आर्यसमाज के संस्थापक स्वामी दयानन्द सरस्वमी का जन्म सन् 1824 में और बलिदान 1883 में हुआ। आर्यसमाज की स्थापना के 16 वर्ष बाद और स्वामी दयानन्द के देहावसान के लगभग 8 वर्ष बाद 14 अप्रैल, 1891 को भारतरत्न डॉ0 भीमराव अम्बेडकर का महू (मध्यप्रदेश) में जन्म हुआ। यह तो स्पष्ट ही है कि माननीय डॉ0 अम्बेडकर के काल में स्वामी दयानन्द शरीररूप में विद्यमान नहीं थे, पर आर्यसामाजिक आन्दोलन के रूप में उनका यशः शरीर तो जरूर विद्यमान था। डॉ0 भीमराव अम्बेडकरजी की ग्रन्थ सम्पदा इस बात की साक्षी है कि वे स्वामी दयानन्द द्वारा स्थापित आर्यसमाज तथा उनके अनुयायियों की गतिविधियों से अच्छी तरह परिचित थे। प्रस्तुत काल में आर्यसमाज का आन्दोलन अपने पूरे यौवन पर था, जिसका प्रभाव डॉ0 अम्बेडकर और उनके युग पर निश्चित रूप से पड़ा है। इस लेखक का उद्देश्य डॉ0 अम्बेडकर और आर्यसमाज के इतरेतराश्रय सम्बन्ध को यथोपलब्ध जानकारी के आधार पर प्रस्तुत करना है।
जैसे स्वामी दयानन्द गुजराती होते हुए भी मूलतः औदीच्य तिवारी ब्राह्मण माने जाते थे। वैसे ही डॉ0 अम्बेडकर भी मध्यप्रदेश में जन्म लेने के बावजूद मूलतः तथाकथित शूद्र (महार) कुलोत्पन्न महाराष्ट्रीय के रूप में सुप्रसिद्ध थे। कालान्तर में दोनों भी राष्ट्रीय ही नहीं, अपितु अन्तर्राष्ट्रीय महापुरुष के रूप में भी सुप्रसिद्ध हुए। जिस समय महाराष्ट्र में (तत्कालीन मुम्बई राज्य में) ’रानाडे-फुले युग‘ का अस्त हो रहा था, उसी समय वहाँ श्री सयाजीराव गायकवाड़, राजर्षि शाहू महाराज तथा डॉ0 अम्बेडकर के युग का उदय हो रहा था। यह दूसरी पीढ़ी भी अपनी पूर्ववर्ती दयानन्द-रानाडे-फुले आदि महापुरुषों की कार्यप्रणाली से प्रभावित और प्रेरित रही है। श्री सयाजीराव गायकवाड़ और राजर्षि शाहू महाराज स्वामी दयानन्द और उनके द्वारा स्थापित ’आर्यसमाज‘ से अधिक प्रभावित थे, तो डॉ0 अम्बेडकर महात्मा फुले और उनके द्वारा स्थापित ’सत्यशोधक समाज‘ से। श्री सयाजीराव गायकवाड़ और राजर्षि शाहू महाराज आर्यसमाजी होते हुए भी सत्यशोधक समाज के भी सहयोगी और प्रशंसक रहे, तथा डॉ0 अम्बेडकर महात्मा फुले के शिष्य होते हुए भी स्वामी दयानन्द और उनके आर्यसमाजी आन्दोलन के प्रशंसक होने के साथ-साथ समालोचक भी हैं, पर उन्हें आर्यनरेश द्वय श्री गायकवाड़ और राजर्षि शाहू की तरह आर्यसमाज आन्दोलन के सहयोगियों में नहीं खड़ा किया जा सकता। हाँ ! आर्यसमाजी आन्दोलन के डॉ0 अम्बेडकर हमेशा से ही हितैषी रहे हैं।
उनके लिए स्वामी दयानन्द की तुलना में महात्मा फुले अधिक आराध्य रहे। डॉ0 अम्बेडकर ने गौतम बुद्ध, सन्त कबीर और महात्मा फुले की महापुरुष त्रयी को अपना गुरु माना है। संस्कृत व राष्ट्रभाषा हिन्दी की तरह प्रान्तीय स्तर पर मराठी में काम-काज न कर पाने के कारण महाराष्ट्र में आर्यसमाज का आन्दोलन उतना प्रभावी ढंग से न चल सका, जितना कि उत्तर भारत में। राजर्षि शाहू महाराज के अनुसार ’ब्राह्मण नौकरशाही‘ के कारण महाराष्ट्र में आर्यसमाज का आन्दोलन प्रभावी नहीं हो सका।