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Dealing with corrupt persons

corrupt people

Dealing with corrupt persons  AV3.9

1.   कर्शफस्य विशफस्य द्यौः पिता पृथिवी माता  ।

यथाभिचक्र देवास्तथाप कृणुता पुनः  । ।AV3.9.1

हाथ पेर से काम करके  जीने वाले और बिना हाथ पेर के अपना जीवन  चलाने  वालों दोनो को प्रकृति ने समान रूप से जन्म दिया है. यह  प्रकृति का चक्र है जो इसी प्रकार से चलता रहता है.

2.   अश्रेष्माणो अधारयन्तथा तन्मनुना कृतं  ।

कृणोमि वध्रि विष्कन्धं मुष्काबर्हो गवां इव  । । AV3.9.2

(अश्रेष्माण: ) त्रिदोश रहित अनासक्त दयालु  मनन करनेवाले विचारशील जन ही (अधारयन) पालन पोषन करते हैं.   (विष्किन्धम्‌) कार्य प्रगति के मार्ग में प्रतिबन्धक सभी विघ्नों को (अधार्मिक भ्रष्टाचारी) जनों से मुक्त करने के लिए  उद्दन्ड पशुओं को जैसे मुष्टिका और बाहुबल से बधिया निर्वीर्य किया जाता है वैसे ही इन तत्वों को समाज में निर्वीर्य करो.

3.   पिशङ्गे सूत्रे खृगलं तदा बध्नन्ति वेधसः  ।

श्रवस्युं शुष्मं काबवं वध्रिं कृण्वन्तु बन्धुरः  । । AV3.9.3

(श्रवस्युम्‌) – (श्रवस्युम्‌) लोकैषणा यश को अपने साथ जोड़ने की कामना करने  वालों को . (शुष्मम्‌) वित्तैषणा – धन की कामना से शोषण करने वालों,(काबवम्‌) जीवन को अनुराग युक्त पुत्रैषणा पित्र मोह से ग्रसित क्रूर लोगों को (वेधस: ) विधि विधान जानने वाले ज्ञानी जन भिन्न भिन्न – नीतियों के कवच से (बध्रिम्‌ कृण्वन्तु) बधिया करो – उन  के प्रभाव को निष्फल करो .

4.   येना श्रवस्यवश्चरथ देवा इवासुरमायया  ।

शुनां कपिरिव दूषणो बन्धुरा काबवस्य च  । ।AV3.9.4

असुरों के समान मायावी छल कपट से अनुचित साधनों से अपनी कीर्ति और सम्पत्ति को चाहने वाले देशद्रोही क्रूर जन जो देवताओं के समान विचर रहे हैं उन क्रूर प्राणियों के बीच उत्पात मचा कर उन्हें आपस में ऐसे लड़ा  दो जैसे कुत्तों के बीच में उत्पाती बन्दर के आने से होता है.

5.    दुष्ट्यै हि त्वा भत्स्यामि दूषयिष्यामि काबवं  ।

उदाशवो रथा इव शपथेभिः सरिष्यथ  । । AV3.9.5

दुष्ट क्रूर  विघ्नकारी जनों को बांधकर ही तुम प्रगति के कार्य की योजना की शपथ ले कर तीव्र गति वाले अश्वो से युक्त रथों  से अपने मार्ग पर अग्रसर हो सकोगे.

6.   एकशतं विष्कन्धानि विष्ठिता पृथिवीं अनु  ।

तेषां त्वां अग्रे उज्जहरुर्मणिं विष्कन्धदूषणं  । । AV3.9.6

एक सौ एक (विष्किन्धानि ) कार्य प्रगति के मार्ग में प्रतिबन्धक रोक लगाने वाले (अधार्मिक भ्रष्टाचारी) जन जो पृथ्वी पर स्थापित है उन  से मुक्त करने के लिए (तेषाम्‌‌ अग्रे )  उन के बीच मुख्याधिकारी (ऊज्जहरुर्मणिं) शिरोमणि अधिष्ठाता नियुक्त क्रो जो (विष्किंधदूषणम्‌) विघ्नकारी जनों के प्रदूषन को दूर करे |

गृहस्थ के दायित्व

vedic householder

Duties of a Householder  

गृहस्थ के दायित्व – दान और पञ्चमहायज्ञ परिवार विषय  

अथर्व 6.122,

पञ्च महायज्ञ विषय

1.   एतं भागं परि ददामि विद्वान्विश्वकर्मन्प्रथमजा ऋतस्य  ।

अस्माभिर्दत्तं जरसः परस्तादछिन्नं तन्तुं अनु सं तरेम  । ।AV6.122.1

Wise man perceives that the bounties provided by Nature from the very beginning are only not be considered as merely rewards earned for his labor but considers himself as a trustee for all the blessings from Almighty to be dedicated for welfare of family and society. Dedication of His bounties ensures that life flows smoothly as normal even when the individuals are past their prime active life to participate in livelihood chores. (This system enables the human society to ensure sustainable happiness. People must dedicate their bounties in welfare and charity of family and society- by performing various Yajnas to protect environments, biodiversity and bring up good well trained progeny.)

संसार का विश्वकर्मा के रूप में परमेश्वर सृष्टि के आरम्भ से ही मानव को अनेक उपलब्धियां प्रदान करता है. बुद्धिमान जन का इस दैवीय कृपा को समाज और परिवार के प्रति समर्पण भाव से देखता है और पञ्च महायज्ञों द्वारा अपना दायित्व निभाता है.    इसी शैलि से सुंस्कृत सुखी समाज का निर्माण होता है. जिस में समाज सुखी और सम्पन्न बनता है. वृद्धावस्था को प्राप्त हुए जन भी आत्म सम्मान से जीवन बिता पाते हैं,पर्यावरण शुद्ध और सुरक्षित होता है.  ( यजुर्वेद का उपदेश “ईशा वास्यमिदँ  सर्वं यत्किञ्च जगत्या जगत्‌” भी यही बताता है कि जो भी जगत में हमारी उपलब्धियां हैं वे सब परमेश्वर की ही हैं. हम केवल प्रतिशासकTrustee हैं,  इस सब का मालिक तो परमेश्वर ही है. और हमारा दायित्व परमेश्वर की  इस देन को संसार,समाज,परिवार  के प्रति अपना दायित्व निभाकर सब की उन्नति को समर्पण करना ही है.)

भूत यज्ञ

2.   ततं तन्तुं अन्वेके तरन्ति येषां दत्तं पित्र्यं आयनेन  ।

अबन्ध्वेके ददतः प्रयछन्तो दातुं चेच्छिक्षान्त्स स्वर्ग एव  । ।AV6.122.2

Those who live by the ideals of their virtuous parents and utilize their bounties to dedicate themselves to the cause of providing for the society and environments as also take care and provide good education to their orphaned brothers,  make their own destiny to be part of a happy society and have a happy family life.

जो जन इस संसार में उन को मिली उपलब्धियों को एक यज्ञ का परिणाम मात्र समझते हैं वे (स्वयं इन यज्ञों को करते  हैं ) और सब ऋणों से मुक्त हो जाते हैं .

जो अनाथों के लिए सेवा करते हुए उन्हे समर्थ बनाने के अच्छे प्रयास करते हैं उन का जीवन स्वर्गमय हो जाता है.

अतिथियज्ञ , बलिवैश्वदेव यज्ञ व देवयज्ञ

3.   अन्वारभेथां अनुसंरभेथां एतं लोकं श्रद्दधानाः सचन्ते  ।

यद्वां पक्वं परिविष्टं अग्नौ तस्य गुप्तये दम्पती सं श्रयेथां  । ।AV6.122.3

This is an enjoined duty of the house holders to share with dedication and respectfully their food with guests, in to fire for latently sharing with environments and to the innumerable diverse living creatures.

दम्पतियों का  (गृहस्थाश्रम में) यह कर्तव्य है कि भोजन बनाते हैं उस को श्रद्धा के साथ अग्नि को गुप्त रूप से पर्यावरण की सुरक्षा, अतिथि सेवा, और और पर्यावरण मे जैव विविधता के संरक्षण मे लगाएं

यज्ञमय जीवन

4.   यज्ञं यन्तं मनसा बृहन्तं अन्वारोहामि तपसा सयोनिः  ।

उपहूता अग्ने जरसः परस्तात्तृतीये नाके सधमादं मदेम  । ।AV6.122.4

By setting an example of following a life devoted earn an honest living and fulfilling one’s duties in performing his duties towards environments, society and family development of an appropriate temperament   takes place. That ensures a peaceful heaven like happy atmosphere in family and off springs that ensures a comfortable life for the old elderly retired persons.

तप ( सदैव कर्मठ बने रहने के स्वभाव से ) और यज्ञ पञ्च महायज्ञ के पालन  करने से उत्पन्न  मानसिकता के विकास द्वारा  जीवन का उच्च श्रेणी का बन जाता  है. ऐसी व्यवस्था में, दु:ख रहित पुत्र पौत्र परिवार और समाज के स्वर्ग तुल्य जिव्वन में मानव की तृतीय जीवन अवस्था (वानप्रस्थ और उपरान्त) हर्ष  से स्वीकृत होती है.

परिवार के प्रति दायित्व (उत्तम सन्तति व्यवस्था)

5.   शुद्धाः पूता योषितो यज्ञिया इमा ब्रह्मणां हस्तेषु प्रपृथक्सादयामि  ।

यत्काम इदं अभिषिञ्चामि वोऽहं इन्द्रो मरुत्वान्त्स ददातु तन्मे  । ।AV6.122.5

Bring up your children to develop virtuous, pure, honest temperaments. Find suitable virtuous husbands for your daughters to marry, in order that they in their turn bring up good virtuous progeny for sustaining a good society.

पुत्रियों का  शुद्ध पवित्र पालन कर के  उत्तम ब्राह्मण गुण युक्त वर खोज कर उन से पाणिग्रहण संस्कार करावें. (जिस से समाज का) इंद्र गुण वाली और ( मरुत्वान्‌ -स्वस्थ जीवन शैलि वाली विद्वान) संतान की वृद्धि  हो.(इस मंत्र में वेद भारतीय परम्परा में संतान को ब्रह्मचर्य  पालन और उच्च शिक्षा के साथ स्वच्छ पौष्टिक आहार के  संस्कार दे कर ,अपने समय पर विवाहोपरांत  स्वयं गृहस्थ आश्रम में प के स्वस्थ विद्वान संतति से समाज  कि व्यवस्था का निभाने का दायित्व  बताया है.)

स्वतंत्रता-परतंत्रता

 

slavery

 

स्वंत्रता-परतंत्रता 

लेखक- स्वामी विष्वअंग् जी  , ऋषि उद्यान – अजयमेरू नगरी  

व्यक्तियों के अनेको सम्बन्ध होते है,जैसे माता-पिता के साथ, पति-पत्नी के साथ, सांस-बहु के साथ, श्वशुर-बहु के साथ, भाई-बहन के साथ, गुरु-शिष्य के साथ, पडोसी के साथ, व्यापारी-सेवक के साथ, समाज के साथ………….इस प्रकार अलग-अलग अन्रको सम्बन्ध है | इन संबंधो के साथ रहते हुए प्रत्येक व्यक्ति चाहते या न चाहते हुए अनेको कार्य करता है | ऐसा प्रतीत होता है की सारा जीवन पराधीनता से युक्त है | फिर भी यह कहा जाता है की मनुष्य स्वतंत्र है अर्थात करने, न करने या अन्यथा करने में स्वतंत्र है | क्या हम पराधीन है या स्वाधीन है ? अर्थात परतंत्र है या स्वतंत्र है ? यद्यपि  नासमझ व्यक्ति को लगता है की हम तो परतंत्र है, परन्तु ऐसा नहीं है, क्यों की पराधीन होता है तो स्वाधीन भी तो होता है | सर्व प्रथम यह समझना चाइये की स्वाधीनता-स्वतंत्रता किसे कहते है, और पराधीनता-परतंत्रता किसे कहते है ?

जैसा की स्वतंत्रता के विषय में कहा जाता है की करने, न करने या अन्यथा करने में मनुष्य स्वतंत्र है | ठीक इसके विपरीत करने, न करने या अन्यथा करने में परतंत्र है अर्थात मनुष्य अपनी इच्छा से कुछ भी नहीं कर सकता | परन्तु ऐसा बिलकुल नहीं है, क्यों की मनुष्य अपनी इच्छा से बहोत कुछ करता है | जब वह बहोत कुछ अपनी इच्छा से कर रहा होता है तब स्वतंत्र होकर ही कर रहा होता है | इससे यह पता लगता है की मनुष्य स्वतंत्र है और जब-जब वह अन्यों के आश्रित होकर करता है तब-तब वह परतंत्र होता है | परन्तु यह परतंत्र किसे व्यवस्था के लिए होता है | व्यवस्थाए अलग-अलग होती है | जिस प्रकार हमारे अलग-अलग सम्बन्ध है, तो हमारी व्यवस्थाए भी अलग-अलग होंगी | व्यवस्था को बनाये रखने के लिए मनुष्य को परतंत्र बनाना पड़ता है | इसका यह अभिप्राय नहीं है की मनुष्य परतंत्र हो गया | केवल उस व्यवस्था को व्यवस्थित बनाये रखने के लिए परतंत्र हुआ है, उससे मनुष्य स्वाभाव से परतंत्र नहीं हुआ | वह व्यवस्था के लिए परतंत्र होता हुआ भी स्वतन्त्र ही रहता है | क्यों की मनुष्य का स्वभाव ही स्वतंत्र रहना है | यहाँ यह समझना चाइये की मनुष्य अपने यथार्थ ज्ञान, विवेक से व्यवस्था को इसलिए स्वीकार करता है की जिससे, उसे सुख विशेष मिलता है | उस सुख-विशेष को समझ कर जानकर अपनी इच्छा से, अपनी स्वतंत्रता से, उस व्यवास्स्था के लिए परतंत्रता को स्वीकार करता है |

यदि मनुष्य यथार्थ ज्ञान-विवेक नहीं रखता अर्थात मूर्खता-अज्ञान रूपी अविद्या से ग्रस्त रहता है, तो उसे व्यवस्था से सुख-विशेष मिलेंगा, यह बोध ही नहीं रहता, इसलिए वह व्यवस्था चाहे माता-पिता, गुरु-आचार्य, पुलिस, समझ या राष्ट्र की व्यवस्था हो, उसको भंग करता है, और दुःख विशेष को प्राप्त करता है | ऐसे-ऐसे स्थानों में मनुष्य अपनी स्वतंत्रता का दुरुपयोग करता है | यहाँ स्वतंत्रता का उपयोग तो कर रहे है, परन्तु उस स्वतंत्रता से मनुष्य को दुःख-विशेष प्राप्त हो रहा है | ऐसी स्वतंत्रता से दुःख ही मिलेंगा | इसलिए मनुष्य को समझना चाइये की स्वंत्रता और परतंत्रता क्या है ? अर्थात स्वतंत्रता से सुख और परतंत्रता से दुःख मिलता है ? क्या यही स्वतंत्रता या परतंत्रता है ? यदि ऐसा माना जाए तो स्वतंत्रता से सुख और दुःख दोनों मिलते है और परतंत्रता से भी सुख और दुःख दोनों मिलते है | इसलिए मनुष्य को अपनी स्वतंत्रता को समझकर-जानकार उसका सदुपयोग करना चाइये |

मनुष्य स्वतंत्रता का दुरूपयोग तब कर सकता है जब उसके पास यथार्थ ज्ञान-विवेक होंगा | यथार्थ ज्ञान वेद आदि सत्य शास्त्रों के अध्यन करने से या उनको पढ़े हुए विद्वानों के माध्यम से या और किसी भी माध्यम से जानकारी प्राप्त करने से मनुष्य को हो जाता है | यथार्थ ज्ञान से मनुष्य अपने स्वतंत्रता का सदुपयोग करता है | कहा, कब, किस परिस्थिति में स्वतंत्र रहकर सुख लिया जायेंगा और कहा, कब, किस परिस्थिति में अन्यों के आधीन परतंत्र रहकर भी सुख लिया जायेंगा, यही मनुष्य की बुद्धिमता है | यदि मनुष्य के पास बुद्धि-ज्ञान नहीं है अर्थात मूर्खता-अविद्या है, तो स्वतंत्र होता हुआ भी अपनी स्वतंत्रता का दुरूपयोग करता हुआ सर्वत्र दुःख सागर में गोता लगाता रहेंगा | इसका यह भी अर्थ नहीं लेना चाइये की परतंत्र रहता हुआ सुख ही लेता रहेंगा हाँ ! यदि अविद्या से ग्रस्त रहकर परतंत्रता को स्वीकार करता है, तो दुःख सागर में गोता लगाता रहेंगा | परन्तु यथार्थ-ज्ञान-विद्या से युक्त रहेंगा, तो चाहे स्वतंत्र रहे चाहे परतंत्र रहे, दोनों की स्तिथियो में सदा सुखी ही रहेंगा | इसलिए विद्या-युक्त स्वतंत्रता और परतंत्रता दोनों ही लाभकारी है | परन्तु ध्यान रहे मनुष्य स्वभाव से स्वतंत्र है, परतंत्र नहीं |

मुसलमान बड़े मूर्तिपूजक

masjid

मुसलमान बड़े मूर्तिपूजक

-निश्चय हम तेरे मुख को आसमान में फिरता देखते हैं अवश्य हम तुझे उस कि़बले को फेरेंगे कि पसन्द करे उसको, बस अपना मुख मस्जि दुल्हराम की ओर फेर, जहाँ कहीं तुम हो अपना मुख उसकी ओर फेर लो।। मं0 1। सि0 2। सू02। आ0 1443

समी0 -क्या यह छोटी बुत्परस्ती है? नहीं, बड़ी।

पूर्वपक्षी-हम मुसलमान लोग बुत्परस्त नहीं हैं।किन्तु,बुत्शिकन अर्थात् मुर्तों को तोड़नेहारे है, क्योंकि हम कि़बले को खुदा नहीं समझते।

उत्तरपक्षी-जिनको तुम बुत्परस्त समझते हो,वे भी उन उनमुर्तों को ईश्वर नहीं समझते किन्तु उनके सामने परमेश्वर की भक्ति करते हैं। यदि बुतों के तोड़ने हारे हो तो उस मस्जिद कि़बले बड़े बुत को क्यों न तोड़ा?

पूर्वपक्षी-वाह जी! हमारे तो कि़बले की ओर मुख फेरने का कुरान में हुक्म है और इनको वेद में नहीं है फिर वे बुत्परस्त क्यों नहीं ? और हम क्यों ? क्योंकि हमको खुदा का हुक्म बजाना अवश्य है।

उत्तरपक्षी- जैसे तुम्हारे लिये क़ुरान में हुक्म है, वैसे इनके लिये पुराण में आज्ञा है। जैसे तुम क़ुरान को खुदा का कलाम समझते हो, वैसे पुराणी भी पुराणों को खुदा के अवतार व्यासजी का वचन समझते हैं। तुममें और इनमें बुत्परस्ती का कुछ भिन्न भाव नहीं है | प्रत्युत,तुम बड़े बुत्परस्त और ये छोटे हैं | क्योंकि, जब तक कोई मनुष्य अपने घर में से प्रविष्ट हुई बिल्ली को निकालने लगे तब तक उसके घर में ऊंट प्रविष्ट हो जाय,वैसे ही मुहम्मद साहेब ने छोटे बुत् को मुसलमानों के मत से निकाला,परन्तु बड़ा बुत् जो कि पहाड़ के सदृश मक्के की मस्जिद है, वह सब मुसलमानों के मत में प्रविष्ट करा दी, क्या यह छोटी बुत्परस्ती है ? हाँ, जो हम लोग वैदिक हैं, वैसे ही तुम लोग भी वैदिक हो जाओ तो बुत्परस्ती आदि बुराइयोंसे बच सको, अन्यथा नहीं | तुमको, जब तक अपनी बड़ी बुत्परस्ती को न निकाल दो, तब तक दूसरे छोटे बुत्परस्तों के खण्डन से लज्जित हो के निवृत रहना चाहिये और अपने को बुत्परस्ती से पृथक् करके पवित्र करना चाहिये |

-जब हमने लोगों के लिये काबे को पवित्र स्थान सुख देने वाला बनाया तुम नमाज़ के लिये इबराहीम के स्थान को पकड़ो।। मं0 1। सि0 1। सू0 2। आ0 1251

समी0 -क्या काबे के पहिले पवित्र स्थान खुदा ने कोई भी न बनाया था ? जो बनाया था तो काबे के बनाने की कुछ आवश्यकता न थी, जो नहीं बनाया था तो विचारे पूर्वोत्पन्नों को पवित्र स्थान के बिना ही रक्खा था ? पहिले ईश्वर को पवित्र स्थान बनाने का स्मरण न हुआ होगा |

-वो कौन मनुष्य है जो इबराहीम के दीन से फिर जावे परन्तु जिसने अपनी जान को मूर्ख बनाया और निश्चय हमने दुनियां में उसी को पसन्द किया और निश्चय आख़रत में वो ही नेक है।। मं0 1। सि0 1। सू0 2। आ0 1302

समी0 -यह कैसे सम्भव है कि इबराहीम के दीन को नहीं मानते वे सब मूर्ख हैं ? इबराहीम को ही खुदा ने पसन्द किया, इसका क्या कारण है ? यदि धर्मात्मा होने के कारण से किया तो धर्मात्मा और भी बहुत हो सकते हैं ? यदि बिना धर्मात्मा होने के ही पसन्द किया तो अन्याय हुआ। हां, यह तो ठीक है कि जो धर्मात्मा है,वही ईश्वर को प्रिय होता है, अधर्मी नहीं |

खुदा या शैतान

khuda ya shaitan

 खुदा या शैतान 

 – और काटें जड़ काफि़रों की।। मैं तुमको सहाय दूंगा साथ सहस्र फरिश्तों के पीछे2 आने वाले।। अवश्य मैं काफि़रों के दिलों में भय डालूंगा, बस मारो ऊपर  गर्दनों के मारो उनमें से प्रत्येक पोरी (संधि) पर।। मं0 2। सि0 9। सू0 8। आ0 7। 9। 12

समी0-वाह जी वाह ! कैसा खुदा और कैसे पैग़म्बर दयाहीन। जो मुसलमानीमत से भिन्न काफि़रों की जड़ कटवा वे। और खुदा आज्ञा देवे उनको गर्दन पर मारो और हाथ पग के जोड़ों को काटने का सहाय और सम्मति देवे ऐसा खुदा शैतान से क्या कुछ कम है ? यह सब प्रपञ्च कुरान के कर्ता का है, खुदा का नहीं। यदि खुदा का हो तो ऐसा खुदा हम से दूर और हम उस से दूर रहें |

-अल्लाह मुसलमानों के साथ है। ऐ लोगो जो ईमान लाये हो पुकारना स्वीकार करो वास्ते अल्लाह के और वास्ते रसूल के।। ऐ लोगो जो ईमान लाये हो,मत चोरी करो अल्लाह की रसूल की और मत चोरी करो अमानत अपनी को।। और मकर करता था अल्लाह और अल्लाह भला मकर करने वालों का है।। मं0 2। सि0 9। सू0 8। आ0 19। 24। 27। 30

समी0-क्या अल्लाह मुसलमानों का पक्षपाती है ? जो ऐसा है तो अधर्म करता है। नहीं तो ईश्वर सब सृष्टि भर का है। क्या ख़ुदा विना पुकारे नहीं सुन सकता ? बधिर है ? और उसके साथ रसूल को शरीक करना बहुत बुरी बात नहीं है ? अल्लाह का कौन सा खज़ाना भरा है जो चोरी करेगा ? क्या रसूल और अपने अमानत की चोरी छोड़कर अन्य सब की चोरी किया करे ? ऐसा उपदेश अविद्वान् और अधर्मियों का हो सकता है | भला ! जो मकर करता और जो मकर करने वालों का संगी है वह खुदा कपटी छली और अधर्मी क्यों नहीं ? इसलिये यह कुरान खुदा का बनाया हुआ नहीं है| किसी कपटी छली का बनाया होगा, नहीं तो ऐसी अन्यथा बातें लिखित क्यों होतीं ? |

-और लड़ो उनसे यहाँ तक कि न रहे फितना अर्थात् बल काफि़रों का और होवे दीन तमाम वास्ते अल्लाह के।। और जानो तुम यह कि जो कुछ तुम लूटो किसी वस्तु से निश्चय वास्ते अल्लाह के है, पाँचवा हिस्सा उसका और वास्ते रसूल के।। मं0 2। सि0 9। सू0 8। आ0 39।41

समी0-ऐसे अन्याय से लड़ने लड़ाने वाला मुसलमानों के खुदा से भिन्न शांति भंग कर्ता दूसरा कौन होगा ? अब देखिये यह मज़हब कि अल्लाह और रसूल के वास्ते सब जगत् को लूटना लुटवाना लुटेरों का काम नहीं है ? और लूटके माल में खुदा का हिस्सेदार बनना जानो डाकू बनना है और ऐसे लुटेरों का पक्षपाती बनना खुदा अपनी खुदाई में बट्टा लगाता है| बड़े आश्चर्य की बात है कि ऐसा पुस्तक, ऐसा खुदा और ऐसा पैग़म्बर संसार में ऐसी उपाधि और शांति भंग करके मनुष्यों को दुःख देने के लिये कहा  से आया ? जो ऐसे 2 मत जगत् में प्रचलित न होते तो सब जगत् आनन्द में बना रहता |

-और कभी देखे जब काफि़रों को फ़रिश्ते कब्ज करते हैं मारते हैं मुख उनके और पीठें उनकी और कहते चखो अ़ज़ाब जलने का।। हमने उनके पाप से उनको मारा और हमने फि़राओन की क़ौम को डुबा दिया।। और तैयारी करो वास्ते उनके जो कुछ तुम कर सको।। मं0 2। सि0 9। सू0 8। आ0 50।54।601

समी0-क्यों जी! आजकल रूस ने रूम आदि और इंग्लैड ने मिश्र की दुर्दशा कर डाली, फ़रिश्ते कहाँ सो गये ? और अपने सेवकों के शत्रुओं को खुदा पूर्व मारता डुबाता था, यह बात सच्ची हो तो आजकल भी ऐसा करे| जिससे ऐसा नहीं होता, इसलिये यह बात मानने योग्य नहीं है | अब देखिये! यह कैसी बुरी आज्ञा है कि जो कुछ तुम कर सको वह भिन्न मतवालों के लिये दुःखदायक कर्मकरो, ऐसी आज्ञा विद्वान् और धार्मिक दयालु की नहीं हो सकती| फिर लिखते हैं कि खुदा दयालु और न्यायकारी है| ऐसी बातों से मुसलमानों के खुदा से न्याय और दयादि सद्गुण दूर बसते हैं |

-ऐ नबी किफ़ायत है तुझको अल्लाह और उनको जिन्होंने मुसलमानों से तेरा पक्ष किया।। ऐ नबी रग़बत अर्थात् चाह चस्का दे मुसलमानों को ऊपर लड़ाईके, जो हों तुममें से 20 आदमी सन्तोष करने वाले तो पराजय करें दो सौ का।। बस खाओ उस वस्तु से कि लूटा है तुमने हलाल पवित्र और डरो अल्लाह से वह क्षमा करने वाला दयालु है।। मं0 2। सि0 10। सू0 8। आ0 64। 65। 692

समी0-भला! यह कौनसी न्याय,विद्वता और धर्म की बात है कि जो अपना पक्ष करे और चाहे अन्याय भी करे, उसी का पक्ष और लाभ पहुंचावे? और जो प्रजा में शांतिभंग करके लड़ाई करे करावे और लूटमार के पदार्थों को हलाल बतलावे और फिर उसी का नाम क्षमावान् दयालु लिखे यह बात खुदाकी तो क्या ?किन्तु,किसी भले आदमी की भी नहीं हो सकती। ऐसी2 बातों से कुरान ईश्वर वाक्य कभी नहीं हो सकता |

विज्ञान से अनभिज्ञ खुदा

crying girl

 विज्ञान से अनभिज्ञ खुदा

-निश्चय परवरदिगार तुम्हारा अल्लाह है जिसने पैदा किया आसमानों और पृथिवी को बीच छः दिन के फिर क़रार पकड़ा ऊपर अर्श के तदबीर करताहै काम की।। मं0 3। सि0 11। सू0 10। आ0

समी0-आसमान आकाश एक और बिना बना अनादि है। उसका बनाना लिखने से निश्चय हुआ कि वह कुरान का अल्लाह पदार्थ  विद्या को नहीं जानता था ? क्या परमेश्वर के सामने छः दिन तक बनाना पड़ता है? तो जो ‘‘हो मेरे हुक्म से और हो गया’’ जब कुरान में ऐसा लिखा है फिर छः दिन कभी नहीं लग सकते, इससे छः दिन लगना झूठ है। जो वह व्यापक होता तो फिर अर्श को  क्यों ठहरता ? और जब काम की तदबीर करता है तो ठीक तुम्हारा खुदा मनुष्य के समान है क्योंकि जो सर्वज्ञ है वह बैठा2 क्या तदबीर करेगा? इससे विदित होता है कि ईश्वर को न जानने वाले जंगली लोगों ने यह पुस्तक बनाया होगा |

-शिक्षा और दया वास्ते मुसलमानों के।। मं0 3। सि0 11। सू0 11। आ0 571

समी0-क्या यह खुदा मुसलमानों ही का है ? दूसरों का नहीं ? और पक्षपातीहै ?जो मुसलमानों ही पर दया करे,अन्य मनुष्यों पर नही। यदि मुसलमान ईमानदारों को कहते हैं तो उनके लिये शिक्षा की आवश्यकता ही नहीं, और मुसलमानों से भिन्नों को उपदेश नहीं करता तो खुदा की विद्या ही व्यर्थ है |

-परीक्षा लेवे तुमको, कौन तुममें से अच्छा है कर्मों में, जो कहे तू, अवश्य उठाये जाओगे तुम पीछे मृत्यु के।। मं0 3। सि0 12। सू0 11। आ0 72

समी0-जब कर्मों की परीक्षा करता है तो सर्वज्ञ ही नहीं। और जो मृत्यु पीछे उठाता है तो दौड़ा सुपुर्द रखता है और अपने नियम जो कि मरे हुए न जीवें उसको तोड़ता है, यह खुदा को बट्टा लगना है |

-और कहा गया ऐ पृथिवी अपना पानी निगल जा और ऐ आसमान बसकर और पानी सूख गया।। और ऐ क़ौम मेरे’, यह है निशानी ऊंटनी अल्लाह की वास्ते तुम्हारे, बस छोड़ दो उसको बीच पृथिवी अल्लाह के खाती फिरे।। मं0 3।सि0 11। सू0 11। आ0 44।643

समी0-क्या लड़केपन की बात है ! पृथिवी और आकाश कभी बात सुनसकते हैं ? वाहजी वाह! खुदा के ऊंटनी भी है तो ऊंट भी होगा ? तो हाथी, घोड़े, गधे आदि भी होंगे ? और खुदा का ऊंटनी से खेत खिलाना क्या अच्छी बात है? क्या ऊंटनी पर चढ़ता भी है ? जो ऐसी बातें हैं तो नवाबी की सी घसड़-पसड़ खुदा के घर में भी हुई |

-और सदैव रहने वाले बीच उसके जब तक कि रहें आसमान और पृथिवी और जो लोग सुभागी हुए बस बहिश्त के सदा रहने वाले हैं जब तक रहें आसमान और पृथिवी।। मं0 3। सि0 12। सू0 11। आ0 108। 109

समी0-जब दोज़ख और बहिश्त में कयामत के पश्चात  सब लोग जायंगे फिर आसमान और पृथिवी किसलिये रहेगी ? और तब दोज़ख और बहिश्त के रहनेकी आसमान पृथिवी के रहने तक अवधि हुई तो सदा रहेंगे बहिश्त वा दोज़ख में, यह बात झूठी हुई। ऐसा कथन अविद्वानों का होता है, ईश्वर वा विद्वानों का नहीं |

-जब यूसुफ़ ने अपने बाप से कहा कि ऐ बाप मेरे, मैंने एक स्वप्न में देखा।। मं0 3। सि0 12। 13। सू0 12। 13। आ0 4 से 101तक2

समी0-इस प्रकरण में पिता पुत्र का संवाद रूप किस्सा कहानी भरी है इसलिये कुरान ईश्वर का बनाया नहीं। किसी मनुष्य ने मनुष्यों का इतिहास लिख दिया है |

-अल्लाह वह है कि जिसने खड़ा किया आसमानों को बिना खंभे के देखते हो तुम उसको, फिर ठहरा ऊपर अर्श के, आज्ञा वर्तने वाला किया सूरज और चांद को और वही है जिसने बिछाया पृथिवी को | उतारा आसमान से पानी बस बहे नाले साथ अन्दाज अपने के अल्लाह खोलता है भोजन को वास्ते जिसको चाहै और तंग करता है।। मं0 3। सि0 13। सू0 13। आ0 2। 3।17।26

समी0-मुसलमानों का खुदा पदार्थ विद्या कुछ भी नहीं जानता था। जो जानता तो गुरुत्व न होने से आसमान को खंभे लगाने की कथा कहानी कुछ भी न लिखता। यदि खुदाअर्शरूप एक स्थान में रहता है तो वह सर्वशक्तिमान और सर्वव्यापक नहीं हो सकता | और जो खुदा मेघ विद्या जानता तो आकाश से पानी उतारा लिखा,पुनः,यह क्यों न लिखा कि पृथिवी से पानी ऊपर चढ़ाया| इससे निश्चय हुआ कि कुरान का बनाने वाला मेघ की विद्या को भी नहीं जानता था|और जो बिना अच्छे बुरे कामों के सुख दुःख देता है तो पक्षपाती, अन्यायकारी, निरक्षर भट्ट है।।94।।

क्या कुरान खुदा की बनाई हुयी है ?

 Campain rick

क्या कुरान खुदा की बनाई हुयी है ?

जो परमेश्वर ही मनुष्यादि प्राणियों को खिलाता-पिलाता है तो किसी को रोग होना न चाहिये और सबको तुल्य भोजन देना चाहिये। पक्षपात से एक को उत्तम और दूसरे को निकृष्ट जैसा कि राजा और कंगले को श्रेष्ठ-निकृष्ट भोजन मिलता है,न होना चाहिये। जब परमेश्वर ही खिलाने-पिलाने और पथ्य कराने वाला है तो रोग ही न होना चाहिये। परन्तु मुसलमान आदि को भी रोग होते हैं। यदि खुदा ही रोग छुड़ाकर आराम करनेवाला है तो मुसलमानों के शरीरों में रोग न रहना चाहिये। यदि रहता है तो खुदा पूरा वैद्य नहीं है। यदि पूरा वैद्य है तो मुसलमानों के शरीर में रोग क्यों रहते हैं?यदि वही मारता और जिलाता है तो उसी खुदा को पाप-पुण्य लगता होगा। यदि जन्म-जमान्तर के कर्मानुसार व्यवस्था करता है तो उसको कुछ भी अपराध नहीं।यदि वह पाप क्षमा और न्याय क़यामत की रात में करता है तो खुदा पाप बढ़ानेवाला होकर पाप युक्त होगा। यदि क्षमा नहीं करता तो यह कुरान की बात झूठी होने से बच नहीं सकती है।

-नहीं तू परन्तु आदमी मानिन्द हमारी, बस ले आ कुछ निशानी जो हैतू सच्चों से।। कहा यह ऊंटनी है वास्ते उसके पानी पाना है एक बार।। मं0 5। सि019। सू0 26। आ0 154। 155

समी0 – यह खुदा को शंका और अभिमान क्यों हुआ कि तू हमारे तुल्य नहीं है और’व् भला इस बात को कोई मान सकता है कि पत्थर से ऊंटनी निकले! वे लोग जंगली थे कि जिन्होंने इस बात को मान लिया और ऊंटनी की निशानी देनी केवल जंगली व्यवहार है, ईश्वरकृत नहीं! यदि यह किताब ईश्वरकृत होती तो ऐसी व्यर्थ बातें इसमें न होतीं।

-ऐ मूसा बात यह है कि निश्चय मैं अल्लाह हूं ग़ालिब।। और डाल देअसा अपना, बस जब कि देखा उसको हिलता था मानो कि वह सांप है,…ऐ मूसा मत डर, निश्चय नहीं डरते समीप मेरे पैग़म्बर।। अल्लाह नहीं कोई माबूद परन्तु वह मालिक अर्श बड़े का।। यह कि मत सरकशी करो ऊपर मेरे और चले आओ मेरे पास मुसलमान होकर।। मं0 5। सि0 19। सू0 27। आ0 9। 10। 26।31

समी0 -और भी देखिये अपने मुख आप अल्लाह बड़ा ज़बरदस्त बनता है।अपने मुख से अपनी प्रशंसा करना श्रेष्ठ पुरुष का भी काम नहीं, खुदा का क्यों कर हो सकता है? तभी तो इन्द्रजाल का लटका दिखला जंगली मनुष्यों को वश करआप जंगलस्थ खुदा बन बैठा। ऐसी बात ईश्वर के पुस्तक में कभी नहीं हो सकती। यदि वह बड़े अर्श अर्थात् सातवें आसमान का मालिक है तो वह एकदेशी होने से ईश्वर नहीं हो सकता है। यदि सरकशी करना बुरा है तो खुदा और मुहम्मद साहेब ने अपनी स्तुति से पुस्तक क्यों भर दिये? मुहम्मद साहेब ने अनेकों को मारे इससे सरकशी हुई वा नहीं? यह कुरान पुनरुक्त और पूर्वापर विरुद्ध बातों से भराहुआ है।

-और देखेगा तू पहाड़ों को अनुमान करता है तू उनको जमे हुए औरवे चले जाते हैं मानिन्द चलने बादलों की, कारीगरी अल्लाह की जिसने दृढ़ किया हर वस्तु को, निश्चय वह खबरदार है उस वस्तु के कि करते हो।। मं05। सि0 20।मू0 27। आ0 881

समी0 –बद्दलोंके समान पहाड़ का चलना कुरान बनानेवालोंके देश में होताहोगा, अन्यत्र नहीं। और खुदा की खबरदारी, शैतान बागी को न पकड़ने और न दंड देने से ही विदित होती है कि जिसने एक बाग़ी को भी अब तक न पकड़ पाया, न दंड दिया। इससे अधिक असावधानी क्या होगी ?

-बस मुष्ट मारा उसको मूसा ने, बस पूरी की आयु उसकी।। कहा ऐ रब मेरे, निश्चय मैंने अन्याय किया जान अपनी को, बस क्षमा कर मुझको, बसक्षमा कर दिया उसको, निश्चय वह क्षमा करने वाला दयालु है।। और मालिक तेरा उत्पन्न करता है, जो कुछ चाहता है और पसन्द करता है।। मं0 5। सि0 20। सू0 28। आ0 15। 16। 682

समी0 -अब अन्य भी देखिये! मुसलमान और ईसाइयों के पैग़म्बर और खुदा कि मूसा पैग़म्बर मनुष्य की हत्या किया करे और खुदा क्षमा किया करे, ये दोनों अन्यायकारी हैं वा नहीं? क्या अपनी इच्छा ही से जैसा चाहता है वैसी उत्पत्तिकरता है ? क्या उसने अपनी इच्छा ही से एक को राजा दूसरे को कंगाल और एक को विद्वान् और दूसरे को मूर्खादि किया है ? यदि ऐसा है तो न कुरान सत्य और न अन्यायकारी होने से यह खुदा ही हो सकता है।।121।।

-और आज्ञा दी हमने मनुष्य को साथ मां-बाप के भलाई करना  जो झगड़ा करें तुझसे दोनों यह कि शरीक लावे तू साथ मेरे उस वस्तु को, कि नहीं वास्ते तेरे साथ उसके ज्ञान, बस मत कहा मान उन दोनों का, तर्फ़ मेरी है।। औरअवश्य भेजा हमने नूह को तर्फ क़ौम उसके कि बस रहा बीच उनके हजार वर्ष परन्तु पचास वर्ष कम।। मं0 5। सि0 20-21। सू0 29। आ0 7। 13

समी0 -माता-पिता की सेवा करना तो अच्छा ही है जो खुदा के साथ शरीककरने के लिये कहे तो उनका कहा न मानना तो यह भी ठीक है।परन्तु,यदि मातापिता मिथ्याभाषणादि करने की आज्ञा देवें तो क्या मान लेना चाहिये ? इसलिये यह बात आधी अच्छी और आधी बुरी है। क्या नूह आदि पैग़म्बरों ही को खुदा संसार में भेजता है तो अन्य जीवों को कौन भेजता है ? यदि सब को वही भेजताहै तो सभी पैग़म्बर क्यों नहीं ? और प्रथम मनुष्यों की हजार वर्ष की आयु होती थी तो अब क्यों नहीं होती ? इसलिये यह बात ठीक नहीं |

-अल्लाह पहिली बार करता है उत्पत्ति फिर दूसरी बार करेगा उसको,फिर उसी की ओर फेरे जाओगे।। और जिस दिन बर्पा अर्थात् खड़ी होगी क़यामत निराश होंगे पापी।। बस जो लोग कि ईमान लाये और काम किये अच्छे बस वे बीच बाग़ के सिंगार किये जावेंगे।। और जो भेज दें हम एबाब बस देखें उस खेती को पीली हुई। इसी प्रकार मोहर रखता है अल्लाह पिंर दिलों उन लोगों के कि नहीं जानते।। मं0 5। सि0 21। सू0 30। आ0 11। 12।15।51।591

समी0 -यदि अल्लाह दो बार उत्पत्ति करता है,तीसरी बार नहीं,तो उत्पत्ति की आदि और दूसरी बार के अन्त में निकम्मा बैठा रहता होगा ? और एक तथा दो बार उत्पत्ति के पश्चात् उसका सामर्थ्य निकम्मा और व्यर्थ हो जायगा। यदि न्याय करने के दिन पापी लोग निराश हों तो अच्छी बात है,परन्तु इसका प्रयोजन यह तो कहीं नहीं है कि मुसलमानों के सिवाय सब पापी समझ कर निराश किये जायें क्योंकि कुरान में कई स्थानों में पापियों से औरों का ही प्रयोजन है। यदि बगीचे में रखना और “श्रृंगारपहिराना ही मुसलमानों का स्वर्ग है तो इस संसार के तुल्य हुआ और वहाँ माली और सुनार भी होंगे अथवा खुदा ही माली और सुनार आदि का काम करता होगा। यदि किसी को कम गहना मिलता होगा तो चोरी भी होती होगी और बहिश्त से चोरी करने वालों को देाज़ख में भी डालता होगा। यदि ऐसा होता होगा तो सदा बहिश्त में रहेंगे यह बात झूठ हो जायगी। जो किसानों की खेती पर भी खुदा की दृष्टि है सो यह विद्या खेती करने के अनुभव ही से होती है और यदि माना जाय कि खुदा ने अपनी विद्या से सब बात जान ली है तो ऐसा भय देनाअपना घमण्ड प्रसिद्ध करना है। यदि अल्लाह ने जीवों के दिलों पर मोहर लगा पाप कराया तो उस पाप का भागी वही होवे, जीव नहीं हो सकते। जैसे जय पराजय सेनाधीश का होता है वैसे यह सब पाप खुदा ही को प्राप्त होवें |

-ये आयतें हैं किताब हिक्मत वाले की। उत्पन्न किया आसमानों को विना सुतून अर्थात् खम्भे के देखते हो तुम उसको और डाले बीच पृथिवी के पहाड़ ऐसा न हो कि हिल जावे।। क्या नहीं देखा तूने यह कि अल्लाह प्रवेश कराता है रात को बीच दिन के और प्रवेश कराता है दिन को बीच रात के।। क्या नहीं देखाकि किश्तियां चलती हैं बीच दर्या के साथ निआमतों अल्लाह के, तो किदिखलावे तुमको निशानियां अपनी।। मं0 5। सि0 21। सू0 31। आ0 2। 10। 29।311

समी0 -वाह जी वाह! हिक्मतवाली किताब! कि जिसमें सर्वथा विद्या से विरुद्ध आकाश की उत्पत्ति और उसमें खम्भे लगाने की शंका और पृथिवी को स्थिररखने के लिये पहाड़ रखना ! थोड़ी सी विद्या वाला भी ऐसा लेख कभी नहीं करता और न मानता और हिक्मत देखो कि जहाँ दिन है वहाँ रात नहीं और जहाँ रात हैवहाँ दिन नहीं, उसको एक दूसरे में प्रवेश कराना लिखता है। यह बड़े अविद्वानोंकी बात है, इसलिये यह कुरान विद्या की पुस्तक नहीं हो सकती। क्या यह विद्या विरुद्ध बात नहीं है कि नौका, मनुष्य और क्रिया कौशलादि से चलती हैं वा खुदा की कृपा से ? यदि लोहे वा पत्थरों की नौका बनाकर समुद्र में चलावें तो खुदा की निशानी डूब जायवा नहीं? इसलिये यह पुस्तक न विद्वान् और न ईश्वरका बनाया हुआ हो सकता है |

कुरानी जन्नत, दोजक और विज्ञान

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कुरानी जन्नत, दोजक और विज्ञान 

-जब कि हिलाई जावेगीपृथिवी हिलाये जाने कर।। और उड़ाए जावेंगेपहाड़ उड़ाये जाने कर।। बस हो जावंगेभुनुगेटकुड़े-2 ।। बस साहब दाहनी ओर वालेक्या हैं  साहब दाहनी ओर के।। और र्बाइं  ओर वाले क्या हैं र्बांइ  ओर के।। ऊपर पलंघसोने  के तारों से बुने हएु हैं तकिये किए हुए हैं ऊपर उनके आमने सामने ।और फिरेंगे ऊपर उनके लड़के सदा रहने वाले । साथ आबखारेां के और आफ़ताबोंके और प्यालां के शराब साफ़ से । नहीं माथा दुखाये जावेंगे उससे और न विरुद्ध बोलंगे। और मेवे उस कि़स्म से कि पसन्दकरें । और गोश्त जानवर पक्षियों केउस कि़स्म से कि पसन्द करें । और वास्ते उनके औरतें हैं अच्छी आँखों वाली।।मानिन्द मोतियों छिपाये हुओं की।। और बिछानै बड़े।। निश्चय हमने उत्पन्न किया है औरतों को एक प्रकार का उत्पन्न करना है।। बस किया है हमने उनको कुमारी।।सुहागवालियां बराबर अवस्था बालियां।। बस भरने वाले हो उससे पेटों को।। बसकस़म खाता हॅूं में साथ गिरने तारों के । म07। सि0 27। सू0 56। आ0 4- 6। 8। 9।15-23। 34-37। 53।751

समी0 -अब देखिये कुरान बनाने वाले की लीला को! भला पृथिवी तो हिलती ही रहती है उस समय भी हिलती रहेगी। इससे यह सिद्ध होता है कि कुरानबनाने वाला पृथिवी को स्थिर जानता था। भला पहाड़ों को क्या पक्षीवत् उड़ा देगा? यदि भुनुगे हो जावेंगे तो भी सूक्ष्म शरीरधारी रहेंगे तो फिर उनका दूसरा जन्म क्यों नहीं? वाहजी! जो खुदा शरीरधारी न होता तो उसके दाहिनी ओर और बांई ओर कैसे खड़े हो सकते? जब वहाँ पलंग सोने के तारों से बुने हुए हैं तो बढ़ई सुनार भी वहाँ रहते होंगे और खटमल काटते होंगे, जो उनको रात्रि में सोने भी नहीं देते होंगे। क्या वे तकिये लगाकर निकम्मे बहिश्त में बैठे ही रहते हैं? वा कुछ काम किया करते हैं ? यदि बैठे ही रहते होंगे तो उनको अन्न पचन न होने से वे रोगी होकर शीघ्र मर भी जाते होंगे ? और जो काम किया करते होंगे तो जैसे मेहनत मज़दूरी यहाँ करते हैं वैसे ही वहाँ परिश्रम करके निर्वाह करते होंगे फिर यहाँ से वहाँ बहिश्त में विशेष क्या है? कुछ भी नहीं। यदि वहाँ लड़के सदा रहते हैं तो उनके मां-बाप भी रहते होंगे और सासू श्वसुर भी रहते होंगे,तब तो बड़ा भारी शहर बसता होगा फिर मल-मूत्रादि के बढ़ने से रोग भी बहुत से होते होंगे। क्योंकि,जबमेवे खावेंगे गिलासों में पानी पीवेंगे और प्यालों से मद्य पीवेंगे,न उनका सिर दूखेगाऔर न कोई विरुद्ध बोलेगा,यथेष्ट मेवा खावेंगे और जानवरों तथा पक्षियों के मांस भी खावेंगे तो अनेक प्रकार के दुःख, पक्षी, जानवर वहाँ होंगे, हत्या होगी और हाड़ जहाँ तहाँबिखरे रहेंगे और कसाइयों की दुकानें भी होंगी। वाह क्या कहना इनके बहिश्त की प्रशंसा कि वह अरब देश से भी बढ़कर दीखती है!!! और जो मद्य-मांस पी-खा के उन्मत्त होते हैं,इसीलिये अच्छी2 स्त्रियां और लौंडे भी वहाँ अवश्य रहने चाहिये नहीं तो ऐसे नशेबाजों के शिर में गरमी चढ़ के प्रमादी हो जावें। अवश्य बहुत स्त्री पुरुषों के बैठने सोने के लिये बिछौने बड़े2 चाहिये। जब खुदा कुमारियों को बहिश्त में उत्पन्न करता है तभी तो कुमारे लड़कों कोभी उत्पन्न करता है। भला! कुमारियों का तो विवाह जो यहाँ से उम्मेदवार होकर गये हैं,उनके साथ खुदा ने लिखा,पर उन सदा रहने वाले लड़कों का किन्हीं कुमारियों के साथ विवाह न लिखा,तो क्या वे भी उन्हीं उम्मेदवारों के साथ कुमारीवत् दे दिये जायेंगे? इसकी व्यवस्था कुछ भी न लिखी। यह खुदा में बड़ी भूल क्यों हुई? यदि बराबर अवस्था वाली सुहागिन स्त्रियां पतियों को पा के बहिश्त में रहती हैं तो ठीक नहीं हुआ,क्योंकि स्त्रियों से पुरुष का आयु दूना,ढाई गुना चाहिये,यह तो मुसलमानों के बहिश्त की कथा है।और नरक वाले सिंहोड़ अर्थात् थोर के वृक्षों को खा के पेट भरेंगे तो कण्टक वृक्ष भी दोज़ख में होंगे तो कांटे भी लगते होंगे और गर्म पानी पियेंगे इत्यादि दुःखदोज़ख में पावेंगे। क़सम का खाना प्रायः झूठे का काम है, सच्चों का नहीं। यदिखुदा ही कसम खाता है तो वह भी झूठ से अलग नहीं हो सकता।

क्या मुहम्मद का नाम अथर्ववेद में है

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क्या मुहम्मद का नाम अथर्ववेद में है ?

बहुत से मुसलमान ऐसा कहा करते और लिखा व छपवाया करते है कि हमारे मजहब की बात अथर्ववेद में लिखी है. इस का या उत्तर है कि अथर्ववेद में इस बात का नाम निशान भी नहीं है.

प्रश्न : क्या तुम ने सब अथर्ववेद देखा है ? यदि देखा है तो अल्लोपनिषद देखो।  यह साक्षात उसमें लिखी है।  फिर क्यों कहते हो कि अथर्ववेद में मुसलमानों का नाम निशान भी नहीं है। जो इस में प्रत्यक्ष मुहम्मद  साहब रसूल लिखा है इस से सिध्द होता है कि मुसलामानों का मतवेदमूलक है।

उत्तर : यदि तुम ने अथर्ववेद न देखो तो तो हमारे पास आओ आदि से पूर्ति तक देखो अथवा जिस किसी अथर्ववेदी के पास बीस कांडयुक्त मंत्र संहिता अथर्ववेद को देख लो. कहीं तुम्हारे पैगम्बर साहब का नाम व मत का निशान न देखोगे और जो यह अल्लोपनिषद है वह न अथर्ववेद में न उसके गोपथब्राहम्मण व किसी  शाखा में है  यह तो अकबरशाह के समय में अनुमान है कि किसी ने बनाई है।  इस का बनाने वाला कुछ अरबी और कुछ संस्कृत भी पढ़ा  हुआ दीखता है क्योंकि इस में अरबी और संस्कृत के पद लिखे हुए दीखते हैं।  देखो ! (अस्माल्लामइल्लेमित्रावरुणादिव्यानिधत्ते ) इत्यादि में जो कि दश अंक में लिखा है जैसे – इस में अस्माल्लाम और इल्ले ) अरबी और ( मित्रावरुणादिव्यानिधत्ते ) यह संस्कृत पद लिखे हैं वैसे ही सर्वत्र देखने में आने से किसी संस्कृत और अरबी के पढे हुए ने बनाई है. यदि इस का अर्थ देखा जाता है तो यह कृत्रिम आयुक्त वेद और व्याकरण रीति से विरुद्ध है।  जैसी यह उपनिषद बनाई है वैसी बहुत सी उपनिषदेंमतमतान्तर वाले पक्षपातियों ने बना ली हैं।  जैसी कि स्वरोपनिषदनृसिंहतापानि  राम तापनी गोपालतापनी बहुत सी बना ली हैं

प्रश्न -आज तक किसी ने ऐसा नहीं कहा अब तुम कहते हो हैम तुम्हारी बात कैसे माने ?

उत्तर -तुम्हारे मानने व न मानने से हमारी बात झूठ नहीं हो सकती है।  जिस प्रकार से मीन इस को आयुक्त ठहरेई है उसी प्रकार से जब तुम अथर्वेदगोपथ व इस की शाखाओं से प्राचीन लिखित पुस्तकों में जैसे का तैसा लेख दिखलाओ और अर्थसंगति से भी शुद्ध करो तब तो सप्रमाण हो सकता है.

प्रश्न – देखो ! हमारा मत कैसा अच्छा है कि जिसमें  सब प्रकार का सुख और अंत में मुक्ति होती है

उत्तर – ऐसे ही अपने अपनेमत वाले सब कहते हैं कि हमारा मत अच्छा है बाकी सब बुरे।  बिना हमारे मत में मुक्ति नहीं हो सकती।  अब हम तुम्हारी बात को सच्ची माने  व उनकी ? हम तो यही मानते हैं कि सत्यभाषण, अहिंसा, दया आदि शुभ गुण सब मतों  में  वाद विवाद ईर्ष्या, द्वेष, मिथ्याभाषणादि कर्म सब मतों में बुरे हैं।  यदि तुम को सत्य मत ग्रहण की इच्छा हो तो वैदिक मत को ग्रहण करो।

भारत की बेटी

bharat ki beti

भारत की बेटी

जननी नाम से पवित्र, दूसरा कौनसा है नाम |

माँ नाम से निर्मल, कौनसा है दूसरा है नाम ||

आज की किशोरी ही भविष्य की आधारशिला है | संतान उत्पत्ति की अर्थात श्रेष्ट संतान उत्पत्ति की और राष्ट्र गौरव की, क्यों की जब कोई युवती स्वयं निर्णय लेने लग जाती है अर्थात यह आयु १६ से १८ की होती है और इसी आयु में वह निर्णय लेनी की क्षमता प्राप्त करती है | यही से उसके भावी संतान का भविष्य शुरू हो जाता है | यही संतान उत्पत्ति का विज्ञान है | इतिहास इस बात का साक्षी है – शिवाजी,श्री कृष्ण, श्री राम, प्रलहाद , रावण, पांडव, आदि की | ऐसी हजारो बेटियों ने राष्ट्र रक्षक, राष्ट्र निर्माण, तो एक  ओर  दुष्ट,विनाशक            संतान को  उत्तपन किया | जिस स्त्री में संतान गर्भ में आने से पहले ही अर्थात अपनी युवा अवस्था में स्त्री जिस विचारों का चिंतन करती रहेंगी वहाँ पर उसी विचारों से प्रभावित वैसी ही विचारों वाली आत्मा का गर्भ में प्रवेश होंगा और वह संतान जन्मजात उसी प्रवृति का पोषक होंगी | वह चाहे तो रावण जैसी संतान को भी जन्म दे सकती है और चाहे तो कृष्ण जैसी योद्धा संतान को भी उत्तपन कर राष्ट्र रक्षा या राष्ट्र निर्माण कर देश की सेवा कर  सकती है | घर बैठे नारी समाज की, देश की सेवा कर सकती है | पर इसके लिए आवश्यकता है तपस्या – दूसरों के प्रति त्याग और सेवा ही तपस्या है | पर दुःख की बात है की ऐसे जीवन का महत्व आज नहीं रहा | ऐसे जीवन को आज निचले स्तर से देखा जाता है |

आज पाश्चात्य सभ्यता हर क्षण इतनी हावी हो रही है, की हमारे संस्कार प्राय: उनके समक्ष नष्ट हो रहे है | आज की शिक्षा, आज के रहन सहन, आज के विचार, हमारे संस्कार रपी धरोवर को नष्ट करते चले जा रहे है | भविष्य के इस आधारशिला  किशोरी के भटकते हुए जीवन का कौन जिम्मेदार है ? उसके ओर उठने वाली पाशविक दृष्टी का कौन जिम्मेदार है ? घर से भागकर प्रेमविवाह करने का कौन जिम्मेदार है ? उसके बिना विवाह माँ बनाने का कौन जिम्मेदार है ? उसके मर्यादाहीन होने का कौन जिम्मेदार है ? उसके अभिभावक व वह स्वयं ?

हम निश्चित कह सकते है, युवा पीढ़ी के अनुशासनहीनता के लिए, तपस्या हिन् जीवन के लिए, भोगमय जीवन के लिए जिम्मेदार उसकी पूर्व पीढ़ी अर्थात माता-पिता ही है | हम इसे सिद्ध भी कर सकते है | नारी गर्भ से संतान इस धरती पर आती है, पर इसके लिए उसे किसी योगदान की आवश्यकता होती है ओर वह योगदान देने वाले होते है उसके अपने माता-पिता | उच्चा संस्कारो के बिज को संतानों में अंकुरित करना होता है | अंकुरित करने के लिए किसे न किसे खाद, जल ओर अन्य पोषक तत्व तो देने ही होंगे, तभी तो उच्चा संस्कारो का भिज अंकुरित होंगा | इस आधुनिकता को देखते हुए यह बड़ा जटिल लगता है, क्यों की तप करना कोई साधारण कार्य नहीं है | यह कोई एक दो दिन में होनेवाला चमत्कार भी नहीं है | पीढ़िय बिगड़ने में लगी है, तो पीढ़िय सुधरने में भी लगेंगी | इसलिए आज के युवा पीढ़ी को माता-पिता से संस्कार न भी मिले हो, तो कोई बात नहीं, तो उनका कोई दोष भी नहीं है यह नष्टता पीढियों से चली आ रही है |

अब तो इसे अंकुरित करने की जिज्ञासा युवा पीढ़ी में होनी चाइये | निरंतर जागृति से संस्कार रूपी बिज अंकुरित होकर एक दिन वट वृक्ष निश्चित होंगा | सीता, सावित्री, मदालसा, गार्गी, सुलभा, मैत्री, अरुंधती, अन्नपुर्णा, संध्या, अनुसया, शाण्डिली, दमयंती, रानी दुर्गावती, रानी लक्ष्मीबाई आदि हजारो युवतियों, नारियो ज्ञान की ओर पवित्रता की उन उचाइयो को छु लिया था | इन बेटियों के जीवन से यह बात भी झूठी सभीत होती है, की स्त्रियों को पड़ने का अधिकार नहीं था | क्यों की मदालसा, सुलभा, गार्गी आदि उच्चस्तरीय पंडित, विद्वान, ब्रह्मज्ञानी थी जिन्हें शास्त्रार्थ में हराना जनक जैसे विद्वान को भी अशक्य था |

वैदिक संस्कृति के अनुसार स्त्रीजीवन की महानता माता का पद प्राप्त करने में है, ओर महाभाग्यशाली होना है ज्ञानी, योद्धा, दानी, त्यागी, तपस्वी, पुत्र-पुत्री की माता कहलाना में | रोटी बनाना, व्यापार करना, नौकरी करना, घर चलाना अलग बात है और औरो के लिए जीना, संसार के कल्याण की चाह रखकर संतान का निर्माण, राष्ट्र निर्माण, समाज निर्माण, धर्मं  रक्षा करना अलग बात है | एक नारी प्रसव पीड़ा सहन करती है, अगर उस प्रसव पीड़ा से राष्ट्र उन्नति नहीं हुई, लोक कल्याण नहीं हुआ,अन्याय नष्ट नहीं हुवा, आभाव दूर नहीं हुवा, अज्ञानियों का अज्ञान दूर नहीं हुवा, दुखियो को दुःख दूर नहीं हुवा, तो फिर क्या हुवा ? किस काम का है उत्सव ? किस काम का हुवा यह जन्म ? प्रसव पीड़ा तो दूर हुई पर नई पीड़ा बड गयी अपनी भी ओर दूसरो की भी |

आचार विचार जहा नष्ट होते है, संतान वहा भ्रष्ट होती है | संतानों के भ्रष्ट होने से संस्कार नष्ट हो जाते है | संस्कारो के नष्ट होने से, राष्ट्र गरिमा खो देता है |राष्ट्र गरिमा खो जाने से मनुष्य अपनी  पहचान भी खो जाती है

नाम मात्र ही माँ न बन, त्याग प्रेम से बने तू माता |

सुन भारत की बेटी, पवित्रता से बने तू माता ||

शरीर से तू माँ न बन, नारीत्व से बने तू माता |

सुन भारत की बेटी, संस्कारो से बने तू माता ||

दूध पिलाने से माँ न बन, व्रत स्वाध्याय से बने तू माता |

सुन भारत की बेटी, प्रार्थनाओ से बने तू माता ||

भोजन वस्त्रों से ही माँ न बन, मातृत्व से बने तू माता |

सुन भारत की बेटी, आचरण से बने तू माता ||

पढने पढाने से ही माँ न बन, सुप्रवृतियो से बने तू माता |

सुन भारत की बेटी, तपस्या से बने तू माता ||

पाशविक तृष्णा से ही माँ न बन, सु विचारों से बने तू माता |

सुन भारत की बेटी, संयम से बने तू  माता ||

अधर्म से तू माँ न बन, धर्मं से बने तू माता |

सुन भारत की बेटी, सतीत्व से बने तू माता ||

अपने लिए माँ न बन, विश्व सेवा के लिए बने तू माता |

सुन भारत की बेटी, जाबाज़ विरो से बने तू माता ||