानकारी भी उपलब्ध नहीं है की ये   कौन थे और कहाँ से अवतरित हो गए? शिरडी में पहुँचाने से पूर्व ये कहाँ थे शिरडी कहाँ से पहुंचे ये प्रश्न आज भी उलझे हुए हैं। हाव भाव, वेशभूषा, आचरण , नाम आदि  से मुस्लिम प्रतीत होने पर पर भी इनके  भक्त इस तथ्य को मानने से परहेज करते हैं। इसका एक कारण तो ये ही प्रतीत होता है की यदी ये कारण मान लिया जाये तो हिन्दुओं  ,की भावना आहात हो जायेगी और फिर इनके यहाँ आएगा कौन ? क्यूँकी इनको मानने वालों वाले हिन्दू ही हें बड़ी ही कष्टदायक बात है की इनकी तुलना आज मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम और योगी राज श्री कृष्ण से की जा रही है। मर्यादापुरुषोत्तम श्री राम और योगेश्वर श्री कृष्ण करुणा और ज्ञान  के अथाह भण्डार थे। अपना पूरा जीवन इन्होने जीव मात्र के कल्याण के लिएसमर्पित कर दिया।कहाँ मर्यादा पुरषोत्तम श्री राम और योगेश्वर श्री कृष्ण और कहाँ ये चिलम पीने और मांस खाने वाला मुसलमान। और ज्ञान के नाम पर मात्र शुन्य | Continue reading मांसाहारी साईं

साईं – वैदिक धर्म के लिए अभिशाप

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आज हमारे  देश में तथाकथित भगवानो का एक  दौर चल निकला है. इन्हीं भगवानों में से एक हैं शिर्डी के साईं बाबा. आज भारतवर्ष के हर नगर में इनके अनेकों मंदिर हैं . अनेकों  संस्थाएं  इनके नाम से चल रही हें  एवं देश विदेश में इनको मानने वालों की तथा इनके लिए दान देने वालों की संख्या में निरंतर वृध्धि हो रही है. महाराष्ट्र के अहमदनगर में स्थित शिर्डी साईं बाबा शीरीं के अनुसार वर्ष २०११ में केवल इस  ट्रस्ट को ही ३६ किलो ग्राम सोना, ४४० किलोग्राम चांदी एवं  ४०१ Cr रूपया दान में मिला. समस्त साईं मंदिरों में दिए गए दान का तो अनुमान भी लगाना भी संभव  नहीं है.
आज साईं  को इश्वर का अवतार माना  जा रहा है . हमारे महपुरुषों श्री राम कृष्ण का ही रूप इन्हिने बतलाया जा  रहा है और उनके इस्थान पर इनकी पूजा की जा रही है. मन में प्रशन उठता है की आखिर   ये बाबा हैं कौन, कहाँ से ये आये थे और किस तरह ये लोगों का भला करते हैं. साईं एक पारसी शब्द है जिसका अर्थ है मुस्लिम फकीर. साईं एक टूटी हुयी मस्जिद में रहा करते थे और सर पर कफनी बंधा करते थे. सदा ” अल्लाह मालिक” एवं ” सबका मालिक एक” पुकारा करते थे ये दोनों ही शब्द मुस्लिम धर्म से संभंधित हैं.साईं  का जीवन चरित्र उनके एक भक्त हेमापंदित ने लिखा है. वो लिखते हैं की बाबा एक दिन गेहूं पीस रहे थे. ये बात सुनकर गाँव के लोग एकत्रित हो गए और चार औरतों ने उनके हाथ से चक्की ले ली और खुद गेहूं पिसना प्रारंभ कर दिया. पहले तो बाबा क्रोधित हुए फिर मुस्कुराने लगे. जब गेंहूँ पीस गए त्तो उन स्त्रियों ने सोचा की गेहूं का बाबा क्या  करेंगे और उन्होंने उस पिसे हुए गेंहू को आपस में बाँट लिया. ये देखकर बाबा अत्यंत क्रोधित हो उठे और अप्सब्द कहने लगे -” स्त्रियों क्या तुम पागल हो गयी हो? तुम किसके बाप का मॉल हड़पकर ले जा रही हो? ” फिर उन्होंने कहा की आटे को ले जा कर गाँव की सीमा पर दाल दो. उन दिनों गाँव मिएँ हैजे का प्रकोप था और इस आटे को गाँव की सीमा पर डालते ही गाँव में हैजा ख़तम हो गया.  (अध्याय १ साईं सत्चरित्र )
१. मान्यवर सोचने की बात है की ये कैसे भगवन हैं जो स्त्रियों को गालियाँ दिया करते हैं हमारी संस्कृति में  तो स्त्रियों को सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है और कहागया है की यात्रा नार्यस्तु पुजनते रमन्ते तत्र देवता . आटा  गाँव के चरों और डालने से कैसे हैजा दूर हो सकता है?  फिर इन भगवान्  ने केवल शिर्डी में ही फैली हुयी बीमारइ के बारे में ही क्यूँ सोचा ? क्या ये केवल शिर्डी के ही भगवन थे?
२. साईं सत्चरित्र के लेखक ने इन्हें क्रिशन का अवतार बताया गया है और कहा गया है की पापियों  का नाश करने के लिए उत्पन्न हुए थे परन्तु इन्हीं के समय में प्रथम विश्व युध्ध हुआ था और केवल यूरोप के ही ८० लाख सैनिक इस युध्द में मरे गए थे और जर्मनी के ७.५ लाख लोग भूख की वजह से मर गए थे. तब ये भगवन कहाँ थे. (अध्याय 4 साईं सत्चरित्र )
३. १९१८ में साईं   बाबा की मृत्यु हो गयी. अत्यंत आश्चर्य  की   बात है की जो इश्वर अजन्मा है अविनाशी है वो भी मर गया.  भारतवर्ष में जिस समय अंग्रेज कहर धा  रहे थे. निर्दोषों को मारा जा रहा था अनेकों प्रकार की यातनाएं दी जा रहीं थी अनगिनत बुराइयाँ समाज में व्याप्त थी उस समय तथाकथित भगवन बिना कुछ किये ही अपने लोक को वापस चले गए. हो सकता है की बाबा की नजरों में   भारत के स्वतंत्रता सेनानी अपराधी  थे और ब्रिटिश समाज सुधारक !
४. साईं  बाबा चिलम भी पीते थे. एक बार बाबा ने अपने चिमटे को जमीं में घुसाया और उसमें  से अंगारा बहार निकल आया और फिर जमीं में जोरो से प्रहार किया तो पानी निकल आया और बाबा ने अंगारे से चिलम  जलाई और पानी से कपडा गिला किया और चिलम पर लपेट लिया. (अध्याय 5 साईं सत्चरित्र ) बाबा नशा करके क्या सन्देश देना चाहते थे और जमीं में चिमटे से अंगारे निकलने का क्या प्रयोजन था क्या वो जादूगरी दिखाना कहते थे?  इस प्रकार के किसी कार्य  से मानव जीवन का उद्धार तो नहीं हो सकता हाँ ये पतन के साधन अवश्य हें .
५ शिर्डी में एक पहलवान था उससे बाबा का मतभेद हो गया और दोनों में कुश्ती हुयी और बाबा हार गए(अध्याय 5 साईं सत्चरित्र ) . वो भगवान् का रूप होते हुए भी अपनी ही कृति मनुष्य के हाथों पराजित हो गए?
 ६. बाबा को प्रकाश से बड़ा अनुराग था और वो तेल के दीपक जलाते थे और इस्सके लिए तेल की भिक्षा लेने के लिए जाते थे एक बार लोगों ने देने से मना  कर दिया तो बाबा ने पानी से ही दीपक जला दिए.(अध्याय 5 साईं सत्चरित्र ) आज तेल के लिए युध्ध हो रहे हैं. तेल एक ऐसा पदार्थ है जो आने वाले समय में समाप्त हो जायेगा इस्सके भंडार सीमित हें  और आवश्यकता ज्यादा. यदि बाबा के पास ऐसी शक्ति थी जो पानी को तेल में बदल देती थी तो उन्होंने इसको किसी को बताया क्यूँ नहीं?
७. गाँव में केवल दो कुएं थे जिनमें से एक प्राय सुख जाया करता था और दुसरे का पानी खरा था. बाबा ने फूल डाल  कर  खारे  जल को मीठा बना दिया. लेकिन कुएं का जल कितने लोगों के लिए पर्याप्त हो सकता था इसलिए जल बहार से मंगवाया गया.(अध्याय 6 साईं सत्चरित्र) वर्ल्ड हेअथ ओर्गानैजासन    के अनुसार विश्व की ४० प्रतिशत से अधिक लोगों को शुध्ध पानी पिने को नहीं मिल पाता. यदि भगवन पीने   के पानी की समस्या कोई समाप्त करना चाहते थे तो पुरे संसार की समस्या को समाप्त करते लेकिन वो तो शिर्डी के लोगों की समस्या समाप्त नहीं कर सके उन्हें भी पानी बहार से मांगना पड़ा.  और फिर खरे पानी को फूल डालकर कैसे मीठा बनाया जा सकता है?
८. फकीरों के साथ वो मांस और मच्छली का सेवन करते थे. कुत्ते भी उनके भोजन पत्र में मुंह डालकर स्वतंत्रता पूर्वक खाते थे.(अध्याय 7 साईं सत्चरित्र ) अपने स्वार्थ वश किसी प्राणी को मारकर  खाना किसी इश्वर का तो काम नहीं हो सकता और कुत्तों के साथ खाना खाना किसी सभ्य मनुष्य की पहचान भी नहीं है.
अमुक चमत्कारों को बताकर जिस तरह उन्हें  भगवान्  की पदवी दी गयी है इस तरह के चमत्कार  तो सड़कों पर जादूगर दिखाते हें . काश इन तथाकथित भगवान् ने इस तरह की जादूगरी दिखने की अपेक्षा कुछ सामाजिक उत्तथान और विश्व की उन्नति एवं  समाज में पनप रहीं समस्याओं जैसे बाल  विवाह सती प्रथा भुखमरी आतंकवाद भास्ताचार अआदी के लिए कुछ कार्य किया होता!
यह संसार अंधविश्वास और तुच्छ ख्यादी एवं सफलता के पीछे  भागने वालों से भरा पड़ा हुआ है. दयानंद सरस्वती, महाराणा प्रताप शिवाजी सुभाष चन्द्र बोस सरदार भगत सिंह राम प्रसाद बिस्मिल सरीखे लोग जिन्होंने इस देश के लिए अपने प्राणों को न्योच्चावर कर दीये  लोग उन्हिएँ भूलते जा रहे हैं और साईं बाबा जिसने  भारतीय स्वाधीनता संग्राम में न कोई योगदान दिया न ही सामाजिक सुधार  में कोई भूमिका रही उनको समाज के कुछ लोगों ने भगवान्  का दर्जा दे दिया है. तथा उन्हें योगिराज श्री कृष्ण और मायादापुरुशोत्तम श्री राम के अवतार के रूप में दिखाकर  न केवल इन  महापुरुषों का अपमान किया जा रहा अपितु नयी पीडी और समाज को अवनति के मार्ग की और ले जाने का एक प्रयास किया जा रहा है.
आवश्यकता इस बात की है की है की समाज के पतन को रोका जाये और जन जाग्रति लाकर वैदिक महापुरुषों को अपमानित करने की जो कोशिशेन की जा रही हिएँ उनपर अंकुश लगाया जाये.

मुहूर्तवादियों से कुछ प्रश्न: Arya Great

मुहूर्तवादियों से कुछ प्रश्न

१. मुहूर्त  क्या है और उसका क्या अर्थ है ?

२. मुहूर्त का प्रारम्भ  कब से हुआ और क्यों ? उसका प्राचीनतम ग्रन्थ कौन सा है ?

३. मुहूर्त शुभाशुभ किस रूप में है , उपपत्ति वा  प्रमाणपूर्वक बताइये ?

४. क्या मुहूर्तों के शुभाशुभ होने में चार वेद, ६ शाश्त्र, और दस उपनिषदों में कहीं कोई प्रमाण है ? हो तो बताइये।

५. ऐसा कोई मुहूर्त का ग्रन्थ है जिसकी आद्योपान्त प्रत्येक बात की सिद्धि करके बतला  सकें अर्थात जिसकी सोपपतिक व्याख्या हो ?

६. विना किसी कार्य के शुभमुहूर्त लाभ और अशुभ मुहूर्त हानि  पहुंचा सकता है अथवा नहीं ? किस प्रकार ?

७ यदि मुहूर्त अच्छे होते हैं तो स्वयं फलितज्ञा अच्छे मुहूर्त में मालामाल क्यूँ नहीं होते ? बेचारे भोले लोगों को मुहूर्त  के नाम से बहकाकर क्यूँ लुटते और अच्छे मुहूर्त में कर्म करके सफल क्यूँ नहीं होते ? अशुभ मुहूर्त में करके घाटा क्यूँ उठाते ?

८ फलित को मानने वाले मरणासन्न स्तिथि में अच्छे से अच्छे मुहूर्त में स्वयं प्राणांत करके उच्च व परमगति को क्यों नहीं प्राप्त होते ?

९. मुहूर्त शुभाशुभ हैं अथवा शुभाशुभ के  सूचक हैं ? यदी शुभशभ हें तो वे व्यापक होने से शुभ में सब का शुभ और अशुभ में अशुभ  होना चाहिए ?

यदि सूचक मात्र हैं तो मुहूर्त हो अथवा न हो तो भी शुभाशुभ होकर रहेगा।

१०. शुभ मुहूर्त में एक के घर में विवाह हो रहा है तो उसके पड़ोसी के घर में उसी मुहूर्त में चोरी क्यूँ होती है ?

११. मुहूर्त बड़ा है अथवा सत्कर्म बड़ा ? सप्रमाण बतलाइये कि वा आपेक्षिप  हैं अथवा इन दोनों का समवाय सम्बन्ध है.

१२ शुभकर्म अपने में निरपेक्ष अथवा सापेक्ष ?

१३ यदि कोई सदा शुभ कर्म ही करता जाय और मुहूर्त को देखे ही नहीं तो उसको सुख मिलेगा वा दुःख ? यदि सुख मिलता है तो मुहूर्त की कोई आवश्यकता नहीं है. यदि दुःख मिलता है तो मुहूर्त जब मनुष्य का बनाया नहीं तो दुःख क्यूँ मिला।

१४ कर्म सिद्धांत सत्य है अथवा मुहूर्तवाद सत्य है ? क्योंकि एक विषय में परस्पर विरुद्ध दोनों सत्य नहीं हो सकती

१५ अशुभमुहूर्त में किया हुआ शुभ कार्य सफल होता है वा नहीं ? और क्यों

१६ शुभमुहूर्त में किया हुआ अशुभकार्य सफल होता है व नहीं ? और क्यों ?

१७ भोजन करने के लिए भूख को देखना चाहिए व मुहूर्त को ?

१८ सर्प ने काट खाया हो तब औषधि के लिए मुहूर्त देखे अथवा मुहूर्त को ठुकराकर औषधि का प्रबंध करें ? क्यों ? दुर्मुहुर्त में ली हुयी औषधि क्या हानिकारक नहीं होगी ?यदी मारक नहीं होगी , हानि नहीं पहुंचेगी तो दुर्मुहुर्त में किये अन्य कार्यों में क्या हानि होगी

१९ यात्रा पर जाना है. जब यान है तब शुभ मुहूर्त नहीं, जब शुभ मुहूर्त है तब यान नहीं है. यान को छोड़ें  वा मुहूर्त को

२० क्या आत्मविश्वासी को मुहूर्त देखना चाहिए ? मुहूर्त को देखने वाला क्या आत्मविश्वासी हो सकता है ?सप्रमाण बताइये

२१. परमात्मा ने अशुभ मुहूर्त बनाये ही क्यों? परमात्मा ने ही यह बतलाया कि कुआँ मुहूर्त शुभ और कौन अशुभ अथवा यह आप का ही अनुसंधान है ? सप्रमाण बताइये।

२२ कर्म सिद्धांत का तथा मुहूर्त का सामंजस्य क्या है ? जब दोनों में विरोध हो तो किसको छोड़ और किसको अपनावें ? मुहूर्त को देखें वास कर्म को और कसी प्रकार ?

२३ किसी दार्शनिक वा विचारक ने इसको माना हो अथवा प्राचीनकाल में कहीं यह  व्यवहार में रहा हो तो घटना पूर्वक बतलाइये?

२४ मुहूर्तों की चिंता में रहने वाला क्या कभी क्या तत्ववेत्ता और पुरुषार्थी बनेगा

२५ मुहूर्तों के पीछे चलने से जो हानी होती है उसका कौन उत्तरदायी है ?

तिथी को शुभ अशुभ मानने वालों से कुछ प्रश्न : Arya Great

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तिथी को शुभ अशुभ मानने वालों से कुछ प्रश्न :

१. तिथी को शुभ अशुभ मानने का कारण क्या है ?
२. तिथि के शुभ अशुभ होने और सफलता असफलता के कारण होने में वेदादि सत्य शाश्त्रों के प्रमाण दीजिये ?
३. तिथी का तथा कर्म सिद्धांत का कैसा सम्बन्ध है ? सविस्तार बताइये।

४ शुभ तिथियों में किये हुए कार्य असफल क्यूँ हो जाते हैं ?
५. यदि किसी ने देश पर आक्रमण किया हो तब शुभ तिथि का क्या अर्थ होगा ? यदी रहेगा अथवा कोई दूसरा बनेगा ?
६. औषधि सेवन में शुभाशुभ तिथी की प्रतीक्षा करें तो तिथि से पूर्व रोगी महाप्रयाण ही करेगा।.
७. शुभकर्मों में तिथी की क्या आवश्यकता है ?
८ अशुभ कार्य शुभ तिथि में करने चाहिए अथवा अशुभ तिथी में ?
९ शुभतिथि में एक के घर विवाह आदि सुखकारी कर्म होते हैं तो दूसरे के घर में चोरी मृत्यु आदि दुःख दायक कर्म क्यूँ होते हैं ?
१०. परमात्मा शुभ तिथि में ही मनुष्यों के जन्म मरण क्यों नहीं करता।
११. वृक्षो का उगना, पुष्पित फलित होना वर्षा का आना आदि शुभतिथियों में ही क्यों नहीं होता ? अशुभ तिथियों बनाई ही क्यों ?
१२परमात्मा कौन कौन से कार्य शुभ तिथी में और कौन कौन से अशुभ तिथि में करता है ?
१३.यदि मनुष्य पुरुषार्थी आस्तिक होगा तो तिथी को क्यों देखेगा ?
१४. जिसको अपनी बुद्धी और पुरुषार्थ पर विश्वास है तो वह तिथी को क्यों देखेगा ?
१५ यदी तिथि को देखता तो वह परिश्रम क्या करेगा और परिश्रम करेगा तो तिथी देखने की क्या आवश्यकता है ?
१६ ऋषी दार्शनिकों ने तिथि आदि को कहीं महत्व दिया हो ऐसा देखने में नहीं आता। यदी है तो दिखाएँ ?
१७ तिथि के शुभ अशुभ तत्व के अन्धविश्वास होने पर वह जो कुछ करता है संशयालु होकर करता है. कोई शुभ कार्य नहीं कर पाता छोड़ने पड़ते हैं। जब कहीं हानी होती है तो झट से तिथी के मड़ देता है। मनुष्य के मानसिक रोग की चिकित्सा ही क्या है

Arya Shreshtha

कुण्डली को सत्य मानने वालों से कुछ प्रश्न : Arya Great

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कुण्डली को सत्य मानने वालों से कुछ प्रश्न

१. कुण्डली से जीवन के सम्बन्ध में ज्ञान कैसे होगा यह युक्ति से सिद्ध कीजिये ?
२. कुंडली का विधान अथवा संकेत किसी वेदशास्त्र में हो तो प्रमाण दीजिये ?
३. कुंडली का कर्म सिद्धांत से क्या सम्बन्ध है सप्रमाण बताइये ?
४ जन्म कुंडली से जीवन का ज्ञान होता है अथवा चन्द्र कुंडली से और क्यों ? यदि दोनों में परस्पर विरोध हो तो किसको मानें और किसको नहीं ?
५. कुंडली के अनुसार मनुष्य की १२० वर्ष ही होती है। प्रत्यक्ष में देखा जाता है कि एक सौ बीस वर्ष से अधिक आयु वाले होते हैं। क्या प्रत्यक्ष भी मित्थ्या है ?
६. पति पत्नी की संतान रेखाएं एक समान क्यों नहीं होती ? क्योकि दोनों की वही संतान है ? क्या इससे जन्मकुण्डली मित्थ्या सिद्ध नहीं होती ?
७. अशुद्ध कुण्डली से वास्तविक जीवन का ज्ञान क्यों हुआ ?
८. अशुद्ध कुण्डली से वास्तविक जीवन का ज्ञान क्यों हुआ ?
९. मनुष्य कर्म करने में स्वतंत्र है अथवा परतंत्र ? यदी स्वतंत्र है तो कुंडली को देखने की क्या आवश्यकता है ? यदि परतंत्र है तो भी देखने की आवश्यकता ही नहीं