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मदर टेरेसा संत या धोखा

Mother Teresa

मदर टेरेसा संत या धोखा 

एग्नेस गोंक्झा बोज़ाझियू अर्थात मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त 1910 को स्कोप्जे, मेसेडोनिया में हुआ था और बारह वर्ष की आयु में उन्हें अहसास हुआ कि “उन्हें ईश्वर बुला रहा है”। 24 मई 1931 को वे कलकत्ता आईं और फ़िर यहीं की होकर रह गईं। उनके बारे में इस प्रकार की सारी बातें लगभग सभी लोग जानते हैं, लेकिन कुछ ऐसे तथ्य, आँकड़े और लेख हैं जिनसे इस शख्सियत पर सन्देह के बादल गहरे होते जाते हैं। उन पर हमेशा वेटिकन की मदद और मिशनरीज ऑफ़ चैरिटी की मदद से “धर्म परिवर्तन” का आरोप तो लगता ही रहा है, लेकिन बात कुछ और भी है, जो उन्हें “दया की मूर्ति”, “मानवता की सेविका”, “बेसहारा और गरीबों की मसीहा”… आदि वाली “लार्जर दैन लाईफ़” छवि पर ग्रहण लगाती हैं, और मजे की बात यह है कि इनमें से अधिकतर आरोप (या कहें कि खुलासे) पश्चिम की प्रेस या ईसाई पत्रकारों आदि ने ही किये हैं, ना कि किसी हिन्दू संगठन ने, जिससे संदेह और भी गहरा हो जाता है (क्योंकि हिन्दू संगठन जो भी बोलते या लिखते हैं उसे तत्काल सांप्रदायिक ठहरा दिये जाने का “रिवाज” है)। बहरहाल, आईये देखें कि क्यों इस प्रकार के “संत” या “चमत्कार” आदि की बातें बेमानी होती हैं (अब ये पढ़ते वक्त यदि आपको हिन्दुओं के बड़े-बड़े और नामी-गिरामी बाबाओं, संतों और प्रवचनकारों की याद आ जाये तो कोई आश्चर्यजनक बात नहीं होगी) –

यह बात तो सभी जानते हैं कि धर्म कोई सा भी हो, धार्मिक गुरु/गुरुआनियाँ/बाबा/सन्त आदि कोई भी हो बगैर “चन्दे” के वे अपना कामकाज(?) नहीं फ़ैला सकते हैं। उनकी मिशनरियाँ, उनके आश्रम, बड़े-बड़े पांडाल, भव्य मन्दिर, मस्जिद और चर्च आदि इसी विशालकाय चन्दे की रकम से बनते हैं। जाहिर है कि जहाँ से अकूत पैसा आता है वह कोई पवित्र या धर्मात्मा व्यक्ति नहीं होता, ठीक इसी प्रकार जिस जगह ये अकूत पैसा जाता है, वहाँ भी ऐसे ही लोग बसते हैं। आम आदमी को बरगलाने के लिये पाप-पुण्य, अच्छाई-बुराई, धर्म आदि की घुट्टी लगातार पिलाई जाती है, क्योंकि जिस अंतरात्मा के बल पर व्यक्ति का सारा व्यवहार चलता है, उसे दरकिनार कर दिया जाता है। पैसा (यानी चन्दा) कहीं से भी आये, किसी भी प्रकार के व्यक्ति से आये, उसका काम-धंधा कुछ भी हो, इससे लेने वाले “महान”(?) लोगों को कोई फ़र्क नहीं पड़ता। उन्हें इस बात की चिंता कभी नहीं होती कि उनके तथाकथित प्रवचन सुनकर क्या आज तक किसी भी भ्रष्टाचारी या अनैतिक व्यक्ति ने अपना गुनाह कबूल किया है? क्या किसी पापी ने आज तक यह कहा है कि “मेरी यह कमाई मेरे तमाम काले कारनामों की है, और मैं यह सारा पैसा त्यागकर आज से सन्यास लेता हूँ और मुझे मेरे पापों की सजा के तौर पर कड़े परिश्रम वाली जेल में रख दिया जाये..”। वह कभी ऐसा कहेगा भी नहीं, क्योंकि इन्हीं संतों और महात्माओं ने उसे कह रखा है कि जब तुम अपनी कमाई का कुछ प्रतिशत “नेक” कामों के लिये दान कर दोगे तो तुम्हारे पापों का खाता हल्का हो जायेगा। यानी, बेटा..तू आराम से कालाबाजारी कर, चैन से गरीबों का शोषण कर, जम कर भ्रष्टाचार कर, लेकिन उसमें से कुछ हिस्सा हमारे आश्रम को दान कर… है ना मजेदार धर्म…

बहरहाल बात हो रही थी मदर टेरेसा की, मदर टेरेसा की मृत्यु के समय सुसान शील्ड्स को न्यूयॉर्क बैंक में पचास मिलियन डालर की रकम जमा मिली, सुसान शील्ड्स वही हैं जिन्होंने मदर टेरेसा के साथ सहायक के रूप में नौ साल तक काम किया, सुसान ही चैरिटी में आये हुए दान और चेकों का हिसाब-किताब रखती थीं। जो लाखों रुपया गरीबों और दीन-हीनों की सेवा में लगाया जाना था, वह न्यूयॉर्क के बैंक में यूँ ही फ़ालतू पड़ा था? मदर टेरेसा को समूचे विश्व से, कई ज्ञात और अज्ञात स्रोतों से बड़ी-बड़ी धनराशियाँ दान के तौर पर मिलती थीं।

अमेरिका के एक बड़े प्रकाशक रॉबर्ट मैक्सवैल, जिन्होंने कर्मचारियों की भविष्यनिधि फ़ण्ड्स में 450 मिलियन पाउंड का घोटाला किया, ने मदर टेरेसा को 1.25 मिलियन डालर का चन्दा दिया। मदर टेरेसा मैक्सवैल के भूतकाल को जानती थीं। हैती के तानाशाह जीन क्लाऊड डुवालिये ने मदर टेरेसा को सम्मानित करने बुलाया। मदर टेरेसा कोलकाता से हैती सम्मान लेने गईं, और जिस व्यक्ति ने हैती का भविष्य बिगाड़ कर रख दिया, गरीबों पर जमकर अत्याचार किये और देश को लूटा, टेरेसा ने उसकी “गरीबों को प्यार करने वाला” कहकर तारीफ़ों के पुल बाँधे।

मदर टेरेसा को चार्ल्स कीटिंग से 1.25 मिलियन डालर का चन्दा मिला, ये कीटिंग महाशय वही हैं जिन्होंने “कीटिंग सेविंग्स एन्ड लोन्स” नामक कम्पनी 1980 में बनाई थी और आम जनता और मध्यमवर्ग को लाखों डालर का चूना लगाने के बाद उसे जेल हुई थी। अदालत में सुनवाई के दौरान मदर टेरेसा ने जज से कीटिंग को “माफ़”(?) करने की अपील की थी, उस वक्त जज ने उनसे कहा कि जो पैसा कीटिंग ने गबन किया है क्या वे उसे जनता को लौटा सकती हैं? ताकि निम्न-मध्यमवर्ग के हजारों लोगों को कुछ राहत मिल सके, लेकिन तब वे चुप्पी साध गईं।

ब्रिटेन की प्रसिद्ध मेडिकल पत्रिका Lancet के सम्पादक डॉ.रॉबिन फ़ॉक्स ने 1991 में एक बार मदर के कलकत्ता स्थित चैरिटी अस्पतालों का दौरा किया था। उन्होंने पाया कि बच्चों के लिये साधारण “अनल्जेसिक दवाईयाँ” तक वहाँ उपलब्ध नहीं थीं और न ही “स्टर्लाइज्ड सिरिंज” का उपयोग हो रहा था। जब इस बारे में मदर से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि “ये बच्चे सिर्फ़ मेरी प्रार्थना से ही ठीक हो जायेंगे…”(?)

बांग्लादेश युद्ध के दौरान लगभग साढ़े चार लाख महिलायें बेघरबार हुईं और भागकर कोलकाता आईं, उनमें से अधिकतर के साथ बलात्कार हुआ था। मदर टेरेसा ने उन महिलाओं के गर्भपात का विरोध किया था, और कहा था कि “गर्भपात कैथोलिक परम्पराओं के खिलाफ़ है और इन औरतों की प्रेग्नेन्सी एक “पवित्र आशीर्वाद” है…”। उन्होंने हमेशा गर्भपात और गर्भनिरोधकों का विरोध किया। जब उनसे सवाल किया जाता था कि “क्या ज्यादा बच्चे पैदा होना और गरीबी में कोई सम्बन्ध नहीं है?” तब उनका उत्तर हमेशा गोलमोल ही होता था कि “ईश्वर सभी के लिये कुछ न कुछ देता है, जब वह पशु-पक्षियों को भोजन उपलब्ध करवाता है तो आने वाले बच्चे का खयाल भी वह रखेगा इसलिये गर्भपात और गर्भनिरोधक एक अपराध है” (क्या अजीब थ्योरी है…बच्चे पैदा करते जाओं उन्हें “ईश्वर” पाल लेगा… शायद इसी थ्योरी का पालन करते हुए ज्यादा बच्चों का बाप कहता है कि “ये तो भगवान की देन हैं..”, लेकिन वह मूर्ख नहीं जानता कि यह “भगवान की देन” धरती पर बोझ है और सिकुड़ते संसाधनों में हक मारने वाला एक और मुँह…)

मदर टेरेसा ने इन्दिरा गाँधी की आपातकाल लगाने के लिये तारीफ़ की थी और कहा कि “आपातकाल लगाने से लोग खुश हो गये हैं और बेरोजगारी की समस्या हल हो गई है”। गाँधी परिवार ने उन्हें “भारत रत्न” का सम्मान देकर उनका “ऋण” उतारा। भोपाल गैस त्रासदी भारत की सबसे बड़ी औद्योगिक दुर्घटना है, जिसमें सरकारी तौर पर 4000 से अधिक लोग मारे गये और लाखों लोग अन्य बीमारियों से प्रभावित हुए। उस वक्त मदर टेरेसा ताबड़तोड़ कलकत्ता से भोपाल आईं, किसलिये? क्या प्रभावितों की मदद करने? जी नहीं, बल्कि यह अनुरोध करने कि यूनियन कार्बाईड के मैनेजमेंट को माफ़ कर दिया जाना चाहिये। और अन्ततः वही हुआ भी, वारेन एंडरसन ने अपनी बाकी की जिन्दगी अमेरिका में आराम से बिताई, भारत सरकार हमेशा की तरह किसी को सजा दिलवा पाना तो दूर, ठीक से मुकदमा तक नहीं कायम कर पाई। प्रश्न उठता है कि आखिर मदर टेरेसा थीं क्या?

एक और जर्मन पत्रकार वाल्टर व्युलेन्वेबर ने अपनी पत्रिका “स्टर्न” में लिखा है कि अकेले जर्मनी से लगभग तीन मिलियन डालर का चन्दा मदर की मिशनरी को जाता है, और जिस देश में टैक्स चोरी के आरोप में स्टेफ़ी ग्राफ़ के पिता तक को जेल हो जाती है, वहाँ से आये हुए पैसे का आज तक कोई ऑडिट नहीं हुआ कि पैसा कहाँ से आता है, कहाँ जाता है, कैसे खर्च किया जाता है… आदि।

अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पत्रकार क्रिस्टोफ़र हिचेन्स ने 1994 में एक डॉक्यूमेंट्री बनाई थी, जिसमें मदर टेरेसा के सभी क्रियाकलापों पर विस्तार से रोशनी डाली गई थी, बाद में यह फ़िल्म ब्रिटेन के चैनल-फ़ोर पर प्रदर्शित हुई और इसने काफ़ी लोकप्रियता अर्जित की। बाद में अपने कोलकाता प्रवास के अनुभव पर उन्होंने एक किताब भी लिखी “हैल्स एन्जेल” (नर्क की परी)। इसमें उन्होंने कहा है कि “कैथोलिक समुदाय विश्व का सबसे ताकतवर समुदाय है, जिन्हें पोप नियंत्रित करते हैं, चैरिटी चलाना, मिशनरियाँ चलाना, धर्म परिवर्तन आदि इनके मुख्य काम हैं…” जाहिर है कि मदर टेरेसा को टेम्पलटन सम्मान, नोबल सम्मान, मानद अमेरिकी नागरिकता जैसे कई सम्मान मिले।

संतत्व गढ़ना –
मदर टेरेसा जब कभी बीमार हुईं, उन्हें बेहतरीन से बेहतरीन कार्पोरेट अस्पताल में भरती किया गया, उन्हें हमेशा महंगा से महंगा इलाज उपलब्ध करवाया गया, हालांकि ये अच्छी बात है, इसका स्वागत किया जाना चाहिये, लेकिन साथ ही यह नहीं भूलना चाहिये कि यही उपचार यदि वे अनाथ और गरीब बच्चों (जिनके नाम पर उन्हें लाखों डालर का चन्दा मिलता रहा) को भी दिलवातीं तो कोई बात होती, लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ…एक बार कैंसर से कराहते एक मरीज से उन्होंने कहा कि “तुम्हारा दर्द ठीक वैसा ही है जैसा ईसा मसीह को सूली पर हुआ था, शायद महान मसीह तुम्हें चूम रहे हैं”,,, तब मरीज ने कहा कि “प्रार्थना कीजिये कि जल्दी से ईसा मुझे चूमना बन्द करें…”। टेरेसा की मृत्यु के पश्चात पोप जॉन पॉल को उन्हें “सन्त” घोषित करने की बेहद जल्दबाजी हो गई थी, संत घोषित करने के लिये जो पाँच वर्ष का समय (चमत्कार और पवित्र असर के लिये) दरकार होता है, पोप ने उसमें भी ढील दे दी, ऐसा क्यों हुआ पता नहीं।

मोनिका बेसरा की कहानी –
पश्चिम बंगाल की एक क्रिश्चियन आदिवासी महिला जिसका नाम मोनिका बेसरा है, उसे टीबी और पेट में ट्यूमर हो गया था। बेलूरघाट के सरकारी अस्पताल के डॉ. रंजन मुस्ताफ़ उसका इलाज कर रहे थे। उनके इलाज से मोनिका को काफ़ी फ़ायदा हो रहा था और एक बीमारी लगभग ठीक हो गई थी। मोनिका के पति मि. सीको ने इस बात को स्वीकार किया था। वे बेहद गरीब हैं और उनके पाँच बच्चे थे, कैथोलिक ननों ने उनसे सम्पर्क किया, बच्चों की उत्तम शिक्षा-दीक्षा का आश्वासन दिया, उस परिवार को थोड़ी सी जमीन भी दी और ताबड़तोड़ मोनिका का “ब्रेनवॉश” किया गया, जिससे मदर टेरेसा के “चमत्कार” की कहानी दुनिया को बताई जा सके और उन्हें संत घोषित करने में आसानी हो। अचानक एक दिन मोनिका बेसरा ने अपने लॉकेट में मदर टेरेसा की तस्वीर देखी और उसका ट्यूमर पूरी तरह से ठीक हो गया। जब एक चैरिटी संस्था ने उस अस्पताल का दौरा कर हकीकत जानना चाही, तो पाया गया कि मोनिका बेसरा से सम्बन्धित सारा रिकॉर्ड गायब हो चुका है (“टाईम” पत्रिका ने इस बात का उल्लेख किया है)।

“संत” घोषित करने की प्रक्रिया में पहली पायदान होती है जो कहलाती है “बीथिफ़िकेशन”, जो कि 19 अक्टूबर 2003 को हो चुका। “संत” घोषित करने की यह परम्परा कैथोलिकों में बहुत पुरानी है, लेकिन आखिर इसी के द्वारा तो वे लोगों का धर्म में विश्वास(?) बरकरार रखते हैं और सबसे बड़ी बात है कि वेटिकन को इतने बड़े खटराग के लिये सतत “धन” की उगाही भी तो जारी रखना होता है….

(मदर टेरेसा की जो “छवि” है, उसे धूमिल करने का मेरा कोई इरादा नहीं है, इसीलिये इसमें सन्दर्भ सिर्फ़ वही लिये गये हैं जो पश्चिमी लेखकों ने लिखे हैं, क्योंकि भारतीय लेखकों की आलोचना का उल्लेख करने भर से “सांप्रदायिक” घोषित किये जाने का “फ़ैशन” है… इस लेख का उद्देश्य किसी की भावनाओं को चोट पहुँचाना नहीं है, जो कुछ पहले बोला, लिखा जा चुका है उसे ही संकलित किया गया है, मदर टेरेसा द्वारा किया गया सेवाकार्य अपनी जगह है, लेकिन सच यही है कि कोई भी धर्म हो इस प्रकार की “हरकतें” होती रही हैं, होती रहेंगी, जब तक कि आम जनता अपने कर्मों पर विश्वास करने की बजाय बाबाओं, संतों, माताओं, देवियों आदि के चक्करों में पड़ी रहेगी, इसीलिये यह दूसरा पक्ष प्रस्तुत किया गया है)

 

मांसाहारी साईं

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आज  अवतारवादी  विचारधारा में विश्वास रखने वाले हिन्दू भाइयों  के मध्य एक नए भगवान् प्रसिद्धि की चरम सीमा को छु रहेहैं। इनके ध्यान से, इनमें श्रध्दा रखने पर तत्कालिक लाभ प्राप्त होने की हसरत इनके भक्त जनता तक पहुंचा रहे हैं . बड़े बड़े उद्योग पति, राजनैतिज्ञ, नाटक मंच की हस्तियों को इनके दरबार में सिर झुकाते हुए देखा जा सकता है। आने वाली चढावे कातो हिसाब ही क्या?  तात्कालिक  लाभ होने की हसरत और लुभावने ख्वाब लोगों की भीड़ को इन की तरफ खींच रही है। आलम येहै की पौराणिक हिन्दुओं के  मंदिरों में रखी मूर्तियों की जगह इस नए भगवान् ने ले ली है। इस नवीन उत्त्पन्न  हुए भगवान् के बारे में पूर्ण जानकारी भी उपलब्ध नहीं है की ये   कौन थे और कहाँ से अवतरित हो गए? शिरडी में पहुँचाने से पूर्व ये कहाँ थे शिरडी कहाँ से पहुंचे ये प्रश्न आज भी उलझे हुए हैं। हाव भाव, वेशभूषा, आचरण , नाम आदि  से मुस्लिम प्रतीत होने पर पर भी इनके  भक्त इस तथ्य को मानने से परहेज करते हैं। इसका एक कारण तो ये ही प्रतीत होता है की यदी ये कारण मान लिया जाये तो हिन्दुओं  ,की भावना आहात हो जायेगी और फिर इनके यहाँ आएगा कौन ? क्यूँकी इनको मानने वालों वाले हिन्दू ही हें बड़ी ही कष्टदायक बात है की इनकी तुलना आज मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम और योगी राज श्री कृष्ण से की जा रही है। मर्यादापुरुषोत्तम श्री राम और योगेश्वर श्री कृष्ण करुणा और ज्ञान  के अथाह भण्डार थे। अपना पूरा जीवन इन्होने जीव मात्र के कल्याण के लिएसमर्पित कर दिया।कहाँ मर्यादा पुरषोत्तम श्री राम और योगेश्वर श्री कृष्ण और कहाँ ये चिलम पीने और मांस खाने वाला मुसलमान। और ज्ञान के नाम पर मात्र शुन्य | Continue reading मांसाहारी साईं

साईं – वैदिक धर्म के लिए अभिशाप

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आज हमारे  देश में तथाकथित भगवानो का एक  दौर चल निकला है. इन्हीं भगवानों में से एक हैं शिर्डी के साईं बाबा. आज भारतवर्ष के हर नगर में इनके अनेकों मंदिर हैं . अनेकों  संस्थाएं  इनके नाम से चल रही हें  एवं देश विदेश में इनको मानने वालों की तथा इनके लिए दान देने वालों की संख्या में निरंतर वृध्धि हो रही है. महाराष्ट्र के अहमदनगर में स्थित शिर्डी साईं बाबा शीरीं के अनुसार वर्ष २०११ में केवल इस  ट्रस्ट को ही ३६ किलो ग्राम सोना, ४४० किलोग्राम चांदी एवं  ४०१ Cr रूपया दान में मिला. समस्त साईं मंदिरों में दिए गए दान का तो अनुमान भी लगाना भी संभव  नहीं है.
आज साईं  को इश्वर का अवतार माना  जा रहा है . हमारे महपुरुषों श्री राम कृष्ण का ही रूप इन्हिने बतलाया जा  रहा है और उनके इस्थान पर इनकी पूजा की जा रही है. मन में प्रशन उठता है की आखिर   ये बाबा हैं कौन, कहाँ से ये आये थे और किस तरह ये लोगों का भला करते हैं. साईं एक पारसी शब्द है जिसका अर्थ है मुस्लिम फकीर. साईं एक टूटी हुयी मस्जिद में रहा करते थे और सर पर कफनी बंधा करते थे. सदा ” अल्लाह मालिक” एवं ” सबका मालिक एक” पुकारा करते थे ये दोनों ही शब्द मुस्लिम धर्म से संभंधित हैं.साईं  का जीवन चरित्र उनके एक भक्त हेमापंदित ने लिखा है. वो लिखते हैं की बाबा एक दिन गेहूं पीस रहे थे. ये बात सुनकर गाँव के लोग एकत्रित हो गए और चार औरतों ने उनके हाथ से चक्की ले ली और खुद गेहूं पिसना प्रारंभ कर दिया. पहले तो बाबा क्रोधित हुए फिर मुस्कुराने लगे. जब गेंहूँ पीस गए त्तो उन स्त्रियों ने सोचा की गेहूं का बाबा क्या  करेंगे और उन्होंने उस पिसे हुए गेंहू को आपस में बाँट लिया. ये देखकर बाबा अत्यंत क्रोधित हो उठे और अप्सब्द कहने लगे -” स्त्रियों क्या तुम पागल हो गयी हो? तुम किसके बाप का मॉल हड़पकर ले जा रही हो? ” फिर उन्होंने कहा की आटे को ले जा कर गाँव की सीमा पर दाल दो. उन दिनों गाँव मिएँ हैजे का प्रकोप था और इस आटे को गाँव की सीमा पर डालते ही गाँव में हैजा ख़तम हो गया.  (अध्याय १ साईं सत्चरित्र )
१. मान्यवर सोचने की बात है की ये कैसे भगवन हैं जो स्त्रियों को गालियाँ दिया करते हैं हमारी संस्कृति में  तो स्त्रियों को सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है और कहागया है की यात्रा नार्यस्तु पुजनते रमन्ते तत्र देवता . आटा  गाँव के चरों और डालने से कैसे हैजा दूर हो सकता है?  फिर इन भगवान्  ने केवल शिर्डी में ही फैली हुयी बीमारइ के बारे में ही क्यूँ सोचा ? क्या ये केवल शिर्डी के ही भगवन थे?
२. साईं सत्चरित्र के लेखक ने इन्हें क्रिशन का अवतार बताया गया है और कहा गया है की पापियों  का नाश करने के लिए उत्पन्न हुए थे परन्तु इन्हीं के समय में प्रथम विश्व युध्ध हुआ था और केवल यूरोप के ही ८० लाख सैनिक इस युध्द में मरे गए थे और जर्मनी के ७.५ लाख लोग भूख की वजह से मर गए थे. तब ये भगवन कहाँ थे. (अध्याय 4 साईं सत्चरित्र )
३. १९१८ में साईं   बाबा की मृत्यु हो गयी. अत्यंत आश्चर्य  की   बात है की जो इश्वर अजन्मा है अविनाशी है वो भी मर गया.  भारतवर्ष में जिस समय अंग्रेज कहर धा  रहे थे. निर्दोषों को मारा जा रहा था अनेकों प्रकार की यातनाएं दी जा रहीं थी अनगिनत बुराइयाँ समाज में व्याप्त थी उस समय तथाकथित भगवन बिना कुछ किये ही अपने लोक को वापस चले गए. हो सकता है की बाबा की नजरों में   भारत के स्वतंत्रता सेनानी अपराधी  थे और ब्रिटिश समाज सुधारक !
४. साईं  बाबा चिलम भी पीते थे. एक बार बाबा ने अपने चिमटे को जमीं में घुसाया और उसमें  से अंगारा बहार निकल आया और फिर जमीं में जोरो से प्रहार किया तो पानी निकल आया और बाबा ने अंगारे से चिलम  जलाई और पानी से कपडा गिला किया और चिलम पर लपेट लिया. (अध्याय 5 साईं सत्चरित्र ) बाबा नशा करके क्या सन्देश देना चाहते थे और जमीं में चिमटे से अंगारे निकलने का क्या प्रयोजन था क्या वो जादूगरी दिखाना कहते थे?  इस प्रकार के किसी कार्य  से मानव जीवन का उद्धार तो नहीं हो सकता हाँ ये पतन के साधन अवश्य हें .
५ शिर्डी में एक पहलवान था उससे बाबा का मतभेद हो गया और दोनों में कुश्ती हुयी और बाबा हार गए(अध्याय 5 साईं सत्चरित्र ) . वो भगवान् का रूप होते हुए भी अपनी ही कृति मनुष्य के हाथों पराजित हो गए?
 ६. बाबा को प्रकाश से बड़ा अनुराग था और वो तेल के दीपक जलाते थे और इस्सके लिए तेल की भिक्षा लेने के लिए जाते थे एक बार लोगों ने देने से मना  कर दिया तो बाबा ने पानी से ही दीपक जला दिए.(अध्याय 5 साईं सत्चरित्र ) आज तेल के लिए युध्ध हो रहे हैं. तेल एक ऐसा पदार्थ है जो आने वाले समय में समाप्त हो जायेगा इस्सके भंडार सीमित हें  और आवश्यकता ज्यादा. यदि बाबा के पास ऐसी शक्ति थी जो पानी को तेल में बदल देती थी तो उन्होंने इसको किसी को बताया क्यूँ नहीं?
७. गाँव में केवल दो कुएं थे जिनमें से एक प्राय सुख जाया करता था और दुसरे का पानी खरा था. बाबा ने फूल डाल  कर  खारे  जल को मीठा बना दिया. लेकिन कुएं का जल कितने लोगों के लिए पर्याप्त हो सकता था इसलिए जल बहार से मंगवाया गया.(अध्याय 6 साईं सत्चरित्र) वर्ल्ड हेअथ ओर्गानैजासन    के अनुसार विश्व की ४० प्रतिशत से अधिक लोगों को शुध्ध पानी पिने को नहीं मिल पाता. यदि भगवन पीने   के पानी की समस्या कोई समाप्त करना चाहते थे तो पुरे संसार की समस्या को समाप्त करते लेकिन वो तो शिर्डी के लोगों की समस्या समाप्त नहीं कर सके उन्हें भी पानी बहार से मांगना पड़ा.  और फिर खरे पानी को फूल डालकर कैसे मीठा बनाया जा सकता है?
८. फकीरों के साथ वो मांस और मच्छली का सेवन करते थे. कुत्ते भी उनके भोजन पत्र में मुंह डालकर स्वतंत्रता पूर्वक खाते थे.(अध्याय 7 साईं सत्चरित्र ) अपने स्वार्थ वश किसी प्राणी को मारकर  खाना किसी इश्वर का तो काम नहीं हो सकता और कुत्तों के साथ खाना खाना किसी सभ्य मनुष्य की पहचान भी नहीं है.
अमुक चमत्कारों को बताकर जिस तरह उन्हें  भगवान्  की पदवी दी गयी है इस तरह के चमत्कार  तो सड़कों पर जादूगर दिखाते हें . काश इन तथाकथित भगवान् ने इस तरह की जादूगरी दिखने की अपेक्षा कुछ सामाजिक उत्तथान और विश्व की उन्नति एवं  समाज में पनप रहीं समस्याओं जैसे बाल  विवाह सती प्रथा भुखमरी आतंकवाद भास्ताचार अआदी के लिए कुछ कार्य किया होता!
यह संसार अंधविश्वास और तुच्छ ख्यादी एवं सफलता के पीछे  भागने वालों से भरा पड़ा हुआ है. दयानंद सरस्वती, महाराणा प्रताप शिवाजी सुभाष चन्द्र बोस सरदार भगत सिंह राम प्रसाद बिस्मिल सरीखे लोग जिन्होंने इस देश के लिए अपने प्राणों को न्योच्चावर कर दीये  लोग उन्हिएँ भूलते जा रहे हैं और साईं बाबा जिसने  भारतीय स्वाधीनता संग्राम में न कोई योगदान दिया न ही सामाजिक सुधार  में कोई भूमिका रही उनको समाज के कुछ लोगों ने भगवान्  का दर्जा दे दिया है. तथा उन्हें योगिराज श्री कृष्ण और मायादापुरुशोत्तम श्री राम के अवतार के रूप में दिखाकर  न केवल इन  महापुरुषों का अपमान किया जा रहा अपितु नयी पीडी और समाज को अवनति के मार्ग की और ले जाने का एक प्रयास किया जा रहा है.
आवश्यकता इस बात की है की है की समाज के पतन को रोका जाये और जन जाग्रति लाकर वैदिक महापुरुषों को अपमानित करने की जो कोशिशेन की जा रही हिएँ उनपर अंकुश लगाया जाये.

मुहूर्तवादियों से कुछ प्रश्न: Arya Great

मुहूर्तवादियों से कुछ प्रश्न

१. मुहूर्त  क्या है और उसका क्या अर्थ है ?

२. मुहूर्त का प्रारम्भ  कब से हुआ और क्यों ? उसका प्राचीनतम ग्रन्थ कौन सा है ?

३. मुहूर्त शुभाशुभ किस रूप में है , उपपत्ति वा  प्रमाणपूर्वक बताइये ?

४. क्या मुहूर्तों के शुभाशुभ होने में चार वेद, ६ शाश्त्र, और दस उपनिषदों में कहीं कोई प्रमाण है ? हो तो बताइये।

५. ऐसा कोई मुहूर्त का ग्रन्थ है जिसकी आद्योपान्त प्रत्येक बात की सिद्धि करके बतला  सकें अर्थात जिसकी सोपपतिक व्याख्या हो ?

६. विना किसी कार्य के शुभमुहूर्त लाभ और अशुभ मुहूर्त हानि  पहुंचा सकता है अथवा नहीं ? किस प्रकार ?

७ यदि मुहूर्त अच्छे होते हैं तो स्वयं फलितज्ञा अच्छे मुहूर्त में मालामाल क्यूँ नहीं होते ? बेचारे भोले लोगों को मुहूर्त  के नाम से बहकाकर क्यूँ लुटते और अच्छे मुहूर्त में कर्म करके सफल क्यूँ नहीं होते ? अशुभ मुहूर्त में करके घाटा क्यूँ उठाते ?

८ फलित को मानने वाले मरणासन्न स्तिथि में अच्छे से अच्छे मुहूर्त में स्वयं प्राणांत करके उच्च व परमगति को क्यों नहीं प्राप्त होते ?

९. मुहूर्त शुभाशुभ हैं अथवा शुभाशुभ के  सूचक हैं ? यदी शुभशभ हें तो वे व्यापक होने से शुभ में सब का शुभ और अशुभ में अशुभ  होना चाहिए ?

यदि सूचक मात्र हैं तो मुहूर्त हो अथवा न हो तो भी शुभाशुभ होकर रहेगा।

१०. शुभ मुहूर्त में एक के घर में विवाह हो रहा है तो उसके पड़ोसी के घर में उसी मुहूर्त में चोरी क्यूँ होती है ?

११. मुहूर्त बड़ा है अथवा सत्कर्म बड़ा ? सप्रमाण बतलाइये कि वा आपेक्षिप  हैं अथवा इन दोनों का समवाय सम्बन्ध है.

१२ शुभकर्म अपने में निरपेक्ष अथवा सापेक्ष ?

१३ यदि कोई सदा शुभ कर्म ही करता जाय और मुहूर्त को देखे ही नहीं तो उसको सुख मिलेगा वा दुःख ? यदि सुख मिलता है तो मुहूर्त की कोई आवश्यकता नहीं है. यदि दुःख मिलता है तो मुहूर्त जब मनुष्य का बनाया नहीं तो दुःख क्यूँ मिला।

१४ कर्म सिद्धांत सत्य है अथवा मुहूर्तवाद सत्य है ? क्योंकि एक विषय में परस्पर विरुद्ध दोनों सत्य नहीं हो सकती

१५ अशुभमुहूर्त में किया हुआ शुभ कार्य सफल होता है वा नहीं ? और क्यों

१६ शुभमुहूर्त में किया हुआ अशुभकार्य सफल होता है व नहीं ? और क्यों ?

१७ भोजन करने के लिए भूख को देखना चाहिए व मुहूर्त को ?

१८ सर्प ने काट खाया हो तब औषधि के लिए मुहूर्त देखे अथवा मुहूर्त को ठुकराकर औषधि का प्रबंध करें ? क्यों ? दुर्मुहुर्त में ली हुयी औषधि क्या हानिकारक नहीं होगी ?यदी मारक नहीं होगी , हानि नहीं पहुंचेगी तो दुर्मुहुर्त में किये अन्य कार्यों में क्या हानि होगी

१९ यात्रा पर जाना है. जब यान है तब शुभ मुहूर्त नहीं, जब शुभ मुहूर्त है तब यान नहीं है. यान को छोड़ें  वा मुहूर्त को

२० क्या आत्मविश्वासी को मुहूर्त देखना चाहिए ? मुहूर्त को देखने वाला क्या आत्मविश्वासी हो सकता है ?सप्रमाण बताइये

२१. परमात्मा ने अशुभ मुहूर्त बनाये ही क्यों? परमात्मा ने ही यह बतलाया कि कुआँ मुहूर्त शुभ और कौन अशुभ अथवा यह आप का ही अनुसंधान है ? सप्रमाण बताइये।

२२ कर्म सिद्धांत का तथा मुहूर्त का सामंजस्य क्या है ? जब दोनों में विरोध हो तो किसको छोड़ और किसको अपनावें ? मुहूर्त को देखें वास कर्म को और कसी प्रकार ?

२३ किसी दार्शनिक वा विचारक ने इसको माना हो अथवा प्राचीनकाल में कहीं यह  व्यवहार में रहा हो तो घटना पूर्वक बतलाइये?

२४ मुहूर्तों की चिंता में रहने वाला क्या कभी क्या तत्ववेत्ता और पुरुषार्थी बनेगा

२५ मुहूर्तों के पीछे चलने से जो हानी होती है उसका कौन उत्तरदायी है ?

तिथी को शुभ अशुभ मानने वालों से कुछ प्रश्न : Arya Great

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तिथी को शुभ अशुभ मानने वालों से कुछ प्रश्न :

१. तिथी को शुभ अशुभ मानने का कारण क्या है ?
२. तिथि के शुभ अशुभ होने और सफलता असफलता के कारण होने में वेदादि सत्य शाश्त्रों के प्रमाण दीजिये ?
३. तिथी का तथा कर्म सिद्धांत का कैसा सम्बन्ध है ? सविस्तार बताइये।

४ शुभ तिथियों में किये हुए कार्य असफल क्यूँ हो जाते हैं ?
५. यदि किसी ने देश पर आक्रमण किया हो तब शुभ तिथि का क्या अर्थ होगा ? यदी रहेगा अथवा कोई दूसरा बनेगा ?
६. औषधि सेवन में शुभाशुभ तिथी की प्रतीक्षा करें तो तिथि से पूर्व रोगी महाप्रयाण ही करेगा।.
७. शुभकर्मों में तिथी की क्या आवश्यकता है ?
८ अशुभ कार्य शुभ तिथि में करने चाहिए अथवा अशुभ तिथी में ?
९ शुभतिथि में एक के घर विवाह आदि सुखकारी कर्म होते हैं तो दूसरे के घर में चोरी मृत्यु आदि दुःख दायक कर्म क्यूँ होते हैं ?
१०. परमात्मा शुभ तिथि में ही मनुष्यों के जन्म मरण क्यों नहीं करता।
११. वृक्षो का उगना, पुष्पित फलित होना वर्षा का आना आदि शुभतिथियों में ही क्यों नहीं होता ? अशुभ तिथियों बनाई ही क्यों ?
१२परमात्मा कौन कौन से कार्य शुभ तिथी में और कौन कौन से अशुभ तिथि में करता है ?
१३.यदि मनुष्य पुरुषार्थी आस्तिक होगा तो तिथी को क्यों देखेगा ?
१४. जिसको अपनी बुद्धी और पुरुषार्थ पर विश्वास है तो वह तिथी को क्यों देखेगा ?
१५ यदी तिथि को देखता तो वह परिश्रम क्या करेगा और परिश्रम करेगा तो तिथी देखने की क्या आवश्यकता है ?
१६ ऋषी दार्शनिकों ने तिथि आदि को कहीं महत्व दिया हो ऐसा देखने में नहीं आता। यदी है तो दिखाएँ ?
१७ तिथि के शुभ अशुभ तत्व के अन्धविश्वास होने पर वह जो कुछ करता है संशयालु होकर करता है. कोई शुभ कार्य नहीं कर पाता छोड़ने पड़ते हैं। जब कहीं हानी होती है तो झट से तिथी के मड़ देता है। मनुष्य के मानसिक रोग की चिकित्सा ही क्या है

Arya Shreshtha

कुण्डली को सत्य मानने वालों से कुछ प्रश्न : Arya Great

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कुण्डली को सत्य मानने वालों से कुछ प्रश्न

१. कुण्डली से जीवन के सम्बन्ध में ज्ञान कैसे होगा यह युक्ति से सिद्ध कीजिये ?
२. कुंडली का विधान अथवा संकेत किसी वेदशास्त्र में हो तो प्रमाण दीजिये ?
३. कुंडली का कर्म सिद्धांत से क्या सम्बन्ध है सप्रमाण बताइये ?
४ जन्म कुंडली से जीवन का ज्ञान होता है अथवा चन्द्र कुंडली से और क्यों ? यदि दोनों में परस्पर विरोध हो तो किसको मानें और किसको नहीं ?
५. कुंडली के अनुसार मनुष्य की १२० वर्ष ही होती है। प्रत्यक्ष में देखा जाता है कि एक सौ बीस वर्ष से अधिक आयु वाले होते हैं। क्या प्रत्यक्ष भी मित्थ्या है ?
६. पति पत्नी की संतान रेखाएं एक समान क्यों नहीं होती ? क्योकि दोनों की वही संतान है ? क्या इससे जन्मकुण्डली मित्थ्या सिद्ध नहीं होती ?
७. अशुद्ध कुण्डली से वास्तविक जीवन का ज्ञान क्यों हुआ ?
८. अशुद्ध कुण्डली से वास्तविक जीवन का ज्ञान क्यों हुआ ?
९. मनुष्य कर्म करने में स्वतंत्र है अथवा परतंत्र ? यदी स्वतंत्र है तो कुंडली को देखने की क्या आवश्यकता है ? यदि परतंत्र है तो भी देखने की आवश्यकता ही नहीं

हनुमान आदि बन्दर नहीं थे ? – स्वामी विद्यानन्द सरस्वती

वानर –  वने भवं वानम , राति ( रा आदाने ) गृह्णाति ददाति वा. वानं वन सम्बन्धिनम फलादिकम् गृह्णाति ददाति वा –  जो वन   उत्पन्न होने वाले फलादि खाता है वह वानर कहलाता है. वर्तमान में जंगलों व पहाड़ों में  रहने और वहाँ पैदा होने वाले पदार्थों पर निर्वाह करने वाले “गिरिजन” कहाते हैं. इसी प्रकार  वनवासी और वानप्रस्थ वानर वर्ग में गिने जा सकते हैं. वानर शब्द से किसी योनि विशेष जाति  प्रजाति अथवा उपजाति का बोध नहीं होता।

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जिसके द्वारा जाति  एवं जाति  के चिन्हों को प्रगट किया जाता है वह आकृति है. प्राणिदेह के अवयवों की नियत रचना जाति  का चिन्ह होती है. सुग्रीव बाली  आदि के जो  चित्र देखने में आते हैं उनमें  उनके पूंछ  लगी दिखाई है  परन्तु उनकी स्त्रियों के पूंछ  नहीं होती। नर मादा में इस प्रकार का भेद अन्य किसी वर्ग में देखने में नहीं आता. इसलिए पूंछ  के कारण हनुमान आदि को बन्दर नहीं माना जा सकता। Continue reading हनुमान आदि बन्दर नहीं थे ? – स्वामी विद्यानन्द सरस्वती