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हिन्दुस्तान किस तरह मुसलमान हुआ ?

मौलवी जकाउल्ला प्रोफेसर फरमाते है । यह असली मुसलमान कुल मुसलमानों से जो इस मुल्क में आबाद है आधे होंगे। वाकी आधे ऐसे ही मुसलमान है जो हिन्दुओं से मुसलमान हुए है । सरकारी मर्दुमशुमारी से मालूम होता है कि हिन्दुस्तान में ४ करोड़ १० लाख मुसलमान रहते हैं । उनमें से जियादह मुसलमान जो हिन्दुओं से मुसलमान हुए हैं । गो इस्लाम

ने उनके सिद्धान्तो को बदल दिया मगर उनके रस्म रिवाज को न बदल सका । गोकि वह आपस में मिलकर खाने पीने लगे मगर शादी व्याह में अब तक गोत्र बचाते है जैसे हिन्दू-गरज इस्लाम का असर हिन्दुओं पर ऐसा नहीं हुआ जैसाकि हिन्दुओं का असर इस्लाम पर हुआ ।
(देखो तारीख हिन्द हिस्सा अव्वल फस्ल दौम सफा 6)

अब हम बतलाते हैं कि इतने जो मुसलमान है । ये किस तरह मुसलमान हुए हैं और कब से हुए हैं और सब से पहिला मुसलमान इस मुल्क में कौन हुआ है ।

मुल्क हिन्दुस्तान में सबसे अव्वल मुसलमान वापा राजपूत चित्तोड़ के मालिक ने सन् 812 ई० में खमात्त के हाकिस सलीम की लड़की से शादी कर सी और मुसलमान हुआ मगर मुसलमान हॉकर लज्जित हॉकर खुरासान चला गया … फिर न आया उसका हिन्दू बेट गद्दी पर
बैठा । (देखो आईन तारीख नुमा सफा सन् 1881 ई० ।)

सन् 812 ई॰ से खलीफा मामू रसीद ने बडी फोज के साथ हिन्दुस्तान पर चढाई की । वापा का पोता उस वक्त चितौड़ का हाकिम था … नाम उसका राजा कहमान था । उससे ओर मामूं से जो बीस लडाहयां हुई लेकिन आखिरकार मामूं शिकिस्त खाकर हिन्दूस्तान से भाग गया । (सफा 6 आईना तारीख नुमा सन् 1881 ई० और देखो मिफ्ताहुद तवारीख सफा
(7 सन् 1883 त्तवये सालिस हिस्सा अव्वल)

हिन्दुस्तान का दूसरा मुसलमान राजा सुखपाल नाम महमूद के हाथ राज्य के लालच में मुसलमान हुआ । मगर लिखा है जब महमूद बलख की तरफ़ गया तो उसने फिर हिन्दू बनकर उसकी तावेदारी की । महमूद ने सन् 1006 ई॰ में उसे पकड़कर जन्म भर के लिये कैद कर दिया (सफा 16 आईने त्तारीख नुमा सन् 1881 ई० और मुखताहुद तवारीख सफा 9 सन्
1883 ई० हिस्सा अव्वल)

अरब किस तरह मुसलमान हुआ ?

खुद हजरत मुहम्मद के जमाने में अरब वालो से मुफ्फसिल जैल मशहूर लडाई हुई है । जिनमें हजारों लाखों आदमी तलवार से क़त्ल हुए। सैंकडों स्त्रियाँ लौंडिया बनाई गई। और हजारों ऊंट बकरी लूटे गये । हजारों के घर तबाह हुए और जब लूट से काफी पूंजी जमा हो गई तो फिर इनाम इकराम मिलने लगे । माल मुफ्त दिले बे रहम पर अमल दरामद किया गया – जो साथ शरीक होजाता वह गरीब चरबाहों के हक में गोया भेडिया होजाता था । हम इस मौके पर मुफ्फसिल हालात लिख़ने से पहिले अरब के एक मशहूर और मारूफ़ आदमी अबूसुफियान के मुसलमान होने का हाल दर्ज करते हैं ।

जब मुहम्मद ने मक्के की फतह करने पर फौजे तय्यार की तो अव्वाल और अबूसुफियान जो निष्पक्ष थे घूमते हुए आपस से मिले । अब्बास ने अबूसुफियान से कहा कि अब क्या मारे जाओगे उसने मारे जाने के बचने का उपाय पूछा । अव्वाल उसको इस्लाम से लाने के बहाने निर्भय कर देने का वादा करके मुहम्मद के पास लेगया । हजरत उमर मारने के वास्ते दौड़े । रात को उसको हवालात में रखा सुबह को हाजिर लाया । मुहम्मद साहब ने कहा कि अबतक वह समय नहीं आया कि तू कहे कि खुदा एक है और उसका कोई साक्षी नहीं और उसके सिवाय कोई पूजित नहीं । और मैं सच्चा नबी (पैगम्बर) हूँ अबूसुफियान ने कहा कि मेरे माँ बाप आप के भक्त हैं । सब बडाई और बुजुर्गी आपही की है । उन गुस्ताखियों और बेअदबियों के बदले जो मुझसे हुई आप की यह कृपा मुझ पर है । वास्तव में एक खुदा के सिवाय कोई पूजित नहीं। परन्तु पैगम्बर की सत्यता पर मौन धारण किया अब्बास ने कहा की पैगम्बर की सत्यता पर भाषण कर नहीं तो खैर नहीं। अबूसुफ़ियान ने मजबूर होकर पैगम्बर की सच्चाई मानी और इस्लाम ग्रहण किया। तब अब्बास ने नबी की सेवा में अर्ज किया की हे अल्लाह के पैगम्बर अबूसुफ़ियान पद और मान को अच्छा समझता है। उसको कोई पदाधिकार दीजिये ताकि उसका मान हो। मुहम्मद ने उसको इस आज्ञा से से मान दिया की जो कोई अबूसुफ़ियान के घर में दाखिल हो उसकी जान बख्शी जावे। निदान वह छुट्टी लेकर मक्के को गया – अब्बास उचित अवसर पाकर पैगम्बर की सम्मति से अबूसुफियसान के पीछे गया, वह डरा अब्बासने कहा डरमत । सारांश यह कि अब्बास ने अबूसुफियान को रास्ते के किनारे पर खड़ा किया ताकि सब लश्कर इसलाम को देखले और उस पर रोब होजावे ताकि वह फिर इस्लाम से न फिरे । जब कि इस्लाम की फौज अबूसुफियान के सामने से निकल गई लोगों ने कहा जल्द जा और कुरैश को डर दिलाकर ओर समझाकर इस्लाम को घेरे में ला ताकि जीवन मोत से निर्भय होजावे अबूसुफियान जल्द उनकी जान मारे जाने से बचा सके, (देखो तारीख अम्बिया सफा ३५४ व ३५५ सन् १२८१ हिजरी और ऐसा ही जिक्र किताब सीरतुल रुस्ल व त्तफसींर हुसैनी जिल्द १ सूरे तोबा सफा ३६० में है)

जिस कदर खूंरेजी और लूटमार से अरब के लोग मुसलमान हुए है अगर उनकी मुफ्फसिल फिहरिस्त लिखी जावे तो एक दफ्तर बनजावे । हालत पर लक्ष करते हुए संक्षेप से वर्णन करते हैं ।

(1) गज़वा (लडाई) वदां।

(2) गजबये बवात ।

(3) गजवतुल अशरह

(4) गजबये बदर ऊला ।

(5) जंगे बदर ।

(6) गजब तुल कदर

(7) गजय तुल अन्सार

(8) गज़वा वाजान

(9) गज़वा सौवक

(10) गज़वा अहद

(11) गज़वा हमराउल असद

(12) गजबा जातुर्रिका

(13) गज़वा बदरुल मुअद

(14) गज़वा दौमतुल जन्दल

(15) गज़्वावनी मुस्तलिक

(16) गज़वा बनी नजीर

(17) गज़वा खन्दक

(18) गज़वा बनू तिबियान

(19) गजबाजूकुरह

(20) गज़वा फतह मक्का

(21) गज़वा हबाजन

(22) गज़वा औतास

(23) गज़वा ताइफ़

(24) गज़वा बनीकीका

(25) गज़वा बनिनुफैर

(26) गज़वा वनी करैता

(27) ग़ज़वे तलूक ।

इन ले 27 मशहूर ग़ज़वाता (लड़ाइयों) के सिवाय और बहुत से हमले और जंग हुए हैं जिनकी कुल तादाद 81 के करीब पहुंचती है इस किस्म के सैकडों मुकाबिले और लड़ाइयो के बाद जान के लाले पड़ जाने के डरसे डरपोक देहाती मुसलमान बन गये और जोर वाले बहादुर शेर दिल देहाती जैसे अब्दुल हुकम ईश्वरीय कृपापात्र वगेरह शहीद डोगये । हिसारे की कोम सकी जंग में लिखा है कि हजरत अली ने मुहम्मद से पूछा कि कब तक कत्ल से हाथ न उठाऊं मुहम्मद ने कहा जब तक यह न कहे कि अल्लाह एक है और मुहम्मद उसका पैगम्बर है तकतक क़त्ल कर (देखो तारीख अम्बिया सफा ३४६ सतर १५ या १६ सन् १८८१ हिजरी)

गजबा वनी कुरेता की बाबत लिखा है कि साद विन मआज ने पैगम्बर को कहा कि इस बदजात कोम यहूदी का किस्सा तमाम करो गर्ज कि लड़ने लायक आदमी मारे गये और बाकी कैद गये चुनांचे कई सौ आदमी कुरैती मदीने से लाकर क़त्ल किये गये । (देखो मौलवी नूरुद्दीन साहब की फसलुल खिताब सफा १५९)

सुलह फुदक की बावत लिखा है कि नुहेफा विन मसऊद खुदा की हिदायत के बमूजिब सुलह फुदक तशरीफ ले गये और उस कौम को इस्लाम फेंलाने का पैगाम देकर जहाद का पैगाम दिया – मगर उन्होंने न सुलह का पैगाम दिया और न लड़ने को बाहर मैदान में निकले । (देखो तारीख अम्बिया सफा ३४७ सन् १२८१ हिजरी)

मुहम्मद साहब के मरने के बाद जो बहस हजरत अबू बकर की खिलाफत से पहिले सादविन उवादा बडे आदमियों में से था) सैंकडों मुसलमानों के सामने की है। उससे सारा हाल अरब के इस्लाम में लाने का जाहिर होता है । जैसा कि लिखा है सादबिन उबादा ने क्रोधातुर होकर कहा कि है अन्सार का गरोह तुम सब कपटी हो कि तुमको इस्लाम के सब गरोहों पर मान है। क्योंकि मुहम्मदी अपनी कौम बाद दश वर्ष के जियादा रहा । और सबसे मदद चाहीं और दीन को जाहिर करता रहा – मगर सिवाय चन्द आदमियों के किसी ने ध्यान नहीं दिया और कोई उस मुसीबत के समय साथी न हुआ – मगर थोडे दिन मदीने से रहने से और हमारे कष्ट उठाने से खुदा को यह कृपा हुई कि दीन इस्लाम को वह तरवकी हुई जो तुम देखते हो ।

पस खुलासा बात यह है कि तुम्हारे कष्ट से सिवाय इस के और क्या नतीजा होगा कि अब बड़े-बड़े रईस इस्लाम मुहम्मद में दाखिल हैं । खिलाफत के काम ओर रियासत तुम्हारे कब्जे में रहनी चाहिये । सब अंसार ने कहा कि हे साद सच है जो तुमने कहा तेरे सिवाय अंसार में कोई बडा नहीं । हमने तुझको अपना सर्दार बनाया और तुमसे बरैयत (प्रतिक्षा) करते है तुझसे जियादा अच्छा खिलाफ़त का काम बजाने वाना कोई नहीं है अगर मुहाजिर (पुजारी) इस बारे से कुछ विरोध करेंगे तो हम उनसे कहैगे कि अच्छा अमीरी तुम्हारे ही खान्दान में सही और हमारे खान्दान में भी सही । (देखो तारीख अम्बिया सका ३७४ सन् १२९१ हिजरी)

मुहम्मद साहब ने लोगों से वादा किया था कि कैंसर और किसरा के खजाने बजरिये गनीमत तुम्हारे हिस्से में आवेंगे मुसलमान होजाओ । पस लोग इसी नियत से मुसलमान हुए थे जैसा कि अक्सर मर्तवा उस समय के मुसलमान इन्कार करते और परेशान होते रहे (देखो मुफ्फसिल तारीख अम्बिया सफा ३२४ सन् १२८१ हिजरी ।)

गजवये बदर कुब्रा में साद वगेरह मुसलमानों ने मुहम्मद साहिब को यह रायह दी कि तेरे लिये एक सुरक्षित तख्त की जगह अलग मुकर्रर कर ओर जरूरी असबाब उसमें रखदे ओर फिर काम में लगें । अगर हम जीते तो पहिली सूरत में अपनी जगह सवार होकर मदीने में जावें । हजरतने साद की राय पसंद की और भलाई की दुआ दी और नकबख्त आदमियों की राय के मुताबिक त्ततींबवार अमन करने में लग गये और आनन फानन में त्ततींब की नींव डाली (देखो तारीख अम्बिया सफा ३०५ सन् १२८१ हिजरी देहली)

गनीमत के माल बांटते पर हमेशा झगड़ेही रहते थे ओर इसी लूट के माल की खातिर पहिले लोग मुसलमान हुए थे और इसी की तर्गीब से मुतलिफ वक्तो से मुसलमान होते रहे । (देखो सफा ३१० तारीख अम्बिया ।)

हिजरी की दोम साल में निरपराधो यहूदियों का माल व असबाब लूटा और उनको मदीने से निकाल दिया । चुनाँचि लिखा है कि तमाम माल व असबाब बुरे काम करने बालों का मुसलमानो के हाथ जाया और पांचवा हिस्सा कायदे के बमूजिब निकाल कर बाकि बट गया (देखो सका ३१२ तारीख अम्बिया ।)

साल सोयम हिजरी से कावबिन अशरफ सब उत्तम शायर को सिर्फ कुरेश का शायर होने के कारण हजरत मुहम्मद साहब ने एक हीला सोचकर अयुवनामला मुसल्लिमा वगेरह के हाथों से क़त्ल करवा दिया और पैगम्बर पर जान न्योछावर करने बालों ने अयवूराफे विन अविल हकीक को बेगुनाह क़त्ल कर डाला । देखो सफा २१३ तारीख अम्बिया सन् १२८१ हिजरी ।)

जंग अहद के जिक्र में लिखा है कि जनाब पैगम्बर की निगाह व हिफाजत में महाजिर (पुजारी) इन्सार ने बडी कोशिश की इस लडाई में कुरैशियों ने इत्तिफाक किया था इसमें अक्सर पैगम्बर के साथी व चार महाजिर (पुजारी) और ६६ अंसार लडाई के मैदान से मारे गये मुहम्मद साहिब गड्रढे में गिर पड़े । पांव से चोट आयी – कम्प जारी हो गया – बडी कठिनता से तलहाने गड्रढे से नीचे उतर कर कंधे पर चढाया और अली ने आहिस्ता आहिस्ता हाथ पकड़ कर बाहर को खींचा और जिस बक्त मुहम्मद बाहर निकले तो दुखित देखा । दांत टूटे हुए पाये जख्मो से खून जारी था आम खबर फ़ैल गई थी कि मुहम्मद साहब मारे गये … अमीर हमजा वगेरह मारे गये कुरैश की औरतों ने उनके नाक कान काट लिये – सफा ३१६ व ३१७ तारीख अम्बिया सन् १२८१ हिजरी में

अगर खुदा करता कि यह जरासीं और हिम्मत कर जाती तो मुहम्मदी इस्लाम का नाम व निशान न रहता। मगर अफ़सोस कि सुस्ती की-बुद्धिमानों ने सच कहा है “कार इमरोज़ व फर्द मफगन” (आज का काम कल पर मत छोडो)। हजरत के मरने पर बडा विरोध और ईर्ष्या व झगडा सब अरब में फ़ैल गया हर एक गिरोह रियासत चाहता था और दूसरे का विरोधी (देखो तारीख अम्बिया सफा ३७१ से ३७४ तक)

रिसाले मुअजजात में लिखा है कि हज़रन के मरने के बाद अरब के बहुत से कबीले फिर गये ।

सूरे मायदा :- ‘ ‘या अय्योहल्लजीना आमनूं मई यरतद्दा मिन्कम अन्दोनही फसोफा यातिल्लाहो बिकौमिन युहिब्बहुम बयोहिब्बूनहू अजिल्लतुम अलल मोमिना अइज्जतुन अलल काफिरीना व उजाहिदूना की सवी लिल्लाह !”

अर्थ :- हे मुसलमानों जो तुम अपने दीन से फिर गये एक कोम अल्लाह की तरफ से क़रीब आवेगी कि तुम उनको दोस्त रक्खोगे ओर बह काफिरों पर जहाद करेंगे अल्लाह के लिये ।

ओर अबूउबैदा सही किताबों में लिखता है कि जिस वक़्त मोहम्मद के मौत की खबर मक्के में पहुंची अक्सर मक्का के लोगों ने चाहा कि मुहम्मदी इस्लाम से अलग होजावें चुनाँचि मक्का के अमलाबाले कई दिनों तक डर के मारे घर से बाहर नहीं निकले – मुहम्मद के मरने पर जो लोग इस्लाम से फिर गये वह भी तलवार से जीते गये। अन्त से फिसाद बढ़ते बढ़ते यहाँ तक नौबत पहुंची कि अली खलीफा के वक़्त में तल्लाह ओर जुबैर और आयशा मुहम्मद साहिब की बीबी और माविया का शाम के मुल्क की तरफ हजरत अली और दूसरे मुसलमानों के साथ लडाई हुई बीबी आइशा ने तलहा के बढावे की सलाह ओर मुहब्बत से लडाई की । शाम के सब मुसलमान अली के मारने पर तय्यार थे जिसमें हजरत अली मय एक लाख साठ हजार फ़ौज के और हजरत माबिया वगैरह भी मय बहुत सी फौज के फरात नदी के किनारे पर लडाई लड़ने आये ६ माह लडाई होती रही ७००० आदमी अली के तरफ़ के और १२००० माबिया की तरफ़ से मुसलमान हताहत हुए। माबिया ने सुलह (सन्धि) का पैगाम भेजा – अलीने अस्वीकार किया लडाई हुई इसमें ३६००० और भी मारे गये अन्त में २२६००० मुसलमानों के मारे जाने के बाद सुलह हुई । इब्न मुलहम मिश्र के रहने वाले मोमिन (ईमानबाले) ने बड़े प्रेम से एक औरत के निकाह के बदले अली को मारडाला । उस कुतामा नाम ईमानदार औरत ने अपने मिहर में अली का क़त्ल लिखवाया था । इस तरह अरब में इस्लाम बढ़ा और घट गया (देखो तारीख अम्बिया सफा ४४५ व ४४६ सन् १८८१ हिज्र देहली।)

यह माविया अली के जंग की अग्नि बहुत काल तक प्रज्वलित रही और इसी का अन्तिम परिणाम यह था कि अली के लड़कों हसैन व हुसेन का यजीद माविया के लड़के के साथ इमाम होने का झगडा हुआ और असंख्य मुसलमान दोनों तरफ के क़त्ल हुए (देखो जांगनामा हामिद।)

जो लोग मुस्लमान होते थे उनको माल व संतान वापस मिलता था। क़त्ल से बच जाते थे इस वास्ते अक्सर कबीला अरब जब लड़ते लड़ते और खून की नदिया बहाते बहाते तंग आ गए मजबूरन मुस्लमान हो गए चुनाँचि गज़वा तायफ़ में लिखा है बाद फतह के एक गिरोह हवाज़न (हवा उड़ाने वालो) ने इस्लाम क़बूल किया और आपने उनकी जायदाद और संतान को वापिस दिया फिर मालिक विन अताफ जो हुनैन के काफिरो की फ़ौज का सरदार था विवश होकर मुस्लमान हुआ और इसका माल व संतान वापिस दी गयी। (देखो तारिख अम्बिया सफा ३६० सन १२८१ हिजरी)

नवी साल के जिक्र में लिखा है की गिरोह गिरोह अरब के कबीले शौकत व इस्लाम की तरक्की देखकर मुस्लमान हो गए यहाँ तक की नाम इस साल का “सनतुल वफूद” वफ़ादारी का साल कहते हैं (देखो सफा ३६१ तारिख अम्बिया १२८१ हिजरी)

फिर लिखा है कि मुसलमानो को जीत पर जीत होने से आस पास के मुशरिक लोग दिक्कते व परेशानी उठाने के बाद इस्लाम की शरणागत हुए और काफिरपन भूल गए। (तारिख अम्बिया सफा ३८९ व ३६०)

अरब में गुलामी का आम दस्तूर अब तक मौजूद है। और वह हज़रत के वक़्त से जारी है। लौंडी और गुलाम जिस तरह मक्का में भेजे जाते हैं और ख्वाजा सराय बनाये जाते हैं और मक्का मौज़मा और मदीना मनव्वर बल्कि रोज़ह मुतहरह पर ख्वाजा सरायो का यकीन है। निहायत अफ़सोस के काबिल है और फिर कहा जाता है की दीन इस्लाम में जबर करना जायज़ नहीं।

एक योग्य और प्रतिष्ठित इतिहास लेखक लिखता है की अरब वाले नूह की संतान नहीं है बल्कि कृष्ण लड़के शाम की संतान में से हैं और इसी वास्ते वह शामी कहलाते हैं द्वारिका से ख़ारिज हो जाने के बाद शाम जी अरब मय (साथ) अपने सम्बन्धियों व सेवको के आ गए और उसी रोज़ से अरब आबाद हुआ वर्ना इससे पहिले वहाँ आबादी नहीं थी और अरब शब्द संस्कृत का है (यानि आर्यावः) यानी आर्यो का रास्ता मुल्क मिश्र को आर्यो की यात्रा का रास्ता और अरब का अंग्रेजी नाम अरेबिया को देखने से यह बात समझ में आजाती है। पस दरहक़ीक़त अरब के लोग शाम जी कृष्ण के बेटे की संतान में हैं।

साभार –

गौरव गिरी पंडित लेखराम जी की अमर रचनाओ में से एक पुस्तक

जिहाद – कुरआन व इस्लामी ख़ूँख़ारी

बिलकुल जिस प्रकार लेखराम जी लिख कर गए हैं उसी प्रकार लिखा गया ताकि समस्त मानव जाती इस्लाम का सच जान सके –

लिखने में यदि कही कोई त्रुटि या कुछ भूल चूक हो तो क्षमा करे –

नमस्ते —

रोम किस तरह मुसलमान हुआ ।

जिस तरह हमने अरब का वर्णन विश्वासनीय इतिहास की साक्षी से सिद्ध किया है कि वह किस जोर जुल्म से मजबूर होकर मुसलमान हुआ और किस कदर लूट घसूट से दीन मुहम्मदी किस ग़रज़ से फैलाया गया । वहीं हाल रूम व शाम का है। चुनाचि इसका खुलासा हाल फतूह शाम में दर्ज है और दरहकीकत वह देखने के लायक और दीन इस्लाम की कदर

जानने के लिए उम्दाह किताब है ।

मुआज़विनज़वल ने जो उवेदह की तरफ से दूत बनकर आया था वतारका हाकिम रूम से कहा कि या तो ईमान लाओ कुरान पर मुहम्मद पर या हमें जिजिया दो नहीं तो इस झगडे का फैसला तलवार करेगी होशियार रहो (देखो तारीख अम्बिया सका ४१३ सन् १२८१ हिजरी)

अबु उवैदाने जो अर्जी मोमिनों के अमीर उमर को लिखी उसमें लिखा था कि इसलाम की फौज हर तरफ को भेज दी गई है कि जाओ जो जो इस्लाम कबूल करे उनको अमन दो ओर जो इस्लाम कबूल न करे उन्हें तलवार से क़त्ल कर दो। (सफा ४०१ तारीख अम्बिया सन् १२८१ हिजरी) ।

हज़रत अबू बक्र ने उसामा को सिपहसलार मुकर्रर करके लश्कर को जहाद के वास्ते शाम के देश से भेजा । उसने वहां जाकर उन के खण्ड मण्ड कर दिये और तमाम काफिरों की नाक में दम कर दी जो घबराकर अपने देश को छोड़कर भाग गये । ओर मारता
डाटता वहाँ तक जा पहुचा हवाली के लोगों से बदला लिया और फिर बहुत सा माल लेकर दबलीफा रसूल की खिदमत में हाजिर हुआ । उस बक्त लड़ने बालों की कमर टूट गयी क्योंकि उन नादानों का गुमान था कि अब इस्लाम में बन्दोबस्त न रहेगा। और इस कदर ताकत न होगी कि जहाद कर सकें । (देखो तारीख अम्बिया सका ३७६ व ३७७ सन् १२८१ हिजरी)

शाम की जीत के लिये जो पत्र हजरत अवू वक्र सद्दीक ने जहाद की हिजरत (तीर्थयात्रा) के बास्ते मुअज्जम (बड़े) मक्का के लोगों के लिये उसमें लिखा है कि कर्बला और शाम के दुश्मनों ( देखो सफा १३ जिल्द १ फतूह शाम मतवूआ नवलकिशोर सन् १२८६ हिजरी)

फिर बही इतिहास वेत्ता लूट का माल हाथों हाथ आने का वर्णन करके लिखता है कि यजीद लड़का सूफियाना का और रुवैया अमिर का लड़का जो इस लश्कर के सर्दार थे कहा कि मुनासिब है की सब माल जो रुमियों से हाथ लगा है हजरत सद्दीक के हुजूर में भेजा जावे ताकि मुसलमान उस को देखकर रुमियों के जहाद का इरादा करें । (फतूह शाम जिल्द १३
सन् १२८६ हिजरी)

हज़रत बक्र सदीक शाम के जाने के बक्त यह वसीयत उमेर आस के लड़के को करते थे कि डरते खुदा से और उसकी राह में लडो और काफिरो को क़त्ल करों । (जिल्द अव्वल फतूह शाम सका १९)

शाम की एक लडाई से ६१० कैदी पकडे आये। उमरबिन आस न उन पर इस्लाम का दीन पेश किया पस कोई उनमें का मुसलमान न हुआ फिर हुक्म हुआ कि उनकी गर्दनें मार दी जावें (जिल्द अव्वल फतूह शाम सफा २५ नवलकिशोर)

दमिश्क के मुहासिरे की लडाई में लिखा है। फिर खालिदविन बलीद ने कलूजिस ओर इजराईल को अपने सामने बुलाकर उन पर इस्लाम होने को कहा मगर उन्होंने इंकार किया पस बमूजिब हुक्म वलीद के बेटे खालिद और अजूर के लड़के जरार ने इजराईल को ओर राथा बिन अमरताई ने कलूजिस को कत्ल किया (देखो फ़तूह शाम जिल्द अव्वल सफ़ा
५३ नवलकिशोर)

किताब फाजमाना तुक हिस्सा अव्वल जो देहली से छपा उसमें लिखा है कि तीन सौ साल तक मुसलमान रूम के हुक्म से हर साल १००० ईसाइयो के बच्चो को क़त्ल करने वाली फ़ौज में जबरन भर्ती करके मुसलमान किया जाता था और उनको ईसाइयो के कत्ल और जंग पर आमादह किया जाता था सिर्फ यहाँ तक ही संतोष नहीं किया जाता था बल्कि
ईसाइयों के निहायत खूबसूरत हजारों बच्चे हर साल गिलमाँ बनाये जाते और उनसे रूमी मुसलमान दीन वाले प्रकृति के विरूद्ध (इगलाम-लौंडेबाजी) काम के दोषी होते थे। और जवान होकर उन्हीं गाज़ियो के गिरोह में शामिल किये जाते थे कि बहिश्त के वारिस हों। अलमुख्तसिर मुफस्सिल देखो असल किताब ।)

जिस तरह खलीफों के वक़्त में जबरन गिरजे गिराये जाते ब बर्बाद जिये जाते थे इसी तरह शाम रूम ने भी जुल्म सितम से गिरजाओं को मसजिद बना दिया ।

साभार –
गौरव गिरी पंडित लेखराम जी की अमर रचनाओ में से एक पुस्तक
जिहाद – कुरआन व इस्लामी ख़ूँख़ारी

इस्लाम और ईसाइयत का इतिहास एक नज़र में

क्या हजरत आदम और उनकी बेगम हव्वा – कभी थे भी ?????

ये सवाल इसलिए बहुत महत्वपूर्ण है – क्योंकि – ये जानना बहुत जरुरी है इसलिए नहीं कि कोई मनगढंत बात है या सवाल है –

क्या कोई वैज्ञानिक प्रमाण मिला है आज तक जो इनके प्रेम प्रतीक –
अथवा त्याग और बलिदान की मिसाल पेश करे ??

अब कुछ लोग (ईसाई और मुस्लमान) अपने अपने धारणा के हिसाब से बेबुनियाद बात करते हुए कहेंगे की –

ये जो मानव जाती है – ये इन्ही आदम और हव्वा से चली है – जो की “स्वघोषित” अल्लाह मियां अथवा तथाकथित परमेश्वर “यहोवा” ने बनाई थी –

जब बात आती है – भगवान श्री राम और योगेश्वर श्रीकृष्ण आदि की तो इन्हे (ईसाई और मुस्लमान) को ठोस प्रमाण चाहिए –

जबकि – रामसेतु इतना बड़ा प्रमाण – श्री लंका – खुद में एक अकाट्य प्रमाण – फिर भी नहीं मानते –

महाभारत के इतने अवशेष मिले – आज भी कुरुक्षेत्र जाकर आप स्वयं देख सकते हैं – दिल्ली (इंद्रप्रस्थ) पांडवकालीन किला आज भी मौजूद है जिसे पुराना किला के नाम से जाना जाता है।

इतना कुछ है – फिर भी कुछ समूह (ईसाई और मुस्लमान) मूर्खो जैसे वही उवाच करते हैं – प्रमाण लाओ –

आज हम इस समूह (ईसाई और मुस्लमान) से कुछ जवाब मांगते हैं –

1. हज़रत आदम और हव्वा यदि मानवो के प्रथम पूर्वज हैं तो – क्यों औरत आदमी से पैदा नहीं होती ???? ऐसा इसलिए क्योंकि प्रथम औरत (हव्वा) आदम की दाई पसली से निर्मित की गयी – क्या किसी शैतान ने बाइबिल और क़ुरान के तथाकथित अल्लाह का निज़ाम उलट दिया ?? या कोई और शक्ति ने ये चमत्कार कर दिया ??? जिसे आज तक अल्लाह या यहोवा ठीक नहीं कर पाया – यानि की एक पुरुष संतान को उत्पन्न करे न की औरत ???

2. यदि बाइबिल और क़ुरान की ये बात सही है कि यहोवा या अल्लाह ने हव्वा को आदम की पसली से बनाया तो आदम यानि की सभी पुरुषो की एक पसली क्यों नहीं होती ???????? और जो हव्वा को एक पसली से ही पूरा शरीर निर्मित किया तो हव्वा को भी एक ही पसली होनी चाहिए – या यहाँ भी कोई शैतान – यहोवा या अल्लाह पर भारी पड़ गया और यहोवा और अल्लाह की बनाई संरचना में – बड़ा उलटफेर कर दिया जिसे आजतक यहोवा या अल्लाह ने कटाई छटाई का हुक्म देकर अपना बड़प्पन साबित करने की नाकाम कोशिश की ???????

3. यहोवा या अल्लाह ने आदम और हव्वा की संरचना कहा पर की ?? क्या वो स्थान किसी वैज्ञानिक अथवा researcher द्वारा खोज गया ????

4. हज़रत आदम और हव्वा ने ऐसा क्या काम किया जिसकी वजह से उन दोनों को स्वर्ग (अदन का बाग़) से बाहर निकल दिया गया ?? क्या अपने को नंगा जान लेना और जो कुछ बन पाये उससे शरीर को ढांप लेना – क्या गुनाह है ????? क्या जीवन के पेड़ से बुद्धि को जागरूक करने वाला फैला खाना पाप था ????? ये पेड़ किसके लिए स्वर्ग (अदन का बाग़) में बोया गया और किसने बोया ???? क्या खुद यहोवा या अल्लाह को ऐसे पेड़ या फल की आवश्यकता थी या है ??? अगर नहीं तो फिर आदम और हव्वा को खाने से क्यों खुद यहोवा या अल्लाह ने मना किया ??? क्या यहोवा या अल्लाह – हज़रत आदम और हव्वा को नग्न अवस्था में ही रखना चाहते थे ???? या फिर यहोवा या अल्लाह नहीं चाहता था की वो क्या है इस बात को हज़रात आदम या हव्वा जान जाये ????

5. यहोवा या अल्लाह द्वारा बनाया गया – अदन का बाग़ – जहा हजरत आदम और हव्वा रहते थे – जहा से शैतान ने इन दोनों को सच बोलने और यहोवा या अल्लाह के झूठे कथन के कारण बाहर यानि पृथ्वी पर फिकवा मारा – बेचारा यहोवा या अल्लाह – इस शैतान का फिर से कुछ न बिगाड़ पाया – खैर बिगाड़ा या नहीं हमें क्या करना – हम तो जानना चाहते हैं – ये अदन का बाग़ मिला क्या ??????

6. यहोवा या अल्लाह द्वारा – आदम और हव्वा को उनके सच बोलने की सजा देते हुए और अपने लिए उगाये अदन के बाग़ और उस बाग़ की रक्षा करने वाली खडग (तलवार) से आदम और हव्वा को दूर रखने के लिए पृथ्वी पर भेज दिया गया। मेरा सवाल है – किस प्रकार भेजा गया ??? क्या कोई विशेष विमान का प्रबंध किया गया था ???? ये सवाल इसलिए अहम है क्योंकि बाइबिल के अनुसार यहोवा उड़ सकता है – तो क्या उसकी बनाई संरचना – आदम और हव्वा को उस समय “पर” लगाकर धरती की और भेज दिया गया – या कोई अन्य विकल्प था ???

ये कुछ सवाल उठे हैं – जो भी कुछ लोग (ईसाई और मुस्लमान) श्री राम और कृष्ण के अस्तित्व पर सवाल उठाते हैं – अब कुछ ठोस और इतिहास की नज़र में ऐसे अकाट्य प्रमाण लाओ जिससे हज़रत आदम और हव्वा का अस्तित्व साबित हो सके – नहीं तो फ़र्ज़ी आधार पर की गयी मनगढंत कल्पनाओ को खुद ही मानो – और ढोल पीटो – झूठ के पैर नहीं होते – और सत्य कभी हारता नहीं – ध्यान रखना –

वो जरा इन सवालो के तर्कपूर्ण और वैज्ञानिक आधार पर जवाब दे – नहीं तो अपना मुह बंद रखा करे।

नोट : कृपया दिमाग खोलकर और शांतिपूर्ण तरीके से तार्किक चर्चा करे – आपका स्वागत है – गाली गलौच अथवा असभ्य बर्ताव करने पर आप हारे हुए और जानवर घोषित किये जायेंगे।

सहयोग के लिए –

धन्यवाद –

इस्लाम में आज़ादी ? एक कड़वा सच

कोई व्यक्ति अपने मत को त्यागकर

इस्लाम मत को अपना ले तो कोई सजा का प्रावधान नहीं।

लेकिन जैसे ही

इस्लाम मत को छोड़कर अन्य मत अपना ले

तो उसकी सजा मौत है।

क्या अब भी इस्लामी तालीम में कोई स्वतंत्रता बाकी रही ???

क्या मृत्यु के डर से भयभीत रहने को आज़ादी कहते हैं ???

क्या अल्लाह वास्तव में इतना निर्दयी है की केवल मत बदलने से ही जन्नत जहन्नम तय करता है – तो कैसे अल्लाह दयावान और न्यायकारी ठहरा ?

सच्चाई तो ये ही है की जब तक इस्लाम नहीं अपनाया जाता – वह व्यक्ति स्वतंत्र होता है – पर जैसे ही इस्लाम अपनाया वह आशिक़ – ए – रसूल बन जाता है –
अर्थात हज़रत मुहम्मद का गुलाम होना स्वीकार करता है –

अल्लाह ने सबको आज़ादी के अधिकार के साथ पैदा किया – यदि क़ुरआन की ये बात सही है तो कैसे मुस्लमान अपने को मुहम्मद साहब के गुलाम (आशिक़ – ए – रसूल) कहलवाते हैं ????

क्या इसी का नाम आज़ादी है ????

तो गुलामी का नाम क्या होगा ??

ऐसी स्तिथि में मानवीय स्वतंत्रता कहाँ है ???????

वैचारिक स्वतंत्रता कहाँ हैं ??????

धार्मिक स्वतंत्रता कहाँ है ?????

शारीरिक स्वतंत्रता कहाँ हैं ????

http://navbharattimes.indiatimes.com/…/article…/45219309.cms

ए मुसलमानो जरा सोच कर बताओ ……………………….

कहाँ है आज़ादी ????????????????

क़ुरआन में परिवर्तन

आज तरह सौ वर्ष से हमारे मुस्लमान भाई कहते चले आ रहे हैं की हमारे कुरआन शरीफ में किसी प्रकार का भी कोई परिवर्तन अर्थात फेर-बदल नहीं हुआ इसलिए ये (क़ुरआन) खुदाई किताब है। परन्तु हमें अपने कई वर्षो के अति गहन निरिक्षण करने के पश्चात इस बात का पूरा पूरा पता लग गया है की कुरआन में बहुत कुछ परिवर्तन अर्थात फेरबदल हो चूका है जिसका एक अंश हम क़ुरान शरीफ की अक्षर संख्या के सम्बन्ध में इस्लामी साहित्य के बड़े बड़े विख्यात विद्वानो के लेखानुसार आप सज्जनो की भेंट करते हैं, अवलोकन कीजिये।

किसके मत में कुरआन की अक्षर संख्या कितनी थी ?

क्रमांक …………………. मत का नाम ……………… अक्षर संख्या

1………. सुयूती इब्ने अब्बास के कुरआन में ……………. 323671

2………. सुयूती उम्रिब्नेखताब के कुरआन में …………. 1027000

3………. सिराजुल्कारी अब्दुल्ला इब्ने मसऊद …………. 322671

4………. सिरजुल्कारी मुजाहिद के कुरआन में …………. 321121

5………. उम्दतुल्ब्यान अब्दुल्ला इब्ने मसऊद ………… 322670

6………. सिराजुल्कारी प्रस्तुतकर्ता ……………………. 3202670

7………. उम्दतुल्ब्यान प्रस्तुतकर्ता …………………….. 351482

8………. कसीदतुलकिरात प्रस्तुतकर्ता ……………….. 3202670

9………. दुआय मुतबर्रकः प्रस्तुतकर्ता …………………. 445483

10………. रमूजूल कुरआन मुहम्मद हसनअली ………….. 40265

जवाब दो मुस्लमान मित्रो – ये क्या स्पष्ट मिलावट नहीं दिखती ????

अगर नहीं तो कैसे ?????????

साभार : क़ुरआन में परिवर्तन
लेखक – मौलाना गुलाम हैदर अली “उर्फ़” पंडित सत्यदेव “काशी”

इस्लाम में स्त्री और पुरुष का बराबरी का हक़ महज एक “अन्धविश्वास” है

इस्लाम में स्त्री और पुरुष का बराबरी का हक़ महज एक
“अन्धविश्वास” है – और इस अन्धविश्वास का जितनी जल्दी हो सके निर्मूलन होना ही चाहिए –

अब आप पूछोगे इसमें अन्धविश्वास क्या है ? इस्लाम तो नारी को बराबरी का दर्ज़ा हज़रत मुहम्मद के समय से देता चला आ रहा है –

तो भाई मेरा जवाब वही है की आँख मूँद कर बुद्धि से बिना समझे किसी बात को मान लेना ही तो अन्धविश्वास है – और यही अन्धविश्वास के चक्कर में बहुत से नादान फंस जाते हैं – खासकर युवतियां –

उन युवतियों में भी विशेषकर जो हिन्दू – बौद्ध – सिख – जैन – ईसाई – आदि सम्प्रदायों से सम्बन्ध रखती हैं – उन्हें तो विशेष कर इस पोस्ट को ध्यान से पढ़ना चाहिए –

दारुल उलूम – ये वो नाम है जो इस्लामी कायदे कानूनों के बारे में लोगों (मुसलमानो) के संदेहों का निराकरण करने वाली संस्था है। और प्रत्येक मुस्लमान (मुस्लमान मतलब जो मुसल्लम ईमान है – यानि अपने ईमान का पक्का) वो अपने ईमान से जुडी इस संस्था के फतवो को कैसे नज़र अंदाज़ कर सकता है ? यानी एक पक्के और सच्चे मुस्लमान के लिए इन फतवो को लेकर कोई गलत फहमी नहीं – जो कह दिया वो पत्थर की लकीर – यही तो ईमान है। क्योंकि इस संस्था के फतवे अपने खुद के घर की जागीर नहीं होते – बल्कि इस्लामी कायदे क़ानून – खुदा की पुस्तक क़ुरान (ऐसा मुस्लिम बोलते हैं) तथा हदीसो (इस्लामी परिभाषा में, पैग़म्बर मुहम्मद के कथनों, कर्मों और कार्यों को कहते हैं)

अब चाहे कोई मुस्लिम किसी फतवे को माने या तो ना माने मगर अपने स्वार्थ की पूर्ती के लिए तो फतवा बनवा ही सकता है – ऐसी आशंका होनी लाज़मी है – आईये एक नज़र डालते हैं –

“देवबंद ने अपने एक फतवे में कहा कि इस्लाम के मुताबिक सिर्फ पति को ही तलाक देने का अधिकार है और पत्नी अगर तलाक दे भी दे तो भी वह वैध नहीं है।”

जी हाँ – पढ़ा आपने – केवल एक पुरुष ही तलाक दे सकता है – यानि की पुरुष को ही तलाक देने का “अधिकार” है – स्त्री को कोई अधिकार नहीं – और अगर स्त्री दे भी दे तो भी “वैध” नहीं –

ये है इस्लाम का सच – तो कैसे स्त्री पुरुष – इस्लाम की नज़र में एक बराबर हुए ???????

आइये कुछ और फतवो के बारे में बताते हैं –

“एक व्यक्ति ने देवबंद से पूछा था, पत्नी ने मुझे 3 बार तलाक कहा, लेकिन हम अब भी साथ रह रहे हैं, क्या हमारी शादी जायज है? इस पर देवबंद ने कहा कि सिर्फ पति की ओर से दिया तलाक ही जायज है और पत्नी को तलाक देने का अधिकार नहीं है।”

“इसके अलावा देवबंद ने अपने एक फतवे में यह भी कहा कि पति अगर फोन पर भी अपनी पत्नी को तलाक दे दे तो वह भी उसी तरह मान्य है जैसे सामने दिया गया।”
“एक फतवे में कहा गया कि इस्लाम के हिसाब से महिलाओं के टाइट कपड़े पहनने की मनाही है और लड़कियों की ड्रेस ढीली और साधारण होनी चाहिए।”

“गर्भनिरोधकों के इस्तेमाल पर भी देवबंद ने एक फतवा जारी कर सनसनी फैला दी। एक व्यक्ति ने देवबंद से पूछा कि उसकी पत्नी को थायराइड की समस्या है, जिसके चलते उसके गर्भवती होने से बच्चे पर असर पड़ सकता है। ऐसी स्थिति से बचने के लिए उसे डॉक्टर ने गर्भनिरोधक के इस्तेमाल की सलाह दी है और क्या वह इस्लाम के मुताबिक गर्भनिरोधक का इस्तेमाल कर सकता है?” –

अब देखिये और जानिये इस बारे में फतवा क्या कहता है –

“इसके जवाब में देवबंद ने कहा कि डॉक्टर की सलाह के बाद उसे इस बारे में हकीम से परामर्श लेना चाहिए और अगर वह भी उसे गर्भनिरोधक का उपयोग करने की सलाह देता है, तो वह ऐसा कर सकता है।”

आप समझ रहे हैं ????

चाहे पत्नी मरने की कगार पर हो – मगर एक सच्चे मुसलमान के लिए अपनी पत्नी के इलाज से पहले फतवे से ये जानना की क्या जायज़ (वैध) है और क्या नाजायज़ (अवैध) है – उसकी पत्नी की जान से ज्यादा जरुरी है – अभी भी शक है की सच्चा और पक्का मुस्लमान फतवो को नहीं मानेगा ???????? जबकि वो हर एक काम को जायज़ या नाजायज़ पूछने के लिए मुल्लो मौलवी के फतवो की बांट जोहता है (इन्तेजार करता है)

ये खुद में क्या एक जायज़ बात है ????

मतलब की डॉक्टर जो मॉडर्न विज्ञानं पढ़के – डिग्री लेके बैठा है – उसकी बात पर विश्वास नहीं है – मगर एक झोलाछाप और बिना एक्सपीरियंस का हकीम सलाह दे तो वो वैध है –

वाह भाई वाह – क्या विज्ञानं है – क्या ज्ञान है –

आगे भी देखिये –

“देवबंद ने महिलाओं को काजी या जज बनाने को भी लगभग हराम करार दे दिया। देवबंद ने इस बारे में पूछे गए सवाल के जवाब में फतवा देते हुए कहा महिलाओं को जज बना सकते हैं, लेकिन यह लगभग हराम ही है और ऐसा न करें, तो ज्यादा बेहतर है।”

अब भी कोई गुंजाईश बाकी है क्या की इस्लाम में स्त्री पुरुष को सामान अधिकार प्राप्त हैं की नहीं ?????

बात सिर्फ काजी या जज की नहीं है – बात असल में है की यदि कोई स्त्री काजी बन गयी – तो फिर स्त्रियों के हक़ में और फायदे के लिए फतवे आने शुरू होंगे तब दिक्कत हो जाएगी – इसलिए काजी नहीं बन सकती कोई मुस्लिम महिला – इस बात का भी गणित समझिए की कोई महिला जज भी ना बने – तो भाई इसका मतलब तो यही हुआ की महिलाओ या लड़कियों को शिक्षित करना ही इस्लाम के खिलाफ है – या फिर हायर स्टडी करना ही मुस्लिम महिलाओ के लिए हराम है –
क्योंकि इतना पढ़ना फिर किसलिए जब वो उस मुक़ाम पर ही न पहुंच पाये ????????

आगे सुनिए –

“देवबंद ने कहा कि यह हदीस में भी दिया गया है, जिसका मतलब है कि जो देश एक महिला को अपना शासक बनाएगा, वह कभी सफल नहीं होगा। इसलिए महिलाओं को जज नहीं बनाया जाना चाहिए।”

ये देखिए नारी विरोधी एक और फतवा – पता नहीं किस समाज के ऐसे लोग हैं जिनमे बुद्धि २ पैसे की भी नहीं –

क्या इस्लामी हदीस स्त्रियों के विरुद्ध है या ये मुल्ला मौलवी अपनी तरफ से ऐसी बेसिर पैर के फतवे जारी कर रहे हैं –

ये सोचना – समझना आपका काम है –

किसी भी जाती की नारी हो – उसका सम्मान – उसको बराबरी का दर्ज़ा ये उसका हक़ है बल्कि नारी जो निर्मात्री है – ऐसा वेद कहते हैं –
“नारी को ऊँचा दर्ज़ा है”

अब आप एक बार स्वयं विचार करे की जिन किताबो की बिनाह पर ये मुल्ले मौलवी इन फतवो को तैयार करते हैं – वो मुहम्मद साहब से ज़माने से चली आ रही हैं – अब या तो उन किताबो में स्त्री से वैर है तभी ऐसे फतवे आ रहे या फिर मुल्ले मौलवी अपनी तरफ से ऐसे फतवे तैयार कर रहे –

अब सच क्या है ?????

आप युवतियां, महिलाये, नारियो – स्वयं विचारो – क्योंकि आप निर्मात्री हो – समाज की – वर्तमान की और आने वाले इसी मानव समाज के उज्जवल भविष्य की

नमस्ते –

क़ुरआन सीरियाई शब्द है, तो सम्पूर्ण क़ुरआन अरबी में कैसे ?

क़ुरआन शब्द – सीरिया भाषा के “केरयाना” शब्द से लिया गया था – जिसका अर्थ होता है – “शास्त्र पढ़” – इसे बदल कर क़ुरआन कर दिया गया – जिसका मतलब होता है – “वह पढ़ा” अथवा “उसे सुनाई” –

दूसरी बात की क़ुरआन में अल्लाह ने बोला है – क़ुरआन को विशुद्ध अरबी भाषा में दिया गया –

तो संशय ये है की सीरियन भाषा – इस्लाम आने के ५०० साल लगभग पहले से विद्यमान है – फिर ऐसा क्यों की सीरिया की भाषा को प्रयोग करके “क़ुरआन” शब्द को रचा गया ???

क्या अल्लाह मियां नया शब्द देने में माहिर न थे ???

नोट : क़ुरआन में अल्लाह मियां बहुत जगह ऐसा कहे हैं की क़ुरआन को विशुद्ध अरबी में नाज़िल किया –

तब ऐसा क्यों है की क़ुरआन में अरबी के अलावा 74 अन्य भाषाओ का वजूद मिलता है ????

क्या अल्लाह ने अनेक भाषाओ के शब्द चोरी किये ???

या अन्य भाषाओ के अरबी शब्द ईजाद नहीं किये जा सके ??

या फिर अल्लाह मियां थोड़ा झूठ बोल गए की क़ुरआन विशुद्ध अरबी में है ????

क्योंकि क़ुरआन में अरबी भाषा के आलावा अन्य बहुत सी भाषाए हैं जिनसे कोई मुस्लिम भी इंकार नहीं कर सकता – इससे ये सम्भावना प्रबल होती है की क़ुरआन शब्द विशुद्ध अरबी नहीं है –

भाई सच क्या है – कोई मुस्लिम मित्र जरा सत्य से अवगत करावे –

मनुष्य का सैद्धांतिक और नीतिगत भोजन शाकाहार है, मांसाहार नहीं।

भोजन की बात होती है – तो सैद्धांतिक तौर पर – भोजन वो होना चाहिए – जिससे न तो किसी का दोष लगा हो – ना पाप करके चोरी करके लाये हो – न ही हत्या अथवा हिंसा करके –

हिंसा कहते हैं – जो वैर भाव से किया गया कृत्य हो।

लेकिन यदि हम भोजन के तौर पर देखे की क्या खाया जाये – तो एक निर्धारण होता है – एक नियम है – उसकी और ध्यान देना आवश्यक है – क्योंकि ईश्वर ने मनुष्य बनाया तो उसकी भोजन सामग्री भी अवश्य बनाई होगी और वो ऐसी होनी चाहिए जो सुगम हो सर्वत्र हो आकर्षित करने वाली हो – जो हमारे खाने योग्य हो –

तो ऐसी क्या चीज़ ईश्वर ने बनाई ?

पशु ? पक्षी ? बकरा ? मुर्गा ? बैल ? गाय ? सूअर ?

जी नहीं – क्योंकि न तो इनको देखकर खाने का आकर्षण होता – और न ही इन पशुओ को आपसे वैसा भय रहता जैसे की चीता शेर आदि हिंसक जानवरो से – यदि ये पशु मनुष्य के लिए बने गए होते तो आपके दांत – नाख़ून – पंजे – पेट की आंत – भोजन नली – आदि सब हिंसक जानवरो – पशुओ जैसी होती – जबकि ऐसा नहीं है –

पर यदि आप ध्यान से देखो – तो आपको सुन्दर प्राकृतिक वन – पेड़ पौधे – फल फूल – सुन्दर सुन्दर खुशबू – फूलो का प्राकर्तिक सौंदर्य आपके मन को भाता है – हम अपने घर आँगन को ऐसी ही सजाते हैं –

यदि हमें प्राकर्तिक तौर पर माँसाहारी बनाया होता तो हमें पेड़ पौधों फूलो की अपेक्षा हड्डी मांस खून आदि से विशेष लगाव होता – और अपने घर आदि भी ऐसे ही हड्डी मांस खून आदि से सजाते – जबकि ऐसा नहीं होता।

विशेष बात है की – जब हम पेड़ से आम तोड़ते या धान गेहू की फसल काटते तो कोई भागता नहीं है – क्योंकि वो भागने के लिए बनाये ही नहीं – और इसमें हिंसा भी नहीं हुई क्योंकि वैर भाव नहीं था वो जीवो के भोजन हेतु ही बनाये गए हैं – ये सिद्ध होता है।

दुनिया में सभी शाकाहारी है – क्योंकि बिना शाक – गेहू ज्वर बाजरा सरसो – मूली टमाटर = कुछ नहीं बना सकते – न खा ही सकते – इसलिए दुनिया का कोई मनुष्य अपने को शाकाहारी नहीं हु ऐसा सैद्धांतिक तौर पर नहीं कह सकता –

पर कुछ लोग वो खाते हैं जो सभी मनुष्य नहीं खाते –
और जो सब मनुष्य खाते हैं उसे ही शाकाहार कहा जाता है

इसलिए शाकाहारी तो सभी हैं – मांसभक्षी भी शाकाहार ही खाता है – पर क्योंकि सभी मनुष्य मांस नहीं खाते इसलिए वो अपने को मांसाहारी भी कहता है – और बिना शाकाहार उसका मांस व्यर्थ है – इसलिए क्यों नहीं शाकाहार अपनाया जाये ?

शेष फिर कभी………

ईश्वर निराकार है – एक तर्कपूर्ण समाधान

शंका निवारण :

पूर्वपक्षी : क्या ईश्वर के हाथ पाँव आदि अवयव हैं ?

उत्तरपक्षी : ये शंका आपको क्यों हुई ?

पूर्वपक्षी : क्योंकि बिना हाथ पाँव आदि अवयव ईश्वर ने ये सृष्टि कैसे रची होगी ? कैसे पालन और प्रलय करेगा ?

उत्तरपक्षी : अच्छा चलिए में आपसे एक सवाल पूछता हु – क्या आप आत्मा रूह जीव को मानते हैं ?

पूर्वपक्षी : जी हाँ – में आत्मा को मानता हु – सभी मनुष्य पशु आदि के शरीर में है – पर ये मेरे सवाल का जवाब तो नहीं – मेरे पूछे सवाल से इस जवाब का क्या ताल्लुक ? कृपया सीधा जवाब दीजिये।

उत्तरपक्षी : भाई साहब कुछ जवाब खोजने पड़ते हैं – खैर चलिए ये बताये शरीर में हाथ पाँव आदि अवयव होते हैं क्योंकि जीव को इनसे ही सभी काम करने होते हैं – पर जो आत्मा होती है उसके अपने हाथ पाँव भी होते हैं क्या ?

पूर्वपक्षी : नहीं होते।

उत्तरपक्षी : क्यों नहीं होते ?

पूर्वपक्षी : #$*&)_*&(*#$*$()
(सर खुजाते हुए – कोई जवाब नहीं – चुप)

उत्तरपक्षी : जब एक आत्मा जो सर्वशक्तिमान ईश्वर के अधीन है – बिना हाथ पाँव अवयव आदि के – मेरे इस शरीर में विद्यमान रहकर – शरीर को चला सकती है – तो ईश्वर जो सर्वशक्तिमान है – वो ये सृष्टि का निर्धारण उत्पत्ति प्रलय सञ्चालन वो भी बिना हाथ पाँव आदि अवयव क्यों नहीं कर सकता ? इसमें आपको कैसे शंका ? कमाल के ज्ञानी हो आप ?

पूर्वपक्षी : #$*&)_*&(*#$*$()
(चुपचाप गुमसुम चले गए)