अरब का मूल मजहब
भाग १
एक कट्टर वैदिकधर्मी
यह कोई आश्चर्य की बात नही कि आज पुरी दुनिया में जितने भी मत और सम्प्रदाय बिना शिर-पैर का सिद्धांत लेकर एक-दुसरे को निगलने को तैयार है वे सभी एक ही मूल के विकृतावस्था मे आ जाने के फलस्वरुप कुछ नये और पुराने बातों को समेट कर विभिन्न नामों से पनपा है .क्योंकि कोई कितना भी खुद के बनाये मतों को परिष्कृत करके उसे खुदाई मत का नाम देकर लोगों के सामने जाल की तरह फैलाने की कोशीश करें , उसे उस समाज मे फैली तत्कालीन मत और सिद्धातों की साया उसे छोड़ नही सकता और जब किसी समाज मे दैवीय सिद्धांत मौजूद हो तब तो उसे अपने मतों को उस दैवीय सिद्धांत से सर्वथा अलग कर ही नही सकता . यहि वजह है कि प्रत्येक मत और सम्प्रदाय मे उसे अपने अस्तित्व मे आने से पहले का समाजिक नियम , परंपरा आदि अवशेष रुप मे मौजूद रह जाता है जो आगे चलकर उस खोखली मतों और मजहबों के खोखली सिद्धांतों का पोल खोल देती है , और जिसे थोड़ी भी सोचने समझने , सही गलत परखने की शक्ति होती है वह उसे मानने से इनकार कर देता है और अपने मूल सिद्धांतों जिस पर उनके पूर्वज करोड़ों वर्ष से चले आ रहे हैं , अपना लेता है और शायद इसे ही बुद्धिमानी भी कहते है . आखिर असत्य की बुनियाद पर कोई कितने बड़ा महल खड़ा पायेगा कभी न कभी तो उसे गिरना ही है . आज विभिन्न मतों का यहि हाल है , उसके अपने ही जो मनशील है , बुद्धिमान है , कुछ सोचने समझने की क्षमता रखता है वह इस गिरते हुए मजहबों , मतों , सम्प्रदायों रुपी महल मे क्रूरता की आग मे जलती मानवता , खत्म होती मानवीय जीवन मूल्य, दम तोड़ती मासूम जिन्दगी आदि विभीषिका को देखकर उसकी बुनियाद खंगालकर लोगों के सामने रखा है और इस खोखली बुनियाद वाले महल को ठोकर मार कर अपने मूल एवं ठोस बुनियाद वाले महल की तरफ लौटा है जिसमे न तो मानवता खत्म होती है , न ही कभी मानवीय जीवन मूल्य खत्म होता है , न ही कोई मासूम दम तोड़ती है जिसके सिद्धांतों के बल पर उनके पुर्वज करोड़ों वर्षों से सुखी , संपन्न और वैभवशाली थे और रहे है . तो दोस्तों मै बात कर रहा हूं ऐसे मजहब की जिसकी महल आज तो बहुत बड़ी है परन्तु बहुत ही कमजोर है और आज खोखली सिद्धांतों की बजह से ही कहीं आइसिस के रुप मे मानवता को तार-तार कर रही तो कहीं लश्कर के रुप मे , कही कोई सीरिया इसकी आग मे जलता है तो कही कोई पाकिस्तान पांच-पांच वर्ष के मासूमों की गोली से भुना हुआ शव की चित्कार पर रोता है , कहीं कोई आधी आबादी की विकास मे प्रयासरत मलाला जैसी देवी दिन-दहारे जानलेवा हमले का शिकार होती है तो कहीं कोई यजीदी लड़कियों को लूट का धन समझ उसकी अस्मतों को बीस-बीस दिन तक इसलिए रौंदा जाता है क्योंकि यह उसके मजहब मे जायज है. ये सब के सब मजहब की खोखली नियम से उस मे धर्म का कार्य समझा जाता है जो किसी भी रुप मे और किसी भी सभ्य समाज मे मान्य नही है . अब उस मजहब का नाम बताने की जरुरत नही है ,आप निश्चित रुप से समझ गये होंगे , इसमें शक की कोई नही.
तो क्या ऐसी कमी है कि ये सब घिनौने कार्य हो रहे है आज ? क्यों आज सब परेशान है ऐसे मजहब से ? क्यों आज उस मजहब को मानने वाले भी इस कुकृत्य है शर्मिंदा है ? क्योंकि इसका सिद्धांत किसी अल्पज्ञ मनुष्य द्वारा बनाया गया है जो महत्वाकांक्षी था , खुद को इतिहास मे पैगम्बर के रुप देखना चाहता था , लोगों पर अपना अधिपत्य चाहता था तो आप खुद सोच सकते है ऐसे मंसूबों वाले का सिद्धांत कभी सार्वभौमिक और समाजिक समरसता को बढ़ावा देने वाला हो सकता है क्या ?
अगले भाग मे मुहम्मद साहब से पुर्व की अरेबियन समाज मे फैली धर्मिक मान्यताओं के बारे मे विचार करेंगे !
आभार :- पंडित ज्ञानेन्द्रदेव जी सूफी (पूर्व मौलाना हाजी मौलवी अब्दुल रहमान साहिब )