बिना मुख ईश्वर ने वेद ज्ञान कैसे दिया?
– इन्द्रजित् देव
महर्षि दयानन्द व अन्य ऋषियों, महर्षियों व पौराणिकों की इस बात पर सहमति है कि वेद सृष्टि के आरम्भ में ईश्वर ने चार ऋषियों को दिए। वेद अपौरुषेय हैं। उस समय न तो मुद्रणालय थे, न ही नभ से ईश्वर ने वेद अग्नि, वायु, आदित्य व अंगिरा – इन चार ऋषियों के लिए नीचे गिराए, फिर प्रश्न उत्पन्न होना स्वाभाविक है कि ईश्वर जब निराकार है तो बिना मुख व वाणी वाले ईश्वर ने ज्ञान कैसे दिया?
हमारा निवेदन है कि ईश्वर सर्वव्यापक है, शरीर रहित है-
सः पर्यगाच्छुक्रमकायम्। -यजुर्वेद ४०/८
अर्थात् वह ईश्वर सर्वत्र गया हुआ, व्यापक है, शक्तिशाली है, शीघ्रकारी है, काया रहित है, सर्वान्तर्यामी है। इन गुणों के कारण ही ईश्वर ने चार ऋषियों के मन में वेद ज्ञान स्थापित कर दिया था। वह सर्वशक्तिमान् भी है, जिसका अर्थ यही है कि वह अपने करणीय कार्य बिना किसी अन्य की सहायता के स्वयं ही करता है। बिना हाथ-पैर के ईश्वर अति विस्तृत संसार, गहरे समुद्र, ऊँचे-ऊँचे पर्वत, रंग-बिरंगे पुष्प, गैसों के भण्डार, सहस्रों सूर्य व शीतल चन्द्रमा बना सकता है तो सब पदार्थों व सब आत्माओं में उपस्थित अन्तर्यामी ईश्वर बिना मुख वेद ज्ञान क्यों नहीं दे सकता? गोस्वामी तुलसीदास ने भी लिखा है-
बिनु पग चले सुने बिनु काना।
कर बिनु कर्म करे विधि नाना।।
महर्षि दयानन्द सरस्वती ‘‘ऋग्वेदादिभाष्य भूमिका’’ के ‘‘अथ वेदोत्पत्तिविषयः’’ अध्याय में लिखते हैं- ‘‘जब जगत् उत्पन्न नहीं हुआ था, उस समय निराकार ईश्वर ने सम्पूर्ण जगत् को बनाया। तब वेदों के रचने में क्या शंका रही?…..हमारे मन में मुखादि अवयव नहीं है, तथापि उसके भीतर प्रश्नोत्तर आदि शब्दों का उच्चारण मानस व्यापार में होता है, वैसे ही परमेश्वर में भी जानना चाहिए।’’
जैसे मनुष्य शरीर से श्वास बाहर निकालता तथा पुनः श्वास भीतर ले लेता है, इसी प्रकार ईश्वर सृष्टि के आरम्भ में वेदों को प्रकाशित करता है । प्रलयावस्था में वेद नहीं रहते, परन्तु ईश्वर के ज्ञान में वेद सदैव बने रहते हैं। वह ईश्वर की विद्या है। वह सर्वशक्तिमान् व अन्तर्यामी है, मुख और प्राणादि बिना भी ईश्वर में मुख व प्राणादि के करने योग्य कार्य करने का सामर्थ्य है।
जब भी हम कोई कार्य करने लगते हैं, तब मन के भीतर से आवाज-सी उठती है। वह कहती है-यह पाप कर्म है अथवा पुण्य कर्म है। यह आवाज बिना कान हम सुनते हैं, क्योंकि यह आवाज बाहर से नहीं आती। यह आवाज विचार के रूप में आती है। यह कार्य शरीरधारी व्यक्ति नहीं करता, न ही कर सकता है। यदि कोई शरीरधारी यह कार्य करेगा तो कर नहीं सकेगा, क्योंकि उसे मुख की आवश्यकता रहेगी। महर्षि दयानन्द जी ‘‘अथ वेदोत्पत्ति विषयः’’ अध्याय में यह भी लिख गए हैं-‘किसी देहधारी ने वेदों को बनाने वाले को साक्षात् कभी नहीं देखा, इससे जाना गया कि वेद निराकार ईश्वर से ही उत्पन्न हुए हैं।…….अग्रि, वायु, आदित्य और अंगिरा- इन चारों मनुष्यों को जैसे वादित्र (=बाजा, वाद्य) को कोई बजावे, काठ की पुतली को चेष्टा करावे, इसी प्रकार ईश्वर ने उनको निमित्त मात्र किया था।’
इस विषय में स्व. डॉ. स्वामी सत्यप्रकाश जी का कथन भी उल्लेखनीय है-आप कहीं नमक भरा एक ट्रक खड़ा कर दीजिए, परन्तु एक भी चींटी उसके पास नहीं आएगी। इसके विपरीत यदि एक चम्मच खाण्ड या मधु रखेंगे तो दो-चार मिनटों में ही कई चींटियाँ वहाँ आ जाएगी। मनुष्य तो चखकर ही जान पाता है कि नमक यह है तथा खाण्ड वह है, परन्तु चींटियों को यह ज्ञान बिना चखे होता है। ईश्वर बिना मुख उन्हें यह ज्ञान देता है। आपने चींटियों को पंक्तिबद्ध एक ओर से दूसरी ओर जाते देख होगा। चलते-चलते वे वहाँ रुक जाती हैं, जहाँ आगे पानी पड़ा होता है अथवा बह रहा होता है। क्यों? पानी में बह जाने का, मर जाने का उन्हें भय होता है। प्राण बचाने हेतु पानी में न जाने का ज्ञान उन्हें निराकार ईश्वर ही देता है। मुख से बोलकर ज्ञान देने का प्रश्न वहाँ भी लागू नहीं होता, क्योंकि ईश्वर काया रहित है तो मुख से बोलेगा कैसे ? वह तो चींटियों के मनों में वाञ्छनीय ज्ञान डालता है।
गुरुकुल काँगड़ी, हरिद्वार के पूर्व आचार्य व उपकुलपति श्री प्रियव्रत जी अपनी एक पुस्तक में लिखते हैं कि मैस्मरो नामक एक विद्वान् ने ध्यान की एकाग्रता के लिए दूसरे व्यक्ति को प्रभावित करने की विद्या सीखी-आविष्कार किया। यह मैस्मरिज्म विशेषज्ञ दूसरे व्यक्ति पर मैस्मरिज्म करके स्वयं बिना बोले ही उससे मनचाही भाषा बुलवा सकता है, चाहे दूसरा व्यक्ति उस भाषा को न जानता हो, चाहे वह भाषा चीनी हो या जर्मनी, जापानी या कोई अन्य भाषा हो। इस विद्या का विशेषज्ञ दूसरे व्यक्ति के मन में अपनी बात डाल देता है।
इस विषय में एक घटना रोचक व प्रेरक है। गुरुकुल काँगड़ी के पूर्व उपकुलपति स्व. डॉ. सत्यव्रत सिद्धांतालंकार जब स्नातक बन कर गुरुकुल से निकले थे तो लुधियाना में एक दिन उन्होंने देखा कि बाजार में एक मौलवी मंच पर खड़ा होकर ध्वनि विस्तारक यन्त्र के आगे बोल रहा था- ‘‘आर्य समाजी कहते हैं कि खुदा निराकार है तथा वेद का ज्ञान खुदा ने दिया था। मैं पूछता हूँ कि जब निराकार है तो बिना मुँह खुदा ने वेद ज्ञान कैसे दिया?’’डॉ. सत्यव्रत सिद्धांतालंकार मौलवी के निकट जा खड़े हुए और दोनों की जो बातचीत हुई, वह इस प्रकार की थी-
‘‘आपने यह लाउडस्पीकर किस लिए लगा रखा है?’’
‘‘अपनी बात दूर खड़े लोगों तक पहुँचाने के लिए।’’
‘‘यदि दूर खड़े व्यक्ति आपके निकट आ जाएँ तो क्या फिर भी आप इसका प्रयोग करेंगे?’’
‘‘नहीं, तब इसकी जरूरत नहीं पड़ेगी। तब मैं पास खड़े आदमी से ऊँची आवाज में नहीं बोलूँगा।’’
‘‘यदि आपकी बात सुनने वाला व्यक्ति आपके अन्दर ही स्थित हो जाए, तब भी क्या आपको उससे बात करने के लिए मुँह की आवश्यकता पड़ेगी?’’
‘‘नहीं, तब मुझे मुँह की जरूरत नहीं रहेगी।’’
‘‘बस, यही उत्तर है, आपके प्रश्न का। ईश्वर सबमें है तथा सबमें ईश्वर है। वह सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापक तथा सर्वान्तर्यामी है। उसके साथ बात करने के लिए मनुष्य को मुख की आवश्यकता नहीं पड़ती तथा न ही ईश्वर को हमसे बात करने के लिए मुख की अपेक्षा है। वेद का ज्ञान ईश्वर ने ४ ऋषियों को उनके मनों में बिना मुख दिया था।’’
मौलवी मौन हो गया। मेरी लेखनी भी मौन हो रही है।
– चूना भट्ठियाँ, सिटी सेन्टर के निकट, यमुनानगर, हरि.
रक्तसाक्षी पं. लेखराम जीः- १२० वें बलिदान पर्व पर
Mai sirf ye janna chahata hoon ki Shri Ram , Shri Krishna aur Bhagwan Shiva ………….. ye sab kya avtar lekar ke aaye the ?? dekhiye maine satyarth prakash puri padhi hai …..lekin iska jawab mujhe nhi mila …. swamiji ki research se mai bahut prabhavit hua aur iss gyan ko apne parivar walon ko bhi batata hoo …. lekin ukt prashn ka jawab nhi mil rha ?? ………….Swamiji ye to maante hain ki Ram aur Krishna aaye the ….ve jagah jagah Geeta aur Valimik Ramayan se examples bhi dete hai …. lekin wo ye bhi kehte hain ki bhagwan avtar nhi leta …. wo shareer dharan nhi kar sakta ..kyunki shareer dharan kare to uski mrityu ho jaye ..aur bhagwan ki mrityu nhi ho sakti …… to Ram , krishna aur shiva ……….ye aaye kaise ..?? kaise geeta gyan mila …kaise ravan vadh hua ….. kaise shiv ne ram k darshan kiye janm ke samay me ….. Mai confuse hoon thoda …..Kripya margdarshan karein ??
प्रथम बात अवतार का अर्थ ही हो उपर से नीचे आना । ईश्वर तो हर कण के अंदर बाहर है तथा आरपार है । तो ईश्वर का आना जाना कही संभव नही है । उदाहरण हेतु बाग मे माली अनेक अच्छे फुल फल का सृजन करता है इसका अर्थ यह नही कि माली खुदको फुल या फल बना लेगा दोनो सदैव अलग रहेंगे । वैसै बी ईश्वर ऐसी पवित्र विचार धार वाली आत्मा मे धर्म रक्षा कि प्रेरणा उसके हृदय मे स्थापित करा देता है । और वैसै तो ईश्वर हरक्षण सत्य रास्ते पर चल सके ऐसा हमे मार्गदर्शन करते हैं । अब अवतार का कोई संबंध ईश्वर मे है नही । और भगवान यह शब्द मानवो में जो धर्म रक्षक पालन पोषण करने वाला महान व्यक्ति होता है उसे भी कहा जाता है ।
Aman ji…shiva …jab dhyan lagake beth te he to kise pukarte hen om ko jitne v debta hen ya devi hen sab ak hi om kar yani nirakar ko hi pukar te hen…insan apne ache karm se debta ban jata he…..
Sir,
Jab quran kehta hai ki allah sarva-shaktimaan hai to aap uski ninda karte ho. Ab yaha par yahi baat aa gayee hai ki ishwar ne rishio ke mann me ved rakkhe the. To iss par ye keh sakte hai ki quran bhi allah ka hi banaya hua ho sakta hai usko bhi mohammed mann mein rakkha tha.
Mein quran ka paksh nahi le raha. Kyonki mein svayam bhi quran ka virodhi huin. Parantu mera tark bhi uchit hai.
– Dhanyawad
bravo sir
allah sarv shakitimaan hai to kya wah apani maut kar sakta hai ?? allah dusara allah bana sakta hai ??? are bhai ishwar bhi apani seema se bahar nahi jaa sakta jaise udaharn ishawar kisi ko bina kaaran apman nahi kar sakta aur yah apaman to koi aadmi bhi kisi ko apmaan nahi kar sakta magar quran kaa alaah karta hai… allah jab nirakar hai to arsh par kyu baitha hai… arsh par baitha hai to arsh bada yaa allah ?? ishwar jo nirakar hai wah avtaar nahi le sakta kisi manushy janwar ityaadi me.. kyunki wah lega to us par dosh lagega… aur quraan allah ki vaani hai naa ki gyaan…. ved matlab gyaan… ishwar har galat kaam karne aur achha kaam karne ko bolta hai magar yah manushy par nirbhar karta hai ki wah use maane yaa naa maane.. yah baat samajh me nahi aaya hoga to vistrit jaankaari dunga..comment lamba hone ke kaaran jaankaari nahi de raha.. dhanywaad